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मैं जयंत जोधपुर के एक छोटे से गांव से हूँ। मैं अपनी सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ। वैसे कहानी पढ़ कर आप खुद ही जान लोगे कि मेरी ये घटना कितनी सच्ची है।
मैं एक सीधा-साधा स्टूडेंट हूँ। मेरी शारीरिक स्थिति कितनी आकर्षक ये मुझे तब पता चला जब कुछ लड़कियां बारहवीं कक्षा के दौरान ही मेरी अच्छी मित्र बन गईं।
मैंने 12 वीं कक्षा विज्ञान से पास करने के बाद कोटा का रूख किया। पापा मुझे वहाँ छोड़कर आए उन्होंने मुझसे कहा- बेटा बारहवीं की बात अलग थी.. अब अच्छे से पढ़ना! मैं कोटा के जवाहर नगर में एक पीजी में कमरा लेकर पढ़ने लगा।
यहाँ मैंने महसूस किया कि मेरे पड़ोसी मकान मालकिन.. जिनके खुद ही घर में भी पीजी से कुछ लड़के रहते थे, वो रोजाना मुझे अच्छी मुस्कराहट दे जाती थीं। वो देखने में बहुत सुन्दर थीं। उनकी चूचियों की साईज 36 इंच थी.. कमर 30 इंच की और उभरी हुई गांड का इलाका 36 इंच का था।
उनकी गदरायी जवानी को देख कर मेरा लंड खूब फूलता, मैं भी खूब मुठ मारता। मेरा लंड काफी मोटा था, कुछ ही दिनों बाद मैं अब मुट्ठी मारने से परेशान हो गया, मुझे अब चूत की जरूरत होने लगी। अब मैं भी उनमें दिलचस्पी लेने लगा।
मैं छत पर कपड़ों को सुखाने के लिए डालने जाता था, मुझे उनकी एक झलक पाने का इन्तजार रहने लगा। उनकी झलक न मिलने पर शाम को उदास चेहरा लिए बैठ जाता।
एक दिन वो भाभी जी मेरे रूम में आईं, उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा.. काफी अच्छे से बात की, मैंने भी सकारात्मक बात की।धीरे धीरे शाम को छत पर उनसे बातें होने लगीं।
एक दिन उन्होंने मुझसे मेरा फोन नम्बर ले लिया और खुद फोन करके मुझसे बात करने लगीं।
ऐसे ही एक दिन भाभी बोलीं- यार क्या करूँ मैं.. ऐसे घर में मेरी शादी क्यों हुई कि दो बच्चों के बाद पतिदेव ने तो मुझे भुला सा दिया है। बस अब ना कोई वक्त देते.. ना इज्जत देते।
उनका दर्द सुनकर मुझे भी धीरे-धीरे तनबदन में आग लगने लगी, मैं सोचने लगा कि कुछ भी हो मुझे भाभी को जल्दी ही खुश करना होगा।
शाम को छत के दौरान भी कहीं ना कहीं अपने बड़े-बड़े उभारों को दिखाकर मेरे लंड को खड़ा कराने की कोशिश करतीं या अपनी चूत में खुजली करतीं।
कुछ ही दिनों में हम बहुत खुल गए थे, मैंने भी उनका विश्वास जीत लिया। चूंकि मैं गांव का छोरा था.. मेरी बॉडी और आवाज में दम था, भाभी पूरी तरीके से मेरे इंप्रेशन में आ गईं।
अब आखिरकार एक रात भाभी जी ने मुझसे रोते हुए बोला- जयंत आप प्लीज मुझे खुश कर दो ना.. मुझे वो संबल दो जिससे मुझे लगे कि मैं औरत हूँ। मुझे अपने जिस्म की नुमाइश हुए काफी वक्त हो गया है। मेरे वो भी थके हारे आते हैं और सप्ताह में एक आध बार चोद कर मुझे छोड़ देते हैं। मेरी कामनाएं अधूरी सी रह जाती हैं।
मैंने नखरे दिखाते हुए कहा- भाभी, वैसे तो मैं यहाँ मेडिकल की तैयारी करने आया हूँ। मुझे इस तरह की चीजों में दिमाग नहीं लगाना चाहिए। पर हाँ.. आपकी परेशानी को दूर करने के लिए मैं जरूर कुछ करूँगा। मैं गांव और किसान परिवार से हूँ और मैं अपना गठीला और भरा हुआ शरीर आपको दे सकता हूँ.. लेकिन सिर्फ इस शर्त पर कि आप मुझे यहाँ कोटा में हर संभव मदद करोगी।
उन्होंने तुरन्त ‘हाँ’ कर दी।
हम दोनों ने आने वाले दिन में कोचिंग से आकर उनके घर में मिलन का प्रोग्राम बनाया।
अगले दिन मैंने भाभी को फोन करके बोला- मैं आ रहा हूँ। ‘आ जाओ मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रही हूँ।’ वो मेरे इंतजार में ही थीं, मेरे गेट में घुसते ही उन्होंने फटाक से बंद करके मुझे खींच लिया।
बड़ी बेसब्री से मेरे होंठों को काटते हुए भाभी बोलीं- यार आपने असली मर्दानगी दिखाने की तो हद की देर कर दी। मैंने कहा- अब आपके पास हूँ ना!
मैं भी भाभी के होंठों पर ताबड़तोड़ किस करने लगा। भाभी के बोबों को कपड़ों के ऊपर से दबाने लगा.. साथ में भाभी के होंठों पर मेरे होंठों के वार होने लगे। कभी मेरी जीभ भाभी के मुँह में अन्दर जाती.. कभी बाहर होती। कभी मैं भाभी का दांया बोबा मसलता.. तो कभी बांया मसलता। कभी-कभी मैं भाभी के चूतड़ों की दरारों को खोल कर गांड के छेद में ऊपर से ही उंगली करने लगता।
मेरी हरकतों से भाभी बहुत गर्म हो गईं। उन्होंने फटाफट कपड़े खोले.. और मेरे कपड़े खोलने में भी मेरी मदद करते हुए मेरे लंड को पकड़ लिया। मेरा लंड अभी अर्ध-मूर्छित अवस्था में था। भाभी के नाजुक हाथ लंड पर लगते ही लंड फुंफकारने लगा।
मैं फट से उनके एक निप्पल को चूसने लगा.. साथ ही भाभी की चूत के ऊपर टका हुआ क्लाइटोरिस यानि भगनासा को लेबिया माइनोरा यानि चूत के अन्दरूनी होंठ तक मसलने लगा, लेबिया मेजोरा यानि चूत के बाहरी मोटे होंठ पर थप-थप करने लगा।
वो लंड को सहलाते-सहलाते वहीं बैठकर निहारते हुए कहने लगीं- ऐसे सुहाने दिन तो मेरी सुहागरात के समय में भी नहीं थे। मुझे तो पता ही नहीं था कि गांव के छोरों का इतना बड़ा लंड होता है। मैंने भाभी से कहा- हम लोग असली भैंस का दूध पीते हैं।
मैं भाभी को उठाकर सोफे पर लाया और मैंने उन्हें अपने सीने पर आगे टांगें कर बिठाया और भाभी के मनमोहक चूतड़ों को चाटने लगा, भाभी को नीचे को झुकाकर उनके मम्मों को दबाने लगा। वो इस दौरान पहली बार अति उत्तेजना के कारण झड़ गईं।
मैंने उनके बहुत कहने पर भी चूत को चाटना नहीं छोड़ा। वो गर्म साँसों के साथ ‘आह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह जयंत.. प्लीज जयंत उउह.. उह..’ करने लगीं। फिर एकदम से भाभी की चूत ने रस छोड़ दिया और अगले ही पल भाभी ने मेरे लंड पर नागिन की तरह झपटते हुए लंड को डस लिया।
अब वो मेरे लंड को अच्छे से खड़ा करने लगीं। लंड के पूरा खड़ा होते ही मुझे इशारा किया कि प्लीज मेरी चूत को फाड़ डालो प्लीज!
मैंने हामी भरी और उनकी गांड सोफे के ऊपर पूरी तरह धकेल कर टांगें उठाकर चूत को अच्छे से देखा। भाभी की चूत सांवली थी.. पर बड़ी मादक थी।
मैंने उनकी चूत में अपना लंड सैट किया और उनके इशारा मिलते ही लंड को घुसा दिया। उन्हें तो यकीन ही नहीं हुआ कि अचानक ये क्या हुआ.. अनायास ही उनके मुँह से एक तेज ‘आह.. औह.. औ.. प्लीज प्लीज.. जयंत क्या कर दिया..’ भाभी की आँखों की पुतलियां फ़ैल गई थीं।
मैं थोड़ा ठहर गया और फिर धीरे-धीरे चार-पांच धक्के लगातार ठोक दिए। भाभी मस्त हो कर चुदने लगीं.. कुछ ही धक्कों में मुझे लगा कि मैं झड़ जाऊँगा। मैंने देखा कि भाभी भी रस छोड़ने पर आ चुकी थीं, मैंने इशारे से पूछा तो उन्होंने सर हिला दिया।
मैं समझ गया.. चूंकि ये मेरी पहली चुदाई थी तो उन्होंने मुझे चूत के अन्दर ही लंड की पिचकारी छोड़ने को कह दिया।
अब मैंने अपने धक्के तेज किए और लंड की गर्म मलाई चूत में डाल दी। भाभी बेसुध हो कर आँखें मूंद कर वीर्य की गर्मी से चूत को तृप्त करने लगीं।
इसके कुछ पल बाद तक मैंने उनकी चूत में लंड को घुसाए रखा। फिर वो संभलीं और मेरी तरफ शुक्रगुजार भरी नजरों से देखने लगीं। मैंने कहा- भाभी ये तो ट्रेलर है.. फिल्म पूरी बाकी है।
मैंने बगैर वक्त गंवाए.. फिर से भाभी के होंठों पर अपने होंठों को लगा दिया। मैंने भाभी के बोबे दबाना चूसना जारी रखते हुए उनकी चूत में उंगली करना भी चालू कर दिया।
अब भाभी फिर से गर्म हो गईं और मैं फिर से भाभी की चूत पर लंड टिकाकर खड़ा हो गया। इस बार चुदाई में जैसे लंड अन्दर-बाहर जाता.. वो सिसकारियां भरने लगतीं ‘यस.. फक.. मी फक मी.. हार्ड..’
भाभी इस बार लम्बी चलीं और चुदाई के बाद मैं अपने कमरे में आ गया।
इसके बाद मुझे भाभी ने बहुत सारी अतृप्त चूतों से मुलाक़ात करवा दी।
इस तरह कोटा की इस स्टूडेंट लाइफ में मैं जिगोलो की लाईफ भी जीना सीख गया। मैंने अपना धंधा बहुत ज्यादा उम्र की आंटी या कुंवारी लड़की तक फैला दिया था। जो भी बिना पहचान बताए सिर्फ चुदाई की सोचती थी.. मैं उनकी ख्वाहिशें पूरी करने लगा।
मेरा काफी बड़ा फ्रेंड सर्किल हो गया। मेरे पास लड़कियों भाभियों के मेल आने पर मैं उनको चुदाई का सुख देकर उनकी कामनाओं को पूर्ण करके दिखाता हूँ। आज मैंने अपनी पहली चुदाई का किस्सा ब्यान किया है। मैंने अपनी इस लाइफ में अच्छे घरों की स्टैंडर्ड लड़कियों और अमीर औरतों की ख्वाहिशें पूरी की हैं।
मैं बहुत खुश हूँ कि कोटा ने मुझे डाक्टर नहीं.. तो एक बड़ा रोजगार और बड़े दिल का इंसान बना दिया है।
प्लीज़ मेल कर मुझसे अपने दिलों की बातें शेयर करें। राजस्थान देहली गुजरात में अपना आना-जाना रहता है। मिलना.. दोस्ती करना और अच्छा दोस्त बनाना मेरी फितरत है। [email protected]
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