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इस तरफ सुनीता का हाल भी देखने वाला था। नीतू की चुदाई देख कर सुनीता की चूत में भी अजीब सी जलन और हलचल हो रही थी। उन्हें चोदने के लिए सदैव इच्छुक उसके प्यारे जस्सूजी वहीं खड़े थे।
हकीकत में सुनीता अपनी पीठ में महसूस कर रही की जस्सूजी का लण्ड उनकी पतलून में फनफना रहा था। पर दोनों की मजबूरियां थीं। सुनीता ने फिर भी अपना हाथ पीछे किया और जस्सूजी के बार बार सुनीता के हाथ को हटाने की नाकाम कोशिशों के बावजूद जस्सूजी की जाँघों के बिच में डाल ही दिया।
जस्सूजी के पतलून की ज़िप खोलकर सुनीता ने बड़ी मुश्किल से निक्कर को हटा कर जस्सूजी का चिकना और मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा।
कुमार अब नीतू की अच्छी तरह चुदाई कर रहे थे। दोनों टाँगों को पूरी तरह फैला कर नीतू कुमार के मोटे तगड़े लण्ड से चुदवाने का मजा ले रही थी। कुमार का लण्ड जैसे ही नीतू की चूत पर फटकार मारता तो नीतू के मुंह से आह… निकल जाती।
जस्सूजी और सुनीता को वहाँ बैठे हुए नीतू और कुमार की चुदाई का पूरा दृश्य साफ़ साफ़ दिख रहा था। वह कुमार का मोटा लण्ड नीतू की चूत में घुसते हुए साफ़ देख पा रहे थे।
सुनीता ने जस्सूजी की और देखा और पूछा, “कर्नल साहब, आपके जहन में यह देख कर क्या हो रहा है?”
जस्सूजी का बुरा हाल था। एक और वह नीतू की चुदाई देख रहे थे तो दूसरी और सुनीता उनके लण्ड को बड़े प्यार से हिला रही थी।
जस्सूजी ने सुनीता के गाल पर जोरदार चूँटी भरते हुए कहा, “मेरी बल्ली, मुझसे म्याऊं? तू मेरी ही चेली है और मुझसे ही मजाक कर रही है? सुनीता, मेरे लिए यह बात मेरे दिल के अरमान, फीलिंग्स और इमोशंस की है। मेरे मन में क्या है, यह तू अच्छी तरह जानती है। अब बात को आगे बढ़ाने से क्या फायदा? जिस गाँव में जाना नहीं उसका रास्ता क्यों पूछना?”
सुनीता को यह सुनकर झटका सा लगा। जिस इंसान ने उसके लिए इतनी क़ुरबानी की थी और जो उससे इतना बेतहाशा प्यार करता था उसके हवाले वह अपना जिस्म नहीं कर सकती थी। हालांकि सुनीता को सुनीता को खुदके अलावा कोई रोकने वाला नहीं था। सुनीता का ह्रदय जैसे किसी ने कटार से काट दिया ही ऐसा उसे लगा। वह जस्सूजी की बात का कोई जवाब नहीं दे सकती थी।
सुनीता ने सिर्फ अपना हाथ फिर जबरदस्ती जस्सूजी की टाँगों क बिच में रखा और उनके लण्ड को पतलून के ऊपर से ही सहलाते हुए बोली, “मैं मजाक नहीं कर रही जस्सूजी। क्या सजा आप को अकेले को मिल रही है? क्या आप को नहीं लगता की मैं भी इसी आग में जल रही हूँ?”
सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी की आँख थोड़ी सी गीली हो गयी। उन्होंने सुनीता का हाथ थामा और बोले, “मैं तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ। मैं तुम्हारे वचन का और तुम्हारी मज़बूरी का भी सम्मान करता हूँ और इसी लिए कहता हूँ की मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। क्यों मुझे उकसा रही हो?”
सुनीता ने जस्सूजी के पतलून के ऊपर से ही उनके लण्ड पर हाथ फिराते उसे हिलाते हुए कहा, “जस्सूजी, मेरी अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं। अगर सब कुछ न सही तो थोड़ा ही सही। मैं आपको छू तो सकती हूँ ना? मैं आपके नवाब (लण्ड) से खेल तो सकती हूँ ना? की यह भी मुझसे नकारोगे?”
सुनीता की बात का जस्सूजी ने जवाब तो नहीं दिया पर सुनीता का हाथ अपनी टांगों से बिच से हटाया भी नहीं। सुनीता ने फ़ौरन जस्सूजी की ज़िप खोली और निक्कर हटा कर उनके लण्ड को अपनी कोमल उँगलियों में लिया और नीतू की अच्छी सी हो रही चुदाई देखते हुए सुनीता की उँगलियाँ जस्सूजी के लण्ड और उसके निचे लटके हुए उसके अंडकोष की थैली में लटके हुई बड़े बड़े गोलों से खेलनी लगी।
सुनीता की उँगलियों का स्पर्श होते ही जस्सूजी का लण्ड थनगनाने लगा। जैसे एक नाग को किसीने छेड़ दिया हो वैसे देखते ही देखते वह एकदम खड़ा हो गया और फुंफकारने लगा। सुनीता की उँगलियों में जस्सूजी के लण्ड का चिकना पूर्व रस महसूस होने लगा। देखते ही देखते जस्सूजी का लण्ड चिकनाहट से सराबोर हो गया। जस्सूजी मारे उत्तेजना से अपनी सीट पर इधरउधर होने लगे।
उधर कुमार बड़े प्यार से और बड़ी फुर्ती से नीतू की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहा था। कभी धीरे से तो कभी जोरदार झटके से वह अपनी गाँड़ से पीछे से ऐसा धक्का माता की नीतू का पूरा बदन हिल जाता। तो कभी अपना लण्ड नीतू की चूत में अंदर घुसा कर वहीँ थम कर नीतू के खूबसूरत चेहरे की और देख कर नीतू की प्रतिक्रिया का इंतजार करता।
जब नीतू हल्का हास्य देकर उसे प्रोत्साहित करती तो वह भी मुस्कुराता और फिर सुनीता की चुदाई जारी रखता। कुछ देर में नीतू का जोश और हिम्मत बढ़ी और वह कुमार के निचे से बैठ खड़ी हुई। उसने कुमार को निचे लेटने को कहा। नीतू ने कहा, “अब तक तो तुम मुझे चोदते थे। अब कप्तान साहब मैं तुम्हें चोदती हूँ। तुमभी क्या याद रखोगे की किसी लड़की ने मुझे चोदा था।”
और फिर नीतू ने कुमार के ऊपर चढ़कर कुमार का फुला हुआ मोटा लण्ड अपनी उँगलियों से अपनी चूत में घुसेड़ा और कूद कूद कर उसे इतने जोश से चोदने लगी की कुमार की भी हवा निकल गयी। कुमार का लण्ड, नीतू की चूत में पूरा उसकी बच्चे दानी तक पहुँच जाता।
यह दृश्य देखकर सुनीता भी मारे उत्तेजना के जस्सूजी का लण्ड जोर से हिलाने लगी। जस्सूजी की समझ में नहीं आ रहा था की वह आँखें मूँद कर सुनीता की उँगलियों से अपने लण्ड को हिलवाने का मझा लें या आँखें खुली रख कर नीतू की चुदाई देखने का। दोनों ही उनको पागल कर देने वाली चीज़ें थीं।
जस्सूजी सुनीता की आँखों में देखने लगे की उनका लण्ड हिलाते वक्त सुनीता के चेहरे पर कैसे भाव आते थे। सुनीता यह देखने की कोशिश कर रही थी की जस्सूजी के चेहरे पर कैसे भाव थे। सुनीता कुमार की चुदाई देख रही थी। उस समय उसके मन में क्या भाव थे यह समझना बहुत मुश्किल था। क्या वह नीतू की जगह खुद को रख रही थी? तो फिर कुमार की जगह कौन होगा? जस्सूजी या फिर सुनीता के पति सुनीलजी?
नीतू के सर पर तो जैसे भुत सवार हो गया था। शायद नीतू को उसके जीवन में पहली बार एक जवाँ मर्द का फुला हुआ मोटा लण्ड अपनी चूत में लेने का मौक़ा मिला था। कुमार के लण्ड की घिसने से नीतू की चूत में हो रहा घर्षण उसके पुरे बदन में आग लगा दे रहा था। ऐसा पहले कभी नीतू ने महसूस नहीं किया था। उसने पहले सिर्फ चुदाई की कहानियां ही पढ़ी या सुनी थीं या कोई कोई बार एकाध वीडियो देखा था।
खन्ना साहब ने अपने कमजोर ढीले लण्ड से बड़ी मुश्किल से जरूर नीतू को चोद ने की कोशिश की थी। वह भी कुछ दिनों तक ही। पर उस बात को तो जमाने बीत गए थे। वाकई में एक हट्टे कट्टे जवाँ मर्द से चुदाई में कैसा आनंद आता है वह नीतू पहली बार महसूस कर रही थी।
नीतू इस बात का पूरा लाभ उठाना चाहती थी। उसे पता नहीं था की शायद उसे ऐसा मौक़ा फिर मिले या नहीं। नीतू उछल उछल कर कुमार के लण्ड को ऐसे चोद रही थी जिससे कुमार का लण्ड उसकी चूत की नाली में आखिर तक पहुंच जाए। नीतू के दोनों बूब्स उछल उछल कर पटक रहे थे। कुमार ने नीतू का जोश देखा तो वह भी जोश में आकर निचे अपनी गाँड़ उठाकर ऊपर की और जोरदार धक्का दे रहा था। दोनों ही के मुंह से आह्ह्ह्ह…. ओह…. उफ….. की आवाजें निकल रहीं थीं।
कुछ ही देर में नीतू अपने चरम पर पहुँच रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब से भाव प्रकाशित हो रहे थे। एक तरह का अजीब सा उन्माद और रोमांच उसके पुरे बदन को रोमांचित कर रहा था। कुछ धक्के मारने के बाद वह बोल पड़ी, “कुमार मैं अब छोड़ने वाली हूँ। तुम भी अपना वीर्य मुझ में छोड़ दो। आज मैं तैयारी के साथ ही आयी थी। मैं जानती थी की आज तुम मेरी लेने वाले हो और मुझे छोड़ोगे नहीं।”
कुमार ने नीतू के होंठ चूमते हुए हाँफते हुए स्वर में कहा, “नीतू, आई लव यु! मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। मैं तुम्हें आज ही नहीं, जिंदगी भर नहीं छोड़ना चाहता, अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो तो। मैं तुम्हें रोज चोदना चाहता हूँ। क्या तुम मेरी बनने के लिए तैयार हो?”
नीतू ने कहा, “देखो कुमार डार्लिंग! यह वक्त यह सब कहना का नहीं है। कोई भी काम जोश में नहीं होश में करना चाहिए। अभी तुम चुदाई के जोश में हो। जब यह सब हो जाए और तुम ठन्डे दिमाग से सोचोगे तब तय करना की तुम मुझे अपनी बनाना चाहते हो या नहीं। अपने माता पिता से भी सलाह और मशवरा कर लो। कहीं ऐसा ना हो की तुम तैयार हो पर तुंहारी फॅमिली साथ ना दे। मैं ऐसा नहीं चाहती।”
कुमार ने कहा, “ओह…… नीतू डार्लिंग, मेरा वीर्य भी छूटने वाला है। पर मैं तुम्हें पुरे होशो हवास मैं कह रहा हूँ की शादी तो मैं तुमसे ही करूंगा अगर खन्ना साहब इजाजत दें तौ।”
नीतू ने कहा, “खन्ना साहब तो अपना पिता का धर्म अदा करना चाहते हैं। वह मुझे कह रहे थे की उन्होंने कभी कन्यादान नहीं किया। उनके जीवन की इस कमी को वह मेरी शादी करा कर पूरी करना चाहते हैं। बशर्ते की कोई मुझे स्वीकार करे और प्यार से रक्खे। अगर तुम तैयार होंगे तो उनसे ज्यादा खुश कोई नहीं होगा।” इतना बोल कर नीतू चुप हो गयी। उसने कुमार की चुदाई करने पर अपना ध्यान लगा दिया क्यूंकि वह अब झड़ने वाली थी।
कुछ ही देर में नीतू और कुमार झड़ कर शांत हो गए।
तो इस तरफ सुनीता जस्सूजी का लण्ड अपनी उँगलियों में जोर से हिला रही थी। साथ साथ में जस्सूजी के चेहरे के भाव भी वह पढ़ने की कोशिश कर रही थी। जस्सूजी आँखें मूँद कर अपने लण्ड की अच्छी खासी मालिश का आनंद महसूस कर रहे थे। नीतू और कुमार को झड़ते हुए देखकर उनके लण्ड के अंडकोष में छलाछल भरा वीर्य भी उनकी नालियों में उछल ने लगा। सुनीता की उँगलियों की कला से वह बाहर निकलने को व्याकुल हो रहा था।
नीतू से हो रही कुमार की चुदाई देख कर सुनीता ने भी तेजी से जस्सूजी का लण्ड हिलाना शुरू किया जिसके कारण कुछ ही समयमें जस्सूजी की भौंहें टेढ़ी सी होने लगी। वह अपना माल निकाल ने के कगार पर ही थे। एक ही झटके में जस्सूजी अपना फ़व्वार्रा रोक नहीं पाए और “सुनीता, तुम क्या गजब का मुठ मार रही हो!! अह्ह्ह्हह…… मेरा छूट गया…. कह कर वह एक तरफ टेढ़े हो गए। सुनीता की हथेली जस्सूजी के लण्ड के वीर्य से लथपथ भर चुकी थी।
सुनीता ने इधर उधर देखा, कहीं हाथ पोंछने की व्यवस्था नहीं थी। सुनीता ने साथ में ही रहे पेड़ की एक डाली पकड़ी और एक टहनी से कुछ पत्तों को तोड़ा।
डाली अचानक सुनीता की हांथों से छूट गयी और तीर के कमान की तरह अपनी जगह एक झटके से वापस होते हुए डाली की आवाज हुई।
चुदाई खत्म होने पर साथ साथ में लेटे हुए कुमार और नीतू ने जब पौधों में आवाज सुनी तो वह चौकन्ने हो गए। कुमार जोर से बोल पड़े, “कोई है? सामने आओ।”
जस्सूजी का हाल देखने वाला था। उन्होंने फ़टाफ़ट अपना लण्ड अपनी पतलून में सरकाया और बोले, “कौन है?”
तब तक नीतू अपने कपडे ठीक कर चुकी थी। कुमार भी कर्नल साहब की आवाज सुनकर चौंक एकदम कड़क आर्मी की अटेंशन के पोज़ में खड़े हो गए और बोले, “सर! मैं कप्तान कुमार हूँ।”
जस्सूजी ने डालियों के पत्तों को हटाते हुए कहा, “कप्तान कुमार, एट इज़ (मतलब आरामसे खड़े रहो।)” उन्होंने फिर नीतू की और देखते हुए कुमार पूछा, “कप्तान तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?”
जब कुमार की बोलती बंद हो गयी तब बिच में सुनीता बोल उठी, “कॅप्टन साहब, कर्नल साहब के कहने का मतलब यह है की आप दोनों को मुख्य मार्ग से हट कर यहां नहीं आना चाहिए था। यह जगह खतरे से खाली नहीं है।”
कुमार साहब ने नजरें नीची कर कहा, “आई एम् सॉरी सर।” फिर नीतू की और इशारा कर कहा, “इनको कुदरत का नजारा देखने की ख़ास इच्छा हुई थी। तो हम दोनों यहां आ गए। आगे से ध्यान रखूंगा सर।”
जस्सूजी ने कहा, “ठीक है। कुदरत का नजारा देखना हो या कोई और वजह हो। आप को इनको सम्हाल ना है और अपनी और इनकी जान खतरे में नहीं डालनी है। समझे?”
कैप्टेन कुमार ने सलूट मारते हुए कहा, “यस सर!”
जस्सूजी ने मुस्कुराते हुए आगे बढ़कर नीतू के सर पर हाथ फिराते हुए मुस्कराते हुए कहा, “तुम्हें जो भी नजारा देखना हो या जो भी करना हो, करो। पर सम्हाल कर के करो। तुम दोनों बहुत अच्छे लग रहे हो।” कह कर जस्सूजी ने सुनीता को साथ साथ में चलने को कहा।
सुनीता को जस्सूजी के साथ देख कर कैप्टेन कुमार और नीतू भी मुस्कुराये। केप्टिन कुमार ने सुनीता की और देखा और चुपचाप चल दिए।
पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी।
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