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जस्सूजी और सुनीता नदी के किनारे गीली मिटटी में पड़े पड़े ही एक दूसरे की आँखों में झाँक कर देख रहे थे। सुनीता ने अपने बाजू ऊपर किये और जस्सूजी का सर अपने हाथों में ले लिया और उनके होँठ अपने होँठों से चिपका दिए।
सुनीता ने जस्सूजी के पुरे बदन को अपने बदन से सटाने पर मजबूर किया। सुनीता के साथ ऐसे लेटने से जस्सूजी का इन मुश्किल परिस्थितियों में भी लण्ड खड़ा हो गया।
उन्होंने सुनीता से कहा, “यह क्या कर रही हो?” और कह कर सुनीता से दूर हटने की कोशिश की तो सुनीता ने कहा, “अब आप देखते जाओ, मैं क्या क्या कर सकती हूँ?”
जस्सूजी हैरानी से सुनीता को देखते रहे। सुनीता ने फिर से जस्सूजी का सर पकड़ा और दोनों गहरे चुम्बन लेने लें एक दूसरे से चिपक गए। सुनीता की जान जस्सूजी ने अपनी जान जोखिम में डाल कर बचाई थी। यह बात सुनीता के लिए बहुत बड़ा मायना रखती थी। उसकी नज़रों में जस्सूजी ने वह कर दिखाया जो उसके पति भी नहीं कर सके।
थकान और दर्द के मारे सुनीता की जान निकली जा रही थी। जस्सूजी से अपना आधा नंगा बदन चिपका कर सुनीता को जरूर जोश आया था। सुनीता सोच रही थी की जस्सूजी में पता नहीं कितनी छिपी हुई ताकत थी की इतने झंझट, परिश्रम और नींद नहीं हो पाने पर भी वह काफी फुर्तीले लग रहे थे। सुनीता को मन में गर्व हुआ की जस्सूजी ने सुनीता के प्रियतम जैसा काम कर दिखाया था। आज जस्सूजी ने एक राजपूत जैसा काम कर दिखाया था। अब वह सुनीता के पुरे प्यार के लायक थे।
सुनीता के रसीले होँठों का रस चूसते हुए भी जस्सूजी के दिमाग में बचाव की रणनीति पुरे समय घूम रही थी। उन्होंने सुनीता को कहा, “सुनीता, अब हमें यहाँ से जल्दी भाग निकलना है। पता नहीं दुश्मनो के सिपाही यहां कहीं गश्त ना लगा रहे हों। हमें यह भी पता नहीं की इस वक्त हम कहाँ हैं?”
सुनीता ने उठते हुए अपने कपड़ों के ऊपर से लगी मिटटी साफ़ करते हुए कहा, “आप तो खगोल शाश्त्र के निष्णात हो। सितारों को देख कर भी बता सकते हो ना की हम कहाँ हैं?”
जस्सूजी ने भी कपड़ों को साफ़ करते हुए कहा, “जहां तक मेरा अनुमान है, हम हिंदुस्तान की बॉर्डर से एकदम करीब हैं। हो सकता है हम सरहद पार भी कर गए हों।”
सुनीता ने पूछा, “तो अब हम किस तरफ जाएँ?”
जस्सूजी ने सुनीता का हाथ पकड़ कर कहा, “हमें इस नदी के किनारे किनारे ही चलना है। हो सकता है हमें आपके पति सुनीलजी मिल जाएँ। हो सकता है हमें कोई एक रात या दिन गुजारने के लिए आशियाना मिल जाए।” सुनीता को तब समझ में आया की जस्सूजी भी थके हुए थे।
जस्सूजी लड़खड़ाती सुनीता का हाथ पकड़ उसे अपने साथ साथ चलातेऔर हौसला देते हुए नदी के किनारे आगे बढ़ रहे थे तब उनको दूर दूर एक बत्ती दिखाई दी। जस्सूजी वहीँ रुक गए और सुनीता की और घूम कर देखा और पूछा, “देखो तो सुनीता। क्या तुम्हें वहाँ कोई बत्ती दिखाई दे रही है या यह मेरे मन का वहां है?”
सुनीता ने ध्यान से देखा तो वाकई दूर दूर टिमटिमाती हुई एक बत्ती जल रही थी।
बिना सोचे समझे जस्सूजी ने सुनीता का हाथ पकड़ कर उस दिशा में चल पड़े जिस दिशा में उन्हें वह बत्ती दिखाई दे रही थी। वह घर जिसमें बत्ती जलती दिखाई दे रही थी वह थोड़ी ऊंचाई पर था। चढ़ाई चढ़ते आखिर वहाँ पहुँच ही गए। दरवाजे पर पहुँचते ही उन्होंने एक बोर्ड लगा हुआ देखा। पुराना घिसापिटा हुआ बोर्ड पर लिखा था “डॉ. बादशाह खान यूनानी दवाखाना”
जस्सूजी ने बेल बजायी। उन्होंने सुनीता की और देखा और बोले, “पता नहीं इतने बजे हमें इस हाल में देख कर वह दरवाजा खोलेंगे या नहीं?”
पर कुछ ही देर में दरवाजा खुला और एक सफ़ेद दाढ़ी वाले बदन से लम्बे हट्टेकट्टे काफी मोटे बड़े पेट वाले बुजुर्ग ने कांपते हुए हाथों से दरवाजा खोला।
जस्सूजी ने अपना सर झुका कर कहा, “इतनी रात को आपको जगा ने के लिए मैं माफ़ी माँगता हूँ। मैं हिंदुस्तानी फ़ौज से हूँ। हम लोग नदी के भंवर में फंस गए थे। जैसे तैसे हम अभी बाहर निकल कर आये हैं और थके हुए हम एक रात के लिए आशियाना ढूंढ रहे हैं। अगर आप को दिक्कत ना हो तो क्या आप हमें सहारा दे सकते हैं?”
जस्सूजी को बड़ा आश्चर्य हुआ जब डॉक्टर खान के चेहरे पर एकदम प्रसन्नता का भाव आया और उन्होंने फ़ौरन दरवाजा खोला और उन दोनों को अंदर बुलाया और फिर दरवाजा बंद किया।
उसके बाद वह दोनों के करीब आ कर बोले, “आप हिन्दुस्तानी सरहद के अंदर तो हैं, पर यहां सरहद थोड़ी कमजोर है। दुश्मन के सिपाही और दहशतगर्द यहाँ अक्सर घुस आते हैं और मातम फैला देते हैं। वह सरहद के उस तरफ भी और इस तरफ भी अपनी मनमानी करते हैं और बिना वजह लोगों को मार देते हैं, लूटते हैं और फिर सरहद पार भाग जाते हैं। इस लिए मैंने यह शफाखाना कुछ ऊंचाई पर रखा है। यहां से जो कोई आता है उस पर नजर राखी जा सकती है। मैं हिन्दुस्तांनी हूँ और हिंदुस्तानी फ़ौज की बहुत इज्जत करता हूँ।”
फिर डॉ. खान ने उनको निचे का एक कमरा दिखाया जिसमें एक पलंग था और साथ में गुसल खाना (बाथरूम) था। डॉ. खान ने कहा, “आप और मोहतरमा इस कमरे में रात भर ही नहीं जब तक चाहे रुक सकते हैं। मैं जा कर कुछ खाना और मेरे पास जो मेरे सीधे सादे कपडे हैं वह आप पहन सकते हैं और मेरी बेटी के कपडे मैं लेके आता हूँ, वह आपकी बीबी पहन सकती हैं।”
डॉ. खान ने सुनीता को जब जस्सूजी की बीबी बताया तब जस्सूजी आगे बढे और डॉ. खान को कहने जा रहे थे की सुनीता उनकी बीबी नहीं थी, पर सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थाम कर उन्हें कुछ भी बोलने नहीं दिया और आगे आ कर कहा, “सुनिए जी! डॉ. साहब ठीक ही तो कह रहे हैं। पता नहीं हमें यहां कब तक रुकना पड़े।” फिर डॉ. खान की तरफ मुड़ कर बोली, “डॉ. साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया।”
जस्सूजी और सुनीता को कमरे में छोड़ कर बाहर का मैन गेट बंद कर डॉ. खान ऊपर अपने घर में चले गए और थोड़ी ही देर में कुछ खाना जैसे ब्रेड, जाम, दूध, कुछ गरम की हुई सब्जी लेकर आये और खुदके और अपनी बेटी के कपडे भी साथ में ले कर आए। खाना और कपडे मेज पर रख कर अल्लाह हाफ़िज़ कह कर डॉ. खान सोने चले गए।
कमरे का दरवाजा बंद कर सुनीता ने दो थालियों में खाना परोसा। जस्सूजी और सुनीता वाकई में काफी भूखे थे। उन्होंने बड़े चाव से खाना खाया और बर्तन साफ कर रख दिए। सुनिता ने फिर बाथरूम में जा कर देखा तो पानी गरम करने के लिए बिजली का रोड रखा था और बाल्टी थी। पानी एकदम ठंडा था। जस्सूजी ने कहा की वह पहले नहाना चाहते थे।
जस्सूजी ने सुनीता से पूछा, “सुनीता तुमने मुझे क्यों रोका, जब डॉ. साहब ने तुम्हें मेरी पत्नी बताया?”
सुनीता ने कहा, “जस्सूजी, मैं एक बात बताऊँ? आज जब आपने मुझे अपनी जान जोखिम में डालकर बचाया तो आपने वह किया जो मेरे पति भी नहीं कर सके जिससे मेरी माँ को दिया हुआ वचन पूरा हो गया। माँ ने मुझसे वचन लिया था की जो मर्द अपनी जान की परवाह ना कर के और मुझे खुशहाल रखना चाहेगा मैं उसे ही अपना सर्वस्व दूंगी। अब कोई मुझे आपकी बीबी समझे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।”
यह कह कर सुनीता जस्सूजी को बाँहों में लिपट गयी। जस्सूजी की आँखें शायद उस सफरमें पहली बार सुनीता की बात सुनकर नम हुयी। पर अपने आपको सम्हालते हुए जस्सूजी बोले, “सुनीता, सच तो यह है की मैं भी थक गया हूँ। खाना खाने के बाद मुझे सख्त नींद आ रही है। पहले मैं नहाता हूँ और फिर आप नहाने जाना।”
सुनीता ने जस्सूजी से कहा, “आप अपने सारे कपडे बाल्टी में डाल देना। मैं उनको धो कर सूखा दूंगी।”
सुनीता ने बाल्टी में पानी भर कर रोड से गरम करने रख दिया और सुनीता के गरम किये हुए पानी से जस्सूजी नहाये और जब उन्होंने डॉ. खान के लाये हुए कपडे देखे तो पाया की उनमें से एक भी उनको फिट नहीं हो रहा था। उनके कपडे काफी बड़े थे। कुर्ता और पजामा उनको बिल्कु फिट नहीं हो रहा था। सारे कपडे इतने ढीले थे की शायद उस पाजामे और कुर्ते में जस्सूजी जैसे दो आदमी आ सकते थे।
जस्सूजी ने एक कुर्ता और ढीलाढाला पजामा पहना पर वह इतने ढीले थे की उनको पहनना ना पहनना बराबर ही था। जैसे तैसे जस्सूजी ने कपडे पहने और फुर्ती से पलंग की चद्दरों और कम्बलों के बिच में घुस गए।
सुनीता डॉ. खान साहब की बेटी के कपडे लेकर बाथरूम में गयी तो देखा की जस्सूजी के गंदे कपडे बाल्टी में डले हुए थे। सुनीता ने महसूस किया की उनके कपड़ों में जस्सूजी के बदन की खुशबु आ रही थी। सुनीता ने जनाना उत्सुकता से जस्सूजी निक्कर सूंघी तो उसे जस्सूजी के वीर्य की खुशबु भी आयी।
सुनीता जान गयी की उसके बदन के करीब चिपकने से जस्सूजी का वीर्य भी स्राव तो हो रहा था। सुनीता ने फटाफट अपने और जस्सूजी के कपडे धोये और नहाने बैठ गयी। अपने नग्न बदन को आईने में देख कर खुश हुई।
इतनी थकान के बावजूद भी उसके चहरे की रौनक बरकरार थी। कमर के ऊपर और के निचे घुमाव बड़ा ही आकर्षक था। सुनीता को भरोसा हो गया की वह उतनी ही आकर्षक है जितना पहले थी। सुनीता की गाँड़ पीछे से कमर के निचे गिटार की तरह उभर कर दिख रही थी जिसको देख कर और स्पर्श कर अच्छे अच्छे मर्दों का भी वीर्य स्खलित हो सकता था।
सुनीता के बूब्स कड़क और एकदम टाइट पर पुरे फुले हुए मदमस्त खड़े लग रहे थे। उन स्तनोँ को दबाते हुए सुनीता ने महसूस किया की उसकी निप्पलं भी उत्तेजना के मारे फूल गयी थीं। सुनीता के स्तनों के चॉकलेटी रंग के एरोला पर भी रोमांच के मारे कई छोटी छोटी फुंसियां भी दिख रही थीं। सुनीता उत्तेजना से अपने दोनों स्तनोँ को अपने ही हाथों से दबाती हुई उस रात को क्या होगा उसकी कल्पना करके रोमांचित हो रही थी।
सुनीता ने साबुन से सारे कपडे अच्छी तरह धोये और निचोड़ कर कमरे में ही हीटर के पास सुखाने के लिए रख दिये। उसमें उसके भी कपडे थे। तौलिये से अपना साफ़ करने के बाद जब सुनीता ने डॉ. खान के लाये हुए कपड़ों को देखा तो पाया की वह बहुत ही छोटे थे। सलवार बिलकुल फिट नहीं बैठ रही थी और कमीज इतनी छोटी थी की बाँहों में भी नहीं घुस रही थी।
शायद डॉ. खान अपनी पोती की सलवार कमीज गलती से उठा लाये होंगे ऐसा सुनीता को लगा। वह अपने सर पर हाथ लगा कर सोचने लगी की अब क्या होगा? यह कपडे वह पहन नहीं सकती थी। उसके अपने कपडे धोने के लिए रखे थे और गीले थे। अभी ऊपर जा कर डॉ. खान चाचा को बुलाना भी ठीक नहीं लगा। अब करे तो क्या करे? अपना सर हाथ में पकड़ कर बैठ गयी सुनीता।
बस एक ही इलाज था या तो वह तौलिया पहने सोये या फिर बिना कपडे के ही सोये। तौलिया गीला होगा तो वह चद्दर भी गीली करेगा। वैसे ही डॉ. खान को तो उन्होंने आधी रात को जगा कर काफी परेशान किया था। ऊपर से फिर जगाना ठीक नहीं होगा। दूसरी बात, अगर सुनीता ने तय किया की वह डॉ. खान चाचा को उठाएगी, तो वह जायेगी कौनसे कपडे पहनकर?
अब तो सुनीता के लिए बस एक ही रास्ता बचा था की उसे बिना कपडे के ही सोना पड़ेगा। बिना कपडे के जस्सूजी के साथ सोना मतलब साफ़ था। जस्सूजी का हाथ अगर सुनीता के नंगे बादाम को छू लिया और अगर उन्हें पता चला की सुनीता बिना कपडे सोई है तो ना चाहते हुए भी वह अपने आप पर कण्ट्रोल रख नहीं पाएंगे।
वह कितनी भी कोशिश करे, उनका लण्ड ही उनकी बात नहीं मानेगा।
सुनीता ने सोचा, “बेटा, आज तेरी चुदाई पक्की है। अब तक तो जस्सूजी के मोटे लण्ड से बची रही, पर अब ना तो तेरे पास कोई वजह है नाही तेरे पास कोई चारा है। तू जब उनके साथ नंगी सोयेगी तो जस्सूजी की बात तो छोड़, क्या तू अपने आप को रोक पाएगी?” यह सवाल बार बार सुनीता के मन में उठ रहा था।
जब तक सुनीता नहा कर आयी तब तक जस्सूजी के खर्राटे शुरू हो चुके थे। डरी, कांपती हुई सुनीता डॉ. चाचा ने दिए हुए कपडे लेकर उन्हें अपनी छाती पर लगा कर चुपचाप बिना आवाज किये बिस्तरे में जाकर जस्सूजी की बगल में ही सो गयी।
सुनीता को उम्मीद थी की शायद हो सकता है की जस्सूजी का हाथ सुनीता के बदन को छुए ही नहीं। हालांकि यह नामुमकिन था। भला एक ही पलंग पर सो रहे दो बदन कैसे क दूसरे को छुए बगैर रह सकते हैं?
आगे क्या होता है, ये तो अगले एपिसोड में ही पता चलेगा, बने रहिएगा!
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