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मामी की चुदाई का मजा लेकर मैं वापस अपने घर लौटा तो हालात कुछ ऐसे बने कि चाची हमारे घर आई और मुझे चाची की चुदाई का मजा भी मिला. प्रिय अन्तर्वासना के सम्माननीय पाठिकाओं एवं पाठकों को विवेक ओबेरॉय का सादर प्रणाम! मेरी पिछली रचना इलेक्ट्रिक शेवर ने दिलाया मामी को सेक्स का मज़ा को पढ़ने के लिए बहुत धन्यवाद। मैं उन सभी पाठकों का भी बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मेरी उपरोक्त रचना को पढ़ने के पश्चात अपने अमूल्य समय में से कुछ क्षण निकाल कर उस पर अपने विचार भी प्रकट किए।
मेरे जीवन में घटी घटनाओं पर आधारित रचनाओं की शृंखला को जारी रखते हुए मैं अपनी अगली रचना वहाँ से शुरू कर रहा हूँ जहाँ पिछली रचना का अंत हुआ था। तीन माह के प्रोजेक्ट कार्य को समाप्त करके मैं मुंबई से रोती हुई मामी एवं मामा को अलविदा कह कर वापिस देहली पहुंचा।
जब घर पहुंचा तो देखा की सब यानि कि मेरे मम्मी, पापा और बुआ कहीं बाहर जाने के लिए तैयार हो रहे थे। मेरे पूछने पर कि वह कहाँ जाने के लिए तैयार हो रहे हैं तो मम्मी ने बताया- पिछले सप्ताह तुम्हारी बुआ की फिर से शादी के लिए एक रिश्ता आया था और कल रात ही लड़के वाले उसे देख कर गए थे। आज सुबह उन लोगों ने रिश्ते के लिए हाँ कर दी है इसलिए हम उनके घर लड़का रोकने की रस्म अदा करने जा रहे हैं। तुम भी जल्दी से हमारे साथ उनके यहाँ चलने के तैयार हो जाओ।
यह खबर सुन कर मुझे कुछ विस्मय तो हुआ लेकिन जल्द ही अपने को सँभालते हुए मैंने कहा- यह तो बहुत ख़ुशी की बात है मम्मी, लेकिन मैं रात भर के सफर से थका हुआ हूँ और मुझे तैयार होने में कुछ समय भी लग जायेगा। आपको देर ना हो जाए इसलिए आप लोग चलो और मुझे उनका पता बता दो मैं एक घंटे बाद वहीं पहुँचता हूँ।
उसके बाद मैं बुआ के कमरे में गया तो देखा कि वह काफी खुश लग रही थी और जब मैंने उन्हें बधाई दी तब उन्होंने मेरे गालों पर एक चुम्बन दे कर मेरा धन्यवाद किया और फिर तैयार होने लगी।
जब मैं कमरे में घुसा था तब बुआ नहाने के बाद अपना शृंगार कर रही थी और उस समय उन्होंने सिर्फ गाउन ही पहना हुआ था। शायद मैं उन्हें तीन माह के बाद देख रहा था और वह आज सुबह ही पार्लर से फेशियल तथा मसाज करा कर आई थी इसलिए मुझे बहुत सुन्दर लग रही थी।
मैं पलंग पर बैठा उनकी सूरत निहार रहा था तभी वह उठी अपना गाउन उतार कर बिस्तर पर फेंक दिया और पूर्ण नग्न हो कर अलमारी में से अपने कपड़े निकालने लगी। उसके ताज़े मसाज़ किए हुए शरीर को देख कर मेरा लिंग करवट लेने लगा और तब मैं बुआ के पीछे जा कर उन्हें अपनी बाँहों के घेरे में ले कर उसके उरोजों को मसलने लगा।
बुआ ने तुरंत मेरे हाथों को अपने उरोजों से हटाते हुए कहा- सिड, अभी भाभी और भईया घर पर हैं और मुझे तैयार भी होना है इसलिए तुम अभी यहाँ से जाओ ताकि मैं तैयार हो सकूँ। तुम तो जानते हो कि भईया समय के बहुत पाबंद है और अगर मुझे देर हुई तो बहुत डांटेंगे।
उनकी बात सुन कर जब मैं उनसे अलग हो गया तब उन्होंने घूम कर मेरा मायूस चेहरा अपने हाथों में लिया और कहा- सिड, मैं अब से ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती जिससे मेरे नए जीवन में पिछले जीवन की कोई भी परछाई पड़े। इसलिए हमारे लिए उचित होगा कि हम अभी से हमारे बीच में जो भी अनैतिक सम्बन्ध रहे हैं उन्हें भूल कर हमें एक दूसरे से सामान्य बुआ भतीजे जैसा बर्ताव ही करना चाहिए। अब तुम जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ।
बुआ की बात सुन कर मैं पीछे हट कर जाने के लिए मुड़ा ही था, तभी उन्होंने कहा- सिड, जाने से पहले मेरा एक काम तो कर दो, मेरी ब्रा की हुक तो लगाते जाओ। मैंने बुआ के पीछे जा कर उनकी ब्रा का हुक लगा दिया और उनसे अलग हो कर अपने कमरे में चला गया।
कमरे में पहुँच कर मुझे बुआ की बात से बहुत ख़ुशी मिली क्योंकि बड़ी चाची और मामी के साथ किये गए यौन संसर्ग की तुलना में बुआ की चुदाई संसर्ग बहुत अरुचिकर तथा नीरस होता था। मुंबई से वापिस चलने से पहले ही मैंने अपने मन में निर्णय कर चुका था कि मैं बुआ को संसर्ग की लिए कभी नहीं और अगर बुआ यौन संसर्ग के लिए कभी कहेगी तब सिर्फ उनकी संतुष्टि के लिए के ही सम्भोग करूँगा।
उसके बाद तैयार होने के लिए मैंने अलमारी में से कपड़े निकाल कर बिस्तर पर रखे और नहाने के लिए बाथरूम में चला गया। मैंने बाथरूम कर दरवाज़ा अभी बंद किया ही था की बुआ ने पुकार कर कहा- सिड, हम सब उनके घर जा रहे हैं और तुम भी तैयार हो कर वहीं आ जाना। उनके घर का पता मैंने लिख कर तुम्हारी पढ़ाई की मेज पर रख दिया है।
दस मिनट के बाद जब मैं नहा कर अपना शरीर पोंछ रहा था, तभी किसी ने बाथरूम का दरवाज़ा बहुत जोर से खटखटाया तब मैंने गुस्से से पूछा- कौन है? क्या दरवाज़ा तोड़ने का इरादा है? एक बहुत ही जाने पहचाने मधुर स्वर में उत्तर मिला- जल्दी से बाहर निकल, नहीं तो मुझे दरवाज़ा तोड़ कर अन्दर आना पड़ेगा।
उत्तर को सुनते ही मेरे शरीर का रोम रोम खिल उठा और मैं बाथरूम का दरवाज़ा खोल कर वैसे ही नग्न बाहर निकला और सामने खड़ी बड़ी चाची से लिपट गया। चाची ने भी मुझे अपने आगोश में ले कर बहुत जोर से भींचते हुए अपने सख्त उरोजों को मेरी छाती में गाड़ दिए और अपने होंठों को मेरे होंठों पर रख कर चूमना शुरू कर दिया। मैंने भी उन्हें अपनी बांहों के घेरे में लेते हुए उतने हो जोर से दबा दिया और पाँच मिनट के चुम्बन के बाद जब दोनों की सांसें फूलने लगी तब हम अलग हुए।
अलग होते ही मैं बोला- मेरी प्यारी चाची, आप यहाँ कब आईं और कैसे आना हुआ? उत्तर में चाची ने कहा- बस अभी ही आई हूँ। मेरी इकलौती ननद का रिश्ता हो रहा हो और मैं नहीं आऊँ यह कैसे हो सकता है? मैंने तुरंत पुछा- आप अकेली तो आ नहीं सकती, कोई ना कोई तो साथ आया ही होगा। कौन कौन आया है और कहाँ है सब लोग? चाची बोली- तुम्हारे दादा जी, दादी जी, बड़े चाचा, छोटे चाचा एवं चाची और सभी बच्चे आयें हैं। वे सभी तुम्हारे पापा के साथ लड़के वालों के घर चले गए हैं।
मैंने बिना सांस लिए पूछा- आप उन सब के साथ क्यों नहीं गई? मेरा प्रश्न सुन कर चाची मुस्कराते हुए नीचे झुकी और मेरे लिंग को पकड़ कर चूमते हुए बोली- क्योंकि मुझे इसको मिलना एवं प्यार करना था। मैं पिछले तीन माह से यौन सुख एवं संतुष्टि के लिए तरस रही हूँ। विवेक सुन, तैयार होने से पहले क्यों नहीं हम एक बार त्वरित सम्भोग (क्विक फ़क) कर लेते हैं?
चाची द्वारा मेरे लिंग को पकड़ कर चूमने के कारण उसमें अकड़न आने लगी थी जिसे देखते ही उन्होंने उसे अपने मुंह में ले कर चूसने लगी।
मैं भी उत्तेजित होने लगा और जब अपने को रोक नहीं सका तब मैंने उनकी साड़ी के अन्दर हाथ डाल कर उनकी पैंटी को नीचे सरकाते हुए उसे उनके घुटनों तक पहुंचा दिया। अगले दो मिनट तक चाची मेरे लिंग को चूसती रही और मैं उनके भगांकुर को सहलाते हुए उनकी योनि में उंगली करने लगा।
तीन माह से यौन सुख एवं संतुष्टि से वंचित चाची को चूसने के लिए उनका मन-पसंद लिंग उनके मुंह में मिलने और मेरे द्वारा उनके भगांकुर को सहलाने एवं योनि को उंगली करने से वह उन दो मिनटों में ही बहुत उत्तेजित हो गई। जब वह उस तीव्र उत्तेजना को सहन नहीं कर सकी तो झट से बिस्तर का सहारा ले कर घोड़ी बन गई और मेरे लोहे की तरह सख्त एवं डंडे की तरह खड़े लिंग को अपनी योनि के द्वार पर लगा दिया।
यौन संसर्ग के लिए चाची की चुदाई की आतुरता को देख कर मैंने भी देर नहीं की और एक ही धक्के में अपना पूरा लिंग उनकी योनि में धकेल दिया। क्योंकि चाची की योनि उत्तेजना के कारण इतनी गीली हो चुकी थी कि मेरा लिंग तेज़ी से फिसलता हुआ उनकी योनि के अंदर घुसा और उनके गर्भाशय की दीवार से जा टकराया।
मेरे लिंग के गर्भाशय की दीवार से टकराने के कारण उनकी योनि एवं शरीर के अंदर उठी हलचल की तरंगों से चाची को कुछ असुविधा हुई और उन्होंने बहुत ऊँचे स्वर में बोला- उई माँ, मैं मर गई। विवेक, आज क्या हो गया है तुम्हें जो इतने झटके से डाल दिया? मैं भी इंसान हूँ कोई जानवर नहीं, थोड़ा तो आराम से डालते। मैंने तुरंत कहा- चाची मैंने तो बहुत धीरे से डाला था लेकिन आपकी योनि अंदर से इतनी गीली हो चुकी है की मेरा फिसल कर एकदम से घुस गया।
अगले दो मिनट तक जब मैं आराम से धक्के लगा रहा तब तब चाची बोली- विवेक, बहुत मज़ा आ रहा है अब थोड़ा तेज़ी से कर! चाची के कहे अनुसार मैंने अपने लिंग को तेज़ी से उनकी योनि के अंदर बाहर करने लगा तब वह भी मेरा साथ देते हुए अपने कूल्हों को आगे पीछे हिलाने लगी।
क्योंकि उन्हें अत्यंत मज़े आ रहे थे इसलिए उनके मुंह से लगातार उंह्ह्ह… उंह्ह्ह.. और उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह्ह्ह… की सिसकारियाँ निकलने लगी। उन सिसकारियों को सुन कर मेरी उत्तेजना भी बढ़ गई और मैं बहुत तीव्र धक्के लगाने लगा जिस कारण दो मिनट के बाद ही चाची के मुंह से एक बहुत उच्च लम्बी सिसकारी निकली। उस ऊँची एवं लम्बी सिसकारी के साथ ही चाची की योनि में से गर्म रस का स्खलन हुआ जिसकी ऊष्मा मेरे लिंग को लगते ही उस में से भी वीर्य की पिचकारी छूट पड़ी।
तभी मैंने महसूस किया की चाची की टांगें कांप रही थी और वह खड़े नहीं हो पा रही थी तब मैंने उनकी योनि में से अपना लिंग बाहर निकाल कर उन्हें सहारा दे कर बिस्तर पर लिटा दिया। पाँच मिनट तक आँखें बंद करके लेटे रहने के बाद चाची एकदम से उठी और मुझसे लिपट कर मेरे होंठों एवं चेहरे को चूम कर गीला कर दिया।
मुझे जी भर कर अच्छी तरह से चूमने के बाद वह बोली- विवेक, सच बताऊँ तो जो आनन्द और संतुष्टि तुमने आज मुझे दी है शायद वह मुझे अभी तक के जीवन में कभी नहीं मिली थी। आज के इस त्वरित सहवास में मेरी योनि के अन्दर जो हलचल, आन्न्दोनमाद तथा संकुचन हुआ है वह मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था। तुमने मुझे आज उस आनन्दमय यौन सुख से अवगत कराया है जिसे मैं शायद जीवन भर कभी भी भूल नहीं पाऊंगी।
उसके बाद हम दोनों उठ कर बाथरूम में गए और जब अपने गुप्तांगों को साफ़ कर रहे थे तब मैंने देखा कि चाची की योनि में से हम दोनों का काफी सारा मिश्रित रस निकला था। उस रस को देख कर चाची हँसते हुए बोली- विवेक, लगता है कि तुमने पिछले तीन माह से एकत्रित सारे वीर्य रस को आज मेरी योनि में उड़ेल दिया है। अगर मैंने आज आई-पिल नहीं खाई तो अवश्य गर्भवती हो जाऊंगी।”
मैंने भी हँसते हुए उन्हें उत्तर दिया- चाची, त्वरित सहवास के कारण अभी तो सिर्फ कटोरी जितना ही उड़ेला है अगर रात में पूर्ण संसर्ग करने का अवसर मिला तो मैं कम से कम लोटा भर तो अवश्य ही उड़ेल दूंगा। चाची ने उत्तर दिया- ठीक है, तुम्हारे वीर्य रस के भण्डार को देखने के लिए मैं भी बहुत व्याकुल हूँ। लगता है आज मुझे कोई न कोई युक्ति लगा कर यहीं पर रहने और रात को तुम्हारे साथ ही सोने का प्रयोजन करना ही पड़ेगा।
इस प्रकार हंसी मज़ाक करते हुए हमने अपने गुप्तांगों के साफ़ किया और तैयार हो कर बुआ के होने वाले पति के घर चले गए जहाँ से हमें वापिस लौटने में रात दस बज गए।
घर वापिस आने के बाद क्या हुआ? क्या चाची युक्ति लगा कर उस रात मेरे घर में रहने सफल हुई या फिर गाँव चली गई? अगर वह रात में हमारे घर रही तो क्या उसने मेरे साथ यौन संसर्ग किया था या नहीं? आप लोगों के मन में उठ रहे प्रश्नों और प्रकार की ऐसी जिज्ञासा का निवारण मैं जल्द ही इस शृंखला की अगली रचना में पेश करूँगा। तब तक के लिए आपसे इस आशा से विदा लेता हूँ कि आप मेरी इस रचना पर अपने विचार अवश्य भेजेंगे। धन्यवाद [email protected]
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