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नमस्कार दोस्तो, कहानी की अगली कड़ी लेकर मैं एक बार फिर आप सबके सामने हाजिर हूँ। अभी हम कहानी के आखरी पड़ाव में नहीं हैं, बल्कि शुरुआत में ही पहुंचे हैं। जो कुछ भी आपने अभी तक पढ़ा वह महज कहानी की भूमिका थी। जो कहानी के अगले हिस्सों से जुड़ी हुई है।
मैंने अपने ख्वाबों में कल्पना और आभा के साथ सैक्स संबंध की कहानी बताकर तनु भाभी की झिझक को खत्म कर दिया, पर मेरी काल्पनिक कहानी से तनु भाभी का अतीत जुड़ा हुआ था, और तनु भाभी मुझे अब वही कहानी बता रही है। उसका नाम शादी के पहले कविता था, उसकी एक बहन भी है जिसका नाम अनीता है। कविता अब बचपन से आगे निकल कर किशोरी हो चुकी है और उनके कुछ-कुछ लक्षण भी दिखने लगे हैं पर कविता अभी इन बातों से अनजान है और शारीरिक परिवर्तन ने उसे पहले से ज्यादा चिड़चिड़ा बना दिया है। अब आगे…
कविता(तनु) ने बताया: मेरे निप्पल के आस-पास दर्द रहने लगा, कभी-कभी सामान्य सा दर्द रहता था पर कभी बहुत ज्यादा ही दर्द होता था, मैंने कई बार रात के वक्त माँ से छुपकर उनमें तेल लगाया था, अब रातों की छटपटाहट की वजह से मैं माँ से अलग ही सोना चाहती थी। हमारे घर पर्याप्त कमरे भी थे, तो कुछ दिन बाद माँ ने मुझे और छोटी को पढ़ने और सोने के लिए अलग कमरा दे दिया। आप सोच रहे होंगे ये छोटी कौन है? मेरी छोटी बहन अनीता को ही हम घर में छोटी बुलाते थे। अब मेरे बड़े होने के साथ ही, मेरे कपड़े भी छोटे होने लगे.. और शरीर में अलग ही बेचैनी महसूस होने लगी। तब मैंने माँ से एक दो बार इन चीजों के बारे में जानने की कोशिश की तो माँ ने कहा.. उम्र के इस पड़ाव में लड़कियों के साथ ये सब होता ही है। पर जब तुझे नीचे योनि से खून आये तब मुझे बताना, उस वक्त मैं तुम्हें और बहुत सी बातें बताऊंगी। मैं तो डर ही गई.. क्या वहाँ से खून आता है.. क्यों आता है?? कब आता है..?? सबको आता है क्या.?? माँ ने कहा..हाँ बाबा..! सबको आता है.. और अब तू ज्यादा मत पुछ जब समय आयेगा तब तुझे मैं सब कुछ बता दूंगी।
इस बात को लगभग छ: महीने बीत गये, अब सीने में दर्द कम रहता था और थोड़े उभार जैसे दिखने लगे। वैसे माँ मुझे बचपन से ही शमीज पहनाती थी, फिर भी अब शर्ट के ऊपर से निप्पल का अहसास होने लगा था। फिर एक दिन मेरे पेट में दर्द होने लगा, और पैरों में भी दर्द और ढीलापन लगने लगा, तो मैं उस दिन स्कूल नहीं गई। और अपने कमरे में आराम करने लगी, मैंने पेट में तेल लगाया पर दर्द है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था, मैं दर्द के मारे छटपटाते हुए ऐसे ही पड़ी रही। माँ एक दो बार कमरे में आकर मुझे देख कर चली गई।
शाम को छोटी स्कूल से घर लौटी तो उसने अपना बस्ता रखते ही मुझे देख कर चौंक पड़ी.. और जोर से चीखते हुए मान के पास गई ‘माँ, दीदी को चोट लगी है, खून आ रहा है।’ उसकी आवाज सुनकर मैं भी चौंक पड़ी मैंने नीचे देखा तो मेरा स्कर्ट भीग गया था और ये खून मेरी पेंटी से रिस रहा था, मतलब मेरी योनि का ही खून था। मैं सोच रही थी कि मुझे पता क्यों नहीं चला। वैसे मुझे अहसास तो हुआ था पर मैं पेट के दर्द की वजह से ध्यान नहीं दे पाई।
माँ दौड़ कर मेरे कमरे में आई और छोटी को कहा- कुछ नहीं हुआ है.. ऐसा होता ही है। तू जा बाहर खेलने और बाद में आना। वो मुझे अचरज से देखती रही, माँ ने उसे फिर डांटा- तू जा ना.. ये सब अभी तेरे जानने की चीज नहीं है, जब तेरी बारी आयेगी तब तुझे भी सब बताऊंगी।
अब छोटी तो चुपचाप चले गई पर माँ बड़बड़ाने लगी- ये आजकल की लड़कियाँ भी थोड़ा सा दर्द बर्दाश्त नहीं कर सकती, हमारे जमाने में महीना आते ही शादी कर देते थे, पर अब तो दूध के दांत झड़े नहीं कि महीना आना शुरू हो जाता है। फिर मुझे कहा- तू ऐसी ही पड़ी रहना, मैं नेपकिन लेकर आती हूं। और वो अपने कमरे में चली गई।
वैसे माँ सही ही कह रही थी.. पहले लड़कियों को मासिक धर्म बारह वर्ष से पंद्रह वर्ष की आयु में आते थे, और पहले कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी, मतलब महीना आना शुरू हुआ और शादी हो गई। पर अब लड़कियों को दस से बारह वर्ष के बीच ही महीना आ जाता है। और इस वक्त तक आजकल की लड़कियाँ फोन, गाड़ी, कंप्यूटर और फैशन में तो बहुत आगे होती हैं पर घर और समाज के बारे में कुछ भी सीखी समझी नहीं होती। और पहले जैसी शारीरिक मजबूती भी अब के लोगों में नहीं है। वैसे ये बात सभी के लिए लागू नहीं होती पर औसतन सबके साथ यही होता है।
अब मुझे ही देख लो मुझे ग्यारह वर्ष में ही महीना आ गया। अब इसे कलयुग का कहर कहो या ओजोन परत की क्षति..! पर अभी बिस्तर पर तो मैं ही पड़ी हूं। और जो लहू लुहान है वो है मेरी योनि। माँ वापस आई और उसके हाथ में सफेद रंग की नैपकिन थी जिसका आकार 3×7 इंच का रहा होगा। मैंने उस नैपकिन को पहले भी माँ की आलमारी में देखा था। पर यह क्या चीज है, कैसे इस्तेमाल करते हैं मुझे ये कुछ नहीं पता था।
माँ ने मुझे सहारा देकर उठाया और एक साफ पेंटी पकड़ कर बाथरूम चलने को कहा.. वहाँ मैंने बाथरूम के अंदर जाकर पेंटी निकाली और योनि को साफ पानी से धोया। फिर मैं बिना पेंटी के ही बाहर निकल आई, मैंने स्कर्ट पहना था इसलिए आप लोग यह मत सोचिए कि मैं नंगी ही बाहर आ गई थी। फिर माँ ने मुझे नैपकिन पेंटी में कैसे चिपकाते हैं, सिखाया और पहनने के लिए कहा। और साथ ही ये भी बताया की पहले के जमाने में पुराने कपड़ों को नैपकिन की जगह इस्तेमाल किया जाता था। माँ ने मुझे एक दर्द निवारक गोली भी लाकर खिलाई। अब मुझे कुछ अच्छा लग रहा था, मैंने बिस्तर से चादर हटा कर दूसरी चादर बिछाई, और लेट गई।
तभी माँ भी कमरे में आई और मेरे बिस्तर पर बैठ गई और मैंने माँ की गोद में सर रख लिया, ऐसा करके मैंने बहुत सूकुन महसूस किया। माँ ने भी मेरे माथे को लालित्य के साथ चूमा और कहा- घबरा मत बेटी, ऐसा होना एक स्त्री के लिए स्वाभाविक क्रिया है, धीरे-धीरे तुझे इसकी आदत पड़ जायेगी। और अब मैं जो तुझे बताने जा रही हूं, उसे कान खोल कर सुन… ये सारी चीजें तुझे जिन्दगी भर काम आयेंगी। मैंने हम्म्म कहते हुए सर हिलाया और ध्यान से सुनने लगी।
माँ ने कहा- पहले तो तू ये जान ले कि अब तुझे हर महीने इस मासिक धर्म का सामना करना पड़ेगा, और ये परेशानी पांच दिन तक रहती है, और सच कहूं तो ये परेशानी भी नहीं है, ये तो कुदरत का हम स्त्रियों को दिया एक वरदान है। मासिक धर्म के आने के बाद चेहरे में निखार आने लगता है, शरीर में स्फूर्ति आती है, कामोत्जना के लिए नई उर्जा मिलती है, शरीर गर्भ धारण के लायक बनता है और हम सृष्टि के सृजन में सहायक बन पाती हैं, और जिन्हें नियमित मासिक धर्म नहीं आता या जो लोग दवाओं का सेवन करके मासिक धर्म को आने से रोकते हैं, वो मातृत्व सुख से वंचित भी हो सकती हैं, या उन्हें बड़ी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है।
मैंने कहा- आप ये क्या-क्या कह रही हो, मुझे तो कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा है? तो माँ ने कहा- तू अभी बस सुनती जा.. फिर जब तू इन अवस्थाओं में पहुंचेगी तब मेरी बातों को याद करना, और कभी कोई उलझन हो तो मुझसे आकर पूछ लेना। जब बेटी को महीना आना शुरू हो जाये तब वो माँ की सहेली बन जाती है, और अगर मैं तुम्हें सारी चीजें अभी ना समझाऊं तो पता नहीं तू किस मोड़ पर गलती कर बैठे।
मैं फिर से हम्म्म् करके सुनने लगी। वैसे मुझे भी इन बातों में बहुत मजा आ रहा था, क्योंकि ये सारी बातें मेरे ही जीवन से जुड़ी थी और मेरे लिए नई भी थी। माँ ने फिर कहा- वैसे मासिक धर्म हर 28 दिनों में आना चाहिए पर दो तीन दिनों के हेर-फेर से घबराने की कोई बात नहीं होती। वैसे तो किसी भी स्त्री को योनि की जगह हमेशा ही साफ-सुथरी रखनी चाहिए, पर मासिक धर्म के समय में अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि उस वक्त योनि अति संवेदनशील अवस्था में होती है। और जब स्त्री गर्भ से होती है तब महीना नहीं आता, और पहले तो महीना रुकने पर ही पता चलता था कि ये स्त्री गर्भ से है। पर आजकल तो साईंस के जरिये ही सबकुछ पता चलता है। खान-पान का संयम भी हम स्त्रियों के लिए अनिवार्य है, कुछ लड़कियाँ लड़कों की नकल में नशा करने लगी हैं। वो अपना ही शरीर और मातृत्व जीवन नष्ट कर रही हैं। वैसे नशा किसी के लिए भी अच्छा नहीं होता पर स्त्रियों के लिए तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता।
इसके अलावा जब ब्रा पहने की शुरुआत हो तब भी बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसे बहुत ज्यादा कड़ा पहनने से, बिमारियों का सामना करना पड़ सकता है, और ब्रा बिल्कुल ही ना पहने से सुडौलता नहीं आती, या स्तन आजीवन ही अर्ध विकसित रह जाते हैं। सुडौल स्तन खूबसूरत स्त्री की पहली आवश्यकता है। और इसके लिए सही साईज और सही कप वाले अच्छे कपड़ों की ब्रा का इस्तेमाल आवश्यक होता है। साथ ही साथ उसकी डिजाइन और कलर तुम्हारी सोच और समझ को भी दर्शाती है। और सौंदर्य प्रसाधन का भी संयमित इस्तेमाल ही अच्छा होता है। वैसे अति किसी भी चीज की ठीक नहीं होती।
माँ ने और क्या-क्या बताया मुझे नहीं पता, क्योंकि मेरी नींद लग गई थी। माँ मुझे ठीक से सुला कर कब चले गई पता ही नहीं चला..
उस दिन के बाद माँ ने मुझे समय-समय पर और कुछ-कुछ जानकारियाँ दी। और अब मैं अट्ठाईस नम्बर की ब्रा पहनने लगी थी, आप लोगों को ये साईज भले ही छोटा लग रहा होगा पर जिस उम्र में बाकी लड़कियाँ सिर्फ शमीज पहन कर काम चला रही थी, उस उम्र में ब्रा पहनना ही बड़ी बात है। मेरे स्तन मेरी उम्र की और लड़कियों की अपेक्षा तेजी से बढ़ रहे थे, मेरी कमर पर तो ब्रा सही आती थी पर वो स्तनों को पूरा नहीं संभाल पाती थी। अब मैं अपनी यौन समझ या कहें स्त्रीत्व की समझ के कारण थोड़ी सतर्क तो हो गई थी, पर झगड़ालूपन और अकड़ूपन में कोई कमी नहीं आई थी।
ऐसे ही बचपन की अठखेलियाँ करते मैं आठवीं कक्षा में पहुंच गई। मेरे अंदर इन दो सालों में मासिक धर्म की वजह से, और एक उम्र के पड़ाव को पार करने की वजह से गजब का परिवर्तन आया था, अब मेरे आव-भाव भी थोड़े बदल गये थे। वैसे तो मैं कभी छोटी स्कर्ट नहीं पहनती थी पर मेरे पुराने स्कर्ट अब घुटनों के ऊपर तक ही आ पाते थे, मुझे छोटी स्कर्ट में स्कूल जाने से संकोच भी होता था, पर माँ ने मेरी नई स्कर्ट की मांग यह कह कर ठुकरा दी थी कि एक ही साल तो और चलाना है फिर नौवीं कक्षा से ड्रेस का पैटर्न अलग है। तो मैं भी कुछ नहीं कह पाई। हमारे स्कूल में आठवीं तक शर्ट स्कर्ट और नौवीं से सलवार सूट का पैटर्न चलता था।
पर अब मेरी गोरी बालों रहित टांगें, लोगों को बरबस ही आकर्षित करने लगी थी, मैंने यह बात कई बार महसूस की थी पर कभी किसी से कुछ नहीं कहा था। हालांकि मैं कौमार्य या यौवन की हरकतों से अनजान थी पर इस खेल के महारथी मुझे भी इस खेल को सिखाने के लिए उतावले नजर आते थे। शायद उनको यकीन था कि मैं इस खेल की अच्छी खिलाड़ी साबित हो सकती हूं। या कुछ लोग ऐसे ही दांव लगाना चाह रहे हों।
मेरी शर्ट भी टाईट हो रही थी, तो उभरते स्तन की वजह से बटन टूटने को व्याकुल नजर आते थे, अब मैं दो चोटी से एक चोटी करने लगी थी, स्कूल में साज-श्रृंगार तो मना ही था, और ऐसे भी मेरी सुंदरता को किसी श्रृंगार की आवश्यकता भी नहीं थी। पढ़ाई लिखाई, खेल कूद, डांस और स्कूल की सभी गतिविधियों में आगे रहने की वजह से मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ा हुआ रहता था, और जब आत्मविश्वास बढ़ा हो तब चेहरे की चमक ही अलग से नजर आने लगती है। कुल मिला कर मैं सबके मन को भाने वाली लड़की हो चुकी थी।
वहीं दूसरी तरफ मेरी बहन अभी छठी में थी, पर वो मेरे मुकाबले बहुत धीमी गति से बढ़ रही थी और बहुत बचपने सा व्यवहार करती और छोटी गुड़िया जैसी सिमटी रहती, सच में छोटी कहने से वो छोटी ही थी। उसकी बहुत काली सी एक सहेली थी। उसका दिन उसी के साथ बितता था, उसका घर हमारे घर से थोड़ा दूर था, पर भी उनका एक दूसरे के घर आना जाना हो जाता था, अभी वो साइकिल भी नहीं सीखी थी, इसलिए कभी मैं छोड़ आती तो कभी उसकी सहेली को उसका भाई छोड़ने आ जाता था।
उसका भाई भी बहुत काला सा डरपोक टाईप का था, वो मेरे साथ मेरी कक्षा में पढ़ता था, उसने कभी मुझे आंख उठा कर नहीं देखा, और मैं तो अकड़ू ही थी, तो हमारे बीच बहुत कम बातचीत होती थी। अब आठवीं कक्षा को बोर्ड क्लास कहकर, पढ़ाई का एक पड़ाव माना जाता है। इसके बाद बहुत से साथी सहेली बिछड़ भी जाते हैं, इसलिए हम सबने जोर देकर अपने प्रिंसीपल से कहा कि हम लोग स्वेच्छा से चंदा करके स्कूल टूर पर जाना चाहते हैं। तो उन्होंने सोचने में एक महीने का वक्त लगा दिया और फिर घर से सहमति पत्र लाने की शर्त पर हाँ कह दिया और स्कूल की तरफ से कुछ पैसों का भी इंतजाम करा दिया।
हमारे स्कूल के कुल पैंतालीस बच्चों ने घर से सहमति पत्र भरा कर जमा किया, जिसमें हमारी कक्षा से पांच लड़के और चार लड़कियाँ ही जा रही थी। उन पांच लड़कों में वो काला सा लड़का जो छोटी की सहेली का भाई था वो भी था, उसका नाम रोहन था, और वो पढ़ाई में भी एवरेज ही था। यहाँ मेरे बाबू जी पढ़ाते थे इसलिए उन्होंने मुझे जाने की इजाजत दे दी थी पर बाद में उन्हीं का जाना कैंसल हो गया पर उन्होंने मुझे नहीं रोका।
सहमति पत्र से भी पहले बात ये थी कि जाना कहाँ हैं। तब सबके बहुत सोचने के बाद झांसी ग्वालियर का टूर तय किया गया। और हमारे साथ तीन शिक्षक और दो शिक्षकाओं का भी जाना तय हुआ, और जाने के समय तक पांच छात्र कम हो गये। अब हम पंद्रह लड़कियाँ और पच्चीस लड़के ही बचे। हमने पैसे पहले से स्कूल प्रबंधन के पास जमा करा दिये थे और स्कूल द्वारा एक लक्जरी बस किराये पर की गई थी। हम शीतकालीन की छुटियों में टूर पर निकले। जो नहीं जा रहे थे, उन्होंने स्कूल के सामने से हरी झंडी देकर हमें विदा किया।
हम सभी सफर के दौरान घरेलू कपड़ों, यानि लोवर टी शर्ट, और कैप्री, सलवार जैसे कपड़ों में थे। ठंड का मौसम होने की वजह से सभी ने अपनी सुविधा अनुसार गर्म कपड़े भी पहन रखे थे। हमारे क्लास की सभी लड़कियों में से मैं सबसे ज्यादा बड़ी लग रही थी, मैंने सफेद रंग की टी शर्ट और नेवी ब्लू कलर की स्पोर्ट्स लोवर पहन रखी थी। मैंने लांग कट मेरून कलर का स्वेटर पहन रखा था जिसमें सामने बटन थे और मैंने जानबूझकर बटन खुले ही रखे थे। टी शर्ट में मेरे तीखे उभार स्पष्ट उजागर हो रहे थे। मुझे पता नहीं कि किसी का ध्यान इस ओर गया की नहीं, पर मैं चाहती थी की इस ओर भी लोगों का ध्यान आकृष्ट हो।
और फिर जब बस ने चलना शुरू किया, तब कुछ देर तो सिर्फ.. ‘मैं ये भूल गया, मैं ये भूल गई…’ ही चलता रहा। फिर सबने भूले समानों की चिंता छोड़कर सफर का मजा लेना शुरू किया।
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