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दोस्तो, मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ और एक मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करता हूँ। आज मैं आप सभी के सामने अपनी हिंदी सेक्सी स्टोरी के साथ हाजिर हूँ। मैंने अपनी इस सच्ची आपबीती को कई बार लिखने की सोची, पर समय की कमी के कारण मैं लिख न सका, पर आज मुझे समय मिल गया तो मैं अपनी इस रसभरी कहानी को आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ।
यह उस वक्त की घटना है, जब मैं अपनी पढ़ाई के दौर से गुजर रहा था। मेरे इंजीनियरिंग के पहले सेमेस्टर का रिजल्ट आया और मुझे किसी वजह से हॉस्टल छोड़ कर बाहर एक कमरा लेकर रहना पड़ा।
जिन अंकल के घर में मैंने कमरा किराए पर लिया था, वहाँ अंकल-आंटी के साथ उनकी बहू रहती थी। उनका लड़का यानि उस बहू का पति भारत के बाहर कहीं विदेश में रहता था। वो शादी के ठीक बाद ही विदेश चला गया था.. इसका क्या कारण था, उसमें जाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, इसलिए सीधे रसधार पर आते हैं।
अंकल जी और आंटी जी काफ़ी वृद्ध हो चुके थे। मैंने उनसे बात करके उनका फर्स्ट फ्लोर वाला रूम ले लिया।
इस कमरे के साथ बालकनी भी थी। इस फ्लोर पर दो कमरे थे, जिसमें से एक में मैंने रहना शुरू कर दिया था और दूसरा बन्द रहता था। करीबन एक महीने रहने के बाद मेरा अंकल जी और आंटी जी से अच्छा रिश्ता सा हो गया। अंकल और आंटी के साथ अब मेरी बातचीत उनकी बहू के साथ भी शुरू होने लगी थी।
अंकल की बहू का नाम शिल्पी था, उसका फिगर बहुत मस्त था। हालांकि उसकी देह गेहुँआ रंगत लिए हुई थी.. लेकिन शरीर का कसाव बहुत ही मस्त था, ख़ास तौर से उसकी चुची बहुत ही भरी और उठी हुई थी, जो पहली नजर में ही अपनी ओर आकर्षित करती थी। शिल्पी की गांड का इलाका भी बड़ा ही हाहाकारी था। वो अधिकतर साड़ी पहनती थी।
जब कभी मैं अंकल के घर में बैठ कर बातचीत करने जाता और शिल्पी मुझे चाय देने आती। चाय देते समय जब वो झुकती थी तो उसका पल्लू ढलक कर उसकी चुची का मस्त दीदार करा देता था।
मेरी उन सभी लोगों से बात अच्छी तरह से होने लगी थी। अब तो मेरी शिल्पी से भी इतनी बनने लगी थी कि रात को वो अंकल-आंटी को खाना आदि खिला कर मेरे पास ऊपर आ जाती थी।
मेरी उससे बात होती तो वो मुझे अपने बारे में बहुत कुछ बताती रहती थी। उसकी खुली बातों से लगने लगता था कि उसको चुदाई करने का मन है।
एक रात वो बात करने के बाद जब नीचे जा रही थी.. तो अचानक लाइट चली गई। उसने सीढ़ियों से ही मुझे आवाज लगाई कि मुझे कुछ दिख नहीं रहा है।
मैं भी उस घुप्प अँधेरे में धीरे-धीरे उसके पास गया। मेरे पास भी लाइट नहीं थी, सो मैंने उसका हाथ पकड़ा और धीरे-धीरे उतरने लगा।
उसने कहा- मुझे डर लग रहा है। मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर पर रखा और उसे अपनी तरफ को किया और बोला- लो मुझे ठीक से पकड़ लो।
उसकी कमर बहुत ही चिकनी और मुलायम थी। उसने हाथ बढ़ाया तो मैंने उसका हाथ अपनी गर्दन को घेर कर रखवा लिया। अब मेरा जिस्म उसकी चुची से टच होने लगा था।
मैंने बोला- अब डर तो नहीं लग रहा है ना! उसकी एक चुची मेरे सीने से दब रही थी। वो बोली- हाँ अब ठीक है।
उसकी मस्त चुची को फील करके मैं गनगनाए जा रहा था। मुझे अब उसका साथ अच्छा लगने लगा था, इसलिए मैं और धीरे-धीरे एक-एक स्टेप नीचे उतरने लगा। मैं जब सीढ़ी के नीचे पैर रखता तो उसको अपने सीने की तरफ खींच लेता था, जिससे उसकी भरी हुई चुची ऊपर-नीचे होते हुए मेरे शरीर को रगड़ सुख दे रही थी।
मुझे ऐसा लगा कि उसको भी मजा आ रहा है और वो खुद अपनी चुची को मुझसे अधिकाधिक चिपकाती जा रही थी। इस कामुक स्थिति में मैं भी अपने आपको कंट्रोल नहीं कर पा रहा था।
जब मैं नीचे आने वाला ही था.. तभी मैंने बोला- अभी आप जाकर क्या करोगी.. लाइट तो है नहीं.. ऊपर ही चलो, लाइट आ जाएगी तब चली जाना।
मेरी बात सुन कर वो जैसे खुश हो गई और बोली- यस, ये ठीक है.. ऊपर ही चलो। फिर मैंने कहा- क्या मैं आपको उठा लूँ.. इससे हम जल्दी चढ़ जाएंगे। वो हंसी और बोली- तुम मुझे उठा लोगे? मैंने बोला- क्यों नहीं..
मैंने उसकी कमर के नीचे पकड़ कर उसे उठा लिया.. उसका वजन वास्तव में बहुत कम था। अब उसकी पीठ को मैं अपने हाथों से पकड़े कम था, मसल ज्यादा रहा था। यूं ही उसकी जवानी को सहलाता हुआ मैं उसे अपने कमरे में ले जा रहा था। मैं अपना मुँह भी उसकी दोनों चुची से दबा रहा था।
कमरे में आते ही मैंने बाहर की लाइट का बटन कोहनी से ही ऑफ कर दिया, जिससे लाइट आने पर पता नहीं चल सके।
फिर मैंने लात से कमरे का दरवाजा बंद कर दिया, उसे मैं अभी भी उठाए हुए था।
दरवाजा बंद करते समय वो अपनी चुची मेरे मुँह पर और अधिक दबाते हुए बोली- इसे क्यों बंद कर रहे हो? मैंने अपनी ठोड़ी से उसकी चुची को मसलते हुए कहा- आज एक गेम खेलते हैं।
वो कुछ नहीं बोली, बस अपनी चुची पर मेरे स्पर्श का मजा लेती रही।
फिर मैंने उसे उतारा और सबसे पहले कमरे की लाइट बंद कर दी। फिर मैं उसके पास गया और बोला- कुछ दिख रहा है? वो बोली- नहीं..
फिर मैंने अपना हाथ उसकी कमर पर रखते हुए उसे अपनी तरफ खींचा। वो बोली- इस गेम में क्या करना है? मैंने बोला- बड़ा सिंपल गेम है.. मैं तुम्हें कुछ करूँगा.. फिर पूछूँगा और फिर तुम अगर ‘यस’ बोलीं तो मैं आगे कुछ और करूँगा और अगर तुमने ‘नो’ कर दी, तो मैं जीत जाऊँगा और यदि मैं करते-करते हर गया तो तुम जीत जाओगी।
एकदम चूतिया बनाने वाला गेम था, मुझे खुद नहीं मालूम था कि क्या खेल खेलना है, मुझे तो बस उसे गर्म करके चोदना था और वो भी चुदासी थी, उसकी भी कुछ समझ में नहीं आया।
वो प्यार से हंसी और बोली- अच्छा ठीक है.. ये गेम लाइट आने तक के लिए ही है, फिर मैं चली जाऊँगी। मैंने बोला- ठीक है।
मैंने अपनी शर्ट खोली.. फिर उसकी तरफ देखते हुए उसके हाथ बाँध दिए। वो बोली- ये क्यों? मैंने बोला- तुम्हें मुझे टच नहीं करना है जब तक तुम ‘नो’ नहीं बोलतीं, तुम्हारे हाथ नहीं खुलेंगे।
फिर मैंने उसके बंधे हुए हाथ ऊपर करके उसे खड़ा कर दिया। इस वक्त वो दीवार से लगी हुई थी और उसके दोनों हाथ ऊपर थे। वो थोड़ी-थोड़ी हँसती जा रही थी।
मैंने कामुक आवाज में बोला- अब शुरू करें गेम? वो भी चुदासी सी बोली- ठीक है करो। मैंने कहा- ओके रेडी।
मैंने उसकी कमर पर हाथ रखा और नीचे को सरकाने लगा। फिर मैं उसकी कमर को किस करने लगा। पहले तो उसे गुदगुदी सी लगी और वो कुछ मचली, पर फिर उसे अच्छा लगने लगा।
अब मैंने उसका पल्लू नीचे किया और कमर पर किस करते-करते अपना हाथ उसकी दोनों चुची पर ले गया और दबाने लगा। उससे मजा आने लगा और वो आवाज करने लगी ‘आआहह.. हूंम्म्म..’
फिर मैंने उसकी साड़ी को खोल दिया और उसका पेटीकोट भी ढीला कर दिया.. अँधेरे में शायद पेटीकोट नीचे सरक गया। मैं किस करते हुए उसकी कमर से ले कर नीचे जाने लगा। उसे भी समझ में आ रहा था कि गेम के नाम पर क्या हो रहा है और वो भी इसमें अपना पूरा सहयोग दे रही थी।
वो और भी मस्त होने लगी और बोली- चलो इतना मजेदार खेल है.. इसे लेट कर खेलते हैं। मैंने बोला- अभी रुको यार..
फिर मैंने उसके दोनों पैरों को अलग किए और अपना मुँह से उसकी बुर पर धर दिया, वो एकदम से सिहर गई लेकिन उसने मेरे मुँह से अपनी बुर को नहीं हटाया। अब मैं उसकी पेंटी के ऊपर से ही थोड़ी देर तक उसकी बुर को अपने मुँह से रगड़ता रहा। उधर मेरे हाथ अब भी ऊपर उसकी चुची को मसल रहे थे।
जिसकी चुची मसली जा रही हों और उसी वक्त बुर भी रगड़ी जा रही हो.. वो कब तक कंट्रोल कर सकती है।
यही उसके साथ हो रहा था। मैंने उसके बाक़ी के कपड़े भी खोल दिए। वो रुक नहीं सकी और बिस्तर पर आ गई। मैंने भी उसकी चुदास को समझा और उसे बिस्तर पर लेट जाने दिया।
मैं बिस्तर से नीचे खड़ा था, मैंने पूछा- और खेलें? वो मादक स्वर में बोली- यस.. पूरा खेल लो.. मुझे मजा आ रहा है।
अब मैंने उसका ब्लाउज खोला और ब्रा को भी निकाल दिया, उसकी चुची को बाहर खुला छोड़ दिया।
अभी भी उसके हाथ बंधे थे.. इसलिए मैंने उसके ब्लाउज और ब्रा खोल तो दिए.. जिस्म से अलग नहीं किए थे।
मैं उसकी एक चुची को अपने मुँह में ले कर चूसने लगा और उससे पूछा- और आगे खेलें? वो बोली- अह.. मैं यही तो चाहती थी.. और करो ना..! यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं! बस अब क्या था.. मैं उसको किस करने लगा और उसके हाथों को खोल दिया।
उसने अपने हाथ खुलते ही खुद अपने जिस्म से ब्लाउज और ब्रा को निकाल कर दूर फेंक दिया।
इसके बाद उसने मुझे अपने गले से लगा लिया, हम दोनों किस करने लगे।
उसने मेरे लंड पर हाथ फेरा और पेंट खोल दी। मैंने भी भाभी की बुर पर ढक्कन के रूप में फंसी हुई उसकी गीली पेंटी को खींच कर उतार दिया।
अब हम दोनों बेड पर चुदाई की मुद्रा में आने लगे.. मैं उसके ऊपर चढ़ गया।
वो एकदम मस्त हो गई। उसने अपनी बुर पसार दी और मेरा लंड हिला कर जता दिया कि वो अपनी बुर मुझसे चुदवाना चाहती थी।
वो मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ कर अपनी बुर के छेद के पास ले गई और बोली- राजा बजा दो बुर का गेम.. इस बार तो मैं ही जीतूंगी।
फिर मैंने कुछ नहीं सोचा.. और जोर का धक्का दे दिया.. मेरा आधा लंड भाभी की बुर के अन्दर घुसता चला गया। उसे थोड़ा दर्द हुआ.. वो बोली- उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह.. राजा तेरे लंड ने मेरी बुर का छेद फाड़ दिया।
मैंने फिर से धक्का दिया और पूरा लंड भाभी की बुर में डाल दिया। भाभी कराहते हुए बोली- ऊई.. माँ मर गई.. बहुत बड़ा है यार निकाल दो.. मुझसे झिल नहीं रहा है.. अह..
मैंने उसे जोर से पकड़ा और उसके होंठों पर किस करने लगा। कुछ देर धीरे-धीरे करने के बाद उसे अच्छा लगने लगा।
अब मैंने लंड को थोड़ी बाहर निकाला और फिर धक्का दे दिया। इस बार वो ‘आआह.. उउउहह..’ की आवाज करने लगी। फिर मैंने अपना हाथ उसकी दोनों तरफ रखा और भाभी की बुर में लंड को अन्दर-बाहर करने लगा।
उसकी बुर के साथ मैं उसकी चुची को भी चूसने लगा। अब उसको भी चुदाई में मजा आने लगा।
थोड़ी देर तक चोदने के बाद मैंने उसका एक पैर उठा कर मोड़ा और तकिये को उसकी गांड के नीचे रख दिया। इससे भाभी की बुर उठ गई थी और मैं धकापेल चुदाई करने लगा।
उसकी धीमे स्वर में कामुक आवाजें कमरे में गूँजने लगीं- आआहह.. करते रहो.. अच्छा लग रहा है.. जाने कब से नहीं चुदी हूँ.. चोदो राजा.. अह.. मैं तुम्हारे साथ ये गेम रोज खेलूँगी.. अह..
ये सुन-सुन कर मुझे भी मजा आ रहा था। मैं और जोर से धक्का मारने लगा। काफी देर तक भाभी की चुदाई करने के बाद मैंने अपना पूरा पानी भाभी की बुर में डाल दिया।
इस दौरान लाईट आ चुकी थी.. क्योंकि पंखा चलने लगा था। मैंने उठ कर लाइट को ऑन किया.. भाभी पूरी नंगी बिस्तर पर चित पड़ी थी।
जैसे ही लाईट ऑन हुई वो शर्मा कर बोली- लाइट बंद करो यार.. मुझे शर्म आ रही है। मैंने बोला- तुम्हारी मस्त जवानी को देखने तो दो यार। फिर वो इठला कर बोली- देखते क्यों हो.. फिर से चोद दो ना। मैंने बोला- अच्छा.. फिर से लंड लेना है..! बोली- हाँ..
मैंने उसके बालों को पकड़ा और अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया, वो हंसते हुए बड़े प्यार से लंड चूसने लगी।
थोड़ी ही देर में मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया और इस बार मैंने उससे उल्टा करके डॉगी स्टाइल में कर दिया। मैंने अपना लंड पीछे से भाभी की बुर में लगाया और उसको चोदने लगा।
कुछ ही पलों में वो मुझे घुड़सवारी का मजा दे रही थी। मैं उस पर झुक कर, उसके नीचे झूलते मम्मों को पकड़ कर उसको दे-दनादन चोदे जा रहा था।
कुछ देर बाद मैंने उसको दीवार की तरफ मुँह करके उल्टा खड़ा किया और उसकी टांग उठा कर टेबल पर रख कर उसे चोदने लगा। उसकी चुची दीवार से रगड़ रही थीं.. जिससे उसे बहुत मजा आ रहा था।
भाभी बोली- आह.. चोद दो राजा.. मेरी बुर को.. अपने लंड का मजा दे दो.. आआह..
इस तरह रात भर में हम दोनों ने खुल कर चुदाई की.. और सुबह के चार बजते ही वो नीचे चली गई।
उस दिन मैं बेसुध सोता रहा, दोपहर को उठ कर बाहर गया और उस रात को वो फिर ऊपर आ गई। वो मुझे आँख मार कर बोली- आज गेम नहीं खेलोगो क्या राजा?
बस चुदाई का गेम शुरू हो गया।
यह सिलसिला 6 महीने लगातार चला।
दोस्तो, मुझे उम्मीद है कि आप सभी को मेरी ये सेक्स स्टोरी पसंद आई होगी। इस सेक्स स्टोरी पर अपने मेल भेजिएगा।
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