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तभी एक परिचित सी मोहक सुगंध ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.
उस खुशबू को पहचानते ही मेरी आँखें थोड़ी बड़ी हो गईं और बरबस ही मेरे होंठों पे एक मुस्कान बिखर गई… वो और कोई नहीं वंदना ही थी. रेणुका का ख़त पढ़ने के चक्कर में मैं जब अपने घर में घुसा था तब जल्दी जल्दी में सारे दरवाज़े खुले ही छोड़ दिए थे. इस कारण वंदना सीधे मेरे कमरे की तरफ बढ़ गई थी और उसके बदन से आ रही खुशबू मुझ तक सीधी पहुँच रही थी.
मैंने अपनी आँखें अपने कमरे के दरवाज़े पर टिका दी… और एक दो सेकेंड के बाद ही चेहरे पे एक मुस्कान और शर्म की लाली लिए हुए वंदना मेरे कमरे में दाखिल हुई…!!
हल्के गुलाबी रंग के टॉप और काली जीन्स में वंदना क़यामत ढा रही थी. बाल खुले हुए… हाथों में आज चूड़ियाँ थीं बिल्कुल अपने टॉप के रंग से मेल खाती हुईं, होंठों पे सुर्ख गुलाबी लिपस्टिक ने उसके गुलाब की पंखुड़ियों को और भी मादक बना रखा था…चेहरे से नीचे की तरफ ध्यान दिया तो उसके उभारों की गोलाइयाँ बिल्कुल तन कर साँसों के साथ ऊपर-नीचे होते हुए मुझे अपनी तरफ आकर्षित कर रही थीं… कंधे पर सितारों वाला बैग था जिसके सितारे कमरे में आ रही रोशनी से झिलमिला रहे थे.
कुल मिला कर ऐसा लग रहा था मानो कोई नई नवेली दुल्हन अपनी सुहागरात के दूसरे दिन हाथों में चूड़ा पहने हुए चमकती झिलमिलाती काया के साथ सामने खड़ी हो… मेरी नज़र ही नहीं हट रही थी उस पर से!!
अभी थोड़ी देर पहले मैं उसकी माँ के मोह जाल में फंसा हुआ अपने आप को समझा रहा था और अब उसकी बेटी को सामने देख कर सब कुछ भूल गया… सही कहते हैं लोग… किसी पुराने दर्द को भूलने के लिए एक नया बहाना जरूरी होता है… शायद वंदना मेरे इस मर्ज़ की सही दवा थी, शायद वही थी जो मेरे मन में चल रहे उसकी माँ के मोह जाल को काट सके और मुझे यथार्थ को स्वीकारने में मेरी मदद कर सके… शायद वंदना ही मेरे सारे सवालों का जवाब थी!
कमरे में दाखिल होते ही वंदना ने अपने कंधे से बैग उतार कर बिस्तर पर एक तरफ रख दिया और अपनी आँखों को मेरी आँखों में समा कर धीरे से मेरे करीब आ गई… हमारी आँखें अब भी एक दूसरे में खोई हुई थीं.
तभी मैंने अपनी आँखों को हल्के से बड़ी करके मुस्कुराते हुए उससे कुछ पूछना चाहा लेकिन मेरे होंठ खुलने से पहले ही वंदना बिस्तर पर बैठते हुए मेरे सीने पर झुक गई और अपना सर मेरे सीने पर रख कर मुझसे लिपट गई. मैं तो पहले से ही लेटा हुआ था, वंदना का आधा शरीर मेरे ऊपर था और आधा बिस्तर से नीचे… उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ सा लिया था.
सहसा मेरे हाथ भी उसके इर्द-गिर्द बंध गए और मैं यूँ ही उसे सहलाने लगा… एक अजीब सी ख़ामोशी थी उस वक़्त, कुछ था तो बस साँसों का शोर!!
10-15 मिनट हम ऐसे ही पड़े रहे… फिर मैंने उसके बालों में अपनी उंगलियाँ फिराईं और उसे हल्के से आवाज़ दी.. ‘वंदना…क्या हुआ मेरी गुड़िया को?’
मेरे सवाल पर उसने अपना सर हल्के से हिलाया और अपने चेहरे को उठाकर मेरी आँखों में झाँकने लगी. उसकी आँखें चमक रही थीं… मानो मुझसे चहक कर कुछ कहना चाह रही हों! ‘ए… बोलो ना, क्या हुआ… ऐसे क्यूँ देख रही हो?’ मैंने फिर से सवाल किया.
दुबारा सवाल करने पर उसने मुस्कुराते हुए अपना चेहरा मेरे चेहरे के और करीब लाते हुए मेरे गालों पर एक प्यारी सी पप्पी ले ली और फिर मेरे नाक से अपनी नाक रगड़ने लगी… उसकी साँसें अब मेरी साँसों से मिल चुकी थीं और मेरा हाथ अब उसकी पीठ पर बड़े ही आराम से हल्के-हल्के घूमने लगा.
‘क्या हुआ…बड़ा प्यार आ रहा है आज आपको मुझ पर?’ मैंने ठिठोली करते हुए पूछा. ‘वो तो हमेशा आता है… आपको ही पता नहीं चलता.’ वंदना की मीठी सी आवाज़ मेरे कानों में गूंजी. ‘नहीं जी… कल रात को पता चला न कि आप कितना प्यार करती हैं मुझसे.’ मैंने थोड़ा हँसते हुए कहा. ‘अच्छा, कब पता चला जनाब को?’ वंदना ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करते हुए सवाल किया.
‘काली अँधेरी रात थी, जोरदार बारिश हो रही थी… और एक बंद कार में हो रही उथल-पुथल ने मुझे बतया कि कोई हमसे कितना प्यार करता है.’ एक शायराना अंदाज़ में मैंने उसके गालों को सहलाते हुए कहा और धीरे से आँख मार दी. ‘धत… बदमाश कहीं के!!’ वंदना ने लजाते हुए कहा और अपना चेहरे मेरे सीने में फिर से छुपा लिया.
उफ्फ्फ्फ़…ये लड़की अदाओं में अपनी माँ से कुछ कम नहीं थी!!
उसकी बात सुनकर मैं हंस पड़ा और उसे अपने सीने से और भी जोर से जकड़ लिया. अब तक मेरे हाथों की सहलाहट से उसके बदन में सुरसुराहट होना लाज़मी था, वो शुरू हो चुकी थी, वंदना के बदन की थिरकन इस बात का सबूत दे रही थी. उसकी साँसों की आवाज़ यह बताने के लिए काफी थी कि अब उसका बदन मदहोश हो चला था.
मैंने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और रेणुका को अपने ज़हन से बाहर निकालते हुए वंदना को महसूस करना शुरू किया. दिमाग में अब भी उथल पुथल चल रही थी लेकिन वंदना के मखमली जिस्म की गर्माहट मुझे किसी और दुनिया में खींच कर ले जा रही थी.
तभी सहसा वंदना ने अपनी गर्दन थोड़ी सी हिलाई और मेरे कान के लोबों को अपने होंठों में कैद कर लिया…
उम्म्मम… मर्द हो या औरत, दोनों को ही इस अवस्था में एक सिहरन का एहसास होता ही है, मुझे भी हुआ और मैंने एक सिहरन भरी सांस खींचते हुए वंदना को और भी जोर से जकड़ लिया. अब हालत यह थी कि वंदना का सीना मेरे सीने से बिल्कुल चिपक गया था और उसकी नरम मुलायम चूचियाँ मेरे सीने को मसल रही थीं… उसकी चूचियाँ धीरे-धीरे फूलती जा रही थीं और इतनी गर्म हो रही थीं मानो कोई उनमें गर्म हवा भरता जा रहा हो… उसके चुचूक अपनी सख्ती का एहसास दिलाने लगे थे.
ज़ाहिर है कि उसने एक टॉप पहन रखा था और उसके अन्दर ब्रा भी थी जिसने उसकी हसीन चूचियों को ढक रखा था लेकिन उत्तेजना की उस अवस्था में दोहरे पर्दों के पीछे से भी यह साफ़ पता चल रहा था कि उन चुचूकों ने अपना सर उठा लिया है.
वंदना धीरे धीरे अपनी पूरी मस्ती में आने लगी थी और कमोबेश मेरा भी यही हाल था. मैंने भी उसके पूरे बदन पर जहाँ तक मेरे हाथ जा सकते थे वहाँ तक उसे सहलाना और मसलना जारी रखा. मेरे दोनों हाथ सहसा उसके उभरे हुए नितम्बों पे आकर रुक गए… जीन्स की मोटी चुस्त पैंट ने उसके नितम्बों को एक खूबसूरत सा आकार दे रखा था. मैंने धीरे-धीरे उसके विशाल गोलाकार नितम्बों को अपनी हथेलियों में भरकर मसलना शुरू किया मानो मैदे को मथ रहा हूँ.
उधर दूसरी तरफ वंदना के होंठ अब मेरी गर्दन के चारों ओर अपनी प्रेम की छाप छोड़ रहे थे और धीरे-धीरे गर्दन से सरकते हुए मेरे सीने की तरफ बढ़ रहे थे.
आज वंदना की ओर से हो रहे इस पहल का सुखद अनुभव बयाँ करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन इतना कह सकता हूँ कि यह वो अनुभव था जो अमूमन कम ही मिलता है, क्यूंकि अक्सर इस प्रणय के बेला में पुरुष ही स्त्री पर हावी रहता है और अपने तरीके से आगे बढ़ता है. लेकिन यकीन मानिए मित्रो, जब स्त्री अपने हाथों में कमान संभाल कर धीरे-धीरे बाण चलाती है तो पुरुष के अन्दर एक अद्वितीय उन्माद भर जाता है और इस खेल का मज़ा कई गुना बढ़ जाता है.
खैर, अब तक वंदना ने मेरे सीने का हर हिस्सा अपने नाज़ुक होंठों से नाप लिया था और मेरे शरीर में झुरझुरी सी भर दी थी. उसके हाथों ने एक और भी काम किया और बिना अपने होंठ मेरे सीने से हटाये मेरी टी-शर्ट जो कि सिमट कर गर्दन पे फंसी हुई थी उसे निकल देने का प्रयास किया.
उन्माद से भरा, मैं खुद अपने हाथों से अपनी टी-शर्ट उतारने का प्रयास करने लगा लेकिन मुश्किल यह थी कि मेरी जानेमन ने मुझे पूरी तरह से दबा रखा था और बिना उसे अपने ऊपर से हटाये टी-शर्ट निकलना आसान नहीं हो रहा था. सच कहूँ तो मेरा मन भी नहीं कर रहा था कि उसके गुद्देदार नितम्बों से अपने हाथ हटाऊं… लेकिन अब आगे भी तो बढ़ना था, वरना हम तो इस कदर नशे में डूबे हुए थे कि घंटों तक ऐसे ही मज़े लेते रहते… वो मेरे सीने पे अपने होंठों की छाप छोड़ती रहती और मैं उसके मखमली नितम्बों को मसलता रहता!!
सहसा ही वंदना को शायद मेरी हालत का अहसास हुआ और उसने अपनी पकड़ थोड़ी ढीली कर दी और मेरे सीने से अपना सर ऊपर उठा कर अपनी लाल-लाल आँखों से मेरी आँखों में देखने लगी. मैंने समय न गंवाते हुए अपनी कमर को थोड़ा सा हिलाया और धीरे-धीरे वंदना को अपनी बाँहों में लिए हुए ही लगभग बैठ सा गया. बंद कमरे में झरोखों से आ रही रोशनी काफी थी वंदना की आँखों के लाल डोरे देखने के लिए…
हम दोनों आमने सामने बैठे तो थे लेकिन अब भी उसके बदन का लगभग पूरा भार मेरे बदन पर ही था और मेरे हाथ अब भी उसकी कमर से लिपटे हुए थे. कुछ पलों तक हमारी आँखें एक दूसरे को देखती रहीं और उनमे छिपी वासना की आग की गर्मी का एहसास होता रहा. फिर धीरे से वंदना एक बार फिर मेरे चेहरे की तरफ बढ़ चली और अपने रसीले होंठों को मेरे होंठों से सटा दिया. मैंने भी उसके होंठों का स्वागत किया और अपने होंठों से उसके होंठों को लगभग जकड़ते हुए चूसना शुरू कर दिया.
मुझे इस बात का अहसास था कि मैं क्यूँ उठ बैठा था और अब मुझे क्या करना था, मैंने अपने हाथों को जो उसकी कमर से लिपटे हुए थे, थोड़ी हरकत देनी शुरू की और उसकी कमर को सहलाते हुए उसके टॉप को ऊपर करना शुरू किया. वंदना को मेरी उंगलियों की सरसराहट का आभास हुआ और उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल कर मेरे होंठों को और भी जोर से चूसना शुरू कर दिया. मेरे हाथों ने उसके टॉप को पीछे से लगभग वहाँ तक उठा दिया था जहाँ मेरी उंगलियाँ उसकी ब्रा के हुक तक पहुँच सकें.
उफ्फ्फ्फ़… न जाने कितनी बार कितनी ही हसीनों के साथ इस तरह की अवस्था में आ चुका था मैं लेकिन हर बार जब भी किसी हसीना के कपड़े उतारते वक़्त उंगलियाँ ब्रा से टकराती थीं तो तन बदन में एक अलग ही उर्जा का एहसास होता था. आज भी जब मेरी उंगलियाँ वंदना कि ब्रा के हुक से टकराईं तो वही एहसास हुआ.
मेरे वो दोस्त जो प्रेम के इस खेल को इतने ही मादक अंदाज़ से खेलते होंगे, उन्हें पता होगा कि मैं किस एहसास की बात कर रहा हूँ. ब्रा के स्पर्श मात्र से ही कामुकता बढ़ जाती है…है ना?
खैर, मैंने वंदना की ब्रा को अपनी उंगलियों से थोड़ा सहलाया और फिर उन्हें वैसे ही छोड़ कर टॉप को अच्छी तरह से पकड़ कर उसकी गर्दन तक पहुँचा दिया. अब बस जरूरत थी तो इतनी कि वंदना अपने हाथ उठाये और मैं उसके बदन से उसका टॉप उतार फेंकूं!
वंदना भी अपने जोश की चरम सीमा पर थी और जल्दी से जल्दी प्रेम के सागर में गोते लगाना चाहती थी, उसने हमारी स्थिति को भांपते हुए धीरे से अपनी बाहों को मेरे गले से अलग करते हुए अपने होंठों को भी मेरे होंठों की गिरफ्त से अलग किया और अपनी आँखें बंद रखते हुए अपनी दोनों बाहें ऊपर उठा दीं.
मैंने भी लपक कर उसके टॉप को उसकी बाहों से होते हुए बाहर निकल दिया और बिस्तर के नीचे फेंक दिया. अब स्थिति यह थी कि वंदना अपनी आँखें बंद किये सुर्ख गुलाबी ब्रा में अपने उन्नत उभारों को ताने हुए मेरे सामने बैठी थी और गहरी-गहरी साँसें ले रही थी. मैं एक पल के लिए ठिठक कर उसके मनमोहक रूप का दीदार करने लगा.
बड़ी-बड़ी आँखों को ढके हुए उसकी बड़ी बड़ी पलकें, मेरे होंठों के रस से सराबोर उसके थरथराते होंठ, मन को मुँह लेने वाली उसकी सुराहीदार गर्दन और गर्दन से ठीक नीचे सुर्ख गुलाबी रंग के अंगवस्त्र में साँसों के साथ उठती-बैठती मदमस्त चूचियाँ… कुल मिलकर किसी भी मर्द का ईमान बिगाड़ देने वाली उसकी काया मेरे होश उड़ा रही थी और मैं मंत्रमुग्ध होकर उसे निहारे जा रहा था.
सहसा मैंने उसकी कमर को अपने हाथों से एक बार फिर से जकड़ा और अपनी गर्दन झुका कर ब्रा में कैद उसकी गोल-गोल चूचियों के बीच की खाई में अपने होंठों को रख दिया. ‘इस्स्स्स स्स्स…समीर…’ वंदना के होंठों से एक सिसकारी सी निकली और उसने अपने हाथों से मेरे सर को पकड़ कर अपनी चूचियों के बीच दबा दिया.
मैंने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसकी घाटी को जुबां की नोक से ऊपर से नीचे तक चाटने लगा. वंदना ने मेरे बालों को अपनी उंगलियों में जकड़ कर खींचना शुरू कर दिया और अपनी गर्दन इधर-उधर कर अपनी बेचैनी का परिचय देने लगी.
हम काफी देर से चुदाई के पहले का खेल खेले जा रहे थे और इतना तो तय था कि हम दोनों में से कोई भी अब अपने जोश को बर्दाश्त करने की हालत में नहीं था. मेरे नवाब साहब… जी हाँ, मेरे लंड का हाल ऐसा था मानो अब फटा कि तब फटा! शायद वंदना की मुनिया का भी ऐसा ही हाल रहा होगा और उसकी चूत भी उसे वैसे ही परेशां कर रही होगी जैसे मेरा लंड मुझे कर रहा था.
तभी वंदना ने अपने हाथों को मेरे सर और बालों से हटाकर अपनी पीठ के पीछे किया और ब्रा का हुक खोल दिया. वंदना चंचल और शरारती तो थी, यह मुझे पता था लेकिन कहीं ना कहीं ऐसे मामलों में लड़कियाँ शर्माती जरूर हैं और जल्दी से इस तरह की पहल नहीं करतीं. ऐसे मामलों में अक्सर मर्द ही आगे बढ़कर उन्हें उनके सारे कपड़ों से आज़ाद करते हैं और फिर उनकी कोमल काया का रस चखते हैं. लेकिन वंदना की इस हरकत ने मुझे थोड़ा सा तो अचरज में जरूर डाला था.
शायद यह उसकी उत्तेजना थी या फिर मेरे प्रति उसका समर्पण जो उसने लोक-लज्जा को त्याग कर इस खेल का भरपूर आनन्द लेने के लिए खुद ही अपनी ब्रा खोल दी थी. यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
बहरहाल, उसके ब्रा के कप हुक खुलते ही ढीले से पड़ गए लेकिन अब भी उसकी चूचियों पे ऐसे टिके थे मानो संतरों के ऊपर छिलका. मैंने अपने हाथों को हरकत दी और धीरे से उसकी ब्रा को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसकी चूचियों के ऊपर से हटा दिया. इस दरमियाँ मेरी जुबां अब भी उसकी चूचियों की घाटी का रस ले रही थी. वंदना की ब्रा अब उसकी दोनों बाहों में झूल रही थी और उसके हाथ वापस से मेरे सर को अपनी चूचियों में दबाने का प्रयास कर रहे थे.
मैंने अब अपनी जीभ को घाटी से हटाकर उसकी बाईं चूची के चारों ओर फिराना शुरू किया, धीरे-धीरे उसकी चूचियों की घुंडी तक पहुँच गया. अपनी जीभ की नोक से उसकी घुंडी को कुरेदते हुए मैंने अपने बाएं हाथ से उसकी दाईं चूची को थाम लिया और हल्के-हल्के दबाने लगा. चूचियों की नोक पर मेरी जीभ की नोक का स्पर्श वंदना को और भी उत्तेजित करने के लिए काफी था. उसने अपना सीना उभार कर कुछ इस तरह इशारा किया जैसे वो उन्हें पूरा खा जाने को कह रही हो!
मैंने भी उसकी इच्छा का सम्मान किया और अपने होंठ खोलकर उसकी चूचियों को घुंडी के साथ जितना अन्दर तक जा सके उतना अपने मुँह में भर लिया और एक हाथ से चूची को मसलता हुआ दूसरी चूची का रस पीने लगा.
‘हम्म्म्म…समीर…उफ्फ्फ्फ़’ वंदना के होंठों से ऐसी ही न जाने कितनी आवाजें निकलने लगीं.
ऐसा होना लाज़मी भी था, यह तो महिलायें ही समझ सकती हैं कि इस हालत में उन्हें कैसा महसूस होता है. मेरी कहानी पढ़ रही महिलायें मेरी इस बात को स्वीकार करेंगी कि सचमुच जब ऐसा होता है तो अपने आप मुँह से सिसकारियाँ निकल ही जाती हैं… है ना?
हम दोनों अपने उन्माद में चूर होकर एक दूसरे के भीतर समा जाने को तड़प रहे थे. मैंने अपना पूरा ध्यान वंदना की चूचियों पे केन्द्रित कर रखा था और बारी-बारी से दोनों चूचियों को चूस और मसल रहा था और वंदना अपनी गर्दन इधर-उधर फेर कर और गर्मा गर्म सिसकारियों के साथ मेरे सर के बालों को अपनी उंगलियों में फंसा कर खींचती हुई अपनी बेकरारी का अहसास दिला रही थी.
जाने मेरे मन में क्या आया या फिर यूँ कहें कि हम दोनों के धधकते बदन खुद ब खुद आगे बढ़ने के लिए अपना रास्ता बना रहे थे… और इसी दरमियान हम दोनों उसी अवस्था में धीरे-धीरे पलंग से सरकते हुए अपने पैरों को फर्श पर टिका कर लगभग खड़े हो गए.
वंदना की चूचियाँ अब भी मेरे मुँह और हाथों में थीं और मैं उनका मर्दन कर रहा था!
हमें खड़े हुए अभी आधा मिनट ही हुआ था कि वंदना ने अपने हाथ मेरे सर से आज़ाद करके मेरे पीठ पर टिका दिए और अपने नाखूनों से मेरी पीठ को लगभग खरोंचते हुए नीचे की ओर मेरी कमर पे रख दिया. मैंने उस वक़्त शार्ट्स पहन रखा था जिसमें इलास्टिक लगी हुई थी. वंदना ने अब अपनी उंगलियों को उस इलास्टिक के अन्दर से सरकाते हुए मेरे नितम्बों को टटोलना शुरू कर दिया.
‘उफ्फ्फ्फ़…’ यूँ तो मेरे मुँह में मेरी वंदु की चूचियाँ थीं जिन्हें मैं बड़े प्रेम से चूस रहा था लेकिन फिर भी जब उसकी उंगलियाँ मेरे नितम्बों की लकीर में घूमने लगीं तो भरे हुए मुँह से भी एक सिसकारी सी निकल गई.
वंदना की उंगलियाँ वहीं टिकी नहीं रहीं, बल्कि धीरे-धीरे नितम्बों की गोलाइयों का मुआयना करते हुए आगे की तरफ आने लगीं.
अब मेरी भी साँसें बिखरने लगी थीं क्यूंकि मैं जानता था कि यूँ घूमते-घूमते उसकी उंगलियाँ मेरे नवाब तक पहुँच जायेंगी… इस ख़याल से ही बदन में एक झुरझुरी सी उठी. ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ चूचियों से भरे मुँह से बस इतना ही निकल सका!
और वही हुआ जैसा कि मुझे अंदेशा था… वंदना की उंगलियों ने मेरे लंड का स्पर्श कर लिया था. मेरा लंड वैसे ही इतनी देर से उत्तेजित होकर लोहे की रॉड बना हुआ था और गर्म हुआ पड़ा था. ‘आआह्ह्ह ह्ह्ह्… उम्म्म्म म्म्म्म…’ अब यह आवाज़ वंदना के मुँह से निकली थी. इस आवाज़ में वो एहसास था जो उस वक़्त होता है जब आप उन्माद से भरे हों और उस उन्माद में आपकी पसंद की चीज़ आपके हाथों में आ जाती है.
पहले तो वंदु ने अपनी उंगलियों से ही मेरे लंड को टटोला और फिर अपनी एक हथेली में मेरे पूरे लंड को जकड़ लिया… और सिर्फ जकड़ा ही नहीं बल्कि अपनी हथेली कि पकड़ इतनी मजबूत कर ली मानो कोई कसाई किसी मुर्गे को हलाल करने से पहले उसकी गर्दन दबोच लेता है.
वंदना की पकड़ धीरे धीरे और भी सख्त होती जा रही थी और इधर मेरा हाल बेहाल हुआ जा रहा था. मुझे अब और कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने अपने मुँह से वंदना की चूची को निकाल दिया और अपनी गर्दन सीधी करके उसके बिल्कुल बराबर में खड़े हो गया. मेरी हालत अपने लंड के इस तरह पकड़े जाने से पहले ही ख़राब हुई जा रही थी. वंदना की चूची को मुँह से बाहर कर के मैंने अपने दूसरे हाथ से उसकी उस चूची को थाम लिया. एक चूची तो पहले से ही मेरे एक हाथ से मसली जा रही थी, अब उसकी दोनों चूचियाँ मेरे दोनों हाथों में थी. गर्दन सीधी हुई तो हम दोनों की नज़रें अब दूसरे से मिल गईं और एक दूसरे की लाल लाल आँखों में देखते हुए हमारे होंठ एक बार फिर से आपस में जुड़ गए और हमने बेरहमी से होंठों को चूसना शुरू कर दिया.
इधर वंदना ने मेरे लंड को उसी तरह सख्ती से जकड़ कर धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया और लगभग मेरे लंड को मरोड़ना शुरू कर दिया. मैंने भी उसकी चूचियों को सख्ती से मसलना शुरू किया और उसके होंठों को चूस-चूस कर सारा रस पीने लगा.
अमूमन मैं इतनी सख्ती से चूचियों को नहीं मसलता और न ही होंठों को ऐसे चूसता हूँ… लेकिन वंदना की उत्तेजना भरी हरकतों ने मुझे भी सख्त होने पर मजबूर कर दिया था.
कुछ मिनट तक हम ऐसे ही एक दूसरे के शरीर को रगड़ते हुए अपनी गर्म-गर्म साँसों से पूरे कमरे को महकाते रहे और फिर वो हुआ जिसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी. अचानक से वंदना ने अपने होंठ मेरे होंठों से छुड़ा लिए और…
कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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