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अपने आपको सम्हालते हुए ज्योति ने इधर उधर देखा। वह दोनों वाटर फॉल के दूसरी और जा चुके थे। वहाँ एक छोटा सा ताल था और चारों और पहाड़ ही पहाड़ थे। किनारे खूबसूरत फूलों से सुसज्जित थे। बड़ा ही प्यार भरा माहौल था।
सुनीलजी और ज्योति दोनों ही एक छोटी सी गुफा में थे ओर गुफा एक सिरे से ऊपर पूरी खुली थी और सूरज की रौशनी से पूरी तरह उज्जवलित थी।
जैसा की जस्सूजी ने कहा था, यह जगह ऐसी थी जहां प्यार भरे दिल और प्यासे बदन एक दूसरे के प्यार की प्यास और हवस की भूख बिना झिझक खुले आसमान के निचे मिटा सकते थे। प्यार भरे दिल और वासना से झुलसते हुए बदन पर निगरानी रखने वाला वहाँ कोई नहीं था।
सुनीता और जस्सूजी वाटर फॉल के दूसरी और होने के कारण नजर नहीं आ रहे थे। ज्योति अपनी स्त्री सुलभ जिज्ञासा को रोक नहीं पायी और ज्योति ने वाटर फॉल के निचे जाकर वाटर फॉल के पानी को अपने ऊपर गिरते हुए दूर दूसरे छोर की और नज़र की तो देखा की उसके पति जस्सूजी झुके हुए थे और उनकी बाँहों में सुनीता पानी की परत पर उल्टी लेटी हुई हाथ पाँव मारकर तैरने के प्रयास कर रही थी।
ज्योति जानती थी की उस समय सुनीता के दोनों बूब्स जस्सूजी की बाँहों से रगड़ खा रहे होंगे, जस्सूजी की नजर सुनीता की करारी नंगी गाँड़ पर चिपकी हुई होगी।
सुनीता को अपने इतने करीब पाकर जस्सूजी का तगड़ा लण्ड कैसे उठ खड़ा हो गया होगा यह सोचना ज्योति के लिए मुश्किल नहीं था।
पता नहीं शायद सुनीता को भी जस्सूजी का खड़ा और मोटा लण्ड महसूस हुआ होगा। अपने पति को कोई और औरत से अठखेलियां करते हुए देख कर कुछ पलों के लिए ज्योति के मन में स्त्री सुलभ इर्षा का अजीब भाव उजागर हुआ। यह स्वाभाविक ही था। इतने सालों से अपने पति के शरीर पर उनका स्वामित्व जो था!
फिर ज्योति सोचने लगी, “क्या वाकई में उनका अपने पति पर एकचक्र स्वामित्व था?” शायद नहीं, क्यूंकि ज्योति ने स्वयं जस्सूजी को कोई भी औरत को चोदने की छूट दे रक्खी थी…
पर जहां तक ज्योति जानती थी, शादी के बाद शायद पहली बार जस्सूजी के मन में सुनीता के लिए जो भाव थे ऐसे उसके पहले किसी भी औरत के लिए नहीं आये थे।
अपने पति और सुनील की पत्नी को एकदूसरे के साथ अठखेलियाँ खेलते हुए देख कर जब ज्योति वापस लौटी तो उसे याद आया की सुनील चाहते थे की उसे ज्योति बनना था…
ज्योति फिर सुनील को बाँहों में आगयी और बोली, “जाओ और देखो कैसे तुम्हारी बीबी मेरे पति से तैराकी सिख रही है। लगता है वह दोनों तो भूल ही गए हैं की हम दोनों भी यहाँ हैं।”
सुनीलजी ने ज्योतिजी की बात को सुनी अनसुनी करते हुए कहा, “उनकी चिंता मत करो। मैं दोनों को जानता हूँ। ना तो वह दोनों कुछ करेंगे और ना वह इधर ही आएंगे। पता नहीं उन दोनों में क्या आपसी तालमेल या समझौता है की कुछ ना करते हुए भी वह एक दूसरे से चिपके हुए ही रहते हैं।”
ज्योतिजी ने कहा, “शायद तुम्हारी बीबी मेरे पति से प्यार करने लगी है।”
सुनीलजी ने कहा, “वह तो कभी से आपके पति से प्यार करती है। पर आप भी तो मुझसे प्यार करती हो.”
ज्योति ने सुनील का हाथ झटकते हुए कहा, “अच्छा? आपको किसने कहा की मैं आपसे प्यार करती हूँ?”
सुनील ने फिरसे ज्योतिजी को अपनी बाँहों में ले कर ऐसे घुमा दिया जिससे वह उसके पीछे आकर ज्योति की गाँड़ में अपनी निक्कर के अंदर खड़े लण्ड को सटा सके।
फिर ज्योति के दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में मसलते हुए सुनील ने ज्योति की गाँड़ के बिच में अपना लण्ड घुसाने की असफल कोशिश करते हुए कहा, “आपकी जाँघों के बिच में से जो पानी रिस रहा है वह कह रहा है।”
ज्योति ने कहा, “आपने कैसे देखा की मेरी जाँघों के बिच में से पानी रिस रहा है? मैं तो वैसे भी गीली हूँ।”
सुनील ने ज्योति की जाँघों के बिच में अपना हाथ ड़ालते हुए कहा, “मैं कब से और क्या देख रहा था?”
फिर ज्योति की जाँघों के बिच में अपनी हथेली डाल कर उसकी सतह पर हथेली को सहलाते हुए सुनील ने कहा, “यह देखो आपके अंदर से निकला पानी झरने के पानी से कहीं अलग है। कितना चिकना और रसीला है यह!” यह कहते हुए सुनील अपनी उँगलियों को चाटने लगे।
ज्योति सुनील की उंगलियों को अपनी चूत के द्वार पर महसूस कर छटपटा ने लगी। अपनी गाँड़ पर सुनील जी का भारी भरखम लण्ड उनकी निक्कर के अंदर से ठोकर मार रहा था।
फिर ज्योति ने वाकई में महसूस किया की उसकी चूत में से झरने की तरह उसका स्त्री रस चू रहा था। वह सुनीलजी की बाँहों में पड़ी उन्माद से सराबोर थी और बेबस होने का नाटक कर ऐसे दिखावा कर रही थीं जैसे सुनीलजी ने उनको इतना कस के पकड़ रक्खा था की वह निकल ना सके।
ज्योति ने दिखावा करते हुए कहा, “सुनीलजी छोडो ना?”
सुनील ने कहा, “पहले बोलो, सुनील। सुनीलजी नहीं।”
ज्योति ने जैसे असहाय हो ऐसी आवाज में कहा, “अच्छा भैया सुनील! बस? अब तो छोडो?”
सुनील ने कहा, “भैया? तुम सैयां को भैय्या कहती हो?”
ज्योति ने नाक चढ़ाते हुए पूछा, “अच्छा? अब तुम मेरे सैयां भी बन गए? दोस्त की बीबी को फाँस ने में लगे हो? दोस्त से गद्दारी ठीक बात नहीं।”
सुनीलजी ने कहा, “ज्योति, दोस्त की बीबी को मैं नहीं फाँस रहा। दोस्त की बीबी खुद फँस ने के लिए तैयार है। और फिर दोस्त से गद्दारी कहाँ की? गद्दारी तो अब होती ही जब किसी की प्यारी चीज़ उससे छीन लो और बदले में अंगूठा दिखाओ…
मैंने उनसे तुम्हें छीना नहीं, कुछ देर के लिए उधार ही माँगा है। और फिर मैंने उनको अंगूठा भी नहीं दिखाया , बदले में मेरे दोस्त को अकेला थोड़े ही छोड़ा है? देखो वह भी तो किसी की कंपनी एन्जॉय कर रहा है। और वह कंपनी उनको मेरी पत्नी दे रही है।”
ज्योति सुनीलजी को देखती ही रही। उसने सोचा सुनीलजी जितने भोले दीखते हैं उतने हैं नहीं। ज्योति ने कहा, “तो तुम मुझे जस्सूजी के साथ पत्नी की अदलाबदली करके पाना चाहते हो?”
सुनीलजी ने फौरन सर हिलाए हुए कहा, “ज्योति, आपकी यह भाषा अश्लील है। मैं कोई अदलाबदली नहीं चाहता। देखिये अगर आप मुझे पसंद नहीं करती हैं तो आप मुझे अपने पास नहीं फटकने देंगीं। उसी तरह अगर मेरी पत्नी सुनीता जस्सूजी को ना पसंद करे तो वह उनको भी नजदीक नहीं आने देगी। मतलब यह पसंदगी का सवाल है। ज्योति मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम्हें मंजूर है?”
ज्योति ने कहा, “एक तो जबरदस्ती करते हो और ऊपर से मेरी इजाजत माँग रहे हो?”
सुनील एकदम पीछे हट गए। इनका चेरे पर निराशा और गंभीरता साफ़ दिख रही थी। सुनील बोले, “ज्योतिजी, कोई जबरदस्ती नहीं। प्यार में कोई जबरदस्ती नहीं होती।”
ज्योति को सुनीलजी के चेहरे के भाव देख कर हँसी आ गयी। वह अपनी आँखें नचाती हुई बोली, “अच्छा जनाब! आप कामातुर औरत की भाषा भी नहीं समझते? अरे अगर भारतीय नारी जब त्रस्त हो कर कहती है ‘खबरदार आगे मत बढ़ना’ तो इसका तो मतलब है साफ़ “ना”। ऐसी नारी से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए…
पर वह जब वासना की आग में जल रही होती है और फिर भी कहती है, “छोडो ना? मुझे जाने दो।”, तो इसका मतलब है “मुझे प्यार कर के मना कर चुदवाने के लिए तैयार करो तब मैं सोचूंगी।” पर वह जब मुस्काते हुए कहती है “मैं सोचूंगी” तो इसका मतलब है वह तुम्हें मन ही मन से कोस रही है और इशारा कर रह है की “मैं तैयार हूँ। देर क्यों कर रहे हो?” अगर वह कहे “हाँ” तो समझो वह भारतीय नहीं है।”
सुनीलजी ज्योति की बात सुनकर हंस पड़े। उन्होंने कहा, “तो फिर आप क्या कहती हैं?”
ज्योति ने शर्मा कर मुस्काते हुए कहा, “मैं सोचूंगी।”
सुनील ने फ़ौरन ज्योति की गाँड़ में अपनी निक्कर में फर्राटे मार रहा अपना लण्ड सटा कर ज्योति के करारे स्तनोँ को उसकी बिकिनी के अंदर अपनी उंगलियां घुसाकर उनको मसलते हुए कहा, “अब मैं सिर्फ देखना नहीं और भी बहुत कुछ चाहता हूँ। पर सबसे पहले मैं अपनी ज्योति को असली ज्योति के रूप में बिना किसी आवरण के देखना चाहता हूँ।”
ऐसा कह कर सुनील ने ज्योति की कॉस्च्यूम के कंधे पर लगी पट्टीयों को ज्योति की दोनों बाजुओं के निचे की और सरका दीं।
जैसे ही पट्टियाँ निचे की और सरक गयीं तो सुनील ने उनको निचे की और खिसका दिया और ज्योति के दोनों उन्मत्त स्तनों को अनावृत कर दिए। ज्योति के स्तन जैसे ही नंगे हो गए की सुनील की आँखें उनपर थम ही गयीं। ज्योति के स्तन पुरे भरे और फुले होने के बावजूद थोड़े से भी झुके हुए हैं नहीं थे।
ज्योति के स्तनों की चोटी को अपने घेरे में डाले हुए उसके गुलाबी एरोला ऐसे लगते थे जैसे गुलाबी रंग का छोटा सा जापानी छाता दो फूली हुई निप्पलोँ के इर्दगिर्द फ़ैल कर स्तनोँ को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे हों। बीचो बिच फूली हुई निप्पलेँ भी गुलाबी रंग की थीं।
एरोला की सतह पर जगह जगह फुंसियां जैसी उभरी हुईं त्वचा स्तनों की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थीं। साक्षात् मेनका स्वर्ग से निचे उतर कर विश्वामित्र का मन हरने आयी हो ऐसी खूबसूरती अद्भुत लग रही थी।
ज्योति की कमर रेत घडी के सामान पतली और ऊपर स्तनोँ काऔर निचे कूल्हों के उभार के बिच अपनी अनूठी शान प्रदर्शित कर रही थी। ज्योति की नाभि की गहराई कामुकता को बढ़ावा दे रही थी।
ज्योति की नाभि के निचे हल्का सा उभार और फिर एकदम चूत से थोडासा ऊपर वाला चढ़ाव और फिर चूत की पंखुडियों की खाई देखते ही बनती थी।
सबसे ज्यादा खूबसूरत ज्योति की गाँड़ का उतारचढ़ाव था। उन उतारचढ़ाव के ऊपर टिकी हुई सुनील की नजर हटती ही नहीं थी। और उस गाँड़ के दो खूबसूरत गालों की तो बात ही क्या?
उन दो गालों के बिच जो दरार थी जिसमें ज्योति की कॉस्च्यूम के कपडे का एक छोटासा टुकड़ा फँसा हुआ था वह ज्योति की गाँड़ की खूबसूरती को ढकने में पूरी तरह असफल था।
अभी तो बस शुरुवात है आगे बहुत कुछ बाकी है, आगला एपिसोड जल्दी ही पढने को मिलेगा!
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