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पण्डित जी की तन मन से सेवा-1
अब तक इस चुदाई स्टोरी में आपने पढ़ा कि मैंने अपनी सहेली को पण्डित जी से चुदते देखा तो मेरा मन भी पण्डित जी से चुदाई करवाने का हो गया था.
दूसरे दिन मैं नीलम से मिलने उसके घर गई तो उसने बताया कि पण्डित जी सवेरे चले गए। उसने बताया कि पण्डित जी के आने से पूजा-पाठ खाना पीना और सेवा से बहुत काम बढ़ जाता है, मैं रात में बारह बजे तक जगी थी एकदम थक गई हूँ। मैंने सहमति जताते हुए हंसते हुए कहा- कल जब मैं मोबाइल लेने आई थी तो तेरा दरवाजा बन्द था, मैंने खिड़की से देखा तो तुम और पण्डित एक दूसरे की सेवा में व्यस्त थे।
नीलम एकदम से घबरा गई, उसके चेहरे पर हवाई उड़ने लगी, अचानक वो एकदम से लिपट कर रोने लगी। मैंने भी उसे अपने बच्चे की तरह चिपटा लिया और उसकी पीठ सहलाने लगी. थोड़ी देर बाद मैं उसका चेहरा उठाकर उसके होंठ पर किस करने लगी, नीलम भी साथ देने लगी, उसने मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल दी और मेरे होंठों को चूसने लगी.
थोड़ी देर हम एक दूसरे को ऐसे ही चूमते रहे और एक दूसरे को चिपकाये रहे। थोड़ी देर बाद नीलम ने उठ कर दरवाजा बन्द कर फिर से मुझसे लिपट कर मुझे लिपकिस करती रही और मेरी चूचियाँ दबाने लगी. मैंने पूछा- ये क्या? तो बोली- निशा भाभी, आज मत रोको मैं बहुत तनाव में हूँ।
मैं भी चुप हो गई, गर्म तो मैं भी हो गई थी, मैं भी उसकी चूचियाँ दबाने लगी. फिर मैंने उसके कुर्ते को निकाल दिया और उसकी ब्रा की हुक खोलकर निकाल दिया उसकी गोरी गोरी चूचियाँ बाहर आ गईं, मैं उसे लिटाकर उसकी निप्पल मसलने लगी। मेरे पर भी वासना का भूत चढ़ गया था मैंने इसके पहले अपनी एक भाभी और अपनी एक दोस्त के साथ लेस्बियन सेक्स किया था।
नीलम आहें भरने लगी, मैंने उसके निप्पल को मुंह में ले लिया। नीलम ‘आह उफ… भाभी और पियो… काट लो दांत से…’ कहने लगी। फिर अचानक मुझे साईड कर मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरे कुर्ते को निकाल दिया। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। उसने अपने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबानी शुरू कर दी.
मैंने नीलम को पीने को कहा तो जोर जोर से चूसने लगी.
अब हम अपना आपा खो चुकी थी। थोड़ी देर में हम दोनों के सारे कपड़े उतर गये। हम दोनों ने 69 की पोजीशन में आकर एक दूसरे की चूत खूब चाटी एक दूसरे की चूचियाँ खूब दबाई खूब पिया और एक दूसरे की चूत में उंगली डालकर कामरस निकाल दिया. करीब आधे घण्टे तक यह कार्यक्रम चला.
हम लोग थक गईं और बाथरूम में जाकर नहाने के बाद कपड़े पहन कर ड्राइंग रूम में बैठ गई।
चाय पीने के समय उसने बताया कि उसके पति पिछले दो साल से सेक्स में रूचि नहीं रखते महीने में केवल दो तीन बार ही सेक्स करते हैं इसी सब से बचने के लिए वह अपनी दोस्त के साथ हरिद्वार गई थी, वहीं पण्डित जी से मुलाकात हुई। वहाँ पण्डित जी ने अपने जाल में उलझा कर दो दिन में चार बार चोदा और मेरी हवस मिटाई। तब से जब पण्डित जी आते हैं, मैं उनसे खूब चुदवाती हूँ। कल रात में उसने दो बार चोदा है। इसका लंड गधे जैसा लम्बा और मोटा है.
मैंने उसकी बात मान ली क्योंकि वो तो मैंने खुद देखा ही था।
हम थोड़ी देर ऐसे ही बातें करते रहे। जब मैंने नीलम से लेस्बियन सेक्स के बारे में पूछा तो उसने किटी पार्टी की एक और महिला मिसेज अग्रवाल के साथ लगभग हर हफ़्ते लेस्बियन सेक्स करने की बात बताई और उससे मेरी दोस्ती कराने को कहा। थोड़ी देर बात करने के बाद हम लोगों ने एक बार फिर एक दूसरे को खूब किस किया और एक दूसरे की चूचियाँ खूब दबाई और पिया। फिर मैं अपने घर चली आई।
इसके बाद तो मैं और नीलम लगभग हर दूसरे तीन दिन लेस्बियन सेक्स करने लगे. नीलम ने मेरी दोस्ती मिसेज अग्रवाल से करा दी थी और हम तीनों खूब मस्ती करती थी।
धीरे-धीरे महीने की तारीख गुज़रती गई, एक दिन नीलम ने कहा- पण्डित जी तीन दिन बाद आने वाले हैं, क्या तू रुद्राभिषेक कराना चाहती है? मैं तो यह सुन कर खुश हो गई, मुझे पण्डित जी का फनफनाता लंड दिखाई देने लगा। मैंने तुरंत हामी भर दी, मुझे लगा शायद नीलम ने मेरे विषय में कुछ कहा हो लेकिन नीलम ने बताया कि उसकी पण्डित जी से कोई बात नहीं हुई थी बल्कि पण्डित जी ने उसे खुद याद किया है.
तब मुझे लगा कि शायद पण्डित खुद ही मुझे चोदने के फिराक में है। मैं मन ही मन खुश हो गई।
नीलम ने बताया कि पण्डित जी का कार्यक्रम उनके जजमान सिंह साहब के फार्म हाउस पर होगा जो शहर के बाहर दो तीन किमी दूर है और प्रायः मैरेज लान की तरह बुक होता रहता है, वहाँ एक बड़ा हाल है और चार पांच कमरे हैं।
एक दिन पहले नीलम ने बताया कि वह वहाँ गई थी सिंह साहब की पत्नी से मिल कर आई है. तीन दिन पूजन होगा, इसमें सिंह साहब के परिवार के ही सदस्य रहेंगे. तीसरे दिन रात में प्रसाद वितरण के बाद रात्रिभोज होगा जिसमें बहुत लोग होंगे, दूसरे दिन रूद्राभिषेक होगा।
मैंने अपने पतिदेव को बताया कि मैं और नीलम उस पूजन कार्यक्रम में जायेंगे तो उन्होंने हामी भर दी।
पूजा के दिन मैंने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी जब कि नीलम ने हल्के नीले रंग की साड़ी पहनी थी। हम दोनों ने गहरे गले का ब्लाउज पहना था, गले में सोने की पतली सोने की चेन पहनी थी। कुल मिला कर हम दोनों बहुत ही सुंदर लग रहीं थीं। हम लोगों को हमारे पति ने कार से छोड़ दिया और अपने आफिस चले गये।
पूजा नौ बजे शुरू हुई, पण्डित जी के साथ उनका एक सहयोगी पण्डित और आया था, वो भी बहुत आकर्षक व्यक्तित्व का था. हम लोग सिंह साहब के परिवार की औरतों के साथ सामने ही बैठी थीं। अन्य औरतों में सिंह साहब की मिसेज और उनकी बहन और एक बहू ही थीं जिनकी उम्र लगभग पचपन-छप्पन साल की और बहू की उम्र लगभग सत्ताइस साल की रही होगी। बहू भी बहुत आकर्षक थी। पूजा के बीच में ही हम लोगों की अच्छी जान पहचान हो गई।
लगभग एक बजे पूजा पूरी हुई तो सिंह साहब की मिसेज और उनकी बहन दूसरे कमरे में चली गई और बहू हम लोगों के साथ रूक गई।
पूजा के बाद पण्डित जी को खाना खिलाना था। वे फ्रेश होने के लिए अपने कमरे में चले गये और हम लोगों ने उनके भोजन की व्यवस्था के लिए चटाई बिछाई। दोनों पण्डित आमने-सामने बैठे। सिंह साहब की बहू थोड़ी दूर एक कुर्सी में बैठी थी।
मैंने और नीलम ने खाना परोसना शुरू किया. पत्तल बिछा कर सब्जियाँ देते समय पण्डित की नजर मेरे ब्लाउज में ही थी, मैंने मौका देखकर अपना पल्लू थोड़ा और ढीला कर दिया। अब मेरे झुकने पर मेरे दोनों चूचों का बहुत सा हिस्सा दिखने लगा।
पण्डित जी भोजन कम और मेरे शरीर का रसास्वादन ज्यादा कर रहे थे। मेरी नजर जब पण्डित से मिलती थी, मैं मुस्कुरा देती थी। कमोबेश यही स्थिति दूसरे पण्डित के साथ भी थी। वो भी भूखी नजरों से हम दोनों को देख रहा था।
थोड़ी देर बाद भोजन समाप्त होने पर दोनों पण्डित अपने अपने कमरों में हाथ धोने चले गये, बाकी पुरूष हाल में एक ओर खाना खाने बैठ गये जिन्हें वहीं के लोग खाना खिलाने लगे।
यद्यपि मेरी और नीलम की पण्डित जी के साथ चुदाई के बारे में कोई बात नहीं हुई थी लेकिन पता नहीं कैसे जब मैं बहू के साथ पण्डित जी के कमरे में गई तो नीलम दूसरे पण्डित के कमरे में चली गई।
पण्डित हाथ मुंह धोकर बाथरूम से बाहर आये और अपने तख्त पर बैठ गए। मैं और बहू सामने खड़ी थी, हमें देखकर उन्होंने हमें सामने सोफे पर बैठने को कहा, बहू को देखकर मुस्कुराते हुए बोले- तू बड़ी भाग्यवान है जो इस घर की बहू बनी है। तेरे सास ससुर बहुत सम्मानित और सज्जन लोग हैं।
बहू ने शिष्टता से उन्हें झुककर प्रणाम किया लेकिन पण्डित जी को कुछ देखने का मौका नहीं मिला क्योंकि उसने बहुत अच्छी तरह से साड़ी पहनी थी। पण्डित ने उससे अच्छे दाम्पत्य जीवन के लिए नित्यप्रति सुबह स्नान आदि के बाद अपने सास ससुर का प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेने को कहा। बहू ने पूछा- पण्डित जी, आप क्या हाथ देखते हैं? तो पण्डित जी ने मुस्कुरा कर कहा- अवश्य, किन्तु मैं आराम से देखकर आप को बतांऊगा।
थोड़ी देर और इधर-उधर की बातें हुई, तभी एक नौकर ने आकर बहू को बताया कि उसे उसकी सास बुला रही हैं। मैं पण्डित जी से ‘अभी आई…’ कह कर उसके साथ चली गई।
उसकी सास ने बताया कि वे बाहर का खाना नहीं खाती और बहू को घर चलने को कहा। मैंने बताया कि मेरे पति अभी थोड़ी देर में हम लोगों को लेने आयेंगे तो उन्होंने हमें कमरे में भोजन करके आराम करने और पण्डित जी का ख्याल रखने की हिदायत दी और बहू को साथ लेकर चली गई।
मैं वापस पण्डित जी के पास आ गई। मुझे देखकर पण्डित जी मुस्कुराते हुए बोले- बालिके तुम तो बहुत समझदार हो और पूजा-पाठ सेवा में तुम्हारे बहुत मन लगता है ना! मैंने कहा- जी पण्डित जी, सब आप लोगों का आशीर्वाद है।
कमरे के टीवी चैनल पर किसी बाबा का प्रवचन चल रहा था।
पण्डित जी ने मुझसे कहा- तुम्हारा नाम तो निशा है न? मैंने कहा- जी! पण्डित जी ने कहा- तुम्हारा नाम निशा नहीं, शशि होना चाहिए था। मैंने पूछा- क्यों पण्डित जी? तो उन्होंने कहा- निशा मतलब रात होता है जो अंधेरे को बताता है, जबकि आप चांद सी उजली और गोरी हो।
मैं मुस्कुराई तो उन्होंने कहा- तुम बहुत सुन्दर हो! और इशारे से अपने पास बुलाया. मैं बगैर कुछ पूछे जैसे ही आगे बढ़ी, पण्डित ने अपने हाथ से पकड़ कर मुझे खींच कर अपने पास बिठा लिया और मेरे कंधे और पीठ को सहलाने लगे। मैंने कहा- ये क्या? तो उन्होंने कहा- वही जो हम दोनों के दिल में है! और यह कहते कहते मेरे होंठों पर अपना होंठ रख कर उसे चूसने लगे।
मैंने थोड़ा छूटने का नाटक किया लेकिन उसकी पकड़ मजबूत थी। उसने होंठ चूसते हुए मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और एक हाथ से ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने लगे। मैं छटपटाई और उठना चाहा लेकिन पण्डित जी पूरा मेरे ऊपर झुक गये और मेरे होंठ चूसने लगे।
मैं भी गर्म हो रही थी और मेरा मन भी था लेकिन दरवाजा खुला होने और नई जगह होने के कारण बदनामी होने से डर रही थी इसलिए झूठ में कहा- पण्डित जी, कोई आ रहा है और दरवाजा खुला है। पण्डित जी अचानक मुझे छोड़ कर उठ गये। मैं भी जल्दी से खड़ी होते हुए थोड़ी दूर खड़ी हो गई।
पण्डित जी ने कहा- क्या अच्छा नहीं लगा? मैंने इसका कोई जबाव नहीं दिया, मैंने धीमे से कहा- पण्डित जी कल दिन में रुद्राभिषेक कराने के बाद आप रात्रि भोजन मेरे यहाँ करें। पण्डित जी ने अपनी सहमति दे दी और कहा- दूसरे पण्डित भी हैं! तो मैंने कहा- हाँ हाँ, उनका भी भोजन वहीं रहेगा।
तभी नीलम भी आ गई। हम दूसरे कमरे में चले गये, खाना खाया और घर चले आये।
मैंने अपने पति को बताया कि कल पण्डित जी का रात का भोजन अपने यहाँ है तो उन्होंने बताया- अरे, मैं तो कल आफिस के काम से तीन दिन के लिए दिल्ली जा रहा हूँ। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई कि चलो चुदाई का पूरा समय मिलेगा. लेकिन दिखावटी रूप में मैंने नाराज़गी जताई तो उन्होंने हवाई जहाज की टिकट दिखाई तो मैंने उन्हें किस करते हुए कहा- अच्छा चलो ठीक है।
दूसरे दिन हम दोनों फिर वहाँ गई। दिन में खूब अच्छे ढंग से रुद्राभिषेक हुआ लेकिन आज हम पण्डित जी को रात के भोजन की याद दिलाते हुए जल्दी घर आ गये।
रात का खाना बनाने के बाद मैंने स्नान किया और मैरून कलर की साड़ी पहन कर खूब अच्छे तरीके से तैयार हो गई, ड्राइंग रूम में बेला की महक वाले रूम फ्रेशनर को छिड़क दिया। नीलम को पूछा तो वो भी तैयार हो गई थी। नीलम के पति पहले से ही शहर से बाहर थे, वो भी मेरे ही घर आकर इन्तजार करने लगी.
लगभग साढ़े सात बजे पण्डित जी अपने साथी के साथ आये। हमने पैर छू कर प्रणाम किया और ड्राइंग रूम में बिठाया. लगभग एक सवा घण्टे पण्डित जी ने अपने पूजन के कई किस्से सुनाये। उसके बाद लगभग साढ़े नौ बजे हम दोनों ने उन्हें भोजन कराया। इस बीच मेरा बेटा भी सो गया।
पुजारी जी और उनके सहयोगी कुछ देर ड्राइंग रूम में बैठे रहे इस बीच हम दोनों ने भी खाना लिया।
खाना खाने के बाद नीलम ने कहा- पण्डित जी, मुझे कल के प्रोग्राम के लिए इनसे कुछ बात करनी है तो मैं इनको अपने साथ ले जा रही हूँ। पण्डित ने हामी भर दी।
नीलम के जाने के बाद मैं और पण्डित ही रह गये। मैं पण्डित के पास आई और उनके बगल में बैठ गई। पण्डित ने धीमे से हाथ पकड़ा, मैं मुस्कुराई तो उसने मुझे अपनी ओर खींचा और कहा- निशा तुम बहुत सुन्दर हो। मैं तुम्हारे आलिंगन के लिए कई महीने से प्यासा हूँ इसीलिए मैं कल अपने को रोक नहीं सका। मैंने कहा- पण्डित जी, मैं भी बहुत प्यासी हूँ, आज मुझे खूब प्यार कीजिये।
पण्डित ने बिना देर किये मेरे होंठों पर अपने होंठों को चिपका दिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। मैं भी उसका साथ देने लगी बीच बीच में वह मेरी चूचियाँ दबाने लगता था. लगभग दस मिनट बाद उसने मेरी साड़ी खींचकर निकाल दिया खुद तख्त से उतरकर नीचे खड़ा हो गया और मुझे अपनी बाहों में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से मुझे किस करने लगा. मैं भी गर्म हो गई थी मैंने पण्डित को कस कर अपने सीने में चिपका लिया और उसकी पीठ सहलाने लगी।
पण्डित का लंड मेरी दोनों जांघों के बीच गड़ रहा था लग रहा था जैसे कोई गर्म डंडा मेरी चूत के ऊपर छू रहा हो, मैं पण्डित की धोती के ऊपर से ही उसके चूतड़ों को दबाने लगी। पण्डित चिहुंक गया शायद उसे ऐसी गर्म औरत कभी नहीं मिली हो। वो भी मेरे चूतड़ दबाने लगा।
मैंने एक झटके में उसके हाफ बांह वाला कुर्ता निकाल दिय़ा उसकी गोरी चौड़ी छाती दिखने लगी. संभवतः वो रोज प्राणायाम और कसरत करता था. मैं खड़े खड़े उसके सीने को चूमने लगी, एक दो बार उसके निप्पल को मुंह में लेकर चूस दिया, उसके मुंह से अजीब सी कसक वाली आवाज़ आने लगी- आह मजा आ गया बालिके… और चूसो! की आवाज करने लगा।
उसने मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी दोनों चूचियाँ मसलनी शुरू कर दी। मुझे भी बहुत मजा आ रहा था, मैंने उसकी धोती खींच कर अलग कर दिया। ‘अरे ये क्या… साला धोती के नीचे नंगा था, उसका लंड तन कर खड़ा हो गया था।
मैं उसके हिप्स में अपने नाखून गड़ा कर अपनी ओर खींचने लगी, वो भी मेरे चूतड़ों को कस कस कर दबाने लगा। बड़ा मजा आ रहा था.
तभी उसने मेरे पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया पेटीकोट जमीन पर जा गिरा। अब मैं केवल ब्लाउज और पैंटी में हो गई। मैं घुटने के बल बैठ गई और उसके आठ इंच लम्बे लंड को पकड़कर चूसने लगी। उसका लंड मेरे पति के लंड से बड़ा और मोटा था। मेरे मुंह से थूक के करण पुच्च पुच्च और उसके मुंह से आह उहह की आवाज़ आने लगी, वो मेरे सिर को पकड़ कर आगे पीछे करने लगा। थोड़ी देर बाद उसने मुझे उठाया और फिर गोद में उठाकर बोला- बेडरूम में ले चलो। मैंने उसके गले में हाथ डाला था और उसको चूम रही थी, मैं उसको कमरे में लाई। बेटा दूसरे कमरे में सो रहा था।
बिस्तर पर लिटाते ही मेरे ऊपर आ गया, मेरे ब्लाउज को खोल कर नीचे फेंक दिया और दो तीन मिनट तक ब्रा के ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने के बाद मेरी ब्रा भी उतार दी और बेतहाशा मेरी चूचियाँ दबाने और चूसने लगा। मैं बहुत उत्तेजित हो गई थी मेरे मुंह से ‘और तेज पियो राजा… निप्पल काट लो… कस के दबाओ! पूरा दूध निकाल दो!’ जैसी सेक्सी आवाजें आने लगी।
पण्डित चूचियाँ दबाते हुए बोला- बालिके, इनमें से दूध नहीं अमृत निकलता है, तभी तो इसको पीते हैं! और फिर पीने लगा।
मेरी चूत गीली हो गई थी.
वो बीच बीच में मेरे शरीर के हर हिस्से को चूमता चाटता और जगह जगह दांत काटता। मैंने अपने दाहिने हाथ से उसका लंड पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगी, आगे पीछे करने लगी। वो मेरी नाभि में जीभ डाल कर चूसने लगा लेकिन मेरी तो चूत में आग लगी थी, मैंने उसका सिर पकड़ कर नीचे दबाया और कहा- मेरी चूत चाट कर काम रस निकाल कर पियो!
वो मेरी दोनों टांगों के बीच आ गया, मेरी पैंटी निकाल दी, अपने हाथ मेरी चूत पर फेरने लगा, फिर उसमें अपनी एक उंगली डाल कर अंदर बाहर करने लगा। थोड़ी देर बाद मैंने चूत चाटने को कहा तो वह चूत चाटने लगा। मेरे मुंह से जोर जोर से ‘अहह… उफ उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह… और चाट… पूरी जीभ चूत में डाल दे!’ की आवाज़ आने लगी.
मैं थोड़ा उठ कर उसके सर को चूत पर दबाने लगी, साला बहुत अच्छा चूस रहा था, मेरे पति बहुत कम देर चूसते थे।
तभी मैंने उठ कर उसे अपना लंड देने को कहा, उसने तुरन्त चूत चाटते हुए अपने पैर मेरे तरफ कर दिए, मैं भी उसका लंड पीने लगी।
लगभग पांच मिनट बाद अचानक मेरे शरीर में जोरदार सिहरन हुई और मैंने पण्डित को कस कर पकड़ लिया और ज़ोर से चीखते हुए कहा- पण्डित जी, मैं झड़ गई। पण्डित कुछ नहीं बोला, कुत्ते की तरह लपलप कर चूत का पानी पीने लगा. मैंने कहा- पण्डित जी, मेरी चूत चोदो, अब और न तड़पाओ।
पण्डित पहली बार अच्छा मेरी रानी कह कर मेरे ऊपर आ गया और अपना लंड मेरी चूत पर सेट करने लगा और थोड़ी देर में ही अपना पूरा लंड दो तीन झटकों में अंदर पेल दिया।
इसका लंड मेरे पति के लंड से मोटा और लम्बा था, मैं दर्द से चिल्ला उठी- अरे मेरी चूत फट गई! धीरे-धीरे करो! मैं भागी नही जा रही।
तभी पण्डित ने मेरे होंठों पर अपना होंठों रख कर चूसना शुरू कर दिया, मेरी आवाज़ बंद हो गई। पण्डित थोड़ा सा उठा दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबाने लगा और अपने चूतड़ उठाकर घपाघप घपाघप चोदने लगा. दो चार मिनट बाद मेरा दर्द कम हो गया, मैं भी अपने चूतड़ उठा उठा कर उसको सहयोग करने लगी।
पण्डित इतनी जोर जोर से चोद रहा था कि उसके हर धक्के पर मेरा पलंग हिलता था और मेरी चीख निकल जाती। पूरे कमरे में फचफच की आवाज़ आ रही थी।
लगभग दस मिनट बाद पण्डित जोर से आहह बोलते हुए झड़ गया और अचानक निढाल होकर मेरे ऊपर गिर गया, उसके गर्म वीर्य से मेरी चूत भर गई। पण्डित दो मिनट मेरे ऊपर ही लेटे रहा और हाँफता रहा। मैंने भी उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ रखा था।
फिर हम दोनों ने बाथरूम में जाकर खुद को साफ किया और वापिस कमरे में आ गये। हम दोनों नंगे थे। मैं नंगी ही किचन में गई, पानी पिया और दो कप काफी के साथ पण्डित जी के लिए एक गिलास पानी ले आई।
पण्डित का लंड सिकुड़ कर छोटा सा हो गया था।
पण्डित जी पानी और काफी पीने के बाद बोले- बालिके, तुमने थका दिया, तुम बहुत सेक्सी हो, बहुत दिनों बाद इतनी गर्मी वाली तुम मिली हो! मजा आ गया! मैं बहुत खुश हुई और पूछा- मेरा कौन सा नम्बर है। मैंने बताया- पण्डित जी, आप का लंड मेरे पति के लंड से ज्यादा लम्बा और मोटा है और आप बहुत देर तक चोदते हो। मेरा पति पांच मिनट भी नहीं चल पाता!
पण्डित ने कहा- मैंने गिना तो नहीं लेकिन तुमसे पहले चौदह पन्द्रह औरतें और लड़कियों को अवश्य चोदा होगा। मैंने बताया- पति के अलावा आप पहले मर्द हो जिससे मैंने चुदवाया है. पण्डित जी ने कहा- मैं नीलम के घर की पूजा में ही तुम्हारी चूचियाँ देखकर तुम्हारे साथ चुदाई करने की सोच रहा धा। जब तुम मुस्कुराई और पूजा कराने और सेवा करने की बात कही तो मुझे लगा था कि तुमको शायद चोद लूंगा।
मैंने नीलम के साथ वाली बात बताई तो कहा- हाँ, मैंने उसे पहले एक दो बार हरिद्वार में और पूजा के दिन चुदाई की है लेकिन वो थोड़ा कम झेल पाती है।
हम काफी पीकर नंगे ही बिस्तर पर बैठे थे। मेरा बेटा दूसरे कमरे में सो रहा था। मैं फिर चुदना चाहती थी, मैं पण्डित से फिर लिपट गई और धीरे-धीरे उसे प्यार करने लगी। पण्डित भी मुझे सहलाने लगा कभी गाल पर कभी कान पर और कभी चूचियों पर किस करने लगा। हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर लेट गये। पण्डित फिर से मेरी चूचियाँ दबाने लगा और पीने लगा। मैंने उठ कर उसका लंड अपने मुंह में ले लिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी। वह आह आह करने लगा।
पांच छः मिनट बाद पण्डित जी का लंड फिर फनफनाने लगा। मैं पण्डित जी के ऊपर चढ़ गई और उसके लंड को अपनी चूत में डाल लिया और ज़ोर ज़ोर से उछलने लगी। मेरे साथ पण्डित भी सेक्सी आवाज़ निकाल रहा था। कुछ देर में मैं थक गई तो पण्डित ने मुझे घोड़ी बना कर चोदना शुरू किया।
फिर पण्डित मेरी गांड मारने की बात करने लगा। मैंने कभी यह नहीं कराया था तो मैंने मना कर दिया।
पण्डित चूत चोदते चोदते अचानक उठ कर मेरे ऊपर बैठ गया, थोड़ी देर दोनों चूचियों के बीच लंड डालकर हिलाने लगा। थोड़ी देर बाद मेरे गले के पास उकड़ू बैठ गया और अपना लंड मेरे मुंह में डाल दिया. मैं भी हाथ से पकड़ कर जोर जोर से चूसने लगी.
थोड़ी देर बाद मैंने पण्डित को अपनी चूत चाटने को कहा. हम फिर से 69 की पोजीशन में आ गये और एक दूसरे का लंड चूत चूसने लगे।
अचानक मेरा शरीर फिर अकड़ गया और मैं झड़ गई और तभी पण्डित का भी वीर्य स्खलन मेरे मुंह में ही हो गया, मैंने पूरा वीर्य अपने मुंह में रोके रखा और बाथरूम में जाकर थूक दिया।
बाथरूम से बाहर आकर मैंने अपना गाउन पहना और बिस्तर पर लेट गई। घड़ी में देखा तो रात के दो बजे थे। पण्डित भी ड्राइंग रूम से धोती पहन कर लेट गया। मैं बहुत थक गई थी लेकिन मजा लेने के लिए मैंने पण्डित को सहलाना शुरू किया लेकिन पण्डित गहरी नींद में सो गया था। फिर मैं भी सो गई।
सुबह पांच बजे पानी गिरने की आवाज़ से नींद खुली तो देखा पण्डित जी नहा रहे हैं।
थोड़ी देर बाद पण्डित जी नहा के निकले और पूजा-पाठ कर जजमान के यहाँ जाने को तैयार हो गये और ड्राइंग रूम में बैठ गए. मैंने भी ड्राइंग रूम से अपनी साड़ी पेटीकोट हटाया और जल्दी से नहा धोकर तैयार हो गई, बच्चे को जगाया और तैयार करा कर स्कूल छोड़ कर आ गई.
हम लोग फिर से एक दूसरे को प्यार करने लगे तभी कुछ देर बाद दूसरे पण्डित भी नीलम के साथ आ गये, हम दोनों जल्दी से हट गये।
सब कुछ सामान्य सा दिख रहा था ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं था.
पण्डित लोग नाश्ते के बाद जजमान की गाड़ी से कार्यक्रम स्थल चले गए।
हम दोनों की भी वासना शांत हो गई थी लेकिन उस दिन हम लोगों ने एक दूसरे के किस्से सुन सुन कर बहुत देर तक लेस्बियन सेक्स किया। नीलम के साथ दूसरे पण्डित ने कैसे चुदाई की, उसकी चुदाई स्टोरी बाद में लिखूंगी।
मेरी चुदाई स्टोरी पसंद आई या नहीं, मुझे ईमेल करना। [email protected]
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