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दूसरे दिन सुबह सुबह चाची मेरे माँ से मिलने आई. चाची माँ से बोली कि वो तीन दिन के लिए चाचा के साथ जा रही है. यह सुन कर मेरा मन उदास हो गया कि अब तीन दिन किसको चोदूँगा. चाची मेरी माँ को सीमा की जिम्मेवारी सौम्प कर चली गई.
मेरा दिल तो चाची के साथ चल गया, कैसे अपनी वासना का आग ठंडा करना है, रात को मैं यही सोच रहा था. मैं किताब निकाल कर देखने लगा, मेरे अंदर की आग जागने लगी, वासना इतनी भड़क गई थी कि सीमा दीदी के बारे में ख्याल आने लगा. लेकिन एक बार मन ने मुझे रोका ‘नहीं, वो मेरी बहन है.’ फिर सोचा कि जब चाची की चुदाई कर सकता हूँ फिर दीदी की चुदाई क्यों नहीं!
इस तरह दो दिन निकल गए, आज तीसरा दिन था. मैं शाम को क्लिनिक से लौटा और अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था कि सीमा कमरे में आ गई, उस समय मैं कच्छे में था. मैंने झट से तौलिया लपेट कर पूछा- क्या है दीदी? सीमा- अरे छोटू, ताई ने कहा था, तुम जब आओ तो चाय के लिए पूछ लेने के लिए? मैं- तुम बना दो, मैं आता हूँ. सीमा चली गई.
उसके जाने के बाद मैं धोती को लपेट कर बाहर आ गया. सीमा किचन में चाय बना रही थी. कुछ देर में वो चाय बना कर ले आई. मुझे हाथ में चाय दी. मैंने चाय पीते हुए पूछा- माँ कहाँ है? सीमा- ताई प्रवचन सुनने गई है. मैं- दीदी, आज कोचिंग नहीं गई तुम? सीमा- हाँ, आज छुट्टी हैं, सर कहीं गए हुए हैं.
फिर सीमा किचन में चली गई, मैंने सोचा कि यही मौका है, क्यों न सीमा दीदी पर ट्राई किया जाए.
मैंने सीमा दीदी को आवाज लगाई, दीदी मेरे पास आई. मैं- दीदी, मुझे तुमसे कुछ पूछना है? सीमा- हाँ पूछो? मैं डर भी रहा था पर हिम्मत कर के बोला- ये सब क्या हो रहा है, तुम्हारे रूम एक किताब मुझे मिली थी.
सीमा थोड़ा घबरा कर बोली- कौ काउ कौन सी किताब? मैं- दीदी बनो नहीं, मुझे पता है तुम क्या सब कर रही हो. तुम रुको यहीं… और मैं कमरे में जाकर किताब लाकर उसे दिखाते हुए बोला- यह क्या है दीदी? गन्दी और नंगी तस्वीर?
सीमा डर गई और घबराने लगी थी, वह डरते हुए बोली- सुन छोटू, तू भी जवान है तो समझता है शरीर की जरूरतों को! अब मैं जवान हो गई हूँ और तूने तो कर भी लिया होगा पर मैं तो कुंवारी हूँ. मैंने सोचा नहीं था कि सीमा दीदी इतनी जल्दी खुल जायेगी और इस तरह से बोलेगी.
तो मैंने दीदी का हाथ पकड़ कर उसको अपने पास खींचा और हम लगभग चिपक गये. मैंने उनके कान में कहा- मैं तुम्हारी जरूरत पूरी कर दूँ? वो मुस्कुराई और बोली- हाँ? मैंने कहा- मेरे रूम में चलना पड़ेगा. कुछ देर सीमा दीदी सोचती रही फिर बोली- तू चल, मैं मेन गेट बंद कर के आती हूँ.
कमरे में पहुँच कर मैंने उसे बिस्तर पर लिटाकर उसके होंठों को चूमा, फिर मैं उसके होंठों को चूसने लगा. हम दोनों ही जोश में आ गए, मेरा लंड कच्छे के अंदर ही सलामी देने लगा, मैंने दीदी के होंठ चूसते हुए अपनी धोती उतार दी और दीदी का एक हाथ लंड पर रख दिया जो कच्छे के अंदर खड़ा हो गया था.
मेरा लंड खुशी से फूल गया था क्योंकि उसे आज एक मस्त बुर जो मिलने वाली थी. दीदी की चुदाई मजेदार होने वाली थी. मैं दीदी के होंठ चूमना छोड़ कर बोला- दीदी, आप अपना जीभ बाहर निकालो! सीमा ने तुरंत जीभ बाहर निकाल ली.
मैं उसे अपने मुँह में ले कर चूसने लगा. आह क्या आनन्द मिल रहा था. पर इस मदहोशी के आलम में मेरा लंड बेकाबू होने लगा.
उसने धीरे से मेरा लंड बाहर निकाल कर पकड़ लिया और फिर हाथ से सहलाने लगी. मैं उसके जीभ को छोड़ कर होंठों को चूमते हुये उसके निचले भाग की तरफ़ बढ़ने लगा. पहले गले पर, फिर और… और भी नीचे और फिर उसकी उभरी हुई छाती पर. उसकी सांसें तेज हो उठी, उसकी छाती तेजी से ऊपर नीचे होने लगी थी.
फिर मैंने सीमा दीदी की कुर्ती उतार दी और ब्रा का हुक भी खोल दिया और सीधे कर उसकी ब्रा से उसके चूचों को आज़ाद कर दिया. उसकी छोटी छोटी चूचियों को मैं एक बार तो देखता ही रह गया फिर हौले से उसे दबा दिया, फिर उसकी पूरी चूचियों पर हाथ फ़िरा फ़िरा कर उसे दबाने लगा. उसके मुख से आनन्द भरी सिसकारियाँ निकलने लगी. उसे बहुत अच्छा लग रहा था. उसके मुख से आनन्द भरी आह ईई उईई सीई ई छोटू उईई सीई सीई सिसकारियाँ निकालने लगी.
अब मैं चूची से नीचे उसकी नाभि पर आ गया, उसमें मैंने अपनी जीभ डाल कर घुमाई. वो अह्ह्ह्ह ह्ह्ह कर उठी. फिर मैं खिसकते हुये उसकी बुर की तरफ़ बढ चला. सलवार के ऊपर से ही मैंने उसकी बुर को चूमा. उसके मुख से उफ़्फ़ की आवाज निकल गई.
मैं उसकी जांघें दबा कर उसकी बुर को चूमने लगा. फिर मैंने जल्दी से उसकी सलवार उतार कर कच्छा निकाल दिया और उसे नीचे से नंगी कर दिया और मैंने अपनी दो ऊँगलियों की सहायता से उसकी पेशाब करने वाली छेद को थोड़ा फैला कर अपनी जीभ को उसमें तेज़ी से नचाने लगा.
उसकी बुर पर छोटे छोटे नर्म बाल थे. उसकी बुर चूमने से वो पागल सी हो उठी थी और बार बार वो अपनी बुर चुदाई के अन्दाज में उछाल रही थी, दीदी भी अपनी पिछाड़ी को मटकाते हुए सिसकारियाँ ले रही थी- ओह भाई, तुम बहुत सता रहे हो डार्लिंग ह्हाई आऐईईइ ब्रदर! इसी प्रकार से अपनी बहन की गरमाई हुई बुर को चाटते रहो चूसो. मुझे बहुत मजा आ रहा है… ओह भाई तुम कितना मजा दे रहे हो, ओहहह… चाटो… मेरी जान मेरे कुत्ते मेरे हरामी बालम!
उससे मैंने कहा- आज तू मुझको जब तक गन्दी-गन्दी गालियाँ न बकने लगे, तब तक तेरी बुर को चचोरता रहूँगा साली. मेरी रंडी बहनिया, मेरी कुतिया! और ऐसा कहते हुए मैंने अपनी जीभ उसकी बुर में ठेल दी. वो अब बहुत तेज सिसकारियाँ ले रही थी- मेरी जान तुम मुझे पागल बना रहे हो… उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह मेरे चोदू भाई, हाँ ऐसे… ही ऐसे ही ओह्ह ओह्ह चूसो मेरी बुर को… ईई इह्ह मेरी बुर की धज्जियाँ उड़ा दो, साली को इसकी पुत्तियों को अपने मुँह में भर कर ऐसे ही चाटो मेरे राजा…!! ओह डियर बहुत अच्छा कर रहे हो तुम…! मेरी बुर के छेद में अपने जीभ को पेलो और अपने मुँह से चोद दो मुझे!
दीदी लगातार मुझे गालियाँ बके जा रही थी- हाय मेरे चोदू भाई! मेरी बुर के होंठों को काट लो और अपनी जीभ को मेरे बुर में पेलो… ओह मेरे चोदू भाई, ऐसे ही प्यार से मेरे डार्लिंग ब्रदर ऐसे ही! ओह खा जाओ मेरी बुर को, चूस लो इसका सारा रस! उसके मुख से लगातार सीत्कारें निकल रहीं थीं, मुझे उसकी सीत्कारों को सुन कर बहुत ही मजा आ रहा था- ओह डियर, ओह चोदू मेरे भगनासे को ऐसे ही चचोरो कुत्ते, बहनचोद चूस, मादरचोद और कस कर अपनी जीभ को पेल… ओह सीई… ईईई मेरे चुदक्कड़ बलम! ओह… मैं गई… गई… गईई राजा… ओह बुर चोदू… देख मेरा बुर… पी मेरे पानी को हाय पी जा इसे! ओह पी जा मेरी बुर से निकले रस को… सीईईई… भाई मेरे बुर से निकले स्वादिष्ट माल को पीईईई जा प्यारे भाई!
उसकी बुर फड़फड़ा रही थी और उसकी गांड में भी कम्पन हो रहा था.
फिर दीदी ने मुँह घुमा कर मेरे लंड को देखा और बोली- ओह माय लव, सच में तुमने मुझे बहुत सुख दिया. ओह डियर तुम्हारा लंड तो एकदम लोहे की रॉड जैसा खड़ा है. ओह डार्लिंग आओ… जल्दी आओ तुम्हारे लंड में खुजली हो रही होगी… मैं भी तैयार हूँ. आओ भाई चढ़ जाओ अपनी बहन की बुर पर और जल्दी से मेरी बुर चोद दो. चलो जल्दी से चुदाई का खेल शुरू करें.
मैंने दीदी के दोनों पैर के बीच मे आकर कहा- अब मैं तुम्हें चोदूँगा… यह कह कर अपने मोटे लंड को दीदी की बुर के ऊपर रगड़ना शुरू किया. ‘छोटू धीरे से करना, मैं कुँवारी हूँ!’ दीदी ने कहा. ‘फिकर मत करो, मैं बड़े प्यार से अपनी दीदी की चुदाई करूंगा.’
दीदी- ओह छोटू अब दीदी मत कहो… सीमा कहो. ‘ठीक है जान!’ और मैंने बुर के मुंह पे अपना लंड रखा. दीदी को लंड बुर में लेने की बेचैनी भी हो रही थी, वह बुरड़ उछाल रही थी और सिसयाते हुए मुझे बोलने लगी- ओह मेरे बहनचोद ब्रदर! अब देर मत करो, मैं अब गर्म हो गई हूँ, अब जल्दी से अपनी इस छिनाल बहन को चोद दो और प्यास बुझा लो, ओह भाई जल्दी करो और अपने लंड को मेरी बुर में पेल दो.
मैंने अपने खड़े लंड को उसकी गीली बुर के छेद के सामने लगा दिया और एक जोरदार धक्के के साथ अपना पूरा लंड उसकी बुर में एक ही धक्के में पेल दिया. उसके मुख से एक आह निकली- आई ईईई ईईईइ इईई मादरचोद बिल्कुल रांड समझ कर ठोक दिया अपना हथियार माँ मम्म्म मर गई ईईई ईईई… अरे मादरचोद ईईई ईईई मेरी फट जाएगी कुत्ते जरा धीरे नहीं पेल सकता था हरामी ईईई! ‘अभी तो शुरुआत है सीमा, अभी तो तेरी बुर में 3 इंच तक ही घुसा है.’ मैंने कहा. ‘और लंड चाहिए दीदी’ मैंने हंसते हुए पूछा. ‘नही भाई बहुत बड़ा है.’ ‘अरे अभी तो कह रही थी चोद दो!’ ‘प्लीज़ नहीं, अब और नहीं इतना से ही काम चलाओ… तुम और अंदर डालोगे तो मुझे बहुत दर्द होगा.’ ‘अरे दर्द होगा लेकिन बाद में मज़ा भी बहुत आएगा मेरी जान.’
मैं 3 इंच लंड अंदर बाहर कर रहा था. धीरे धीरे दीदी का दर्द कम हुआ तो मेरी प्यारी बहन ने भी अपनी गांड को उछालते हुए मेरे लंड को अपनी बुर में लेना शुरू कर दिया. मुझे भी अब उसकी कोई परवाह नही था सिर्फ़ अपनी हवस का ख्याल था. मैंने और एक धक्का लगाया और 6 इंच तक दीदी के बुर में घुस गया. दीदी जोर से चीख रही थी- आह आआअ ईयईई ईईईईई… निकालो इसे … आआआआ आईयईईई ईईईई… दीदी ने दर्द से आँखें बंद कर ली.
दीदी नीचे में दर्द के मारे चिल्ला रही थी और अपने दोनों हाथों से छाती पे मार कर मुझे दूर हटाने की कोशिश कर रही थी. मैं अपना लंड एक आध इंच बाहर निकालता और फिर से अंदर डाल देता.
फिर अचानक मैं एक धक्के में पूरा 8 इंच का मोटा लंड दीदी की छोटी सी बुर में घुसेड़ दिया. दीदी रोते रोते भीख माँगने लगी- प्लीज़ अशोक मेरा भाई, छोड़ दो मुझे अब और नही सहा जाता.
पर मैं तो जैसे अपनी ही दुनिया में था मुझे सिर्फ़ अपने मोटे लंड पे एक टाइट बुर का अहसास हो रहा था. मैंने अपना 8 इंच का लंड धीरे से आधा बाहर खींचा और वापस अंदर डाला. दीदी फिर से चीख पड़ी. दीदी की चीख रोकने के लिए मैं अब अपने होंठ दीदी के होंठों को लगा दिए और चूसने लगा. अब उसके मुँह से ऊ ऊऊ ऊ ऊउऊ की आवाज निकल रही थी. उसकी चूचियाँ एकदम कठोर हो गई थीं. उसके ठोस संतरों को दबाते हुए मैं अब तेज़ी से धक्का लगाने लगा था और मेरी रांड बहनिया के मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी थीं.
आख़िर दीदी का दर्द थोड़ा कम होने लगा, दीदी को अब थोड़ा थोड़ा मज़ा आ रहा था. अब मेरा लंड दीदी की बुर में अंदर बाहर हो रहा था. हरेक धक्के पे दीदी को मज़ा ज़्यादा हो रहा था. दीदी सिसकारियाँ भरने लगी- आअहह… आआहह… मम्म्मम… आआ आआआ आआआअहह… वो सिसकारते हुए बोल रही थी- ओह भाई, ऐसे ही, ऐसे ही अपनी दीदी की चूत चुदाई कर, हाँ हाँ और जोर से, इसी तरह से ज़ोर-ज़ोर से धक्का लगाओ भाई, इसी प्रकार से चोदो मुझे… आह… सीईईई.
मेरे भी आनन्द की सीमा न थी मैं भी सिसकार रहा था- हाय मेरी रंडी, तुम्हारी बुर कितनी टाइट और गर्म है, ओह मेरी प्यारी बहन, लो अपनी बुर में मेरे लंड को… ओह ओह. मैं उसकी बुर की चुदाई अब पूरी ताक़त और तेज़ी के साथ कर रहा था.
हम दोनों की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और ऐसा लग रहा था कि किसी भी पल मेरे लौड़े से गरम लावा निकल पड़ेगा.
‘ओह चोद, मेरे हरजाई कुत्ते भाई और ज़ोर से चोद, ओह कस कर मार और ज़ोर लगा कर धक्का मार, ओह मेरा निकल जाएगा, सीईईईई, कुत्ते, और ज़ोर से चोद मुझे, बहन की बुर को चोदने वाले बहन के लौड़े हरामी, और ज़ोर से मार, अपना पूरा लंड मेरी बुर में घुसा कर चोद कुतिया के पिल्ले… सीई… ईईई मेरा निकल जाएगा.’
मैं अब और ज़ोर ज़ोर से धक्का मारने लगा. मैं अपने लंड को पूरा बाहर निकाल कर फिर से उसकी गीली बुर में पेल देता.
चूतड़ों को नचा-नचा कर आगे-पीछे की तरफ धकेलते हुए मेरे लंड को अपनी बुर में लेते हुए सिसिया रही थी- ओह चोद मेरे राजा… मेरे बहन के लंड… और ज़ोर से चोद… ओह… मेरे चुदक्कड़ बालम, सीईईई… हरामजादे भाई… और ज़ोर से पेल मेरी बुर को… ओह-ओह… सीईई… बहनचोद… मेरा अब निकल रहा… हाईई… ईईई ओह सीईई. मादक सीत्कारें भरते हुए अपनी दांतों को भींचते कर और चूतड़ों को उचकाते हुए वो झड़ने लगी.
मैं भी झड़ने वाला ही था. मेरे मुख से भी झड़ते समय की सिसकारियाँ निकल रही थी- ओह मेरी रांड… लंडखोर… कुतिया… साली मेरे लिए रूक… मेरा भी अब निकलने ही वाला है… ओह… रानी मेरे लंड के पानी भी अपने बुर में ले… ओह ले… ओह सीईईई…
‘आआईयई ईई मेरे अंदर पानी मत निकालना छोटू आऐईयई ईईई…’ दीदी ने मुझे रोकने की कोशिश की पर मैं उस समय दूसरी दुनिया में था ‘आआहह… आआअहह’ करके मैंने झरना शुरू किया और अपना वीर्य उसकी बुर में निकालना शुरू कर दिया.
झड़ के मैंने लंड बाहर निकाल दिया और कपड़ा पहन कर बाहर आ गया. करीब दस मिनट बाद दीदी भी कपड़े पहन कर आई, मेरे पास बैठ कर बोली- किसी को कुछ बताना नहीं! और अब जाओ बाजार से सब्जी ले आओ, अब ताई भी आती होगी. मैंने कहा- ठीक है, अभी ले आता हूँ. मैं बाहर चला गया.
रात को खाना खाकर मैं सोने चला गया. आज मेरा मन हल्का लग रहा था. बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई.
मेरी दीदी की चुदाई कैसी लगी? मेरी पुरानी यादों भारी सेक्स स्टोरी जारी रहेगी. [email protected]
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