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जब धीरे धीरे सब ने अपने होश सम्हाले तब कैंप के मुख्याधिकारी ने एक के बाद एक सब का परिचय कराया। जस्सूजी का स्थान सभा के मंच पर था। कैंप के प्रशिक्षकों में से वह एक थे। वह सुबह की कसरत के प्रशिक्षक थे और उनके ग्रुप के लीडर मनोनीत किये गए थे।
जब उनका परिचय किया गया तब ज्योतिजी को भी मंच पर बुलाया गया और जस्सूजी की “बेहतर अर्धांगिनी” (Better half) के रूप में उनका परिचय दिया गया। उस समय पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
कप्तान कुमार सुनीलजी की बगल में ही बैठे हुए थे। नीतू और उसके पति ब्रिगेडियर खन्ना आगे बैठे हुए थे। कप्तान कुमार के पाँव तले से जमीन खिसक गयी जब नीतू का परिचय श्रीमती खन्ना के रूप में कराया गया। दोपहर के आराम के बाद कप्तान कुमार अच्छे खासे स्वस्थ दिख रहे थे।
मेहमानों का स्वागत करते हुए कैंप के मुखिया ने बताया की हमारा पडोसी मुल्क हमारे मुल्क की एकता को आहत करने की फिराक में है। चूँकि वह हमसे सीधा पंगा लेने में असमर्थ है इसलिए वह छद्म रूप से हम को एक के बाद एक घाव देनेकी कोशिश कर रहा है। वह अपने आतंक वादियों को हमारे मुल्क में भेज कर हमारे जवानों और नागरिकों को मार कर भय का वातावरण फैलाना चाहता है। हालात गंभीर हैं और हमें सजग रहना है।
इन आतंकवादीयों को हमारे ही कुछ धोखेबाज नागरिक चंद रूपयों के लालच में आश्रय और प्रोत्साहन देते हैं। आतंकवादी अलग अलग शहरों में आतंक फैलाने का प्रोग्राम बना रहे हैं। इन हालात में सेना के अधिकारीयों ने यह सोचा की एक आतंकी विरुद्ध नागरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाए जिसमें हमारे नागरिकों को आतंकीयों से कैसे निपटा जाए और शहर में आतंकी हमला होने पर कैसे हमें उनका सामना करना चाहिए इसके बारे में बताया जाए।
उन्होंने बताया की इसी हेतु से यह प्रोग्राम तैयार किया गया था।
सारे मेहमानों को चार ग्रुप में बाँटा गया था। कप्तान कुमार, नीतू , उसके पति ब्रिगेडियर साहब और उनके दो हम उम्र दोस्त, जस्सूजी, सुनीलजी, ज्योतिजी और सुनीता एक ग्रुप में थे। ऐसे तीन ग्रुप और थे। कुल मिला कर करीब छत्तीस मेहमान थे। हर एक ग्रुप में नौ लोग थे। सुबह पाँच बजे योग और हलकी कसरत और उसके बाद चाय नाश्ता। बाद में सुबह सात बजे पहाड़ों में ट्रैकिंग का प्रोग्राम था। दोपहर का खाना ट्रैकिंग के आखिरी पड़ाव पर था। ट्रैकिंग का रास्ता पहले से ही तय किया गया था और जगह जगह तीरों के निशान लगाए गए थे।
परिचय और प्रोग्राम की बात ख़त्म होते होते शाम के सात बज चुके थे। लाउड स्पीकर पर सब को आग की धुनि के सामने ड्रिंक्स और नाच गाने के प्रोग्राम में हिस्सा लेने का आमंत्रण दिया गया।
मजे की बात यह थी की नीतू उसके पति ब्रिगेडियर साहब और कुमार भी सुनीता, सुनीलजी, जस्सूजी और ज्योतिजी वाली धुनि के आसपास बैठे हुए थे। ब्रिगेडियर खन्ना, कप्तान कुमार के साथ बड़े चाव से बात कर रहे थे। कप्तान कुमार बार बार नीतु की और देख कर अपनी नाराजगी जाहिर करने की कोशिश कर रहे थे की क्यों नीतू ने उन्हें अपनी शादी के बारेमें नहीं कहा?
तुरंत उन्हें याद आया की नीतू ने उन्हें कहने की कोशिस तो की थी जब उसने कहा था की “जिंदगी में कुछ परिस्थितियां ऐसी आती हैं की उन्हें झेलना ही पड़ता है।” परन्तु उसके बाद बात ने कुछ और मोड़ ले लीया था और नीतू अपने बारे में बता नहीं सकी थी। अब जब नीतू शादीशुदा है तो कुमार को अपना सपना चकनाचूर होते हुए नजर आया।
ब्रिगेडियर साहब ने कुमार से अपनी जिंदगी के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने बताया की कैसे नीतू और उसके के पिता ने ब्रिगेडियर साहब और उनकी स्वर्गवासी पत्नी की सेवा की थी। बादमें नीतू के पिता की मौत के बाद नीतू को उन्होंने आश्रय दिया। उनके सम्बन्ध नीतू से कुछ ज्यादा ही निजी हो गए। तब उन्होंने नीतू को समाज में बदनामी से बचाने के लिए शादी कर ली।
ब्रिगेडियर साहब ने कुमार को यह भी बताया की वह उम्र में उनसे काफी छोटी होने के कारण नीतू को अपनी पत्नी नहीं बेटी जैसा मानते हैं। वह चाहते हैं की अगर कोई मर्द नीतू को अपनाना चाहता हो तो वह उसे तलाक देकर ख़ुशी से नितुकी शादी उस युवक से करा भी देंगे।
ब्रिगेडियर साहब ने नीतू को बुलाकर अपने पास बिठाया और बोले, “नीतू बेटा, मैं अपने मिलने जा रहा हूँ। मैं थोड़ा थक भी गया हूँ। तो आप कप्तान कुमार और बाकी कर्नल साहब और इन लोगों के साथ एन्जॉय करो। मैं फिर अपने हट में जाकर विश्राम करूंगा।” कह कर ब्रिगेडियर साहब चल दिए।
ब्रिगेडियर साहब के जाने के बाद सुनीता उठकर कप्तान कुमार के करीब जा बैठी। उसने कुमार को कहा, “कप्तान साहब, नीतू आपसे अपनी शादी के बारे में कहना चाहती थी पर वह उस वक्त उसमें कहने की हिम्मत न थी और जब वह आपसे कहने लगी थी तो बात टल गयी और वह कह नहीं पायी। वह आपका दिल नहीं तोड़ना चाहती थी। आप उसको समझें और उसे क्षमा करें और देखो यह समाँ और मौक़ा मिला है उसे जाया ना करें। आप दोनों घूमे फिरें और एन्जॉय करें।
बाकी आप खुद समझदार हो।” इतना कह कर सुनीता कप्तान कुमार को शरारत भरी हँसी देकर, आँख मार कर वापस अपने पति सुनीलजी, जस्सूजी और ज्योतिजी के पास वापस आ गयी। उसे ख़ुशी हुई की अगर यह दो जवान दिल आपस में मिल कर प्यार में कुछ समय एक साथ बिताते हैं तो वह भी उनके लिए और खास कर नीतू के लिए बहुत बड़ी बात होगी।
शाम धीरे धीरे जवाँ हो रही थी। जस्सूजी और सुनीलजी ने अपने जाम में व्हिस्की भर चुस्की पर चुस्की ले रहे थे। सुनीता और ज्योतिजी चाय के साथ कुछ स्नैक्स ले रहीं थीं। जस्सूजी की उलझन ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। सुनीता ने अपने पति सुनीलजी को कहा, “ऐसा लगता है की कोई गंभीर मामला है जिसके बारे में जस्सूजी कुछ जानते हैं पर हमसे शेयर करना नहीं चाहते। आप ज़रा जा कर पूछिए ना की क्या बात है?”
सुनीलजी जस्सूजी पहुंचे। जस्सूजी आर्मी के कुछ अफसरान से गुफ्तगू कर रहे थे। कुछ देर बाद जब जस्सूजी फारिग हुए तब सुनीलजी ने जस्सूजी से पूछा, भाई, हमें हमें बताइये ना की क्या बात है? आप इतने चिंतित क्यों हैं?”
जस्सूजी ने सुनीलजी की और देख कर पूरी गंभीरता से कहा, “सुनीलजी, आपसे क्या छिपा हुआ है? आप को भी तो मिनिस्ट्री से हिदायत मिली हुई है की कुछ जासुस हमारी सना के कुछ अफसरान के पीछे पड़े हुए हैं। वह हमारी सेना की गतिविधियोँ की गुप्त जानकारी पाना चाहते हैं। वह जानना चाहते हैं की हमारी सेना की क्या रणनीति होगी। मैं सोच रहा था की कहीं जो हमारे साथ कुछ हादसे हुए हैं उससे इस बात का तो कोई सम्बन्ध नहीं है?”
जस्सूजी की बात सुनकर सुनीलजी चौक गए और बोल पड़े, “क्या इसका मतलब यह हुआ की पडोसी देश के जासूस हमारे पीछे पड़े हुए हैं? वह हम से कुछ सच्चाई उगलवाना चाहते हैं?”
सुनीता ने अपने पति के मुंह से यह शब्द सुने तो उसके चेहरे पर जैसे हवाइयाँ उड़ने लगीं। उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ भय और आतंक के निशान दिख रहे थे। सुनीता बोल उठी, “बापरे! वह टैक्सी वाला और वह टिकट चेकर क्या दुश्मनों के जासूस थे? अब मैं सोचती हूँ तो समझ में आता है की वह लोग वाकई कितने भयंकर लग रहे थे।” जस्सूजी की और मुड़कर सुनीता बोली, “जस्सूजी अब क्या होगा?”
जस्सूजी ने सुनीता का हाथ थामा और दिलासा देते हुए बोले, ” अपने नन्हे से दिमाग को कष्ट ना दो। हमें कुछ नहीं होगा। हम इतनी बड़ी हिंदुस्तानी फ़ौज के कैंप में हैं और उनकी निगरानी में हैं। मुझसे गलती हुई की मैंने तुम्हें यह सब बताया।”
तब सुनीता ने अपना खूबसूरत सीना तान कर कहा, “हम भी भारत की शक्ति हैं। मैं एक क्षत्राणी हूँ और एक बार ठान लूँ तो सबसे निपट सकती हूँ। मुझे कोई डर नहीं।”
ज्योतिजी ने सुनीता की दाढ़ी अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे हिलाते हुए कहा, “अगर क्षत्राणी है तो फिर यह जूस ही क्यों पी रही है? कुछ गरम पेय पी कर दिखा की तू भी वाकई में क्षत्राणी है”
सुनीता ने ज्योतिजी की और मुड़कर देखा और बोली, “इसमें कौनसी बड़ी बात है? चलो दीदी डालो ग्लास में व्हिस्की और हम भी हमारे मर्दों को दिखाते हैं की हम जनाना भी मर्दों से कोई कम नहीं।”
नीतू सुनीता का जोश और जस्बा ताज्जुब से देख रही थी। उसने सुनीता की हिम्मत ट्रैन में देखि थी। वाकई में तो सबकी जान सुनीता ने ही बचाई थी क्यूंकि अगर सुनीता ने कुमार की टाँगें कस के काफी देर तक पकड़ रक्खी नहीं होतीं तो कुमार फुल स्पीड में चल रही ट्रैन से गिर पड़ते और नीतू और कुमार दोनों की मौत पक्की थी।
ज्योतिजी ने सुनीता के गिलास में कुछ ज्यादा और अपने गिलास में कुछ कम व्हिस्की डाली और सोडा से मिलाकर सुनीता को दी। जस्सूजी और सुनीलजी अपनी बीबियों की करतूत देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे। अगर पी कर यह मस्त हो गयीं तो समझो उनकी रात का मझा कुछ और होगा।
लाउड स्पीकर पर डांस संगीत शुरू हो गया था। नीतू और कुमार बाँहों में बाँहें डाले नाच रहे थे। उनको देख कर सुनीता ने ज्योतिजी से कहा, “लगता है यह दो जवान बदनों की हवस की आग इस यात्रा के दरम्यान जरूर रंग लाएगी।”
सुनीता पर व्हिस्की का रंग चढ़ रहा था। झूमती हुई सुनीता कुमार और नीतू डांस कर रहे थे वहाँ पहुंची और दोनों के पास जाकर नीतू का कंधा पकड़ कर बोली, “देखो बेटा। मैं तुम दोनों से बड़ी हूँ। मैं तुम्हें खुल्लम खुल्ला कहती हूँ की जब भी मौक़ा मिले मत गंवाओ। जिंदगी चार दिनकी है, और जवानी सिर्फ दो दिन की। मौज करो। नीतू तुम्हारे पति ब्रिगेडियर साहब ने खुद तुम्हें किसी भी तरह से रोका नहीं है। बल्कि वह तो तुम्हें कुमार से घुल मिल कर मौज करने के लिए कहते हैं। वह तुम्हें बेटी मानते हैं। वह जानते हैं की वह तुम्हें पति या प्रियतम का मरदाना प्यार नहीं दे सकते।
तो फिर सोचते क्या हो? जवानी के दो दिन का फायदा उठाओ। अगर आप के प्यार करने से किसी का घर या दिल नहीं टूटता है, तो फिर दिल खोल कर प्यार करो।
नीतू के कान के पास जा कर सुनीता नीतू के कान में बोली, “हम भी यहां मौज करने आये हैं।” फिर अपनी माँ ने दी हुई कसम को याद कर सुनीता के चेहरे पर गमगीनी छा गयी।
सुनीता थर्राती आवाज में बोली, “पर बेटा मेरी तो साली तक़दीर ही खराब है। जिनसे मैं चुदाई करवाना चाहती थी उनसे करवा नहीं सकती। कहते हैं ना की “नसीब ही साला गांडू तो क्या करेगा पांडु?”
नीतू और कुमार बिना बोले सुनीता की और आश्चर्य से एकटक देख रहे थे की सुनीताजी जो इतनी परिपक्व लगती थीं शराब के नशेमें कैसे अपने मन की बात सबको बता रही थी।
सुनीलजी और ज्योतिजी हॉल की बाँहों में बाँहें डाले घूम घूम कर डांस कर रहे थे। साथ साथ में जब मौक़ा मिलता था तब वह एक दूसरे से एकदम चिपक भी जाते थे। सुनीता ने यह देखा। उसकी नजर जस्सूजी को ढूंढने लगी। जस्सूजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे। जब सुनीता ने ध्यान से देखा तो पाया की जस्सूजी वहाँ से काफी दूर एक दूसरे कोने में अपनी बीबी के करतब से बेखबर बाहर आर्मी कैंप के कुछ अफसरान से बातें करने में मशरूफ थे।
सुनीता को व्हिस्की का सुरूर चढ़ रहा था। उसे जस्सूजी के लिए बड़ा अफ़सोस हो रहा था। सुनीता और जस्सूजी आपस में एक दूसरे से एक होना चाहते थे पर सुनीता की माँ के वचन के कारण एक नहीं हो सकते थे। यह जानते हुए भी की सुनीता उनसे चुदवाने का ज्यादा विरोध नहीं करेगी, अगर वह सुनीता पर थोड़ी सी जोर जबरदस्ती करें। पर जस्सूजी अपने सिद्धांत पर हिमाचल की तरह अडिग थे।
वह तब तक सुनीता को चुदाई के लिए नहीं कहेंगे जब तक सुनीता ने माँ को दिया हुआ वचन पूरा नहीं हो जाता और वह वचन इस जनम में तो पूरा होना संभव नहीं था।
मतलब रेल की दो पटरियों की तरह सुनीता और जस्सूजी के बदन इस जनम में तो एक नहीं हो सकते थे। हालांकि सुनीता ने स्पष्ट कर दिया था की चुदाई के सिवा वह सब कुछ कर सकते हैं, पर अब तो जस्सूजी ने यह भी तय कर दिया था की वह सुनीता को छेड़ेंगे भी नहीं। कारण जस्सूजी का लण्ड जस्सूजी के नियत्रण में नहीं रहता था।
जब जब भी सुनीता उनके करीब आती थी तो वह काबू के बाहर हो जाता था और तब जस्सूजी का दिमाग एकदम घूम जाता था। इस लिए वह सुनीता से दूर रहना ही पसंद करने लगे जो सुनीता को बड़ा चुभ रहा था।
ज्योतिजी सुनीता के पति के साथ चिपकी हुई थी। कुमार और नीतू कुछ देर डांस करने क बाद वहाँ से थोड़ी दूर कुछ गुफ्तगू कर रहे थे। सुनीता से बात करने वाला कोई वहाँ नहीं था।
सुनीता उठ खड़ी हो रही थी की एक साहब जो की आर्मी वाले ही लग रहे थे झूमते हुए सुनीता के पास आये और बोले, “मैं मेजर कपूर हूँ। लगता है आप अकेली हैं। क्या मैं आपके साथ डांस कर सकता हूँ?”
सुनीता उठ खड़ी हुई और मेजर साहब की खुली बाँहों में चली गयी और बोली, “क्यों नहीं? मेरे पति किसी और औरत की बाँहों में हैं। पर सच कहूं कपूर साहब? मुझे डांस करना नहीं आता।”
कपूर साहब ने कहा, “कोई बात नहीं। आप मेरे बदन से साथ हुमते हुए थिरकते रहिये। धीरे धीर लय के साथ झूमते हुए आप सिख जाएंगे।”
कपूर साहब करीब पैंतालीस साल के होंगे। आर्मी की नियमित कसरत बगैरह की आदत के कारण उनका बदन सुगठित था और उनके चपल चहल कदमी से लगता था की वह बड़े फुर्तीले थे। उनके सर पर कुछ सफ़ेद बाल दिख रहे थे जो उनके सुन्दर चेहरे पर जँचते थे। सुनीता ने पूछा, “क्या आप अकेले हैं?”
कपूर साहब ने फ़ौरन जवाब दिया, “नहीं, मेरी पत्नी भी आयी है।” फिर दूर कोने की और इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “वह जो उस कोने में जीन्स और डार्क ब्लू टॉप पहने हुए सुन्दर सी महिला उस अधेड़ पुरुष के साथ डांस करती दिख रही है, वह मेरी पत्नी पूजा है।”
सुनीता ने देखा तो वह सुन्दर महिला एक आर्मी अफसर के साथ काफी करीबी से डांस कर रही थी।” सुनीता का मन किया की वह पूछे की वह मर्द कौन था? पर फिर उसने पूछने की जरूरत नहीं समझी। कपूर साहबी काफी रोमांटिक लग रहे थे। वह सुनीता को एक के बाद एक कैसे स्टेप लेने चाहिए और कब अलग हो जाना है और कब एक दूसरे से चिपक जाना है इत्यादि सिखाने लगे।
सुनीता तो वैसे ही बड़ी कुशाग्र बुद्धि की थी और जल्द ही वह संगीत के लय के साथ कपूर साहब का डांस में साथ देने लगी। कपूर साहब भी काफी रूमानी मिजाज के लग रहे थे। जब बदन चिपका ने मौक़ा आता था तब कपूर साहब मौक़ा छोड़ते नहीं थे।
वह सुनीता का बदन अपने बदन से चिपका लेते थे। सुनीता को महसूस हुआ की कपूर साहब का लण्ड खड़ा हो गया था और जब कपूर साहब उससे चिपकते थे तब सुनीता उसे अपनी जाँघों के बिच महसूस कर रही थी। पर उसे कुछ बुरा नहीं लगता था। वह भलीभाँति जानती थी ऐसे हालात में बेचारे मर्द का लण्ड करे तो क्या करे?
ऐसे हालात में अगर औरत को भी कोई अपनी मर्जी के पुरुष के करीब आने का मौक़ा मिले तो क्या उसकी चूत में और उसकी चूँचियों में हलचल मच नहीं जाती? तो भला पुरुष का ही क्या दोष? पुरुष जाती तो वैसे ही चुदाई के लिए तड़पती रहती है।
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