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हाय दोस्तो, मेरा नाम सौरव है। मैं पटना का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 18 साल है मेरा लंड काफी लंबा और मोटा है। आप सभी से निवेदन है कि कहानी पढ़ने से पहले लौंडियाँ अपनी बुर में उंगली और लौंडे अपना लंड हिलाना शुरू कर दें।
बात 3 महीने पहले की है, इंटर का एग्जाम देने के बाद मैं कुछ दिनों के लिए चाचा के पास चला गया, जो लखनऊ में एक कॉलोनी में रहते हैं।
उनके घर मेरे दो दिन ऐसे ही बीत गए, कोई ख़ास मजा नहीं आया। अगले दिन मैं चाचा के बेटे के साथ कॉलोनी में घूम ही रहा था कि मेरी नजर एक जवान लड़की पर पड़ी। यार उसके बारे में क्या बताऊँ.. जबरदस्त मस्त माल लग रही थी। उसने घुटनों तक की जींस पहनी हुए थी और ऊपर काली शर्ट थी। उसके बाल खुले थे और वो बिल्कुल एक आइटम लग रही थी। उस माल को जो भी देख ले.. उसको याद करके मुठ जरूर मार लेता होगा।
वो अपनी सहेली के साथ बैडमिंटन खेल रही थी.. जब वो उछल कर शॉट मारती तो उसकी दोनों चुची ऊपर-नीचे उछल रही थी। मेरा मन तो कर रहा था कि साली को अभी पकड़ कर मसल दूँ। कुछ देर उसको आँखों से चोदने के बाद मेरा मन उससे बात करने को कर रहा था, पर उस दिन ऊपर से चुची देख कर ही संतोष करना पड़ा।
अगले दिन मैंने देखा कि मेरा भाई उसके साथ खेल रहा था। उनकी कॉक मकान के छज्जे पर अटक गई। बहुत कोशिश के बाद भी नहीं निकल सकी, तो मेरे भाई ने मुझे आवाज दी।
मैंने किसी तरह से कॉक निकाल दी, तभी किसी ने उस लौंडिया को रिंकी कह कर बुलाया और उसने ‘हाँ’ कह जकर जवाब दिया तो मुझे उसका नाम मालूम चल गया।
अब वे सभी मिलकर मुझे भी खेलने को बोलने लगे, इस तरह धीरे-धीरे बात होना शुरू हो गई।
कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। अब मैं रिंकी से बात करने लगा और हम दोनों काफ़ी अच्छे दोस्त बन गए। हम दोनों रोज शाम में साथ में घूमते.. मैं उसके साथ 2-2 घंटे लगातार बात करने लगा। मुझे वो काफ़ी पसंद आ गई थी और उसे भी मैं अच्छा लगने लगा था।
फर्स्ट अप्रैल को मैंने उसे ये सोच कर प्रपोज किया कि अगर उसने एक्सेप्ट किया तो ठीक, नहीं तो अप्रैल फूल बोल कर बच जाऊंगा। लेकिन उसने बड़ी ख़ुशी से मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट कर लिया।
जब यह घटना हुई, उस वक्त रात के 9 बज रहे थे.. कोई नहीं था। उसने मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार किया, तो मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ सटा दिए और उसे चूमने में लग गया। कुछ देर बाद वो भी मेरा साथ देने लगी, लगातार होंठ ऊपर-नीचे हो रहे थे, वो बार बार मेरे होंठ को काट रही थी।
मेरा एक हाथ उसके गर्दन पर थी और एक कमर पर था। मैं उसके होंठ को ऐसा चूसने लगा कि उसे दर्द होने लगा.. उसने तड़फ कर मुझे हल्का सा धकेल दिया।
मैंने उसकी तरफ देखा तो वो फिर से तुरंत मेरे करीब आकर मेरे होंठों से होंठ मिलाने लगी। मेरा एक हाथ कब उसके मम्मों पर पहुँच गया.. मुझे पता ही नहीं चला। दस मिनट तक मैं उसको बेरहमी से चूसता और चूमता रहा।
तभी उसके घर से फोन आया तो हम दोंनों अलग हुए। उसके होंठ फूल गए थे। फिर हमने एक-दूसरे को बाय बोला और अपने-अपने घर चले आए।
उसकी मम्मी और पापा दोनों एक ही कम्पनी में जॉब करते थे और दोनों ही दस बजे तक ऑफिस चले जाते थे। उसका एक भाई भी था, जो अभी छोटा था और स्कूल जाता था।
दूसरे दिन रिंकी ने मुझे कॉल किया और 11 बजे अपने घर बुलाया। उसके घर पहुँच कर मैंने घन्टी बजाई तो रिंकी ने दरवाजा खोला।
अय हय क्या बताऊँ.. कैसी फंटी माल लग रही थी.. माँ कसम मन तो कर रहा था कि साली को अभी पटक कर चोद दूँ।
उसने साड़ी पहनी हुई थी, वो लाल रंग की साड़ी में कयामत लग रही थी.. मुझसे रहा नहीं गया और झपट कर अन्दर आ गया। घर के अन्दर आते ही मैं उसके होंठ चूमने लगा। मैं उसे लगातार पागलों की तरह होंठ पर होंठ धरे चूसे जा रहा था और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी।
मैं एक हाथ से उसके मम्मों को मसल रहा था और एक हाथ से उसकी उठी हुई गांड को भी मसल रहा था।
वैसे ही एक-दूसरे को चूमते-चाटते हम दोनों उसके कमरे में आ गए। कमरे में आते ही मैंने उसको धकेल कर पलंग के सहारे अड़ा दिया और पीछे से उसकी दोनों चुची को जोर-जोर से मसलने लगा।
मेरा सख्त लंड उसकी गांड को रगड़ रहा था, वो मादक सिसकारियाँ ले रही थी, कामुकता से बार-बार ‘इस्स सीई सईस.. उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करते हुए सिसिया रही थी। मैं उसकी गर्दन पर चूमे जा रहा था।
कुछ मिनट तक ऐसा ही चलता रहा, फ़िर मैंने उसको सीधा किया। उसके ब्लाउज को खोल दिया। वो काली ब्रा पहने हुए थी.. उसकी ब्रा के ऊपर से ही उसके आधे नंगे मम्मों को मुँह लगा कर चूसने लगा। मेरा लौड़ा उसकी बुर पर टिका हुआ था।
जैसे ही मैंने उसकी ब्रा उतारी उसके छोटे-छोटे कबूतर आजाद होकर फुदकने लगे। अगले ही पल मैं एक हाथ से उसकी चुची को पकड़ कर उसकी घुन्डी को मुँह में लेकर चूस रहा था और दूसरे हाथ से उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल रहा था।
उसका हाथ बार-बार मेरे लंड को खोज रहा था।
फ़िर मैंने उसके पेटीकोट को उतार कर पेंटी के ऊपर से ही उसकी बुर को चूमता रहा।
वो कामुक आवाजें निकाल रही थी और कहे जा रही थी- अह.. और जोर-जोर से दबा कर चूसो.. अह.. उसने मेरे सर को इस तरह से अपनी बुर में दबाया कि लगने लगा जैसे मेरा सिर अपनी बुर में ही घुसा लेगी।
कुछ देर ऐसा करने के बाद मैंने उसकी पेंटी उतार फेंकी और उसकी बुर को चाटने लगा। मैं उसकी फूली हुई बुर को चाट रहा था और वो ‘सि..सिस्सिस आह.. सी सिसस आह..’ करके झड़ गई। मैं उसके बुर रस को पी गया।
फ़िर मैंने उसको घुटने के बल बैठा दिया। उसने मेरे पेंट को खोल कर मेरे नागराज को देखा तो एक पल के लिए वो डर गई। पर मेरे कहने पर उसे मेरे लंड को मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मैं अपने पैर के अंगूठे से उसकी बुर को कुरेदता रहा।
वो काफ़ी अच्छी तरह से मेरा लौड़ा चूस रही थी, कभी मुँह से बाहर निकालती.. कभी अन्दर लेती।
मैं उसके मुँह को मस्ती से चोद रहा था। फिर मैंने उसको उठा कर बिस्तर पर लेटा दिया और फ्रिज से माज़ा की बोतल निकाल कर उसकी बुर के ऊपर डाल कर उसकी बुर को चूसने लगा।
ऐसा करते-करते मैंने पूरी बोतल खाली कर दी.. जिससे रिंकी एक बार और झड़ गई।
अब वो बार-बार कहे जा रही थी- अब मत तड़फाओ.. डाल दो फाड़ दो मेरी बुर.. मिटा दो इसकी भूख.. अह.. मैंने उससे कहा- इतनी जल्दी मत करो, अभी तुमको एक बढ़िया खेल सिखाता हूँ।
वो मेरी तरफ हैरान होकर देखने लगी कि नंगी बुर को चोदना भूल कर मैं उसको कौन सा खेल सिखाना चाह रहा हूँ।
मैंने वहाँ उसके पापा की सिगरेट की डिब्बी से एक सिगरेट निकाल कर उसको जला कर मैंने उसकी बुर में फंसा दी और बुर को अन्दर को खींचने को बोला। उसने बुर को अन्दर खींचा तो सिगरेट ने उसी तरह जल कर दिखाया, जैसे मुँह से कश खींचा जाता है। इस तरह उसकी बुर ने पूरी सिगरेट पी ली।
अब तो उसे इसमें इतना मजा आ रहा था कि पूछो मत… लेकिन वो चुदास से बुरी तरह से तड़फने लगी थी।
मैंने भी देरी ना करते हुए अपना लौड़ा उसकी बुर पर रखा और रगड़ने लगा, वो भी मस्ती से लंड के बुर में घुसेड़ने के लिए अपनी गांड को उठाने लगी।
जैसे ही मैंने उसकी रसभरी बुर में लंड धकेला.. उसकी दर्द के मारे गांड फट गई और छटपटाने लगी। अभी मेरा सुपारा ही बुर की फांकों के अन्दर गया था कि वो चिल्लाने लगी, कहने लगी- उई.. माँ.. मर गई.. निकालो इसे.. बहुत दर्द हो रहा है..! मैं कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा और उसके चुचि चुसकता रहा। उसका दर्द कम हुआ.. तो वो अपनी गांड उछालने लगी।
मैंने मौका पाकर दूसरा झटका मारा और पूरा लंड उसकी बुर में पेल दिया। दर्द के कारण उसकी आँख से आंसू निकलने लगे। कुछ देर बाद जब उसको दर्द कम हुआ, वो बुरड़ों को आगे-पीछे करने लगी। फ़िर मैंने भी धीरे-धीरे अपनी चुदाई की स्पीड बढ़ा दी।
अब वो ‘आआह.. उउह.. इस्स्स्स..’ कर रही थी और कह रही थी- और जोर से फ़ाड़ दो मेरी बुर.. मिटा दो इसकी खुजली.. अह..!
मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और उसे हचक कर छोड़ते हुए कहने लगा- ले मादरचोद.. आज तो ऐसा मजा दूँगा.. साली जो तुझे कोई नहीं देगा। कुछ देर की धक्कमपेल में वो झड़ गई। मैंने उसको उठा कर घोड़ी स्टाइल में बिठा कर बिना बोले उसकी गांड में अपना लौड़ा पेल दिया। वो इतनी जोर से चिल्लाई कि पूरी कॉलोनी में आवाज गई होगी.. मेरी गांड फट गई। मैंने जल्दी से उसका मुँह बन्द किया और कहा- चुप रह भैन की लौड़ी, मरवाएगी क्या? वो चुप तो हो गई.. लेकिन मुझे परे धकेल रही थी, पर मैं उसकी को गांड को चोदता रहा।
कुछ देर बाद उसे भी मजा आने लगा। फ़िर मैं कभी उसकी गांड तो कभी बुर चोदता हुआ मजा लेने लगा।
कुछ देर बाद मेरा लंड भी झड़ने ही वाला था कि मैंने उसकी गांड से निकाल कर बुर में घुसा दिया और चोदने लगा। एक मिनट बाद हम दोनों साथ में ही झड़ गए। उसके बाद हम दोनों कुछ देर लेटे रहे और मैं घर चला गया।
इसके बाद मैंने उसे कई बार चोदा। आपको मेरी यह चुदाई की कहानी कैसी लगी, प्लीज़ मेल जरूर करें। [email protected]
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