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मैं इस सेक्सी चुत की कहानी में स्नेहा जैन को बता रहा था कि चूत चाटने से सारा जमा रस निकल जाता है और मुंहासे ठीक हो जाते हैं. और चूत गंदी नहीं होती है बस उसे साफ़ करने की जरूरत होती है चाटने से पहले! मेरी बातें सुनकर स्नेहा सोच में पड़ गई.
मैं धीरे धीरे उसे लाइन पर ला रहा था, मैं चाहता था कि वो एक बार अपनी चूत मुझसे चटवाने को तैयार हो जाए, फिर उसके बाद उसकी चूत में लंड पेलने का कोई न कोई रास्ता निकल ही आयेगा. यह सोचते सोचते मैं चुप रहा, मैं चाहता था कि अब स्नेहा ही बात को आगे बढाए.
‘अंकल जी मेरा मन इस बात को मानने को तैयार नहीं होता कि कोई उसे सच में चाट सकता है?!’ वो अनिश्चितता से बोली. ‘अरे यार, तुझे नहीं मानना तो मत मानो…. मेरा क्या, मुहाँसे तुम्हारे ठीक होने हैं, मेरा क्या. नहीं मानना तो मत मानो! चलो घर चलते हैं अब!’ मैंने थोड़ा झुंझला कर कहा.
‘अच्छा अंकल जी, सच्ची सच्ची बताओ, आप आंटी जी की उस जगह को सच में चाट लेते हो?’ वो मेरी बात को अनसुनी करके बोली. ‘अरे मैं झूठ क्यों बोलूंगा. यह तो प्राकृतिक क्रिया है. इससे चुदाई का आनन्द कई गुना बढ़ जाता है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारी चूत भी चाट के दिखा सकता हूँ. जैसे उस वीडियो में वो आदमी चाटता है, फिर तो विश्वास हो जाएगा न?’ मैंने कहा.
मेरी बात सुनकर वो फिर सोच में पड़ गई. यह मेरे लिए अच्छा संकेत था.
‘अंकल जी, उससे मुहाँसे पक्का मिट जायेंगे न?’ वो थोड़ी अनिश्चितता से बोली. ‘गुड़िया बेटा, अब मैं कोई अन्तर्यामी तो हूँ नहीं… जो कुछ देखा सुना है वही तुझे बताया है. मैं तो तेरा भला चाहता हूँ बस अब आगे तेरी मर्जी!’ मैंने उसे प्यार से समझाया.
मेरी बात सुनकर वो चुप रही और पांव के अंगूठे से जमीन कुरेदती रही. मैं भी चुप रहा. मैं जान गया था कि लड़की लाइन पर आ चुकी है, बस थोड़ी सी झिझक, थोड़ा सा डर बाकी है, वो भी अपने आप निकलेगा और वो खुद आगे आकर कदम बढ़ायेगी.
‘अंकल जी आप और कुछ तो नहीं करोगे न मेरे साथ में?’ उसने चिंतित स्वर में पूछा. ‘अरे बाबा, तेरी मर्जी के खिलाफ कुछ भी नहीं करूंगा मैं!’ मैंने कहा. ‘पहले प्रॉमिस करो और भगवान की कसम खाओ?’ वो मासूमियत से बोली. ‘पक्का प्रॉमिस और मुझे भगवान की कसम अगर तुम्हारी मर्जी के खिलाफ मैंने कुछ भी किया तो!’ मैंने वादा किया. ‘और किसी को इस बारे में बताओगे भी नहीं कभी, ये भी वादा करो?’ वो बोली. ‘अरे पक्का वादा. मैं क्यों किसी को बताऊंगा. तेरी इज्जत का मुझे पूरा पूरा ख्याल है.’ मैंने प्यार से कहा.
कितनी भोली थी बेचारी… मासूमियत से भरी हुई… मुझसे वादे मांग रही थी, कसमें खिला रही थी. उसे क्या पता था कि जब मैं उसकी दोनों चूचियाँ पकड़ के उसकी चूत चाटूंगा, चूत के दाने को चुभलाऊंगा तो वो खुद लंड मांगेगी, चोद डालने की विनती करेगी. लेकिन वो घड़ी अभी दूर थी.
‘ठीक है अंकल जी, मैं आपको फोन करुँगी बाद में!’ वो बोली. ‘ओके स्नेहा, जब तुम ठीक समझो, मुझे फोन कर देना और किसी बात का टेंशन नहीं लेना!’ मैंने उसका गाल थपथपाते हुए कहा. उसने सहमति में सर हिलाया और अपनी साइकिल पर बैठ गई. साइकिल पर बैठते समय उसकी कुर्ती ऊपर चढ़ गई जिससे उसकी सफ़ेद सलवार के अन्दर से उसकी गुलाबी जांघों और सफ़ेद पेंटी की झलक मिली जिसे देखकर ही चित्त प्रसन्न हो गया. और वो तेजी से पैडल चलाती हुई निकल ली.
अब मैं खुश होकर हवा में उड़ने लगा था, रह रह कर उसके नंगे जिस्म की कल्पना में खो जाता और उसकी चूत चटाई और चुदाई के दिवा स्वप्न देखता रहता.
कुछ दिन यूं ही इंतज़ार में निकल गये स्नेहा का फोन नहीं आया. हालांकि उसका फोन नएम्बार मेरे पास था लेकिन मैंने उसे फोन करना ठीक नहीं समझा.
फिर कोई सत्रह अठारह दिन बाद उसका फोन आया. उस टाइम मैं ऑफिस में था- हाँ, स्नेहा बिटिया. कैसी है तू? बहुत दिनों बाद फोन किया? ‘ठीक हूँ अंकल. कल मम्मी पापा एक शादी में जा रहे हैं. मेरे मामा के लड़के की शादी है.’ ‘अच्छा… फिर?’ ‘मैं और गुड्डू भैय्या नहीं जा रहे!’ ‘अच्छा क्यों, तुम लोग भी चले जाओ, तुम्हारे भाई की शादी है खूब एन्जॉय करना!’ ‘नहीं अंकल जी, मेरा मन नहीं कर रहा जाने का इन मुहाँसों की वजह से मुझे इन्फीरियरिटी काम्प्लेक्स फील होता है. किसी से ठीक से बात भी नहीं कर सकती क्योंकि सबकी नज़र मेरे इन मुहाँसों पर ही होती है. कई लोग तो कमेंट्स भी पास करते हैं. इसलिए मैंने पापा से मना कर दिया है कि मेरे टेस्ट्स हैं कॉलेज में… इसलिए मैं नहीं जा रही!’
‘चलो ठीक है, तो फिर पढ़ाई करो अच्छे से!’ मैंने उसकी बातों का मतलब समझते हुए भी भोला बना रहा.
‘पढ़ाई तो ठीक है अंकल जी, वो आपसे उस दिन आपके ऑफिस के पास हम लोग बात कर रहे थे न…’ ‘अच्छा, हाँ… वो वाली बात. अब याद आया मुझे!’ ‘अंकल जी मैंने सोचा है कि एक बार वो भी ट्राई करके देख लूं जो आप कह रहे थे…’ वो बड़ी मुश्किल से कह पाई. ‘गुड़िया, मैं तुम्हारी बात का मतलब समझ नहीं पा रहा थोड़ा खुल के कहो ना?’ मैंने बात बनाई. ‘अंकल जी, वो उस दिन आप वेजाइना लिकिंग के फायदे बता रहे थे न जैसे उस विडियो में दिखाया था आपने…’ ‘अच्छा अच्छा वो वाला वीडियो जिसमें वो लड़की दादा जी से चटवाती है… हाँ हाँ तो?’ ‘अंकल जी, मैं तीन दिनों तक दिन में अकेली रहूँगी. मम्मी पापा शादी में गये हैं और गुड्डू भैय्या स्कूल चला जाया करेगा. आप चाहो तो आ जाना मेरी वेजाइना ट्रीट करने के लिए अगर आपके पास थोड़ा टाइम हो तो…’ उसकी आवाज में कम्पन और थरथराहट साफ़ झलक रही थी.
‘जरूर आऊंगा बिटिया रानी. भगवान ने चाहा तो तुम्हारे मुंहासे हमेशा के लिए चले जायेंगे. बोलो, कितने बजे आऊं?’ ‘अंकल जी, गुड्डू भैय्या सुबह नौ बजे स्कूल चला जाता है स्कूल के बाद वो कोचिंग पढ़ के शाम को साढ़े छह तक घर लौटता है, इस बीच आप कभी भी आ जाना!’ ‘ठीक है स्नेहा… मैं दोपहर में किसी टाइम आ जाऊंगा, आने के पहले तुम्हें मिस्ड कॉल दूंगा.’ मैंने खुश होकर कहा. ‘थैंक यू अंकल जी. मैं इंतज़ार करूंगी. आप भूलना नहीं!’ उसने जल्दी से कहा और फोन काट दिया.
तो अन्तर्वासना के साथियो और सहेलियो मेरी कहानी उस मोड़ तक आ चुकी है जहाँ से आगे मेरी तमन्ना पूरी होने वाली है. कमसिन कली स्नेहा का नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म के आगोश में होगा, अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो!
अगले दिन मैं स्नेहा से मिलने को तैयार हुआ. सबसे पहले मैंने सुबह की चाय के बाद अपनी बीवी को पकड़ के एक बार रगड़ रगड़ के चोद डाला. वो न न करती रह गई कि सुबह सुबह ये क्या सूझी मुझे. अब उसे क्या बताता कि मुझे क्या सूझ रही थी. एक बार की चुदाई के बाद सेकंड राउंड की चुदाई में बहुत टाइम लगता है मुझे इसीलिए एक बार बीवी को चोद लिया था कि अगर स्नेहा चोदने को मिली तो उसे अधिक से अधिक देर तक बिना झड़े चोद सकूं.
उसके बाद मैंने अपनी झांटों को कैंची से कुतर कर नाखून जितना कर लिया. छोटी छोटी खूंटे सी उगी झांटें अगली की चूत में जो रगड़ का मज़ा देती हैं उसकी बात ही अलग है.
घर से निकल कर मैं ऑफिस अपने समय से पहुँच गया. थोड़ी देर काम करके बहाना बना के बाहर निकल लिया और स्नेहा को मिस्ड कॉल दी. अपनी बाइक मैंने ऑफिस में ही खड़ी रहने दी और रिक्शे से स्नेहा के घर से थोड़ी दूर उतर गया.
लोगों की नज़रों से छुपते बचते मैं स्नेहा के घर के सामने जा पहुँचा और घंटी बजाने को हाथ ऊपर किया. मैं घंटी बजा पाता उससे पहले ही स्नेहा ने दरवाजा खोल दिया. जाहिर था वो टकटकी लगाए मेरी ही बाट जोह रही थी.
‘नमस्ते अंकल जी!’ वो बोली. ‘नमस्ते स्नेहा बिटिया, कैसी हो?’ मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा. ‘ठीक हूँ अंकल जी!’
मैंने उस गौर से देखा. वो थोड़ी असामान्य और घबराई सी लग रही थी. जिस काम के लिए उसने मुझे बुलाया था वैसे में उसकी घबराहट स्वाभाविक ही थी. साधारण सा सलवार कुर्ता पहन रखा था उसने, मम्में भी दुपट्टे से ढक रखे थे, बाल पोनी टेल स्टाइल में बंधे हुए थे. कुल मिलाकर जैसे आमतौर पर लड़कियाँ घर में सिंपल तरीके से रहती हैं उसी तरह से लगी वो मुझे… मेरे कहने का मतलब मुझसे मिलने की चाह में उसने कोई किसी तरह का बनाव सिंगार या मेकअप वगैरह नहीं किया था. मुझे अच्छी लगी ये बात.
‘बैठिये अंकल जी. मैं पानी लाती हूँ!’ ‘अरे ये चाय पानी वगैरह रहने दो, फिर कभी पी लूंगा. अभी तो जिस काम के लिए आया हूँ, वो शुरू करते हैं!’ मेरी बात सुनकर उसने सिर झुका लिया और चुप खड़ी रह गई.
‘इधर आ मेरे पास बैठ!’ मैंने सोफे पर बैठते हुए कहा तो वो हिचकते हुए मुझसे दूरी बना कर बैठ गई. ‘अंकल जी, मुझे बहुत डर लग रहा है. कुछ होगा तो नहीं न मुझे?’ ‘होगा, होगा क्यों नहीं. अरे तेरे ये मुहाँसे मिट जायेंगे देख लेना और मज़ा ही ऐसा आयेगा कि तुझे अभी तक नहीं आया होगा!’ मेरी बात सुनके वो चुप रह गई.
‘मेरे पास आ के बैठो न स्नेहा!’ मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने नजदीक सटा लिया और उसके गले में बांह डाल कर हौले से उसका बायाँ गाल चूम लिया. उसका बदन हौले से कांपा और उसने मुझसे दूर हटने का प्रयास किया लेकिन मैंने उसे थामे रखा और उसकी गर्दन पर एक चुम्मा जड़ दिया.
‘मत करो अंकल जी ऐसे. मुझे डर लग रहा है!’ ‘अरे बेटा, डरने की क्या बात है. अब जिस काम के लिए मुझे बुलाया है वो तो मुझे ठीक से करने दो न… देखो स्नेहा, अगर तुम ठीक से कोआपरेट करोगी तो सब कुछ अच्छे से होगा, तुम्हें भी अच्छा लगेगा और मुझे भी. नहीं तो अभी भी समय है तुम चाहो तो पीछे हट सकती हो, मैं वापस चला जाता हूँ. भूल जाना इन बातों को!’
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