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अब तक आपने पढ़ा.. हर्षा भाभी के संग पहली बार मेरे सेक्स सम्बन्ध बनने जा रहे थे। अब आगे..
भाभी ने इसके बाद मुझे अपने ऊपर लेटा लिया और मेरा लंड बड़ी अदा से पकड़ कर अपनी चूत पर रखा और मुझे इशारा किया, तो मैंने धक्का देते हुए लंड को उसकी चूत में अन्दर पेल दिया। हर्षा भाभी चिल्ला पड़ी- हईईईई उम्म्ह… अहह… हय… याह… ह्म्म्म.. भाभी की चूत चूंकि गीली थी.. लंड सट से सरकता हुआ चूत में घुसता हुआ अन्दर चला गया।
एक-दो पल में ही लंड ने चूत में अपनी जगह बना ली थी और भाभी अब मजा लेती हुई लंड को खाने लगी थी।
हर्षा भाभी ने अपनी गांड उठाते हुए कहा- आह्ह.. आई लव यू.. और चोदो.. मैं आज पूरी तुम्हारी बन जाना चाहती हूँ नील.. और चोदो आआईईई.. हममम स्शह्ह्ह्ह.. मैं- मैं भी तुम्हें ऐसे ही चोदते रहना चाहता हूँ मेरी जान..
फिर कुछ देर की धकापेल चुदाई के बाद वह मेरे ऊपर आ गई और बड़े चाव से अपने कूल्हे हिलाने लगी। मैं भी उसकी गांड पर चपाट मारे जा रहा था और होंठों को चूसे जा रहा था।
फिर उसने कूल्हों के उछालने की स्पीड बढ़ा दी और मेरे बालों को खींचने लगी.. साथ ही वो जोरों से सिस्कारियां भी भरने लगी।
ये सब उसने एकाध पल ही किया होगा कि वो एकदम से ढेर हो गई। मैं भी अब झड़ने वाला था। मैं थोड़ी देर उसके कूल्हे पकड़ कर जोरों से धक्के देने लगा.. फिर मैं भी भाभी की चूत में ही ढेर हो गया। काफी देर तक चुदाई चली.. बहुत मजा आया।
थोड़ी देर हम ऐसे ही पड़े रहे.. फिर उठे और कपड़े पहन कर मैं अपने घर आ गया।
इसके बाद अब जब भी मुझे मौका मिलता.. भाभी और मेरी खूब चुदाई होती। कभी-कभी वह अपनी सास से सहेली के घर जाने का बहाना बना कर मेरे रूम पर आ जाती और कभी और कहीं जाकर चुदाई होती.. इस तरह हम दोनों की अलग-अलग जगह पर चुदाई होने लगी।
एक बार मैं उसके लिए साड़ी ले कर गया, ये मैंने चुदाई के बाद उसको साड़ी गिफ्ट में दी।
उस वक्त उसने कहा- उसके पति जो साड़ी खरीद कर लाते हैं.. वह मुझे ज्यादा पसंद नहीं आती, पर जो यह तुम लाए हो.. वह बहुत बढ़िया है। ‘लव यू जान..’ हर्षा भाभी- आई लव यू नील.. पर अगर हम कभी पकड़े गए.. तो जानते हो, मेरे पति मुझे घर से निकाल देंगे!
इस बात को कह कर वो चिंता करने लगी। मैं चुप बना रहा।
हर्षा भाभी- अगर उसे पता चल गया और ऐसा हो गया.. तब क्या तुम मुझे अपनाओगे.. मुझसे शादी करोगे.. बोलो?
मैं उसके सवाल पर गंभीर हो गया। मैं मन से हर्षा भाभी को चोदना तो चाहता था.. पर हर्षा भाभी को बीवी बनाना नहीं चाहता था। मतलब मैं ऐसी औरत से कैसे रिश्ता बना सकता था, जो अपने पति के अलावा किसी और से भी सबंध रखे।
मैं कन्फ्यूज्ड था कि आज तक भाभी के साथ खूब मजा लिया, तब तक ठीक था और जब ऐसे हालात आए तो भाग रहा हूँ?
पर यह सच था, मैं हर्षा भाभी के सवाल पर ये नहीं कहना चाहता था कि अगर ऐसा होगा तो मैं तुमसे शादी करूँगा। मैं उसे गले लगा कर बोला- उसे नहीं पता चलेगा.. हम नहीं पकड़े जाएंगे। तब हर्षा भाभी को भी मेरी थोड़ी बात गलत लगी, वो बोली- इस जवाब का मतलब क्या है?
मैंने कुछ नहीं कहा और बस उसे चूमने लगा। इस बात पर और कुछ नहीं हुआ और हमारा जिस्मानी सम्बन्ध बस ऐसे ही चलता रहा। फिर एक दिन मैंने फोन किया- मैं आ रहा हूँ। हर्षा भाभी ने सिर्फ ‘हम्म..’ बोला.. और फोन रख दिया।
मैं भाभी के यहाँ जाने लगा तो कुछ किताबें अंश के लिए भी लेते गया। जब मैंने दरवाजा खटखटाया तो उसके पति ने खोला।
उसके पति का नाम करन था। करन- बोलो क्क्क्या क्काम है?
तब पता चला उसका पति थोड़ा हकलाता था.. इसी लिए हर्षा भाभी मेरे बोलने के अंदाज़ पे फिदा थी। मैं- कुछ नहीं.. वह अंश को किताबें देने आया था। करन चिल्ला के बोला- अंश को किताब देके हहर्षा क्की ल्लेने आया था? यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
अन्दर हॉल में हर्षा भाभी मुँह नीचे करके खड़ी थी, मैं सब समझ गया।
करन हकलाते हुए कहने लगा- तुझे क्या लगता है.. म्मुझे क्कुछ नहीं पता च्चलेगा, साले मादरचोद.. भ्भेनचोद..
फिर जो मुझे थप्पड़ पर थप्पड़ पड़ने लगे तो मैं वहाँ से सरपट भागा.. पर करन मेरे पीछे दौड़ते हुए मुझे मार रहा था। मैं किसी तरह वहाँ से निकल आया और अपने रूम पर आ गया। उससे बचकर आते हुए मैंने उसके मुँह से इतना सुना था कि साले तुझे क्या लगता है.. मैं तुझे छोडूंगा नहीं..
फिर दूसरे दिन दोपहर को मेरे कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई, मैंने देखा तो हर्षा भाभी थी।
मेरे रूम खोलते ही वह अन्दर आई, दरवाजा बंद करके बोली- जितनी जल्दी हो सके.. तुम यहाँ से कहीं और चले जाओ, इस एरिया से निकल जाओ क्योंकि मेरे पति ने तुमसे पूरा बदला लेने का सोच रखा है। वह सिर्फ दिखते शांत हैं, पर मेरे ससुराल वाले बड़े पहचान वाले हैं तुम्हारे साथ कुछ भी अहित हो सकता है।
भाभी ने मुझसे इतना कहा और चली गई। वह आई और चली भी गई.. मैं कुछ बोल भी नहीं पाया।
अब इस कहानी को हर्षा भाभी यानि स्त्री के माध्यम से उधर से शुरू करता हूँ जब मेरे द्वारा साड़ी गिफ्ट देने के बाद से घटनाक्रम शुरू हुआ था। हर्षा भाभी की कलम से सुनिए।
एक दिन मेरे पति करन अलमारी में अपनी कोई चीज़ रख रहे थे.. तब नील की दी हुई साड़ी पर उनका ध्यान पड़ा। करन- यह तुमने कब ली? मैं- जब सहेली के यहाँ गई थी.. तब वहाँ एक बेचने वाला आया था। करन- कौन सी सहेली? मैं- रीना!
यह सवाल पूछते समय मुझे करन के चेहरे पर शक की लकीरें दिखाई दीं।
दूसरे दिन जब वह काम से लौटे तो आते ही उन्होंने अंश को पैसे दिए और बोले- जाओ दादी के साथ घूम कर आओ और इस पैसे से जो खिलौना वगैरह खरीदना हो.. खरीद लेना।
तब मुझे कुछ दाल में काला लगा कि करन क्यों अंश और सासू माँ को बाहर भेज रहे हैं, पर वह तो मुझे उन लोगों के जाने के बाद पता चलने ही वाला था।
उसके जाते ही करन ने दरवाजा बंद किया और मेरे पास आकर इतना जोर से थप्पड़ जड़ दिया कि थोड़ी देर तक मुझे अपने कानों में सिर्फ ‘त्न्न्नन्न..’ ही सुनाई दे रही थी.. मेरी आंख से आंसू निकल आए थे। करन चिल्ला के बोले- क्या रंडी हो तुम? मैं समझ गई.. मैंने सिर्फ सर हिला कर ‘ना’ बोली।
वहीं बाजू की खिड़की के पास झाड़ू पड़ी थी.. वो उसे उठा कर लाए। फिर तो जैसे 3 इडियट्स फिल्म में आमिर खान को बोम्मन ईरानी ने छाते से हाथ पर मारा था, वैसे ही मुझे करन ने जोरों से झाड़ू से मारा। मैं कुछ नहीं बोली सहमी सी रही।
इसके बाद उस रात को खाना चुपचाप हुआ, सुबह अंश की छुटी थी तो करन ने सासू माँ और अंश को किसी रिश्तेदार के घर भेज दिया। उन लोगों के जाते ही करन ने मुझसे लड़ाई शुरू कर दी।
करन- ल्लगा.. अपने यार को फोन! मैं- नहीं..
तभी नसीब की करनी कुछ ऐसी हुई कि खुद नील का फोन आ गया।
करन- देखो आशिक को याद करते ही उसने माशूका को फोन किया। करन ने बोला- मैं फ्फोन को स्पीकर प्पर रखता हूँ.. उसे इईधर बुला।
करन ने फोन को स्पीकर पे करते हुए ऑन किया। नील- मैं आ रहा हूँ। मैं- ह्म्म्म..
बस इसके बाद करन उसके आने की राह देखने लगे।
जब नील आया.. तो उसके बाद क्या हुआ, वह तो आप लोगों को पता ही है।
करन नील के पीछे भाग कर उसे मार-कूट कर आया, आते ही मुझे अपने पास बिठाया। करन- सॉरी.. मैंने सिर्फ उसके सामने देखा और फिर नजरें झुका लीं।
करन- मैं त्ततुम्हें मारना नहीं च्चाहता था.. पर त्तुम ही बताओ.. क्किस को ऐसी हरकत पे ग्गुस्सा नहीं आएगा। मैंने त्तुम्हें किसी चीज से वंचित र्रखा? क्कितना प्यार क्करता हूँ.. फ्फफिर भी त्तुमने ऐसा किया?
मैं करन से जोर से लिपट कर रोने लगी- सॉरी.. मैं बहक गई थी.. रास्ता भूल गई थी.. किसी से मोहित हो गई थी। मैं करन से लिपट कर रोती रही।
करन मुझे शांत करा रहा था- कोई बात न्नहीं ल्ललौट के ब्बुद्धू घर क्को आए.. पर मैं दिन भर रोती रही, जब भी करन का चेहरा देखती.. मैं रो पड़ती। उस वक्त मन में ऐसा लगता कि नील ने मेरे शरीर का पूरा मजा लिया। पर जब बीवी के रूप में अपनाने की बात की थी.. तो उसने बात टाल दी थी, यानि वह उसका प्रेम नहीं सिर्फ हवस थी। एक ओर मेरा पति जो इतना कुछ होते हुए भी मुझे अपना रहा है.. फिर भी मुझसे प्यार करता है।
यह मैंने क्या कर दिया.. मैं तो अपनी ही नजरों में गिर गई थी। रात में खाने के वक़्त जब मेरे मुँह से एक निवाला भी अन्दर नहीं जा रहा था, तब करन ने मुझे अपने हाथ से खाना खिलाया।
मैं फिर से रोने लगी.. तब करन ने बोला- हम यह सोसायटी छोड़ देंगे.. ताकि तुम एक नई ज़िन्दगी शुरू कर सको। मैं- हम क्यों जाएं? जाएगा तो वो..
फिर दूसरे दिन मैंने उसके फ्लैट पर जाकर दरवाजा खटखटाया।
उसने दरवाजा खोला तो मैंने अन्दर जाते ही उसे इस एरिया को छोड़ कर जाने को बोल दिया.. जो आप लोगों ने ऊपर पढ़ा है।
इसके बाद मैंने नोटिस किया कि मेरे हाथ पर मेरी पिटाई के निशान थे.. जो नील ने देखे थे, पर उसने मुझसे इन निशानों के बारे में पूछा भी नहीं था। वो सिर्फ इस बारे में इतना सोच रहा था कि कैसे यहाँ से निकलूँ।
जब वो मेरे निशान की ओर देख रहा था। तब मैंने फिर से चैक करते हुए बोला- तुम तो भाग आए.. मैं कहाँ जाऊँ? तब भी वह बिल्कुल चुप रहा और मैं वहाँ से निकल आई।
दूसरे दिन जब देखा तो करन बाहर खड़े थे। मैं जब बाहर आई तो देखा कि नील अपना सामान टेम्पो में लोड करवा रहा था.. यानि वो घर छोड़ कर जा रहा था।
मैंने करन के कंधे पर सर रखा और करन के साइड से लिपट गई.. करन ने मेरे माथे को चूम लिया। यह सब नील जाते-जाते देख रहा था।
आज तक मुझे यह तो पता नहीं चला कि करन को इस सबके बारे में कैसे पता चला। मेरी किसी सहेली, सासू माँ, अंश, साड़ी या फिर वह बूढ़े दादाजी ने बताया या फिर कोई और जरिए से जाना था, पर एक बात समझ में आई कि बुरे का अंजाम बुरा ही होता है।
अगर यह कहानी पसंद आई तो कृप्या अपना सुझाव [email protected] पर भेजें। अब जल्द ही एक महत्वपूर्ण घटना लेकर आऊंगा.. जो अलग और सीख देने वाली होगी.. नमस्ते।
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