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जान बचाने की छटपटाहट के मारे सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को कस के पकड़ा और उसे पकड़ कर खुद को ऊपर आने की लिए खिंच कर हिलाने लगी।
सुनीता के मन में एक तरफ अपनी जान बचाने की छटपटाहट थी तो कहीं ना कहीं जस्सूजी का मोटा और काफी लंबा लण्ड हाथों में आने के कारण कुछ अजीब सी उत्तेजना भी थी।
जस्सूजी ने पानी के निचे अपना लण्ड सुनीता के हाथों में महसूस किया तो वह उछल पड़े। उन्होंने झुक कर सुनीता का सर पकड़ा और सुनीता को पानी से बाहर निकाला। सुनीता काफी पानी पी चुकी थी। सुनीता की साँसे फूल रही थीं।
जस्सूजी सुनीता को अपनी बाँहों में उठाकर चल कर किनारे ले आये और रेत में लिटा कर सुनीता के उन्मत्त स्तनोँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन देकर उन्हें दबाने लगे जिससे सुनीता पीया हुआ पानी उगल दे और उसकी साँसें फिर से साधारण चलने लग जाएँ।
तीन या चार बार यह करने से सुनीता के मुंह से काफी सारा पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। जैसे ही पानी निकला तो सुनीता की साँसे फिर से साधारण गति से चलने लगीं।
सुनीता ने जब आँखें खोलीं तो जस्सूजी को अपने स्तनोँ को दबाते हुए पाया। सुनीता ने देखा की जस्सूजी सुनीता को लेकर काफी चिंतित थे।
उन्हें यह भी होश नहीं था की अफरातफरी में उनकी निक्कर पानी में छूट गयी थी और वह नंगधडंग थे। जस्सूजी यह सोच कर परेशान थे की कहीं सुनीता की हालत और बिगड़ गयी तो किसको बुलाएंगे यह देखने के लिए वह इधर उधर देख रहे थे।
सुनीता फिर अपनी आँखें मूंद कर पड़ी रही। जस्सूजी का हाथ जो उसके स्तनों को दबा रहा था सुनीता को वह काफी उत्तेजित कर रहा था।
पर चूँकि सुनीता जस्सूजी को ज्यादा परेशान नहीं देखना चाहती थी इस लिए उसने जस्सूजी का हाथ पकड़ा ताकि जस्सूजी समझ जाएँ की सुनीता अब ठीक थी, पर वैसे ही पड़ी रही। चूँकि सुनीता ने जस्सूजी का हाथ कस के पकड़ा था, जस्सूजी अपना हाथ सुनीता के स्तनोँ पर से हटा नहीं पाए।
जब जस्सूजी ने सुनीता के स्तनोँ के ऊपर से अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब सुनीता ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, “जस्सूजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।”
ऐसा कह कर सुनीता ने जस्सूजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। जस्सूजी ना चाहते हुए भी सुनीता के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए।
सुनीता ने अपना हाथ खिसकाया और जस्सूजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब जस्सूजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। जस्सूजी सुनीता के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे।
जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की सुनीता जस्सूजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी।
जस्सूजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, “जस्सूजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।”
ऐसा कह कर सुनीता ने जस्सूजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर सुनीता ने अपनी बाँहें फैला कर जस्सूजी से कहा, “अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?”
यह कह कर जैसे ही सुनीता अपना कॉस्च्यूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की जस्सूजी ने सुनीता का हाथ पकड़ा और बोले, “सुनीता नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्च्यूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।”
यह बात सुनकर सुनीता का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? सुनीता ने अपने आपको जस्सूजी को समर्पण करना भी चाहा पर जस्सूजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे?
अब तो जस्सूजी सुनीता के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। सुनीता दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और जस्सूजी से लिपट गयी।
जस्सूजी का खड़ा फनफनाता लण्ड सुनीता की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरी में जब सुनीता जस्सूजी से लिपट गयी तो वह सुनीता के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।
जस्सूजी ने सारी इधर उधर की बातों पर ध्यान ना देते हुए कहा, “देखो सुनीता, तैरने का एक मूलभूत सिद्धांत समझो। जब आप पानी में जाते हो तो यह समझलो की पानी आपको अपने अंदर नहीं रखना चाहता। हमारा शरीर पानी से हल्का है। पर हम इसलिए डूबते हैं क्यूंकि हम डूबना नहीं चाहते और इधर उधर हाथ पाँव मारते हैं…
पानी की सतह पर अगर आप अपना बदन ढीला छोड़ देंगे और भरोसा रखोगे की पानी आपको डुबाएगा नहीं तो आप डूबेंगे नहीं। इसके बाद सुनियोजित ताल मेल से हाथ और पाँव चलाइये। आप पानी में ना सिर्फ तैरेंगे बल्कि आप पानी को काट कर आगे बढ़ेंगे। यही सुनियोजित तालमेल से हाथ पैर चलाने को ही तैरना कहते हैं।”
सुनीता जस्सूजी की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसे जस्सूजी पर बड़ा ही प्यार आ रहा था। उस समय जस्सूजी का पूरा ध्यान सुनीता को तैराकी सिखाने पर था।
मन से असहाय और दुखी सुनीता को लेकर जस्सूजी फिर से गहरे पानी में पहुँच गए और फिर से सुनीता को पहले की तरह ही प्रैक्टिस करने को कहा। धीरे धीरे सुनीता का आत्मा विश्वास बढ़ने लगा। सुनीता जस्सूजी की कमर छोड़ कर अपने आपको पानी की सतह पर रखना सिख गयी।
इस बिच दो घंटे बीत चुके थे। जस्सूजी ने सुनीता को कहा, “आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी हम कल करेंगे।” यह कह कर जस्सूजी पानी के बाहर आगये और सुनीता अपना मन मसोसती हुई महिलाओं के शावर रूम में चलीगयी।
सुनीता जब एकपडे बदल कर बाहर निकली तो जस्सूजी बाहर नहीं निकले थे। सुनीता को उसके पति सुनीलजी और ज्योतिजी आते हुए दिखाई दिए। दोनों ही काफी थके हुए लग रहे थे।
सुनीता को अंदाज हो गया की हो सकता है सुनीलजी की मन की चाहत उस दोपहर को पूरी हो गयी थी। ज्योतिजी भी पूरी तरह थकी हुई थी। सुनीता को देखते ही ज्योतिजी ने अपनी आँखें निचीं करलीं। सुनीता समझ गयी की पतिदेव ने ज्योति जी की अच्छी खासी चुदाई करी होगी।
सुनीता ने जब अपने पति की और देखा तो उन्होंने ने भी झेंपते हुए जैसे कोई गुनाह किया हो ऐसे सुनीता से आँख से आँख मिला नहीं पाए। सुनीता मन ही मन मुस्कुरायी।
वह अपने पति के पास गयी और अपनी आवाज और हावभाव में काफी उत्साह लाने की कोशिश करते हुए बोली, “डार्लिंग, जस्सूजी ना सिर्फ मैथ्स के बल्कि तैराकी के भी कमालके प्रशिक्षक हैं। मैं आज काफी तैरना सिख गयी।”
सुनीलजी ने अपनी पत्नी का हाथ थामा और थोड़ी देर पकडे रखा। फिर बिना कुछ बोले कपडे बदल ने के लिए मरदाना रूम में चले गए। अब ज्योतिजी और सुनीता आमने सामने खड़े थे।
ज्योतिजी अपने आपको रोक ना सकी और बोल पड़ी, “अच्छा? मेरे पतिदेव ने तुम्हें तैरने के अलावा और कुछ तो नहीं सिखाया ना?”
सुनीता भाग कर ज्योति जी से लिपट गयी और बोली, “दीदी आप ऐसे ताने क्यों मार रही हो? क्या आपको बुरा लगा? अगर ऐसा है तो मैं कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी। मैं जस्सूजी के पास फरकुंगी भी नहीं। बस?”
ज्योति जी ने सुनीता को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, “पगली, मैं तो तुम्हारी टांग खिंच रही थी। मैं जानती हूँ, मेरे पति तुम्हें तुम्हारी मर्जी बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। और तुमने तो मुझे पहले ही बता दिया है। तो फिर मैं चिंता क्यों करूँ? बल्कि मुझे उलटी और चिंता हो रही है। मुझे लग रहा है की कहीं निराशा या निष्फलता का भाव आप और जस्सूजी के सम्बन्ध पर हावी ना हो जाए।“
सुनीता को गले लगाते हुए ज्योतिजी की आँखों में आंसूं छलक आये। ज्योतिजी सुनीता को छाती पर चीपका कर बोली, “सुनीता! मेरी तुमसे यही बिनती है की तुम मेरे जस्सूजी का ख्याल रखना। मैं और कुछ नहीं कहूँगी।”
सुनीता ने ज्योति जी के गाल पर चुम्मी करते हुए कहा, “दीदी, जस्सूजी सिर्फ आपके ही नहीं है। वह मेरे भी हैं। मैं उनका पूरा ख्याल। रखूंगी।”
कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे।
खाना खाने के समय सुनीता ने महसूस किया की जस्सूजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। सुनीता ने सोचा की शायद जस्सूजी उससे नाराज थे।
भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब जस्सूजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। सुनीता को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की जस्सूजी जैसे रंगीले जांबाज़ को सुनीता ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था।
सुनीता भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। ज्योतिजी सबसे पहले भोजन कर “थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी” यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी।
उसके पीछे पीछे सुनीलजी भी, “आराम तो करना ही पड़ेगा” यह कह कर उठ कर चल पड़े।
जब दोनों निकल पड़े तब सुनीता जस्सूजी के करीब जा बैठी और हलके से जस्सूजी से बोली, “आप मेरे कारण दुखी हैं ना?”
जस्सूजी ने सुनीता की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, “नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?”
“तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?” सुनीता ने पूछा.
“मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।” जस्सूजी ने जवाब दिया।
“गुत्थी? कैसी गुत्थी?” सुनीता ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की जस्सूजी आने आप पर सुनीता के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।”
“मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?” जस्सूजी कुछ गंभीर सोच में थे यह सुनीता समझ गयी।
जस्सूजी ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, “एक कहावत है की एक बार हो तो हादसा, दूसरी बार हो तो संयोग पर अगर तीसरी बार भी होता है तो समझो की खतरे की घंटी बज रही है।”
सुनीता बुद्धू की तरह जस्सूजीको देखती ही रही। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था।
जस्सूजी ने सुनीता के उलझन भरे चेहरे की और देखा और सुनीता का नाक पकड़ कर हिलाते हुए बोले, “अरे मेरी बुद्धू रानी, पहली बार कोई मेरे घरमें से मेरा पुराना लैपटॉप और एक ही जूता चुराता है, यह तो मानलो हादसा हुआ। फिर कोई मेरा और तुम्हारे पतिदेव सुनीलजी का पीछा करता है। मानलो यह एक संयोग था…
फिर कोई संदिग्ध व्यक्ति टिकट चेकर का भेस पहन कर हमारे ही डिब्बे में सिर्फ हमारे ही पास आ कर हम से पूछताछ करता है की हम कहाँ जा रहे हैं। मानलो यह भी एक अद्भुत संयोग था। उसके बाद कोई व्यक्ति स्टेशन पर हमारा स्वागत करता है, हमें हार पहनाता है और हमारी फोटो खींचता है…
क्यों भाई? हम लोग कौनसे फिल्म स्टार या क्रिकेटर हैं जो हमारी फोटो खींची जाए? और आखिर में कोई बिना नंबर प्लेट की टैक्सी वाला हमें आधे से भी कम दाम में स्टेशन से लेकर आता है और रास्ते में बड़े सलीके से तुम से हमारे कार्यक्रम के बारे में इतनी पूछताछ करता है? क्या यह सब एक संयोग था?”
सुनीता के खूबसूरत चेहरे पर कुछ भी समझ में ना आने के भाव जब जस्सूजी ने देखे तो वह बोले, “कुछ तो गड़बड़ है। सोचना पड़ेगा।” कह कर जस्सूजी उठ खड़े हुए और कमरे की और चल दिए।
साथ साथ में सुनीता भी दौड़ कर पीछा करती हुई उनके पीछे पीछे चल दी। दोनों अपने अपने विचारो में खोये हुए अपने कमरे की और चल पड़े।
आगे क्या होता है, यह तो अगले एपिसोड में ही पता चल पायेगा!
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