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दिल जिनका मोम सम है, करुणा से जो बनीं है। माँ बेटी बहन पत्नी या क्यों ना प्रेमिका हो।। हम सब के प्रेम एवं सम्मान की है लायक। स्त्रियां हमारी तुमको शत शत नमन हमारे।।
मैं मेरी इस कहानी को मेरी दो युवा फैन प्रिया देसाई और नेहा को सम्पर्पित करना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे लिखा की उन्हें कुछ रफ़ हार्डकोर सेक्स (या साफ़ शब्दों में कहें तो चुदाई) की कहानिया जिसमें कुछ गन्दी भाषा का भी प्रयोग हो; ज्यादा पसंद है।
चुदाई जितनी शारीरिक है उतनी या उससे भी ज्यादा मानसिक क्रिया है यह मेरा अनुभव है। सेक्स भगवान की देन है और चुदाई के प्रति हमारे समाज में हीन भाव का नजरिया पैदा किया गया है यह ठीक नहीं है, यदि उसमें एक दूसरे की सहमति हो और कोई जोर जबरदस्ती या शारीरिक एवं मानसिक हिंसा ना हो।
आज के तनाव भरे युग में समय के अभाव एवं और कई मजबूरियों के कारण चुदाई की क्रिया कठिन होती जा रही है। अक्सर पुरुष अथवा महिलाएं चुदाई की क्रिया में कमजोरियाँ एवं चुदाई के प्रति अभाव से पीड़ित हैं।
ऐसी परिस्थिति में हम कहीं ना कहीं कुछ ऐसी नवीनताएँ खोजते हैं जिससे चुदाई की क्रिया कुछ ज्यादा उत्तेजक बन जाए।
कई स्त्री अथवा पुरुष एक दूसरे के प्रति सम्मान एवं अत्यंत प्रेम होते हुए भी एक दूसरे के प्रति गंदे और असभ्य माने जाने वाले शब्दों का इस्तेमाल करते हैं अथवा अपने साथीदार से करवाते हैं तो उनमें एक अजीब सी उत्तेजना पैदा होती है जो चुदाई की क्रिया में सहायक होती है और चुदाई को और उत्तेजित करती है।
ऐसे हालात में अगर एक दूसरे का अपमान ना करने की भावना से या मानसिक हिंसा नहीं करने की भावना से ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है तो वह वर्ज्य नहीं है, ऐसा मेरा निजी मत है।
मैं इस बात में संपूर्ण विश्वास रखता हूँ की हमारे कुटुंब और समाज में महिलाओँ का स्थान पुरुषों से कई गुना ऊँचा होना चाहिए। महिलाएँ हमारे सम्मान की लायक हैं। इसी लिए कहानियों में उनके प्रति हीन भाव से लिखे गए अपशब्द के इस्तेमाल के मैं खिलाफ हूँ।
पर चूँकि यह माँग एक महिला ने की थी तो जाहिर है की शायद कहीं ना कहीं सही प्रपेक्ष में ऐसे शब्द प्रयोग भी स्वीकार्य नवीनीकरण ही है। यह कहानी तब तक लगभग लिखी जा चुकी थी और उसमें कुछ हार्डकोर चुदाई भी थी। पर उनकी इच्छा पूरी करने के लिए मैंने कहानी में कुछ परिवर्तन किये।
यदि कोई महिला अथवा युवती की भावना ऐसे शब्द प्रयोग से आहत हुई हो तो मैं उनका क्षमा प्रार्थी हूँ। आशा है आपको कहानी असंद आएगी। मैं प्रिया देसाई और नेहा का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ।
यह कहानी सच्चे तथ्यों पर आधारित है और मेरी एक महिला पाठक ने मुझे इसे लिखने को कहा है। यह उनके जीवन में हुई कथा है। उन्होंने अपना नाम उद्घोषित ना करने की मुझे हिदायत दी है। मैं इसे उन्हीं की जुबानी लख रहा हूँ।
18 महीने की करीबी संगत और करीब दो साल एक आई टी कंपनी में साथ में काम करने के बाद में मैं प्रिया और मेरे पति राज ने फैसला किया की हम शादी करेंगे।
शादी के बाद मेरे पति को एक दूसरी कंपनी में अच्छी पोजीशन की नौकरी मिली और मुझे एक दूसरी कंपनी में टीम लीडर की अच्छी तनख्वाह पर नौकरी मिल गयी।
मेरा ऑफिस घर से दूर था। मुझे रोज सुबह चार किलो मीटर मेट्रो स्टेशन तक और शाम को वापस आते हुए चार किलो मीटर घर तक चलना पड़ता था।
हालांकि में ऑटो रिक्शा बगैरह ले सकती थी पर मैं चलना ही पसंद करती थी। मैं अपना बदन नियंत्रण में रखना चाहती थी। मैं जानती थी की शादी के बाद नियमित सम्भोग से मिलते हुए आनंद के कारण अक्सर औरतें मोटी हो जाती हैं।
अगर मैं अद्भुत खूबसूरत होने का दावा ना भी करूँ तो भी यह तो बड़े ही विश्वास के साथ कह सकती हूँ की मैं एक और नजर के काबिल तो थी ही। मेरे सामने से गुजरते हुए कोई भी पुरुष या स्त्री शायद ही ऐसे हों जो मुझे एक बार और घूम कर ना देखते हों।
मेरे पति तो यह कह कर थकते नहीं थे की मैं बड़े ही सुन्दर आकार वाली और अति वाञ्छनीय थी। वह जब भी मौक़ा मिला तो हमेशा मेरे सुंदर वक्ष स्थल, सुआकार गाँड़ और बिच में रेखांकित पतली कमर की तारीफ़ करना चूकते न थे।
मैं करीब करीब मेरे पति के जितनी ही लम्बी थी। मेरा बदन कसा हुआ पर एक किलो भी कहीं ज्यादा वजन नहीं। मेरा नाप 36-29-36 ही रहा होगा। शादी के चार पांच सालों के बाद भी ऐसा फिगर होना कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी।
मेरे पति तो मेरे रसीले होँठ, कटीली भौंहें, और लम्बी गर्दन पर अपने होँठ फिराने में अति आनंद का अनुभव करते थे। मुझे भी उनकी यह हरकत एकदम उत्तेजित कर देती थी और फिर हम सम्भोग के पूर्व दूसरे सोपानों को पार करते करते आखिर में जाकर उन्माद पूर्ण सम्भोग या देसी शब्दों में कहें तो पागलों की तरह चुदाई करते रहते थे।
चोदते समय हर वक्त मेरे फूले हुई निप्पलोँ से वह खेलते ही रहते। उन्हें मेरे गोल गुम्बज के सामान भरे हुए पर कड़क करारे स्तनों को मलना इतना भाता था की चुम्बन की शुरुआत से लेकर पुरे झड़ जाने तक वह उनको छोड़ते ही नहीं थे।
जैसे ही वह मुझे थोड़ा सा भी छेड़ देते की मेरी निप्पलेँ एकदम फूल जातीं। यह देख कर वह हमेशा हैरान रहते। पता नहीं पर थोड़ा सा भी उत्तेजित होने पर मैं अपनी निप्पलोँ के फूलने पर और मेरी चूत में से पानी झडने पर नियत्रण नहीं कर पाती थी।
इसके कारण मुझे हमेशा डर लगता की कहीं मेरे पति मुझे कोई ऐसी वैसी जगह पर गरम ना करे, ताकि मेरे कपड़े कहीं मेरी चूत में से स्राव हो रहे स्त्री रस के कारण भीग ना जाय और सब मुझे शक भरी नज़रों से देखने ना लगे।
हम पति पत्नी उच्छृंखल चुदाइ के इतने शौक़ीन थे की घर में हमने कोई भी ऐसा आसन नहीं छोड़ा होगा और ऐसी कोई भी जगह नहीं छोड़ी होगी या जहां हमने चुदाई ना की हो।
मुझे चोदते हुए मेरे पति हमेशा अपना मुंह मेरे घने बालों में और अपने हाथ मेरी छाती को जकड़े हुए रखते थे। मेरे पति मुझे हमेशा गरम और उत्तेजित रखते थे। ना उनका मन कभी चुदाई से भरता था और ना ही मेरा।
पर एक सा वक्त हमेशा नहीं रहता। मेरे पति को नयी जॉब में काफी देश में और विदेश में यात्रा करनी पड़ती थी। अब उनको मुझसे दूर रहना पड़ रहा था। उन रातों में अकेले रहना हम दोनों के लिए और ख़ास कर मेरे लिए बड़ा भारी साबित हो रहा था।
हालाँकि वह देर रात को मुझे फ़ोन करते और हम घंटों तक गन्दी गन्दी बातें करते रहते और फ़ोन पर ही चुदाई करने का आनंद लेने की कोशिश करते।
कुछ देर ऐसा चलता रहा। पर काल्पनिकता की भी एक सीमा है। एक हद तक तो वह आनंद देती है पर जो आनंद नंगी स्त्री योनि को पुरुष की योनि से या साफ़ साफ़ कहूं तो एक औरत की चूत को मर्द के लण्ड के साथ रगड़ने में मिलता है वह आनंद की कमी मैं महसूस कर रही थी।
मैं एक अच्छी सुशिक्षित महिला हूँ और काफी हिम्मत वाली भी हूँ पर सेक्स के मामले में मैं थोड़ी कमजोर हूँ। कमजोर ऐसे की शारीरिक भूख की पूरी तरह सही आपूर्ति नहीं होने के कारण खाली समय में मेरा दिमाग सेक्स के बारे में ही सोचता रहता था।
जब कोई मेरे करीब का पुरुष यदि सेक्स के बारे में बात करने लगे तो मैं आसानी से उत्तेजित हो जाती थी। जब मैं कामुकता के कारण उत्तेजित ही जाती थी तो जैसा की मैंने बताया, मेरी निप्पलेँ फूल जाती थीं और मेरी चूत से मेरा स्त्री रस रिसने लगता था।
मैं किशोरावस्था से ही बड़ी गरम लड़की थी। जब कभी कोई भी कामुक परिस्थिति होती थी तो अक्सर मैं हिप्नोटाइज़ सी हो जाती थी। मुझे समझ नहीं आता था की मैं क्या करूँ।
शायद इसका कारण मेरी बचपन की परवरिश थी। मुझे मेरे चाचा के साथ रहना पड़ा था और उन्होंने बचपन में मेरा फायदा उठाया था। क्यूंकि हमारे गाँव में स्कूल नहीं था इस लिए मुझे मेरे पिताजी ने मेरी पढ़ाई के लिए चाचा के पास रखा था।
मेरी एक और परेशानी भी थी। मुझे बचपन से ही अँधेरे से बहुत डर लगता था। हो सकता है की शायद मेरी माँ या पिता ने कभी एक दो बार मुझे अँधेरी कोठरी में बंद कर दिया होगा। मुझे वजह का पता नहीं पर अन्धेरा होते ही मैं घबड़ा जाती थी।
मैं कभी भी रात को कमरे में अकेले में अँधेरे में सोती नहीं थी। जब भी मेरे पति होते तो मैं अँधेरे में पूरी रात उनसे लिपट कर ही सो जाती थी। उनको मुझसे ज़रा भी अलग नहीं होने देती थी।
मुझे बाद में पता चला की यह एक मानसिक बिमारी है जो अंग्रेजी में “Nyctophobia” जैसे नाम से जानी जाती है। मैं यह सब आपको इस लिए बता रही हूँ की इस कहानी का मेरी इन मानसिकताओं से गहरा वास्ता है।
पढ़ते रहिये, क्योकि यह कहानी अभी जारी रहेगी!
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