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सुनीता ने चाय का कप रखकर बड़े ही सम्मान से कर्नल साहब को नमस्ते किया और बोली, “आप ज्योति जी के हस्बैंड हैं ना? बहुत अच्छीं हैं ज्योति जी।”
सुनीता की मीठी आवाज सुनते ही कर्नल साहब की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। वह कुछ बोल नहीं पाए तब सुनीता ने कहा, “सर, आप कुछ कह रहे थे न?”
जसवंत सिंघ जी का गुस्सा सुनीता की सूरत और शब्दों को सुनकर हवा हो गया था। वह झिझकते हुए बड़बड़ाने लगे, “नहीं, कोई ख़ास बात नहीं, हमें कहीं जाना था तो मैं (सुनील की और इशारा करते हुए बोले) श्रीमान से आपकी गाडी की चाभी मांगने आया था। आपकी गाडी थोड़ी हटानी थी।”
सुनीता समझ गयी की जरूर उसके पति सुनील ने कार को कर्नल साहब की कार के सामने पार्क कर दिया होगा।
वह एकदम से हँस दी और बोली, “साहब, मेरे पति की और से मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ। वह हैं ही ऐसे। उन्हें अपने काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। व्यावहारिक वस्तुओं का तो उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहता। हड़बड़ाहट मैं शायद उन्होंने अपनी कार आपकी कार के सामने रख दी होगी। आप प्लीज बैठिये और चाय पीजिये।”
फिर सुनीता ने मेरी और घूम कर मुझे उलाहना देते हुए कहा, “आप को ध्यान रखना चाहिए। जाइये और अपनी कार हटाइये।”
फिर कर्नल साहब की और मीठी नजर से देखते हुए बोली, “माफ़ कीजिये। आगे से यह ध्यान रखेंगे। पर आप प्लीज चाय पीजिये और (मेज पर रखे कुछ नास्ते की चीजों की और इशारा करते हुए बोली) और कुछ लीजिये ना प्लीज?”
सुनील हड़बड़ाहट में ही उठे और अपनी कार की चाभी ले कर भाग कर अपनी कार हटाने के लिए सीढ़ियों की और निचे उतरने के लिए भागे।
सुनीता ठीक कर्नल साहब के सामने एक कुर्सी खिसका कर थोड़ा सा कर्नल साहब की और झुक कर बैठ गयी और उन्हें अपनी और ताकते हुए देख कर थोड़ी शर्मायी।
शायद सुनीता कहना चाह रही थी की “सर आप क्या देख रहे हैं?” पर झिझकती हुई बोली, “सर! आप क्या सोच रहे हैं? चाय पीजिये ना? ठंडी हो जायेगी।” सुनीता को पता नहीं था उसे कर्नल साहब के ठीक सामने उस हाल में बैठा हुआ देख कर कर्नल साहब कितने गरम हो रहे थे।
कर्नल साहब को ध्यान आया की उनकी नजरें सुनीता के बड़े बड़े खूबसूरत स्तन मंडल के बिच वाली खाई से हटने का नाम नहीं ले रहे थी।
लेकिन सुनीता का उलाहना सुनकर कर्नल साहब ने अपनी नजर सुनीता के ऊपर से हटायीं और कमरे के चारों और देखने लगे।
क्या बोले वह समझ नहीं आया तो वह थोड़ी सी खिसियानी शक्ल बना कर बोले, “सुनीताजी आप का घर आपने बड़ी ही सुन्दर तरीके से सजाया है। लगता है आप भी ज्योति की तरह ही सफाई पसंद हैं।”
कर्नल साहब की बात सुन कर सुनीता हँस पड़ी और बोली, “नहीं जी, ऐसी कोई बात नहीं। बस थोड़ा घर ठीक ठाक रखना मुझे अच्छा लगता है। पर भला ज्योति जी तो बड़ी ही होनहार हैं। उनसे बातें करतें हैं तो वक्त कहाँ चल जाता है पता ही नहीं लगता। हम जब कल मार्किट में मिले थे तो ज्योति जी कह रही थीं…”
और फिर सुनीता की जबान बे लगाम शुरू हो गयी और कर्नल साहब उसकी हाँ में हाँ मिलाते बिना रोक टोक किये सुनते ही गए। वह भूल गए की उनको कहीं जाना था और उनकी पत्नी निचे कार के पास उन का इंतजार कर रही थी।
जाहिर है उनको सुनीता की बातों में कोई ख़ास दिलचश्पी नहीं थी। पर बात करते करते सुनीता के हाथों की मुद्राएँ, बार बार सुनीता की गालों पर लटक जाती जुल्फ को हटाने की प्यारी कवायद, आँखों को मटकाने का तरिका, सुनीता की अंगभंगिमा और उसके बदन की कामुकता ने उनका मन हर लिया था।
जब सुनील अपनी कार हटा कर वापस आये तो कर्नल साहब की तंद्रा टूटी और सुनीता की जबान रुकी।
सुनील ने देखा की सुनीता ने कर्नल साहब को अपनी चबड चबड में फाँस लिया था तो वह बोले, “अरे जानू, कर्नल साहब जल्दी में हैं। उनको कहीं जाना है।”
फिर कर्नल साहब की और मुड़कर सुनील ने कहा, “माफ़ कीजिये। सुनीता जैसे ही कोई उसकी बातों में थड़ी सी भी दिलचश्पी दिखाता है तो शुरू हो जाती है और फिर रुकने का नाम नहीं लेती। लगता है उसने आप को बहुत बोर कर दिया।”
कर्नल साहब अब एकदम बदल चुके थे। उन्होंने चाय का कप उठाया और बोले, “कोई बात नहीं। यह तो होता रहता है। कोई जल्दी नहीं है।” सुनील की और अपना एक हाथ आगे करते हुए बोले, “मैं कर्नल जसवंत सिंह हूँ।”
फिर वह सुनीता की और घूमकर बोले, “और हाँ ज्योति मेरी पत्नी है। वह आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी।”
सुनील ने भी अपना हाथ आगे कर अपना परिचय देते हुए कहा, “मैं सुनील मडगाओं कर हूँ। मैं एक साधारण सा पत्रकार हूँ। आप मुझे सुनील कह कर ही बुलाइये। और यह मेरी पत्नी सुनीता है, जिनके बारे में तो आप जान ही चुके हैं।” सुनील ने हलके कटाक्ष के अंदाज से कहा।
जैसे ही सुनील ने अपनी पहचान दी तो कर्नल साहब उछल पड़े और बोले, “अरे भाई साहब! क्या आप वही श्रीमान सुनील मडगाओंकर हैं जिनकी कलम से हमारी मिनिस्ट्री भी डरती है?”
सुनील ने कर्नल साहब का नाम एक सुप्रतिष्ठित और अति सम्मानित आर्मी अफसर के रूप में सुन रखा था।
तो सुनील ने हँस कर कर्नल साहब से कहा, “कर्नल साहब आप क्या बात कर रहे हैं? आप ये कोई कम हैं क्या? मैं समझता हूँ आप जैसा शायद ही कोई सम्मानित आर्मी अफसर होगा। आप हमारे देश के गौरव हैं। और जहां तक मेरी बात है, तो आप देख रहे हैं। मेरी बीबी मुझे कैसे डाँट रही है? अरे भाई मेरी बीबी भी मुझसे डरती नहीं है। मिनिस्ट्री तो बहुत दूर की बात है।”
सुनील की बात सुनकर सब जोर से हँस पड़े। चाय पीते ही मन ना करते हुए भी कर्नल साहब उठ खड़े हुए और बोले, “आप दोनों, प्लीज हमारे घर जरूर आइये। ज्योति को और मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा।”
कर्नल साहब बाहर से कठोर पर अंदर से काफी मुलायम और संवेदनशील मिज़ाज के थे। यह बात को नकारा नहीं जा सकता की सुनीता को देखते ही कर्नल साहब उसकी और आकर्षित हुए थे। सुनीता का व्यक्तित्व था ही कुछ ऐसा। उपरसे कर्नल साहब का रंगीन मिजाज़। सुनीता के कमसिन और खूब सूरत बदन के अलावा उसकी सादगी और मिठास कर्नल साहब के दिल को छू गयी थी।
अपने कार्य काल में उनकी जान पहचान कई अति खूबसूरत स्त्रियों से हुई थी। आर्मी अफसर की पत्नियाँ , बेटियाँ, उनकी रिश्तेदार और कई सामाजिक प्रसंगों में उनके मित्र और साथीदार महिलाओं से उनकी मुलाक़ात और जान पहचान अक्सर होती थी।
जसवंत सिंह (कर्नल साहब) के अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व, सुदृढ़ शरीर, ऊँचे ओहदे और मीठे स्वभाव के कारण उन को कभी किसी सुन्दर और वांछनीय स्त्री के पीछे पड़ने की जरुरत नहीं पड़ी। अक्सर कई बला की सुन्दर स्त्रियां पार्टियों में उनको अपने शरीर की आग बुझाने के लिए इशारा कर देती थीं।
जसवंत सिंह ने शुरुआत के दिनों में, शादी से पहले कई युवतियों का कौमार्य भंग किया था और कईयों की तन की भूख शांत की थी। उनमें से कई तो शादी होने के बाद भी अपने पति से छुपकर कर्नल साहब से चुदवाने के लिए लालायित रहतीं थीं और मौक़ा मिलने पर चुदवाती भी थीं।
कर्नल साहब के साथ जो स्त्री एक बार सोती थी, उसके लिए कर्नल साहब को भुल जाना नामुमकिन सा होता था। आर्मी परिवार में और खास कर स्त्रियों में चोरी छुपी यह आम अफवाह थी की एक बार किसी औरत ने अगर जसवंत सिंह का संग कर लिया (स्पष्ट भाषा में कहे तो अगर किसी औरत को कर्नल साहब से चुदवा ने का मौक़ा मिल गया) तो वह कर्नल साहब के लण्ड के बारे में ही सोचती रहती थी।
चुदवाने की बात छोड़िये, अगर किसी औरत को कर्नल साहब से बात भी करने का मौक़ा मिल जाए तो ऐसा कम ही होता था की वह उनकी दीवानी ना हो। कर्नल साहब की बातें सरल और मीठी होती थीं। वह महिलाओं के प्रति बड़ी ही शालीनता से पेश आते थे।
जिस कारन उनकी बातों में सरलता, मिठास के साथ साथ जोश, उमंग और अपने देश के प्रति मर मिटने की भावना साफ़ प्रतीत होती थी। साथ में शरारत, मशखरापन और हाजिर जवाबी के लिए वह ख़ास जाने जाते थे। —– सालों पहले की बात है। कर्नल साहब की शादी भी तो ऐसे ही हुई थी। एक समारोह में युवा कर्नल की जब ज्योति से पहली बार मुलाक़ात हुई तो उनमें ज्यादा बात नहीं हो पायी थी।
किसी पारस्परिक दोस्त ने उनका एक दूसरे से परिचय करवाया और बस। पर उनकी आंखें जरूर मिलीं। और आँखें मिलते ही आग तो दोनों ही तरफ से लगी।
कर्नल साहब को ज्योति पहली नजर में ही भा गयी थी। ज्योति की आँखों में छिपी चंचलता और शौखपन जसवंत सिंह के दिल को भेद कर पार गयी थी। ज्योति क बदन को देखकर उनपर जैसे बिजली ही गिर गयी थी। कई दिन बीत गए पर उन दोनों की दूसरी मुलाक़ात नहीं हुई।
जसवंत सिंह की नजरें जहां भी आर्मी वालों का समारोह या प्रोग्राम होता था, ज्योति को ढूंढती रहती थीं। ज्योति का भी वही हाल था।
ज्योति के नाक नक्श, चाल, वेशभूषा, बदन का आकार और उसका अल्हड़पन ने उन्हें पहेली ही मुलाक़ात में ही विचलित कर दिया। ज्योति ने भी तो कप्तान जसवंत सिंह (उस समय वह कप्तान जसवंत सिंह के नाम से जाने जाते थे) के बारे में काफी सुन रखा था।
जसवंत सिंह से ज्योति की दूसरी बार मुलाक़ात आर्मी क्लब के एक सांस्कृतिक समारोह के दौरान हुई। दोनों में परस्पर आकर्षण तो था ही।
जसवंत सिंह ने ज्योति के पापा, जो की एक निवृत्त आर्मी अफसर थे, उनके निचे काफी समय तक काम किया था, उनके बारे में पूछने के बहाने वह ज्योति के पास पहुंचे।
कुछ बातचीत हुई, कुछ और जान पहचान हुई, कुछ शोखियाँ, कुछ शरारत हुई, नजरों से नजरें मिली और आग दावानल बन गयी।
ज्योति जसवंत सिंह की पहले से ही दीवानी तो थी ही। बिच के कुछ हफ्ते जसवंत सिंह को ना मिलने के कारण ज्योति इतनी बेचैन और परेशान हो गयी थी की उस बार ज्योति ने तय किया की वह हाथ में आये मौके को नहीं गँवायेगी।
बिना सोचे समझे ही सारी लाज शर्म को ताक पर रख कर डांस करते हुए वह जसवंत सिंह के गले लग गयी और बेतकल्लुफ और बेझिझक जसवंत सिंह के कानों में बोली, “मैं आज रात आपसे चुदवाना चाहती हूँ। क्या आप मुझे चोदोगे?”
जसवंत सिंह स्तंभित हो कर ज्योति की और अचम्भे से देखन लगे तो ज्योति ने कहा, “मैं नशे में नहीं हूँ। मैं आपको कई हफ़्तों से देख रही हूँ। मैंने आपके बारे में काफी सूना भी है। मेरे पापा आपके बड़े प्रशंषक हैं। आज का मेरा यह फैसला मैंने कोई भावावेश में नहीं लिया है। मैंने तय किया था की मैं आपसे चुदवा कर ही अपना कौमार्य भंग करुँगी। मैं पिछले कई हफ़्तों से आपसे ऐसे ही मौके पर मिलने के लिए तलाश रही ही।”
ज्योति की इतनी स्पष्ट और बेबाक ख्वाहिश ने जसवंत सिंह को कुछ भी बोल ने का मौक़ा नहीं दिया। वह ज्योति की इतनी गंभीर बात को ठुकरा ना सके। और कप्तान जसवंत सिंह ने ने वहीँ क्लब में ही एक कमरा बुक किया।
पार्टी खत्म होने के बाद ज्योति अपने माता और पिताजी से कुछ बहाना करके सबसे नजरें बचा कर जसवंत सिंह के कमरे में चुपचाप चली गयी। ज्योति की ऐसी हिम्मत देख कर जसवंत सिंह हैरान रह गए।
जसवंत और ज्योति की कहानी आगे जारी रहेगी..
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