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यह कहानी स्त्री पुरुष औरत मर्द के नाजायज सम्बन्धों पर आधारित है। इसमें थोड़ी सीख भी है.. खास कर उन पुरुषों और औरतों के लिए, जो कभी कभार बहकने की सीमा पर पहुँच जाते हैं और कोई गलत कदम भी उठा लेते हैं, या जो बहक गए हैं, उनका भविष्य कैसा होगा.. इसका वर्णन है।
मेरी कहानियाँ दूसरों से थोड़ी अलग होती हैं.. इसमें मैं खुद नायक नहीं हूँ, शायद मैं थोड़ा खलनायक जैसा प्रस्तुत हूँ। कहानी पुरुष के माध्यम से लिख रहा हूँ।
मेरा नाम नील है.. यह जो मैं कहानी लाया हूँ उसमें मैं अपने नाम का प्रयोग कर रहा हूँ.. पर यह कहानी असल में मुझ पर आधारित नहीं है। ऐसी घटना मेरे साथ नहीं घटी.. मैं सिर्फ अपना नाम इस्तेमाल कर रहा हूँ और इस कहानी में मेरा किरदार खलनायक जैसा है।
युवावस्था में प्रवेश करते ही मैं सुन्दरता और हुस्न से आकर्षित होने लगा। इस वय में कभी ऐसा लगता कि काश कोई साथी मिल जाए जैसे कि गर्लफ्रेंड, या कभी लगता कि जल्द शादी हो जाए.. मतलब पता नहीं.. लेकिन मेरा मन बावरा हो चला था।
ऐसे में पोर्न वीडियो की वेबसाइटों देखने की और अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज पढ़ने की आदत लग गई। फिर तो क्या था.. अब मुझे हर औरत खूबसूरत लगने लगी काली, गोरी, जवान और शादीशदा, खास कर शादीशुदा औरतों का फिगर देख कर लगता था कि थोड़ी देर में मेरा शरीर फट जाएगा।
क्या सही है.. क्या गलत.. कुछ सूझ ही नहीं रहा था।
मैं स्कूल में टीचर्स को अनजाने में छूने जैसी कोशिश करता, प्रयास करता कि होमवर्क के बहाने उनके नजदीक आऊँ.. सोसायटी की औरतों से जानबूझ कर टकराने की कोशिश करता।
वे महिलाएं भी मेरी इन हरकतों को छोटा समझ कर बात को गंभीरता से नहीं लेतीं।
शाक-भाजी बाजार में जाकर जो औरतें और लड़कियां झुक कर सब्जी आदि की खरीददारी कर रही होतीं.. वहाँ से गुजर कर उनके पीछे से उनको छूता। उस वक्त तो मुझे ऐसा लगता कि इसको यहीं पकड़ कर कुछ कर दूँ।
जब कोई खूबसूरत भाभी अपने पति के साथ जा रही होती.. तब उस आदमी से मुझे इतनी जलन होती और ऐसा लगता कि उसके सामने ही इस भाभी को चोद दूँ।
ऐसे ही जीवन चलता रहा और मैं स्कूल से कॉलेज लाइफ में आ गया। अब तक मैं काफी लड़कियों को गर्लफ्रेंड्स बना चुका हूँ और काफी उनके साथ मजा भी किया था।
कॉलेज लाइफ में एक घटना घटी.. जिसके बारे में बताता हूँ।
जब मैं कॉलेज में पढ़ाई के लिए शहर आया.. तब मैंने एक एक कमरा किराए पर लिया। जिधर मैंने कमरा लिया, उस जगह को सोसाइटी कहें, चॉल कहें.. या फिर रहने के क्वाटर्स का क्षेत्र कहें, उधर सब अपार्टमेन्ट आमने-सामने थे। इधर के हर अपार्टमेन्ट में चार माले थे, हर माले पर दो या किसी में चार फ्लैट टाइप के थे, जिसमें चार फ्लैट वालों में सिर्फ एक रूम, बाथरूम और किचन था।
मैंने उस चॉल में एक रूम वाला फ्लैट भाड़े पर लिया था।
बारिश का मौसम था.. एक दिन जब में बोर हो रहा था, तब छत पर बैठने चला गया। उस वक्त हल्की-हल्की बारिश चालू हो गई। मैं छत पर बैठ कर बारिश का आनन्द ले रहा था।
उसी वक्त मेरे पीछे के अपार्टमेन्ट की छत पर एक औरत ने कुछ सुखाने डाला होगा.. बारिश के कारण वह दौड़ती हुई आपना वो सामान लेने आई।
मेरी नजर उस पर पड़ी.. वो शादीशुदा थी। वो काफी खूबसूरत थी.. बहुत पतली तो नहीं.. पर उसका फिगर बड़ा मादक था।
उसने भी मुझे देखा.. पर जैसे लोग सामने देख कर चलते बनते हैं.. वैसे देखा। भले ही उसकी सोच ऐसी रही हो.. पर मेरा उस पर दिल आ गया।
फिर मैं उसको फॉलो करने लगा.. जैसे कि वह दिन भर क्या करती है और कहाँ आती-जाती है। मैंने पाया कि वो सुबह बालकनी में कपड़े सुखाने आती थी.. तो मैं उस वक्त अपनी पीछे की बालकनी से उसे देखता रहता।
मैंने ध्यान दिया कि पीछे वाले अपार्टमेन्ट का रास्ता मेरे अपार्टमेन्ट के बाजू से था। जब वह दूध लेने जाती.. तब मैं अपार्टमेन्ट से बाहर निकल कर उसके सामने से गुजरता।
वहाँ चॉल के गेट के सामने एक गार्डन था.. लोग उसमें कसरत और सुबह की सैर करने आते थे, वो भाभी भी उधर आती थी। मैं कभी 8 बजे से पहले उठा नहीं था.. पर इस भाभी के चक्कर में मैं भी सुबह 5 बजे उठने लगा।
एक बार वह अपने पति के साथ बाहर जा रही थी.. तब उसकी सास ने पुकार कर बोला कि हर्षा बाजार से हींग लेकर आना.. तब मुझे पता चला कि उसका नाम हर्षा है।
सब अपार्टमेन्ट के बाहर फ्लैट नंबर के साथ नाम लिखा हुआ होता है। मैंने पता किया कि उसके पति का नाम क्या है? फिर फोन डायरेक्टरी से उसका नंबर पता किया। काफी बार फोन लगाया.. कभी उसका पति फोन उठाता.. तो कभी उसकी सास फोन उठाती.. या कभी उसका 6 साल का बेटा फोन उठाता था।
मेरे नसीब के जोर से एक बार हर्षा ने फोन उठाया। उसके ‘हेल्लो..’ बोलते ही शायद मैं एक बार मर के जिन्दा हो गया। शायद मुझे लगा कि वह भांप गई थी कि किसने फ़ोन किया। चूंकि इतने दिनों से उसको ट्रैक कर रहा था तो शायद उसको मेरी नीयत के बारे में पता लग गया था, क्योंकि जब वह बाल धो कर सुखाने बालकनी में आती.. उस वक्त मैं उसे ही देखता रहता था। ऐसी ही कई और घटनाओं को भी शायद उसने नोटिस किया था।
उसका फिगर 34-28-34+ का था.. बिल्कुल ऐसा कि देखते ही नोंच लेने का मन करे।
जब मैं हर्षा को रोज देखता था.. तो वहीं उसके बाजू के अपार्टमेन्ट में दूसरे माले पर एक बूढ़े दादाजी बालकनी में ही बैठे रहते थे.. वे भी ये सब देखते थे, पर मैंने उन पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे लगता था कि बुड्डा क्या कर लेगा।
ऐसे ही दिन गुजरते गए, एक दिन मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई.. मैंने दरवाजा खोला, तो सामने हर्षा भाभी थी।
दरवाजा खोलते ही वो एकदम से बरस पड़ी.. उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसको दरवाजे पर देखते ही मेरे कदम पीछे होने लगे।
हर्षा- क्या लगा रखा है यह सब? मैं- क्या? हर्षा- अब नासमझ बन रहे हो.. क्या मैं नहीं जानती कि तुम क्या कर रहे हो.. मैं तो सिर्फ चुप इसलिए थी कि मेरा लेना-देना नहीं है, पर अब तो तुम मेरे घर पर फोन करने लगे हो, क्या समझ कर रखा है मुझे? क्या हर औरत रंडी होती है? मैं- मैंने कब ऐसा कहा.. पर माशूका तो हो सकती है ना! हर्षा भाभी और लाल हो गईं- मुँह बंद रखो अपना!
पर मैं उसके सवाल का जवाब निडर हो कर दे रहा था।
हर्षा भाभी- क्या करना है अब? यहीं से संभल जाओ.. समझे! वो इतना कह कर मुड़ी और जाने लगी। तभी मुझमें न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई और मैंने बोल दिया- करते हैं ना! हर्षा भाभी एकदम से पलटीं और घूर कर बोलीं- क्या..?? फिर से बोलो क्या बोला तुमने? मैं- करते हैं ना.. किसी को पता भी नहीं चलेगा!
हर्षा भाभी पूरे गुस्से में आ गई और बोली- अच्छा ठीक है.. मैं अपने पति को फोन करती हूँ, उससे परमीशन ले लो.. फिर ठीक रहेगा। मैं चुप रहा। हर्षा भाभी- बोलो.. फोन करके बुलाऊँ?
मुझे तो जैसे सांप सूंघ गया हो.. वैसे ही चुप खड़ा रहा.. और अगले ही पल वह चलती बनी।
वो चलने को हुई.. तभी मैं फिर से बोल पड़ा- बुलाओ.. हर्षा भाभी- क्या? मैं- हाँ.. बुलाओ उसे भी.. मैं पूछ लेता हूँ।
तब जैसे उसे भी सांप सूंघ गया हो.. वैसे ही वो चुप हो गई।
अब मैं उसके नजदीक आ गया और बोला- कम से कम एक किस तो दे दो.. और बात खत्म करते हैं, मेरी ख्वाहिश पूरी हो जाएगी।
उसको चुप देख कर मैं धीरे-धीरे आगे को बढ़ा और उसके होंठ पर होंठ रख कर उसे स्मूच करते हुए रसदार किस करने लगा।
उसका कोई विरोध न होते देख मैंने उसकी कमर में हाथ डाल दिया और दरवाजे को बंद कर दिया और उसे किस करने लगा।
मैं लगभग 5 से 7 मिनट तक उसके होंठों को चूसता रहा ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ फिर उसके ब्लाउज को खोलने लगा। तब उसने धीरे से कहा- आज नहीं.. मैं दूध लेने जा रही थी और चुपके से यहाँ आ गई हूँ.. ये सब फिर कभी..
उसका बहकने का यह पहला कदम था क्योंकि शायद उसे मेरी निडरता और बोलने का तरीका भा गया था।
अब प्रेम की गाड़ी पटरी पर चल पड़ी थी। उसके पति के जाने के बाद रोज फोन पर बातें और गार्डन में टहलने के बहाने मिलना और बालकनी से इशारे वगैरह होने लगी, पर उन बूढ़े दादाजी को कैसे भूल सकते हैं। हम दोनों इशारे करते.. वो बुड्डा सब देखता रहता, पर हमें कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला था।
अब मैंने उसके बेटे से दोस्ती बढ़ाई.. उसे चॉकलेट देना और उसके साथ गार्डन में खेलना शुरू कर दिया। फिर उसके घर पर उसे कार्टून की किताबें और बच्चों की कहानियों की किताबें आदि देने जाने लगा। इसी बहाने सबकी नजर बचा कर हर्षा भाभी को किस वगैरह भी कर लेता।
मैं उसके बेटे अंश के लिए किताबें और खेलना-कूदना सब करता.. इसी लिए उसकी सास को कुछ पता नहीं चल पाया था, हालांकि वह भी घर पर ही होती थीं।
एक बार उसकी सास और उसका बेटा बाजार घूमने वगैरह गए थे.. तब उसने फोन किया- सासू माँ और अंश बाहर गए हैं.. आ जाओ.. उनको तो आने में काफी टाइम लगेगा। मैं- ठीक है जान!
मैं भाभी के घर गया।
हर्षा भाभी- पहले मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ। वह चाय बनाने किचन में गई.. मैं उसके पीछे-पीछे किचन में आ गया।
वह चाय बना रही थी.. उस वक्त मैंने उसे पीछे से पकड़ा और उसकी गर्दन को चूमने लगा। उसने इस वक्त साड़ी पहनी थी, मैं उसके बैकलैस ब्लाउज में उसकी नंगी पीठ को चूमने और चाटने लगा।
वह मादक सिसकारियाँ भरने लगी, हम दोनों के शरीर में से गर्मी फूटने लगी। मैंने उसका ब्लाउज खोला और पीछे से उसके मम्मों को दबाने लगा, उसके मम्मे काफी मुलायम थे।
कुछ देर तक मैंने भाभी की पूरी पीठ चाटने के बाद उसको अपनी तरफ घुमाया और किचन के प्लेटफॉर्म पर बिठा दिया। उसने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया और हम दोनों जोरों से डीप किस करने लगे।
अब भाभी ने मेरी शर्ट के बटन खोल दिए और मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गड़ाने लगी, वो मेरे बालों को नोंचते हुए मुझे काफी वाइल्ड तरीके से किस कर रही थी।
फिर मैं भाभी के मम्मों को चूसने लगा और साड़ी उठा कर उसकी चूत चाटने लगा। भाभी की चूत काफी नमकीन थी और पूरा रस छोड़ रही थी। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
हर्षा भाभी मजा लेकर सिसकारियों पर सिसकारियां भर रही थी.. मेरे बालों में वह चुदास से भर कर अपना हाथ फेरती जा रही थी और मेरे सर को अपनी चूत पर दबाए जा रही थी। मैंने भी मजा लेकर भाभी की चूत का भरपूर रस पिया।
उसके बाद मैं भाभी को गोदी में उठा कर उसके बेडरूम में ले गया और किचन से जाते समय गैस बंद करके गया।
मेरी आदत थी कि किचन से निकलते वक्त मैं गैस का बटन हमेशा बंद कर देता था। मेरी इस हरकत से भाभी पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा.. और वो मुझे प्यार से चूमने लगी।
बेडरूम में जाकर मैंने हर्षा भाभी को बिस्तर पर लुढ़का दिया और उसके ऊपर चढ़ कर उसे जोरों से किस करने लगा। अब भाभी ने मुझे घुमाया और खुद मेरे ऊपर आ गई, मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चूमते हुए मेरी पेंट का बटन खोल दिया। मैं उसके मम्मों को दबाने में मस्त था कि भाभी ने मुझसे छूट कर मेरा फनफनाता हुआ लंड बाहर निकाल लिया और लंड चूसने लगी।
अब मेरे से रहा न गया.. और कुछ ही देर की लंड चुसाई में मैंने अपने लंड का पूरा माल छोड़ दिया। माल छूटने के बाद भी मेरा मन और लंड रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
हर्षा भाभी संग मेरी पहली चुदाई होने जा रही थी।
आप सभी को ये कहानी कैसी लग रही है.. मुझे जरूर लिखिएगा। [email protected] पड़ोसन भाभी की चुदाई की कहानी जारी है।
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