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मेरी चुदाई की कहानी का अगला एपिसोड आपके लिए पेश है, पढ़िए और मजे लीजिये..
रंजन ने झड़ने के बाद बहुत सारा पानी मेरे पेटीकोट पर गिरा कर गीला कर दिया था. मैं वो गीला पेटीकोट नहीं पहन सकती थी.
मेरी दुविधा देख रंजन ने सुझाव दिया कि हम वहा धुप में पेटीकोट सूखा सकते हैं, थोड़ी देर में सुख जायेगा. पर इसके लिए मुझे भी झाड़ियों के पीछे से निकल धुप में बैठना पड़ेगा.
रंजन ने बोला कि पेटीकोट ही निकाल देते हैं और मेरी साड़ी की पटली को पेटीकोट से निकाल कर पूरी साड़ी पेटीकोट से बाहर कर दी.
मैं उसको मना ही करती रह गयी और उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल कर मेरी टांगो से पेटीकोट पूरा बाहर निकाल दिया और झाड़ियों से थोड़ा आगे धूप में फैला दिया सूखने के लिए.
अब मैं सिर्फ एक ब्लाउज में बैठी थी. मेरे कमर और उस से नीचे का पूरा नंगा गोरा बदन उसके सामने था. वो मेरे जिस्म को घूरने लगा और मैं शर्माने लगी.
मैं अशोक को देखने के लिए झाड़ियों के बीच से देखने लगी. वो अभी भी हमारा इंतज़ार कर रहा था. तभी रंजन ने पीछे से मेरे ब्लाउज को बंधी दोनों गाँठ खोल दी. दो सेकंड में मेरा ब्लाउज ढीला हो गया.
रंजन की तरफ मुड़ते ही मैं संभल पाती उससे पहले ही उसने मेरा ब्लाउज भी मेरे शरीर से निकाल कर मुझे पूरी नंगी कर दिया.
उसने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाए और चूसने लगा. मैं वैसे भी आधी अधूरी बैठी थी तो उसके चूसने से मैं फिर मदहोश होने लगी. साथ ही डर भी लग रहा था कि अशोक क्या सोचेगा. मैंने अपने आप को छुड़ाया फिर पलट कर झाड़ियों के पत्तो के बीच से अशोक को देखा.
अशोक मुझे कपडे पहने हुए छोड़ कर गया था, वो आकर अगर मुझे पूरी नंगी देखेगा तो क्या होगा?
मैंने देखा अशोक झाड़ियों की तरफ चलते हुए आना शुरू हो गया था. मैंने रंजन को बताया. उसने मुझे कहा कि मैं अशोक को यहाँ से जाने के लिए बोल दूँ और उसको कहु कि हम बाद में घर आ जायेंगे. उसके सामने चुदवाते हुए पकड़े जाने से बेहतर यही था.
मैं उठ कर खड़ी हो गयी, झाड़ के पीछे खड़े होकर मैंने अशोक को रोका. मेरा सिर्फ सर और कंधे का थोड़ा हिस्सा ही झाड़ के ऊपर था.
मैंने अशोक को वहा से जाने को बोल दिया कि मैं और रंजन बाद में आ जायेंगे. अशोक वही रुक गया और मुझे लाचारी से देखने लगा कि मैं कैसे रंजन के साथ फंस गयी हूँ.
वो वही खड़ा होकर कुछ सोच रहा था कि रंजन ने मेरा हाथ पकड़ नीचे बैठाने की कोशिश की, मैं थोड़ा झुक सी गयी और उसका हाथ छुड़ा कर फिर खड़ी हो गई.
अशोक ने इशारे से मेरे पास आकर मदद की पेशकश की, पर मैं वहा कोई बखेड़ा नहीं चाहती थी. अशोक को मैंने इशारे से बोल दिया कि मैं संभाल लुंगी और उसको जाने के लिए बोला. अशोक उलटे कदम फिर सीढ़ियों की तरफ जाकर नीचे उतरने लगा.
रंजन ने मेरा हाथ पकड़ कर फिर मुझे खिंच नीचे बैठा दिया. पेटीकोट सूखने में वैसे भी कुछ मिनट तो लगते तब तक नंगे बैठे मैं क्या करती.
मैंने रंजन को देखा वो मेरे नंगे बदन को अभी भी घूर रहा था और लार टपका रहा था. उसने मेरे पाँव चौड़े कर दिए और अपना मुँह मेरी चूत पर रख चाटना शुरू कर दिया.
उसकी जबान मेरी चूत की दरार में रगड़ खाने लगी. अपने शरीर की अधूरी पड़ी जरुरत पूरी करने के लिए मुझे रंजन को एक बार फिर से तैयार करना था.
रंजन अब नीचे घास पर लेट गया और मैंने उसकी पैंट को अंडरवियर सहित उतार दिया और उसका नरम पड़ा लंड अपने हाथ से पकड़ खींचने लगी. दूसरे हाथ से उसके लंड की थेलियो पर हाथ फेर सहलाने लगी. उसकी सिसकिया निकलने लगी.
कुछ मिनट में ही उसका लंड फिर से कड़क होने लगा था. जब मुझे लगा कि ये मेरे अंदर जाने जितना काबिल हो गया तो मैं उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गयी.
मैंने उसका लंड अपने हाथ में लिया और अपनी चूत में घुसा दिया. मैं अब वही बैठे बैठे उछलते हुए चुदवाने लगी.
रंजन थोड़ी देर पहले ही झड़ गया था तो उसकी तरफ से ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं मिल रही थी. जो भी करना था मुझे ही करना था. वो आराम से लेटे लेटे मेरी चूंचियो को दबा कर खेल रहा था. जब कि मैं सारी मेहनत कर रही थी कि अपना भी काम पूरा कर पाऊ.
मेरा आधा काम तो पहले रंजन के साथ हो ही चूका था तो मुझे ज्यादा समय नहीं लगा और मेरा पानी निकलना शुरू हो गया था.
मैं अब आगे झुक अपना सीना रंजन के सीने से लगा अपनी गांड को ऊपर नीचे धक्के मारते हुए अपने चरम की तरफ बढ़ने लगी.
मेरी सिसकिया अब बढ़ने लगी थी तो रंजन को भी मजा आने लगा, और वो भी नीचे से अपनी गांड पटकते हुए झटके मारने लगा.
मेरा मजा दुगुना होने लगा. ओह्ह्ह्ह येस्स्स्स ओह्ह्ह्ह ह्ह्ह्हह आह्ह आह्ह आह्ह ऊऊऊऊउउह ऊऊउह करते हुए मैं झड़ गयी.
थोड़ी देर मैं उसके ऊपर ही पड़ी रही, पर वो अब भी मुझे झटके मार रहा था. पर मुझ पर अब इतना असर नहीं हो रहा था.
मैं उसके ऊपर से हटी, मुड़ते वक़्त नीचे पहाड़ी की उतार में कोई नीला साया हिलता हुआ पाया. अशोक ने भी नीला शर्ट पहना था, क्या वो छुप कर हमें देख रहा था!
मैं हटी ही थी कि रंजन ने मुझे फिर से पकड़ लिया, शायद अब तक उसका दूसरी बार चोदने का मूड बन गया था. मैं दोनों हाथों और घुटनो के बल डॉगी की तरह बैठी थी.
वो मेरे पीछे आया और कूल्हों को पकड़ अपना लंड फिर मेरी चूत में डाल चोदने लगा. मेरे पास तो नैपकिन भी दो चार ही बचे थे पर पता था कि रंजन थोड़ी देर पहले ही झड़ा था तो अभी उतना पानी नहीं निकलेगा.
पर मैं ये भूल गयी कि एक बार झड़ने के बाद मर्द का लगातार दूसरी बार झड़ना थोड़ा मुश्किल होता हैं. वो सही साबित हुआ. रंजन चोदते चोदते थक गया पर झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. मेरी चूत उसके लंड की रगड़ को सहते सहते घायल हुए जा रही थी.
इन सब के बीच रह रह के मेरी नजर पहाड़ी के उस तरफ जा रही थी जहा मुझे शक था कि अशोक छुप कर देख रहा हैं. मुझे वो नजर भी आया पर हम दोनों एक दूसरे की कोई सहायता नहीं कर सकते थे.
रंजन का होता हुआ ना देख मुझे ही कोई उपाय करना था. जैसे ही वो आगे की तरफ धक्का मारता मैं भी ठीक उसी समय अपने शरीर को पीछे की तरफ धक्का मारती जिससे झटके और प्रभावी और गहरे हो गए.
मर्दो को जल्दी झड़ाने का तरीका हैं उनको उत्तेजित बातें बोलो, तो मैंने भी वही किया. मैंने अब रंजन का नाम लेकर उसको जोर से चोदने को बोलने लगी और उसका उत्साह वर्धन करने लगी.
मैं: “कम ऑन रंजन, चोद दो मुझे, जोर से चोद दो. हां, ये वाला आह्ह आह्ह और जोर से मारो, आज तो तुम मेरी चूत फाड़ दो हां बेबी ये वाला. कम ऑन रंजन मिटाओ मेरी प्यास, मेरी प्यास मिटाओगे ना अह्ह्ह्हह्ह?”
रंजन: “हां, मैं मिटाऊंगा प्यास. ये ले, ये ले साली, और जोर से ले.”
मैं: “ओह्ह्ह्ह येस्स्स्स ओह्ह्ह्हह जोर से, चोद दे मुझे आअअअ अह्ह्ह्हह.”
रंजन: “ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्हह अह्ह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह्ह, ओ प्रतिमा, ये ले, ये ले मेरी जान, ये वाला ले जोर से, आह्ह्ह्ह आअहह्ह्ह.”
और रंजन एक बार फिर मेरी चूत में झड़ गया.
मैंने जल्दी से उसको अपने से दूर हटाया, और अपना सुख चूका पेटीकोट उठा कर पहन लिया. फिर पैंटी पांवो से डालकर चढ़ा ली.
तब तक रंजन ने भी अपनी पैंट पहन ली. तभी कुछ लोगो की आवाजे आयी. शायद जो लोग पहले ऊपर चढ़ कर गए थे वो वापिस उतर रहे थे.
मैं तुरंत झाड़ियों के पीछे बैठ गयी, बाल बाल बचे, थोड़ी देर पहले आते तो हमारी आवाजे सुन सकते थे.
रंजन ने मेरे ऊपर से नंगे शरीर का भी फायदा उठाया, और मेरे मम्मे चूसने लगा. मैंने पहले अपना ब्लाउज पहनने में ही भलाई समझी.
बैठे बैठे मैंने ब्लाउज पहन लिया, उसने मेरी ब्लाउज की डोरिया बांधने में मदद करने के बहाने मेरी पीठ पर अपना हाथ लगा थोड़े मजे भी लेता रहा.
वो लोग अब जा चुके थे, तो मैं अब खड़ी हो साडी पहनने लगी. इस बीच रंजन मुझे घूरता रहा और रह रह कर कभी मेरी कमर और कभी मेरी जांघो को छू छेड़ता रहा.
कपडे पहनने के बाद हम लोग सीढ़ियों से उतर नीचे आये. वहा अशोक गाड़ी के पास खड़ा हमारा ही इंतज़ार कर रहा था.
रंजन को लगा था कि अशोक चला गया होगा, पर मुझे तो पता ही था वो छुप छुप कर हमें ताड़ रहा था. हम लोग बिना बात किये गाड़ी में बैठ गए.
अगर आप मेरी चुदाई की कहानी पहली बार पढ़ रहे है, तो आपको मेरी लिखी पिछली चुदाई की कहानियां जरुर पढनी चाहिए!
रास्ते में रंजन ने बताया कि बाजार होते हुए चलते हैं ताकि बाकि की खरीददारी भी कर ली जाये. वहा उसने हमारे मना करने के बावजूद भी मेरे लिए भी एक दुल्हन की तरह वेश दिलवाया. हम लोग दोपहर में घर लौट आये.
अशोक खुश था कि रंजन को एक बार करना था वो कर चूका और रंजन खुश था कि जैसा उसने मुझे चोदने की सोची उससे कही ज्यादा ही मिला. सबसे ज्यादा खुश मैं थी कि मेरे पिछले कुछ सप्ताह के डर का समाधान हो गया था.
हम लोग दोपहर में रंजन की शॉपिंग का सामान चेक कर रहे थे, और उसके बाद रंजन ने एक और धमाका कर दिया. हम समझ रहे थे कि उसकी ट्रैन आज शाम की हैं पर उसने बताया कि ट्रैन अगले दिन की हैं.
मैं और अशोक उसकी मंशा समझ चुके थे, पर हमे ये नहीं पता था कि उसको कैसे रोके. अशोक से ज्यादा तो मैं घबराई हुई थी. रंजन से मेरा काम हो चूका था और उसकी कोई जरुरत नहीं थी.
अशोक ने रंजन से साफ़ साफ़ पूछ लिया कि वो चाहता क्या हैं. रंजन ने जो बोला वो तो बिलकुल भी गवारा नहीं था. वो अपनी मंगेतर को छोड़ कर मुझसे शादी करना चाहता था. हम पति पत्नी तो पूरा हिल गए. ये मामला तो हाथ से निकल रहा था. रायता पूरा फैल चूका था.
अशोक ने उसको समाज का और रिश्तो का डर दिखाया, माँ का वास्ता दिया और बहुत समझा बुझा कर उसको शांत किया. उसको ये यकीन दिला दिया कि उसकी एक बार शादी हो जाएगी तो वो अपनी बीवी को बिलकुल मेरी तरह ही महसूस कर पायेगा. बहुत समझाइश के बाद उसके दिमाग में ये बात बैठ गयी कि ये उसका आकर्षण मात्र हैं.
उसने अपनी ज़िद छोड़ी और हम दोनों ने चैन की सांस ली. अब रंजन ने अपना दूसरा पासा फेंका.
रंजन: “मैं शादी किसी से भी करू, पर अपनी पहली सुहागरात मैं प्रतिमा के साथ ही मनाना चाहता हूँ.”
हम दोनों अवाक रह गए, वो क्या कहना चाह रहा हैं.
अशोक: “तुम दोपहर में ही सब कुछ कर चुके हो, फिर ये सुहागरात क्या हैं?”
रंजन: “मेरी शादी के बाद पहली रात को मेरे बिस्तर पर प्रतिमा होनी चाहिए.”
अशोक: “तुम्हारी बीवी का क्या होगा, उसको पता नहीं चल जाएगा, तुम सब बर्बाद कर रहे हो.”
रंजन: “तो फिर मैं क्या करू? एक काम करो, अगले चौबीस घंटो के लिए प्रतिमा को मेरी बीवी बना दो. मैं अपनी शादी से पहले एक बार प्रतिमा के साथ सुहागरात मनाऊंगा और उसको अपनी बीवी बनाने का सपना पूरा करूंगा.”
अशोक: “तुमने वादा किया था कि सिर्फ एक बार करोगे. वो हो चूका हैं, तो दूसरे का सवाल ही नहीं पैदा होता हैं.”
रंजन: “मैं प्रतिमा से शादी करना चाहता हूँ, वो तो तुम करने नहीं दे रहे, कम से कम एक दिन के लिए मेरी बीवी तो बना दो. मुझे बस एक बार सुहागरात मनाने दो. तुम चाहो तो सिक्योरिटी के लिए तुम भी सुहागरात में मुझे ज्वाइन कर सकते हो.”
ये सुन अशोक की आँखें चमक उठी. उसकी डायरी के हिसाब से मुझे किसी से चुदता हुआ देखना तो उसका सपना था ही, हो सकता हैं मेरे साथ थ्रीसम का भी सपना देख रखा हो उसने.
मैंने उन दोनों को मना कर दिया, कि मैं कोई इस्तेमाल की चीज नहीं हूँ. एक को झेलना ही इतना मुश्किल होता हैं, तो फिर दो को एक साथ झेलना नामुमकिन सा हैं. अशोक मुझे समझाने के लिए बेडरूम में ले आया.
अशोक: “देखो, पहली चीज हमारे पास कोई विकल्प नहीं हैं. रंजन का भरोसा नहीं, मना करने पर वो क्या करेगा.”
मैं: “अपने बच्चे के लालच में हमने जब रंजन को फंसाया था वो गलत था, पर अब जो कर रहे हैं वो भी तो गलत हैं. एक गलती को छिपाने के लिए हम और गलती कर रहे हैं.”
अशोक: “मुझे पता हैं, पर तुम्हारे पास और कोई उपाय हैं? जैसे तैसे इसकी शादी हो जाने दो सब भूल जायेगा. एक दिन और सहन कर लो. ठीक हैं?”
मैं: “कुछ ठीक नहीं हैं.”
अशोक: “ये समझ कर कर लो कि हम दूसरे बच्चे की प्लानिंग कर रहे हैं. पहले के लिए भी तो किया ही था न.”
मैं: “तो तुम्हे यह भी याद होगा कि तुम्हारे दोनों ऑफिस वाले कैसे मुझ पर एक साथ टूट पड़े थे.”
अशोक: “पर अभी यहाँ एक ही हैं. मैं सिर्फ दर्शक बना रहूँगा.”
मुझे भी पता था कोई दूसरा उपाय तो हैं नहीं तो हां बोलना पड़ा.
आज रात को ही हमे सुहागरात मनानी थी. दोपहर में ही रंजन ने मुझे दुल्हन वाला वेश उपहार में दिया था वो मुझे पहनना था. दोपहर में ख़रीदे गए कपड़ो में से ही वो दोनों कुछ पहनने वाले थे.
रंजन बाजार से जाकर ढेर सारे फूल ले आया था सेज सजाने के लिए. रंजन और अशोक बेडरूम में बिस्तर को फूलो से सजाने लगे.
मैं बाहर बैठी अपनी दूसरी सुहाग रात के बारे में आश्चर्य से सोच रही थी. शाम को वो दोनों मेरे बच्चे के कमरे में तैयार होने चले गए और मैं बैडरूम में तैयार होने गयी.
बैडरूम में सौंधी सौंधी महक बिखरी हुई थी. पूरा बिस्तर असली सुहागरात की तरह सजा दिया गया था. बिस्तर के चारो और फूलो की मालाएं लटकी थी और बिस्तर पर गुलाब की पंखुडिया बिखरी थी. वहा का दृश्य देख मैं मूर्छित हो रही थी. मैंने अपनी खुद की सुहागरात भी इस तरह नहीं मनाई थी.
मैंने वो दुल्हन जैसे कपडे पहन लिए. लाल रंग का लहंगा, उस पर खुले गले और पीठ की चौली डोरी से बंधी थी. ऊपर से एक साड़ी सर पर ओढ़ ली. जो भी गहने थे वो पहन लिए. आईने में देखा तो एकदम दुल्हन की तरह मैं तैयार थी. सिर्फ दुल्हन का मेकअप बाकी था.
फिर मैंने दुल्हन की ही तरह मेकअप भी कर लिया. भौंहो के ऊपर लाल सफ़ेद बिन्दुओ की रेखाएं. लाल कपड़ो से मिलती लाल बिंदी और लिपिस्टिक.
मेरी इस दूसरी सुहागरात में क्या क्या होगा यह तो अगले एपिसोड में ही पता चल पायेगा. तब तक मेरी चुदाई की कहानी आपको कैसी लगी? लाइक और कमेंट करके बताइए!
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