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जब मैं स्कूल पहुँचा तो वहाँ भी लड़कियों से नैन-मटक्का हुआ। आप शायद यक़ीन न करें स्कूल कि शुरूआती क्लास में ही मेरी एक क्लासमेट के साथ घिसा-घिसाई का खूब खेल चला। अगली क्लासों में मेरा नैन-मटक्का मेरी क्लास टीचर की लड़की से हुआ.. बाद में और आगे की क्लास में अपने दोस्तों से शर्त लगा कर मैंने एक लड़की पटाई उसके बाद भी यही सब कुछ चलता रहा। कामदेव की असीम अनुकम्पा से ये महारत हासिल हो गई थी कि जिस लड़की पर हाथ रख दूँ.. वो कभी मना नहीं करती थी।
इस प्रकार यह लंड-चूत का खेल चलता गया। हर क्लास में लड़कियां बदलती गईं। अगर मैं सबके बारे में बताने बैठ गया तो शायद अन्तर्वासना की सारी कहानियां भी छोटी पड़ जाएँगी। यह चुदाई की कहानी मेरी पहली चुदाई की है।
हाई स्कूल पास करने के बाद मैं अपने एक अंकल के यहाँ उनकी दुकान पर पार्ट टाइम नौकरी करने लगा। उनका जूते का कारोबार था.. मुझे टूर पर आर्डर और पेमेंट की उगाही के लिए भेजा जाता था।
एक दिन मुझे काम के लिए सहारनपुर भेजा गया, वहाँ मेरे रिश्ते के एक मामा रहते हैं, जब उनको मालूम हुआ कि मैं आया हुआ हूँ तो उन्होंने रात को डिनर के लिए कह दिया।
काम ख़त्म करके रात को जब मैं उनके घर पहुँचा.. तो हुस्न की एक मलिका से मेरा सामना हुआ। वो मेरे मामा की लड़की थी.. जिसका नाम मैं गुप्त ही रखूँगा, वो मेरे आगे-पीछे घूम रही थी।
शक्ल से खूबसूरत और हुस्न का एक नायाब नमूना देख कर दिल ने पैंट में अंगड़ाई ली। वो 18 साल की हुस्न की मलिका.. जिसका जोबन छुपाए नहीं छुप रहा था.. मेरे अनजाने आकर्षण में खिंच रही थी। हालांकि ये मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी।
गर्मियों के दिन थे, खाने के बाद जब मैंने उनसे चलने की इजाज़त मांगी.. तो उन्होंने रात को वहीं रुकने का इसरार किया। मेरे मन में भी यही तमन्ना थी.. लेकिन मैं क्योंकि स्वभाव से बहुत शर्मीला हूँ.. तो मैंने उनसे कहा- सुबह घर पहुँचना ज़रूरी है।
इस पर उन्होंने बताया- वो तो ठीक है.. पर बाढ़ की वजह से कई ट्रेनें रद्द हैं। अगर तुम्हारी ट्रेन लेट हो या रद्द हो तो शर्माना नहीं.. घर वापस आ जाना। मैं भी दुआ करता हुआ निकला कि ट्रेन लेट ही हो तो ही अच्छा है।
हर बार की तरह एक बार फिर कामदेव की असीम अनुकम्पा हुई कि मेरी ट्रेन 3 घंटे लेट थी। मैं ख़ुशी-ख़ुशी उस हुस्न की मलिका का जिस्म अपनी आँखों में लिए वापस आया।
बारिश की उमस और लाइट की परेशानी में सोने का इंतज़ाम मामा ने छत पर कर दिया। फ़ोल्दिन्ग बेद थे, छत छोटी थी तो सारे बेड आपस में जुड़े हुए बिछे थे। सबसे पहले हुस्न की मलिका लेटी, उसका भाई था.. जो उससे छोटा था, उसे सुलाया गया, उसके बराबर में मैं, मेरे दूसरी ओर मामा और मामी की चारपाई बिछी थी।
अपने दिल में अरमान लेकर मैं देर रात को भी जाग रहा था। रात को उसका भाई उठा और पानी पी कर मेरे दूसरी साइड आकर लेट गया।
अब तो मेरे अन्दर उस हुस्न की मलिका के लिए कई अरमान जाग उठे। नींद मुझसे काफी दूर थी। मैं उसका उठता और गिरता जोबन अपनी आँखों में भर रहा था। मेरे दिल ने आवाज़ दी कि छू ले इस हिमालय की ऊंचाइयों को.. लेकिन डर और संकोच ने मुझे रोका हुआ था।
सेक्स की शुरुआत तो मैंने अपनी ओर से आज तक नहीं की थी.. तो फिर कैसे मैं उसे हाथ लगाता।
तभी एकदम एक चमत्कार हुआ.. उसने करवट ली और मेरे ऊपर चढ़ गई। क़सम से वो एहसास मैं आज तक अपने अन्दर से नहीं निकाल पाया हूँ।
डर और सेक्स की खुमारी मेरी सांसों की आवाज़ के साथ बाहर आ रही थी। मुझे डर इस बात का था कि कहीं अगर किसी की आँख खुल गई तो क्या होगा।
मैंने बड़े प्यार से उसे अपने ऊपर से हटा कर उसकी चारपाई पर लिटाया। अब मैं यह देखना चाहता था कि उसने यह हरकत जानबूझ कर की है.. या सोते हुए ऐसा हुआ था। मैंने उसका मुलायम हाथ पकड़ा और कस के दबाया लेकिन वो हिली भी नहीं। मैंने इससे ज्यादा छेड़ना सही नहीं समझते हुए अपना हाथ वापस खींचा और रात जाग कर गुज़ारी।
किसी तरह सुबह 5 बजे मेरी आँख लगी और जब मैं सो कर उठा तो वो स्कूल जा चुकी थी, मेरी हसरत सिर्फ मेरे दिल में ही रह गई।
खैर.. मैं नाश्ता करके जब स्टेशन पहुँचा.. तो मेरी पैंट में मेरा छोटा बाबू अंगड़ाई ले रहा था और आवाज़ दे रहा था कि आज तो कोई मिलना ही चाहिए.. जिससे हर बार की तरह अपनी रगड़ाई करा कर अपने वीर्य को बाहर का रास्ता दिखा सकूँ।
मुझे अपनी उम्र से बड़ी औरतों का बहुत शौक़ रहा है। अब मेरी निगाह ट्रेन में ऐसी बंदी को ढूंढ रही थी.. जो अकेली भी हो और कोई भाभी या आंटी हो।
एक बार फिर कामदेव प्रसन्न हुए और ट्रेन के इस कम्पार्टमेंट में मुझे दो आंटियां नज़र आईं जो एक-दूसरे के सामने विंडो साइड बैठी हुई थीं। बस मेरे दिमाग़ की बत्ती जली और मैं उनके पास ही बैठ गया।
ट्रेन स्टार्ट हुई और अब तक मेरी उनसे कोई बात नहीं हुई। अगला स्टेशन मुज़फ्फरनगर था। यहाँ से कुछ लड़के भी चढ़े और वो सामने वाली आंटी से सट कर बैठ गए और जो लड़का उनके बराबर में बैठा था.. शायद उसने उनको छुआ था, जिस पर उस आंटी ने उसे डांट दिया और औरतों की तरह याद दिलाया कि उसके घर में माँ-बहने हैं या नहीं..
बस मैं समझ गया कि आज यही आंटी मेरी कामवासना को शांत करेंगी.. क्योंकि जब कोई लड़की या औरत किसी अनजान के टच होने पर हंगामा करे तो समझो उससे बड़ी चुदक्कड़ कोई नहीं है… शरीफ औरत कभी हाय-तौबा नहीं करेगी, वो सिर्फ अपने आपको बचाएगी या फिर उस जगह से ही हट जाएगी।
आंटी की डाँट सुन कर वो लड़के वहाँ से हट गए।
अगला स्टेशन मेरठ था, वो लड़के और मेरे बराबर वाली आंटी वहीं उतर गए। मैं भी पानी लेने के बहाने नीचे उतरा और वापस आकर उनके बराबर में बैठ गया।
मैं बातें करके टाइम ख़राब नहीं करता। मेरे एक हाथ ने अपना कमाल दिखाना शुरू किया। पहले मैंने अपने एक उंगली आंटी की उंगली से छुआई.. जिसका मुझे कोई रिप्लाई नहीं मिला। इसका मतलब न उन्होंने अपना हाथ वहाँ से हटाया और न कोई ऑब्जेक्शन किया।
दोस्तो, हमेशा एक बात याद रखिएगा.. जब कोई लड़की अकेले कहीं भी जा रही हो.. तो वो अपने शरीर के हर अंग को बड़ी होशियारी से ख्याल में रखती है। शरीफ औरत या लड़की कभी भी ज़रा हल्का सा भी टच होने पर एकदम से होशियार हो जाएगी और अपने उस अंग को वहाँ से हटा लेगी।
खैर.. अब मैंने आगे बढ़ने की हिम्मत दिखाई और अपने हाथ को आंटी की कमर के पीछे लेकर गया। इस बार भी वो ज़रा सा भी न हिलीं.. मैं भी समझ गया कि लाइन क्लियर है।
मैंने उनकी कमर के निचले हिस्से पर हल्का सा दबाव बनाया। इस बार आंटी ने मेरी तरफ बड़े ही प्यार से देखा। अब मैंने खुल कर उनके हाथ पर हाथ रख दिया, उन्होंने उसका जवाब मेरे हाथ को कस के मसल कर दिया।
मेरा दिल बाग़-बाग़ हो गया.. लेकिन यह क्या अभी तो शुरुआत ही हुई थी कि नई दिल्ली स्टेशन आ गया.. मुझे आगरा के लिए जाना था लेकिन मैं भी उनके साथ वहीं उतर गया।
मैंने आंटी से पूछा- आपको कहाँ जाना है? उन्होंने बताया- मैं फरीदाबाद जाऊँगी। वो मुझसे फरीदाबाद के लिए किसी ट्रेन के लिए पूछने के लिए बोलीं।
मालूम करने पर पता चला कि एक ट्रेन दो घंटे बाद है जो फरीदाबाद रूकती है। मैंने उनसे कुछ टाइम अपने साथ बैठ कर बात करने के लिए कहा.. इस पर आंटी राज़ी हो गई, हम दोनों प्लेटफार्म पर बनी एक बेंच पर बैठ गए।
दोस्तो, औरत सिर्फ औरत होती है.. खूबसूरत और बदसूरत नहीं। वो एक मामूली शक्ल सूरत की औरत थीं.. लेकिन मेरे लिए इस वक़्त वो स्वर्ग की एक अप्सरा थीं। उन्होंने बताया- मैं पंजाब से हूँ और मेरा पीहर फरीदाबाद है।
उन्होंने मुझे अपने घर आने की दावत दी.. लेकिन उसमें तो बहुत समय था। मेरे छोटे राजा तो अभी खुराक मांग रहे थे। मैंने अपने बैग की आड़ में उनको रगड़ना शुरू किया.. तो वो भी चुदास के नशे में बहने लगीं।
मैंने कहा- चलो किसी होटल में रूम लेते हैं। इस पर आंटी ने मना कर दिया।
मैंने उनके वक्ष को रगड़ना शुरू किया तो उन पर चुदाई का खुमार चढ़ने लगा। उनका बैग मेरी टांगों पर रखा हुआ था। उसकी आड़ में आंटी ने मेरे दहाड़ते शेर पर अपना हाथ रख दिया और उसे बड़े प्यार से सहलाने लगीं।
मैंने उनको फिर एक बार होटल के रूम में चलने को कहा.. तो इस बार आंटी एकदम राज़ी हो गईं। अब बारी थी मेरी फटने की.. क्योंकि आज तक मैंने किसी भी लड़की के साथ सेक्स नहीं किया था.. लेकिन इस गरमा-गरमी के आगे जब विश्वामित्र की नहीं चली.. तो मैं किस खेत की मूली हूँ।
स्टेशन से बाहर निकल कर हमने रिक्शा वाले को किसी होटल ले चलने को कहा। वो हमें चावड़ी बाजार के एक होटल ले गया। वहाँ मैंने होटल के रिसेप्शन पर अपना आगरा का टिकट दिखा कर कहा- हमारी ट्रेन शाम की है.. तो हमें शाम तक कोई रूम चाहिए।
उसने रूम बुक किया और हमें एक रूम दे दिया। हम दोनों रूम में पहुँच गए। रूम का दरवाज़ा बंद करने के बाद मेरी दिल की धड़कन तेज़ी से चलने लगी।
आज मुझे स्वर्ग की सैर करने का मौक़ा जो मिलने वाला था। आंटी लेट गईं और बड़े ही प्यार से मुझे बांहें फैला कर अपने पास बुलाया। मैं उनकी बाँहों में समाता गया। मुझे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था।
हम दोनों के होंठ एक-दूसरे से जुड़ गए और मुश्किल से एक मिनट तक एक-दूसरे से जुड़े रहे। हम दोनों ही बहुत गर्म हो चुके थे।
अब बस एक-दूसरे में समां जाना चाहते थे। उन्होंने अपनी साड़ी को ऊपर उठाना शुरू किया। इतनी देर में मैं अपने कपड़े उतार चुका था।
जब उनके स्वर्ग के द्वार पर मेरी निगाह गई.. तो मैं मंत्रमुग्ध हो कर उसे देखता रहा। आंटी की चूत पर छोटे-छोटे रेशमी बाल.. मुझे बहुत अच्छे लगे। मैं नया-नया खिलाड़ी था.. न चूमना आता था न चाटना… मैंने अपने हाथ की एक उंगली आंटी की चूत में प्रवेश करा दी। वो एक ‘आह्ह..’ की आवाज के साथ जरा सा उछलीं, मैं अपनी उंगली कुछ देर और वहाँ रखता तो शायद वो जल ही जातीं।
अब तक मेरे छोटे राजा उनके हाथ में पहुँच चुके थे.. जिसे वो बड़े ही प्यार से सहला रही थीं। मैंने देर न करते हुए अपने छोटे राजा को उनके स्वर्ग द्वार का रास्ता दिखाया, उम्म्ह… अहह… हय… याह… वो अकड़ते हुए फ़ौरन चूत में प्रवेश कर गए। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
क्या बताऊँ मैं अपने आपको दुनिया का सबसे खुशकिस्मत लड़का समझ रहा था, मैं हवा में उड़ रहा था। मैं नया खिलाड़ी था और पूरी रात वासना की आग में जल कर आया था, मैं ज्यादा देर तक नहीं टिका और जल्द ही आनन्द की चरम सीमा को पा गया, अपना ढेर सारा पानी उनकी मुनिया में छोड़ कर छोटे राजा अकड़ते हुए बाहर आए।
मुझे नहीं मालूम आंटी भी फ़ारिग़ हुईं या नहीं.. मैं उस वक़्त शारीरिक सुख को सिर्फ कुछ झटकों का खेल और अपना पानी बहाना ही समझता था लेकिन उन्होंने मुझसे कोई शिकायत नहीं की और चेहरे से वो बहुत संतुष्ट लगीं।
मैं पूरी रात का जागा हुआ था.. तो कुछ ही देर में उनकी बाँहों के आग़ोश में सो गया। अभी नींद लगे हुए कुछ ही समय हुआ था कि मेरी आँख खुल गई.. आंटी मेरे छोटे राजा को अपने नरम हाथों से सहला रही थीं। बस छोटे राजा फिर अकड़ गए।
अब तो उन्होंने जैसे मेरी जान ही निकाल दी। वो उठ कर बैठीं और बड़े प्यार से मेरे छोटे राजा को अपने मुख द्वार का रास्ता दिखाया। मैं अपनी इस हालत को बयान नहीं कर सकता। यह मेरा पहला मौक़ा था कि किसी औरत ने मेरे लंड को अपने मुँह में लिया हो। बस एक चुदाई का राउंड और चला। इस बार आंटी मेरे ऊपर थीं और वे बड़े ही प्यार से मुझे चोद रही थीं।
यह राउंड पहले राउंड से काफी देर चला इस बार उन्होंने मुझे चोदा और अपनी आग ठंडी करके ही मेरे ऊपर से हटीं।
कुल मिला कर हम दोनों ने तीन राउंड खेले। अब मैं बहुत थक चुका था। हमने चलने का फैसला किया और रूम छोड़ कर उनको स्टेशन छोड़ने गया। जहाँ पर उन्होंने फिर मिलने को कहा.. लेकिन मेरी क़िस्मत न थी और मैं उनका नंबर या एड्रेस न ले सका।
यह मुलाक़ात पहली और आखिरी बन कर रह गई।
शायद आपको मेरी यह पहली कहानी पसंद न आए.. क्योंकि इसमें अन्तर्वासना की और कहानियों की तरह चाटना-चूमना.. लंड का साइज और कामुक बातें कम हैं.. लेकिन मेरी यह कहानी शत-प्रतिशत सच्ची है। उस वक़्त मैं बहुत सीधा हुआ करता था। सेक्स की पूरी जानकारी नहीं थी। मैं हक़ीक़त में कामक्रीड़ा के हुनर नहीं जानता था.. जो बाद में मुझे मेरी एक और बंदी ने सिखाए। वो मुझसे उम्र में कुल 5 साल ही बड़ी थी।
उसके बाद मुझे इस खेल का ऐसा चस्का लगा.. जो आज तक क़ायम है। अगर आप लोगों का प्रोत्साहन मिला.. तो मैं अपनी और भी सच्ची कहानियां लेकर हाज़िर हो जाऊँगा.. जिनकी गिनती बहुत ज्यादा है।
इस घटना के बाद मैं आज तक 18 आंटी, भाभी और लड़कियों को भोग चुका हूँ जिनमें से कई को तो न जाने कितनी बार चोदा होगा और अब भी चोदता रहता हूँ।
मैं उनकी चुदाई की बहुत सारी कहानियां लिख सकता हूँ.. लेकिन आपके जवाब मिलने के बाद ही लिखूँगा। हाँ एक बात और बता दूँ मैंने अन्तर्वासना की कई कहानियों में पढ़ा है कि किसी का लंड 8 इंच का होता है और किसी का दस इंच का.. तो मेरा तो उन सबसे छोटा है.. कुल 5.5 इंच का.. लेकिन किसी ने आज तक इसकी शिकायत नहीं की है। सबने तारीफ ही की है।
खैर.. अब इजाज़त दीजिए, आपके मेल मिलने के बाद ही अगली चुदाई की कहानी लिखूंगा।
मुझे [email protected] पर अपने ख्यालात भेजिए.. मुझे इंतज़ार रहेगा।
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