चूत की चाकरी

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कल मेरे एक दोस्त ने मुझे एक saxy story बताई, ऑफिस में बैठे थे कि मेरा एक दोस्त और उसके साथ एक और आदमी मुझ से मिलने आए। चाय पानी के बाद बातें करते करते मेरे दोस्त उस दूसरे आदमी के बारे में मुझे बताया, जिसे मैं एक कहानी के रूप आप सब के सामने पेश कर रहा हूँ। कहानी के सभी वाकयात सच हैं, सिर्फ नाम बदले गए हैं। तो पढ़िये और मज़ा लीजिये।

मेरा नाम देव राज है, और मेरी उम्र 33 साल की है। पेशे से मैं एक बावर्ची हूँ। एक सरकारी महकमे में काम करता हूँ। बड़े बड़े अफसरों के घर में मुझे खाना पकाने का ही काम मिलता है। कभी इस अफसर के घर तो कभी किसी और अफसर के घर! 18 साल की उम्र में ही मैं नौकरी लग गया था इसलिए अब तक अफसरों के साथ बात करने का, उनके घरों में काम करने का बहुत तजुर्बा हो चुका है।

एक बात मैं आपको बताता हूँ कि जितने भी अफसर लोग होते हैं न, हम सोचते हैं कि इतना बड़ा ऑफिसर है, इसकी तो बहुत शानदार ज़िंदगी होगी, मगर ऐसा कुछ नहीं है। ऊपर से ही सब ठीक लगता है, मैंने अफसरों को दारू पी कर अपनी बीवी को पीटते हुये देखा है, बीवी से पिटते हुये देखा है, घर की नौकरानी से चुदाई की भीख मांगते देखा है, और मेम साब को घर के नौकरों से और बाहर वालों से चुदते देखा है। अफसर तबके में पारिवारिक ज़िंदगी बिल्कुल बेकार होती है, कोई ही घर ऐसा होता है, जिस में सब कुछ ठीक ठाक हो, वरना सब के घर में यही रोना है। आदमी जितना गरीब और निचले तबके का होता है, उसकी पारिवारिक ज़िंदगी उतनी ही खुशहाल होती है।

पिछले महीने मैंने दरख्वास्त देकर, साहब से मिन्नत कर के अपनी बदली कहीं और करवाई। ऐसा नहीं कि साहब कोई बुरा आदमी था, साहब तो बहुत ही नेक आदमी था, मेरे बनाए खाने की बहुत तारीफ करता था, मेरी बहुत बार कई तरह से मदद भी की थी। मुझे दिक्कत थी मेम साहब से…

हुआ यूं के पिछले साल मेरी बदली हुई तो मुझे शर्मा साहब के घर बावर्ची का काम करने का हुक्म हुआ। मैं अपनी बदली का हुकुम लेकर शर्माजी के दफ्तर गया। उन्होंने मुझे अंदर बुलाया, और अपने घर का पता देकर बोले- इस एड्रैस पे चले जाओ, जो पहले वाला कुक है, वो तुमको वहीं पर मिलेगा, उससे सारा काम समझ लेना! मैं सलाम करके बाहर आ गया, अपनी साइकल उठाई और बताए हुये पते पर जा पहुंचा।

पहले बाहर लगे पुलिस के पहरेदार से मिला और उसे बताया तो उसने मुझे पीछे के गेट से आने को कहा। पीछे के गेट से मैं घर का अंदर दाखिल हुआ। दूसरा संतरी मुझे सीधा पहले नौकरों के लिए बने क्वाटर्ज़ के आगे से मुझे मेरा क्वाटर दिखाते हुये किचन तक छोड़ गया।

वहाँ पे मुझे रामदीन मिला। मैं उसे जानता थ, 50-52 साल कमजोर सा, मगर खाना अच्छा बनाता था। मैंने उससे पूछा- तुम यहाँ से काम क्यों छोड़ के जा रहे हो? वो बोला- अब मुझे ये सब नहीं होता, इसलिए जा रहा हूँ, मैंने तो साहब से विनती की है कि मुझे कोई हल्का सा काम दे दें।

खैर वहाँ पे चाय पानी के बाद उसने मुझे सब कुछ समझाया, किचन में कौन सा सामान कहाँ पड़ा है, सब दिखाया, साहब, मेम साहब और बाकी घर के सब लोगों के बारे में बताया। उस दिन हम दोनों ने मिल कर खाना बनाया और सबको खिलाया। अगले दिन रामदीन चला गया।

सुबह 5 बजे उठ कर मैंने नहा धोकर भगवान का नाम लिया और फिर किचन में जाकर अपने काम में लग गया। सुबह 7 बजे साहब को लॉन में चाय दे कर आया। उसके बाद सबके चाय नाश्ते का इंतजाम किया। बच्चे अपना नाश्ता करके, खाना लेकर, स्कूल चले गए। 9 बजे साहब और मेम साहब ने नाश्ता किया। उसके बाद 10 बजे तक साहब भी दफ्तर को निकल गए।

घर में मैं, घर की साफ सफाई करने वाली लड़की तारा, मेम साहब, एक ड्राइवर, और पुलिस की गार्द वाले रह गए। पुलिस वाले घर में नहीं आते थे, वो बाहर अपना खाना भी खुद ही बना कर खाते थे। घर के अंदर सिर्फ हम तीन लोग थे। तारा 18 साल की होगी।

करीब 11 बजे तारा मेरे पास किचन में आई और बोली- भैया, मैडम ने चाय मँगवाई है। मैंने तारा से पूछा- तुम पियोगी? वो बोली- हाँ, पर अच्छी सी बनाना!

मैंने 3 कप बढ़िया सी चाय बनाई, दो गिलास बना कर किचन में ही छोड़ दिये और एक कप चाय ट्रे में बिस्कुट के साथ सजा कर मेम साहब के रूम में ले गया। जब मैं रूम में दाखिल हुआ तो उस वक़्त मेम साहब अखबार पढ़ रही थी।

उम्र करीब 40 साल, गोरा रंग, लंबा कद, भरवां बदन… गहरे भूरे रंग की स्लीवलेस टॉप और पेंट पहने कुर्सी पर बैठी थी। मैंने चाय लेजा कर उनके सामने टेबल पर रखी। उन्होंने अपना चश्मा अपने सर पर खिसका दिया और मेरी तरफ देख कर बोली- क्या नाम है तुम्हारा? मैंने कहा- जी, देव राज! ‘अच्छा!’ कह कर उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा- और कहाँ कहाँ काम कर चुके हो पहले?’ उन्होंने फिर पूछा। मैंने बहुत सारे साहब लोगों के नाम गिनवा दिये।

‘कितनी उम्र है तुम्हारी?’ उन्होंने मुझे घूर कर देख कर पूछा। मैंने कहा- जी मैडम जी, 33 साल का हो गया हूँ। ‘ओ के!’ कह कर उन्होंने चाय का कप उठा कर एक चुस्की ली- हूं… चाय अच्छी बनाते हो। ठीक है जाओ! उन्होंने कहा और मैं वापिस किचन में आ गया।

किचन में आकर मैं तारा के पास बैठ गया, और आपस में बातें करते हुये हमने चाय पी। चाय पीते पीते मैंने देखा, बेशक तारा पतली दुबली सी थी, मगर ज़रूरत के सभी अंग उसके अच्छे थे। रंग सांवला था, बाजू टाँगें पतली थी, मगर बोबे ठीक थे। बोबे तो मेम साहब के भी बहुत भरवां थे, एकदम गोल और मोटे! मगर हम गरीब लोग इतनी ऊंची चिड़िया नहीं पकड़ सकते, तो मैं सोच रहा था कि कैसे तारा को अपने चक्कर में लूँ, ताकि अपना भी पानी निकलने का इंतजाम हो सके। अब परिवार तो मेरा हिमाचल में रहता है, इतनी दूर घर से कैसे अपना गुजारा करूँ।

अगले दिन बाद मैं फिर से 11 बजे चाय लेकर मेम साहब के रूम में गया। वो रोज़ इसी समय चाय पीती थी। मैंने चाय रखी तो देखा कि मैडम बाथरूम से निकल कर आई। हल्के फिरोजी रंग की घुटनों तक की नाईटी, घुटनों से नीचे एकदम चिकनी गोरी टाँगें, भरी हुई बाहें!

जब वो आकर कुर्सी पर बैठी तो मैंने उनके झुकने पर उनके दोनों गोरे गोरे बोबों के भी दर्शन किए। मैं इस लिए खड़ा था कि शायद कोई और हुकुम दे मगर मैडम ने कहा- ठीक है, जाओ। मैं वापिस आ गया।

किचन में आकर मैंने यूं ही तारा से कह दिया- ये मैडम कपड़े कैसे पहनती हैं, सब खुला खुला? वो बोली- अरे पूछो मत देव भैया, शुक्र करो कि कपड़े पहनती हैं। ‘तो?’ मैंने हैरानी से पूछा। ‘अरे कई बार तो मैं उन्हे ऐसे ही देखा है!’ तारा बोली।

मैंने बड़े हैरान हो कर पूछा- ऐसे ही… मतलब बिना कपड़ों के? वो बोली- हाँ। मैंने कहा- अरे वो तो ऐसे है न कि तुम हमेशा उनके साथ ही रहती हो, और लड़की हो इसलिए तुमसे शर्म नहीं करती होगी, बाकी सबसे लिहाज करती होगी न! वो शरारती हंसी हंस कर बोली- अब आप खुद ही देख लेना!

मैंने अपनी चाय का गिलास नीचे रख कर कहा- अरे नहीं नहीं, मेरे सामने क्यों? ऐसा कैसे कर सकती हैं वो? तो तारा बोली- अभी नए नए हो, थोड़ा रुको, सब जान जाओगे। कह कर वो उठी और अपना चाय का गिलास धोकर रख कर चली गई।

मैंने अपने लंड को अपने हाथ से सहलाया और मन ही मन बोला- साली… तू भी किसी दिन नंगी होकर दिखा दे मुझे। और उसके बाद मैं खाना बनाने की तैयारी में लग गया।

शाम को 4 बजे मैं फिर से चाय लेकर गया। तब मैडम बेड पर लेटी टीवी देख रही थी। काले रंग की टी शर्ट और नीचे फूलों वाली स्कर्ट, जो घुटनों से भी ऊंची थी। एक टांग सीधी और दूसरी टांग घुटना मोड़ कर खड़ी की हुई।

रूम में घुसते ही मेरी निगाह सबसे पहले मेम साहब की टाँगों पर पड़ी। आज पहली बार मैंने उनकी गोरी चिकनी जांघें देखी। मोटी गदराई हुई जांघें। बस एक सेकंड ही मैंने देखा फिर अपना ध्यान अपनी ट्रे में लगा लिया।

मैडम मुझे देख कर ज़रा भी नहीं संभली, अब पता तो उनको भी चल गया होगा कि मैंने उनकी जांघें देख ली हैं। मैं चाय रख कर जाने लगा तो मैडम बोली- देव राज, तुम्हारी शादी हो गई? मैंने कहा- जी मेम साहब! उन्होंने फिर पूछा- कितने साल हो गए? मैंने कहा- जी 12 साल हो गए हैं। ‘और कितने बच्चे हैं?’ उन्होंने फिर से सवाल किया। मैंने झूठ ही कह दिया- जी चार बच्चे हैं! जबकि मेरे सिर्फ दो बच्चे हैं।

वो एकदम उठी और बैठ गई- चार बच्चे, बाप रे! जब वो उठ कर बैठी तो उसकी स्कर्ट दोनों जांघों तक आ गई, मगर उसने ठीक नहीं की।

‘गाँव गए कितना समय हो गया?’ उन्होंने पूछा। मैंने कहा- जी 4 महीने हो गए। उन्होंने सर हिलाया और बोली- ठीक है, जाओ।

मैं चला आया। किचन में आकर मैंने सारी बात तारा को बताई। तारा बेशक मुझे भैया बुलाती थी, मगर मुझसे हर तरह की बात कर लेती थी। ज़्यादा बात तो हमारी मेम साहब के कपड़ों और उनके लापरवाह से व्यवहार की ही होती थी। मैं कोशिश कर रहा था कि धीरे धीरे तारा को सेट कर लूँ क्योंकि उसकी हसीन जवानी मेरी आँखों में खटकती थी। यह बात अलग है कि दुगनी से ज़्यादा उम्र होने के बावजूद मेम साहब तारा को हर तरह से काटती थी। रंग में, रूप में, शारीरिक बनावट में!

अगर दोनों में से पूछा जाए तो कोई भी मेम साहब को चुने।

मगर फिर भी मुझे तारा की कच्ची जवानी ज़्यादा भा रही थी। मैंने फिर तारा को सब बताया, तो वो बोली- भैया, मुझे लगता है कोई बड़ा धमाका होने वाला है। ‘बड़ा धमाका?’ मैंने पूछा- क्या मतलब? वो बोली- आप जान जाओगे।

कुछ दिन बाद घर में एक पार्टी थी, बहुत सारे साहब लोग आए थे, उनकी मेम साहब भी।

उस दिन घर में खूब दारू चली, सब मर्द औरत अपने अपने पसंद की दारू, बीयर, शेम्पेन और पता नहीं क्या क्या पी रहे थे। शेम्पेन का एक गिलास मैंने चोरी से तारा को भी ला कर दिया। उसने संभाल के फ्रिज में रख दिया.

और बाहर से भी नौकर आए थे, सबने मिल कर काम किया खाना वाना हो गया।

करीब 12-1 बजे तक सब अपने अपने घर चले गए। मैं भी अपने क्वाटर में जाने वाला था, तभी तारा आ गई। मैंने कहा- अरे तारा, तूने अपनी ड्रिंक पी क्या? वो बोली- नहीं भैया! मेरी इच्छा थी के अगर आज ये शेम्पेन पी कर मस्त हो जाए, तो इसके छोटे छोटे बोबे तो दबा ही दूँगा। मैंने फ्रिज से उसे शेम्पेन का गिलास निकाल कर दिया, बिल्कुल ठंडा। मुझे नहीं पता था कि वो शराब पी लेती है या नहीं, मगर शेम्पेन के गिलास को वो तरह तरह के मूंह बनाती हुई पी गई।

रात के 2 से ऊपर का टाइम था, सामान समेटते समेटते हमे घंटा भर और लग गया।

मैं तारा को ही देख रहा था, मगर वो तो बड़े आराम से सब काम कर रही थी, जैसे उसे कोई नशा ही न हुआ हो।

सब कुछ समेट कर जब मैं अपने क्वाटर की ओर जा रहा था, तो मैं अंदर न जा कर बाहर ही रुक गया। उधर से तारा आ रही थी, मुझे लगा जैसे उसकी चाल थोड़ी सी बिगड़ी हुई है। जैसे ही वो मेरे पास आई, मैंने उस से पूछा- क्या हुआ, बड़ी मस्त चाल चल रही है? वो बोली- शेम्पेन का असर है भाई साहब! और कह कर वो अपने क्वाटर में चली गई।

मैं तो बस अपना लंड को ही गांठ दे कर रह गया।

सुबह छुट्टी होने की वजह से सब काम लेट ही हो रहे थे। 10 बजे नाश्ता हुआ। मगर सिर्फ साहब और बच्चों ने नाश्ता किया, मेम साहब तो अभी उठी ही नहीं थी।

थोड़ी देर में तारा किचन में आई। मैंने पूछा- क्या हुआ? वो बोली- अरे कुछ नहीं, साली पागल हुई पड़ी है। मैंने कहा- कौन? वो बोली- मेम साहब! मैंने पूछा- कैसे? वो बोली- रात दारू ज़्यादा पी ली, अभी तक उतरी नहीं, ऐसे ही कमरे में गिरी पड़ी है फर्श पर, बिना कपड़ों के!

मेरे दिल में हलचल हुई कि चलो और कुछ नहीं मेम साहब को ही नंगी देख आता हूँ। मैंने तारा से पूछा- तो मेम साहब क्या चाय नहीं पियेंगी? वो बोली- चाय… अब तो वो और दारू पिएगी।

नाश्ता करके साहब और बच्चे फिर से अपने अपने कमरे में घुस गए। थोड़ी देर में मेम साहब किचन में आई हल्के गुलाबी रंग की नाईटी पहने… नाईटी क्या थी, बस दुपट्टे का कपड़ा था, नाईटी में भी उनका पूरा बदन नंगा दिख रहा था। दोनों बड़े बड़े गोरे चिकने बोबे, भूरे रंग के निप्पल, कमर के कटाव, और नीचे चूत भी। नाईटी में से भी उसकी चूत की दरार और गांड की फाँकें साफ दिख रही थी। मैं चोरी चोरी से उसके गदराए बदन को देख रहा था।

मेम साहब ने एक गिलास उठाया और उसमे वोड्का डाली, बर्फ डाली और दो घूंट पिये। फिर मेरी तरफ देखा- क्या देख रहा है बे? वो रोआब से बोली। मैं डर गया- कुछ नहीं मेम साहब! वो मेरे पास आई और बोली- क्यों 4 महीने से अपनी पत्नी के पास नहीं गया तो औरत का बदन देख कर तुझे कुछ नहीं होता। या तू भी अपने साहब की तरह से नामर्द हो गया है? मैंने सिर्फ ‘नहीं मैडम जी!’ कहा।

वो चली और मुझसे बोली- कुछ नमकीन ला के दे। मैंने थोड़ा सलाद, थोड़ा नमकीन और रात का चिकन वगैरह एक ट्रे में सजाया, और तारा से पूछा- ठीक है, ले जाऊँ? वो बड़ी बेरुखी से बोली- जाओ।

मैं ट्रे लेकर मेम साहब के कमरे में गया। वो सोफ़े पर बैठी थी, हाथ में गिलास… मुझसे बोली- बैठ! मैं नीचे फर्श पर बैठ गया। उन्होंने गिलास रखा और अपनी नाईटी ऊपर उठाई, उतनी ऊपर के पाँव से लेकर पेट तक तक नंगा हो गया। उनकी गोरी चूत मेरे सामने थी। ‘क्या कहते हैं इसे?’ वो बोली। मैं क्या जवाब देता, चुप रहा।

‘बोल भोंसड़ी के, क्या कहते हैं इसे?’ मैंने थोड़ा हकलाते हुये कहा- चू… चू…त! अब तक कितनी बार मारी है?’ उन्होंने पूछा। मैंने कहा- जी पता नहीं! वो फिर बोली- तेरी बीवी तेरे से खुश है? मैंने कहा- जी खुश है। फिर गिलास से एक घूंट पी कर बोली- सच में खुश है? मैं बोला- जी!

‘कितनी देर लगाता है उसके ऊपर?’ उन्होंने पूछा। मैंने धीरे से कहा- जी आधा घंटा! वो एकदम से उठी और मेरे सामने ही फर्श पे बैठ गई- सच बोल, तू सच में आधा घंटा उसको पेलता है? मैंने कहा- जी! ‘और अगर टाइम कम निकला तो?’ उन्होंने पूछा।

मैंने चुप क्या जवाब देता। यह हिंदी सैक्सी स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

वो वहीं गलीचे पर ही लेट गई और अपनी नाईटी अपने गले तक उठा कर नंगी हो गई- चल लगा के दिखा आधा घंटा! एक खूबसूरत, दूध सी गोरी, सुडौल, भरपूर औरत मेरे सामने नंगी पड़ी थी, और मुझे कोई उत्तेजना नहीं हो रही थी।

मैं बोला- जी ऐसे कैसे? वो लेटे लेटे बोली- क्यों क्या दिक्कत है? मैंने कहा- जी मैंने कभी ऐसे सोचा नहीं! वो बोली- तो किचन में क्या देख रहा था? वही है, चल आ जा! मैं खड़ा सोचता रहा।

तभी वो उठी और खुद ही मेरी पैन्ट के बटन खोलने लगी। पलक झपकते ही उन्होंने मेरी पैन्ट और चड्डी उतार दी। अभी मेरा लंड पूरी तरह से तो नहीं तना था, मगर फिर भी अपना सर उठा रहा था।

उन्होंने मेरे लंड अपने हाथ में पकड़ा और लगी चलाने। अब 6 महीने से बीवी से नहीं मिला था, तो बस एक मिनट में ही 3 इंच की लुल्ली 6 इंच का कड़क लंड बन गया। लंड खड़ा होते ही मैडम ने अपने मुंह में लेकर चूस लिया। बेशक लंड चुसवा कर मुझे मजा आ रहा था, मगर गांड फटी पड़ी थी कि अगर साहब आ गए या कोई और आ गया तो क्या होगा।

मैंने डरते डरते कहा- मैडम जी, साहब न आ जाए कहीं? वो बोली- उसको मेरे रूम में आने की इजाज़त नहीं है. कह कर वो उठी और उठ कर उसने अपनी नाईटी उतार फेंकी और घोड़ी बन गई- चल डाल! वो बड़े रोआब से बोली।

मैंने क्या कहना था, मैंने अपनी पेंट और चड्डी उतारी और मेम साहब के पीछे जाकर घुटनों के बल बैठ गया, अपना लंड मेम साहब की चूत से लगाया तो वो खुद ही पीछे को हो गई और मेरे लंड का टोपा उनको चूत में घुस गया। ‘आह, देव राज दम है तुझ में, अब अपनी ताकत भी दिखा, क्या सच में आधे घंटे तक लगा रहेगा?’

मैंने अपनी कमर चलानी शुरू की, पहले धीरे धीरे, मगर जैसे जैसे चुदाई बढ़ती गई, मैं मेम साहब पे अपना काबू बढ़ाता गया। कभी उनकी कमर पकड़ कर उनकी चुदाई करता, तो कभी उनके कंधे पकड़ कर… मुझसे ज़्यादा तो मेम साहब मजा ले रही थी, अपनी पूरी ताकत से वो मेरा साथ दे रही थी। अगर मैं आगे को घस्से मार रहा था, तो वो भी पीछे को अपनी कमर चला रही थी, पूरी तरह से घचाघच, फ़चाफ़च प्रोग्राम चल रहा था।

जितना मज़ा मुझे एक खूबसूरत औरत को चोद कर आ रहा था, उस से ज़्यादा वो एक कड़क लंड से चुदने के ले रही थी।

सिर्फ 3 मिनट की चुदाई में ही मेम साहब का पानी छुट गया और वो ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करती नीचे को गिरने लगी, मगर मैंने उनके कंधे मजबूती से पकड़ लिए- अरे अभी कहाँ मैडम, अभी तो बाज़ी शुरू हुई है। मैंने उसको निढाल हो कर गिरने नहीं दिया और अपनी चुदाई जारी रखी।

इस उम्र में भी मेम साहब की चूत ढीली नहीं थी, मगर पानी बहुत छोड़ती थी।

मैंने पूरे ज़ोर से रगड़ाई चालू रखी। उनकी चूत चोदने के अलावा मैंने और कुछ नहीं किया, न उनके बोबे दबाये, न उनको चूमा या चाटा, सिर्फ उनकी चूत मारी। और अगले 7-8 मिनट में वो एक बार और झड़ गई। इस बार वो बोली- बस कर कमीने, और कितनी मारेगा, मेरी तो बस हो गई, तू भी बस कर!

मगर मुझे तो चुदाई का मजा ही अब आने लगा था। ए सी चल रहा था, मगर मैं फिर भी पसीने से भीग गया था। मैंने भी कहा- बस मैडम जी, बस 5 मिनट और! उनके बाल बिखर चुके थे, थकावट उनके चेहरे पे झलक रही थी, वो बोली- बस जल्दी कर और नहीं बर्दाश्त कर सकती मैं!

करीब 5-6 मिनट की और चुदाई के बाद मैं मैडम जी की चूत में ही झड़ गया। अपने लंड से माल छुड़वा छुड़वा कर मैंने मैडम जी की चूत भर दी। मेरे माल छुटते ही मैडम जी नीचे गिर गई, और उल्टी लेटी पड़ी रही।

‘कितना टाइम लगा’ उन्होंने पूछा. मैंने कहा- जी मैडम जी 33 मिनट! जबकि सिर्फ 22 मिनट ही लगे थे, मगर किसने टाइम देखना था।

मैंने उठ कर अपने कपड़े पहने, बाल वाल सेट किए और वापिस किचन में चला आया। किचन में सामने तारा खड़ी थी, मुझे गुस्से से देख रही थी, बोली- बस फिसल गया मैडम जी पर? मेरे पास कोई जवाब नहीं था।

मगर उसके सवाल ने मुझे गुस्सा दिला दिया, मैंने कहा- तू बता तुझे चाहिए क्या? वो गुस्से में पैर पटकती चली गई।

उसके बाद तीन साल और मैंने उस घर में नौकरी की। तीन साल मैडम जी ने ऐसी अपनी चूत की चाकरी करवाई कि मेरा तो काम ही यह रह गया कि रोज़ या हर दूसरे दिन मुझे मैडम को चोदना पड़ता। तीन साल मैं घर भी नहीं गया, बस पैसे भेजता रहा।

मैडम मेरी बीवी बन गई थी और वो भी मुझे पूरा अपना पति ही समझती थी, पैसे धेले की, हर किसी चीज़ कोई दिक्कत नहीं होने दी। मगर दिन प्रति दिन उनका हक़ मुझपर बढ़ता जा रहा था, वो ऐसे करने लगी थी, जैसे सच में मेरी ही बीवी हो। तारा से भी बात नहीं करने देती थी।

हालांकि मैंने तारा को भी थोड़ा बहुत सेट कर लिया था, बोबे दबा देने, होंठ चूम लेने, हम दोनों में आम बात थी, मगर तारा ने कभी मुझे उसे चोदने न दिया, और मैडम जी ने मुझमें कभी इतनी ताकत नहीं छोड़ी के मैं उनके सिवा किसी और को चोद सकूँ।

बाद में साहब को भी इस बात का पता चल गया और वो भी मुझसे नाराज़ से रहने लगे। मुझे भी अब डर लगने लगा कि कहीं कल को मुझ पर कोई आंच आ आए। जब मैडम जी मुझ पर ज़्यादा ही हावी होने लगी तो मैंने अपनी बदली किसी और जगह करवा ली।

जिस दिन मैं गया, उस दिन मैडम जी मुझसे लिपट कर बहुत रोई। मुझे भी दुख था, मगर मैं सही सलामत उनके घर से निकल आया, इस बात की खुशी भी थी। Email ID of the writer of this saxy story- [email protected]

लेखक वरिन्द्र सिंह जी की सभी कहानियाँ

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