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शाम को वापिस आया तो मामी मेरी प्रतीक्षा कर रही थी, मेरे कदम घर में पड़ते ही उन्होंने दरवाज़ा बंद कर चिटकनी लगा दी तथा मुझसे चिपक कर मेरे होंठों पर अपने होंठ चिपका कर चुम्बन लेने लगी।
मैंने भी उनको अपने आलिंगन में लेकर उनका साथ दिया और कुछ क्षण एक दूसरे के होंठ पर चुम्बन करने के बाद मैं उनसे अलग हो कर बाथरूम चला गया।
मामी मेरे पीछे पीछे बाथरूम में आ गई और मूत्र विसर्जन करते ही जैसे ही मैं घूम कर अपने लिंग को जीन्स के अंदर करने लगा तब उन्होंने उसे पकड़ कर अपने मुँह में डाल लिया और चूसने लगी।
मैंने नीचे बैठी मामी से पूछा- मामी, क्या आप मुझसे नाराज़ हैं? आज आपने मुझे चाय नाश्ता दिए बिना खुद नाश्ता करने बैठ गई? क्या आज मुझे चाय नाश्ता नहीं कराएंगी?
मेरी बात सुन कर मामी मेरे लिंग से अलग होकर अपनी उखड़ी साँसों को नियंत्रण करती हुई बोली- अरे विवेक, ऐसी कोई बात नहीं है। पता नहीं मुझे क्या हो रहा है और मेरे नीचे तो जैसे आग लगी हुई है। जब तक तुम जल्दी से इस आग को बुझा नहीं देते, तब तक मैं रसोई में चाय नाश्ता बनाने की लिए खड़ी नहीं हो सकूँगी।
उनकी बात सुन कर मैंने तुरंत अपनी जीन्स और अंडरवियर उतार कर उनसे पूछा- कहाँ आग लगी है जल्दी बताओ? मैं अभी उस आग को अपनी इस पिचकारी से बुझा देता हूँ।
मेरी बात सुन कर वह झट से उठी और अपनी सलवार और पैंटी उतार कर घोड़ी बन गई और अपनी योनि की ओर संकेत करते हुए बोली- आग यहाँ लगी है।
मैंने झट से उनकी कमर को कस कर पकड़ लिया और जोर का धक्का लगाते हुए अपना पूरा लिंग को उनकी योनि के अंदर डाल दिया।
मामी ने जोर से उम्म्ह… अहह… हय… याह… करते हुए थोड़ा सा ऊपर को हुई लेकिन तुरंत ही नीचे झुक गई और अपनी कमर एवं कूल्हों को हिला कर मेरे लिंग को अपनी योनि के अंदर समायोजित किया।
मैंने तुरंत तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिये और पांच मिनट में मामी ऊँचे स्वर में सिसकारिया भरने लगी तथा उनकी योनि में से रस का स्राव होने लगा। मामी की सिसकारियाँ और उनके रस के स्त्राव के कारण बाथरूम में फच फच की गूँज सुन कर मैं बहुत उत्तेजित हो गया और बहुत ही तीव्रता से धक्के लगाने लगा।
कुछ ही क्षणों के बाद मामी ने बहुत ऊँचे स्वर में एक सिसकारी ली और उनका पूरा शरीर अकड़ने लगा, योनि सिकुड़ने लगी तथा उनकी टाँगे कांपते हुए एंठने लगी। मैं समझ गया कि मामी अपने चरम पर पहुँच गई है, तब मैंने अत्यंत तीव्रता से पांच छह धक्के लगाये और फिर दोनों ने अपने अपने रस को स्खलित कर दिया।
उसके बाद मामी निढाल होकर धम्म से फर्श पर बैठ गई और उनकी योनि में से दोनों के रस का मिश्रण निकल कर फर्श पर फैलने लगा।
मैंने मामी को सहारा देकर उठाया और नल के पास ले जा कर दोनों के गुप्तांगों के साफ़ किया तथा कमरे में लेजा कर दीवान पर लिटाया।
पन्द्रह मिनट के बाद मेरे साथ लेटी हुई मामी जब समान्य हुई तब मेरी ओर करवट करके मुझे चूमते हुए कहा- विवेक, मैं धन्य हो गई तुम्हारे साथ सहवास करके। तुमने मेरे साथ तीन बार किये गए सम्भोग में मुझे जो यौन सुख, आनन्द एवं संतुष्टि दी है वह मैंने इससे पहले कभी भी प्राप्त नहीं करी है।
इसके बाद मामी ने उठ कर चाय नाश्ता बना कर कराया और फिर रात के खाना बनाने के लिए रसोई में चली गई और मैं अपनी रिपोर्ट बनाने लगा।
क्योंकि मामा का ओवर टाइम था और सुबह ही आना था इसलिए हम दोनों साढ़े आठ बजे खाना खा कर मैं नौ बजे अपने बिस्तर पर लेट गए।
मुझे अपने बिस्तर पर लेटे देख कर मामी बोली- विवेक, कपड़े उतार कर लेटो। मैंने मामी की ओर देखते हुए पूछा- क्यों?’ मामी ने मुस्कराते हुए कहा- मुझे अभी और आनन्द एवं संतुष्टि चाहिए।’
मामी के आदेश अनुसार पूर्ण नग्न हो कर उनकी प्रतीक्षा में बिस्तर पर लेट गया और वह रसोई में काम करने में व्यस्त हो गई। काम निपटा कर मामी मेरे पास आई और अपने सभी कपड़े उतार कर पूर्ण नग्न हो कर मेरे लिंग को कई बार चूमा और फिर उसे पकड़ कर मुझसे चिपक कर लेट गई।
दो मिनट के बाद मैंने महसूस किया कि मामी मेरे लिंग के साथ खेलने लगी थी और वह उसकी ऊपर की त्वचा को पीछे की ओर सरका कर लिंग-मुंड को बाहर निकालती और फिर वापिस उसे अन्दर डाल देती।
मामी की इस हरकत के कारण मेरा लिंग जब चेतना की अवस्था में आकर तन कर खड़ा हो गया तब उसने उसे हिलाना शुरू कर दिया। मैंने मामी की ओर देखा तो उसके चेहरे पर भरपूर वासना के भाव दिखाई दिए जिस कारण मैं भी उत्तेजित होने लगा और मेरा लिंग सख्त होने लगा।
मैंने उस उत्तेजना के अवस्था में अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिए और उनके मुँह में अपनी जीभ डाल कर उनका चुम्बन लेने लगा। मामी ने मेरा पूरा साथ दिया और उन्होंने बारी बारी से मेरे होंठों और जीभ को अपने मुँह में ले कर चूसना एवं चूमना शुरू कर दिया।
तब मैं अपने एक हाथ से मामी के स्तनों को बारी बारी से मसलने लगा और दूसरे हाथ की बड़ी उंगली को उनकी योनि के अंदर डाल कर जी-स्पॉट को कुरेदने लगा तथा अंगूठे से उनकी भगनासा को सहलाने लगा।
कुछ ही क्षणों में मामी ने सिसकारियाँ लेनी शुरू कर दी और अधिक उत्तेजित होते ही उठ कर अपनी योनि को मेरे मुख पर रख दिया और मेरे लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
मैं भी उनके स्तनों को अपने हाथों से मसलते हुए उनकी योनि को चाटने लगा और अपनी जिह्वा से उनके जी-स्पॉट एवं भगनासे को कुरेदने एवं सहलाने लगा।
पांच मिनट के बाद मामी ने अपनी टांगें सिकोड़ ली और अपनी योनि को मेरे मुख के ऊपर दबा कर अपने रस को विसर्जित कर दिया। यह हिंदी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैंने उस रस को जब चाटते हुए उनके भगान्कुर को सहलाया तब मामी तड़प उठी, वह तुरंत उठ कर मेरे ऊपर आ गई और अपनी टांगों को मेरे शरीर के दोनों ओर करके नीचे बैठी तथा मेरे लिंग को पकड़ कर अपनी योनि में घुसा लिया। जब मेरा पूरा लिंग उनकी योनि में समा गया तब उन्होंने उछल उछल कर उसे अंदर बाहर करने लगी।
मैं भी उनके गमनागमन एवं गति के अनुसार नीचे से अपने कूल्हे उचका कर अपने लिंग को उनकी योनि की गहराइयों तक पहुंचाने लगा। पंद्रह मिनट तक धीमी एवं तीव्र गति से उछल कूद करके जब मामी थक गई और पसीने पसीने हो गई तब उन्होंने हाँफते हुए कहा– विवेक, अब मैं और नहीं उछल सकती, मेरी टाँगें जवाब दे रही हैं। अब तुम ऊपर आ कर इस संसर्ग को चरमसीमा तक लेजा कर समाप्त कर दो।
उसके बाद मैं मामी के ऊपर चढ़ गया और उनकी दोनों टांगों को अपने कन्धों पर रख कर लिंग को उनकी योनि में घुसा दिया। कुछ क्षण के लिए मैंने लिंग को धीरे धीरे उनकी योनि के अंदर बाहर किया और उसके बाद बहुत ही तीव्र गति से उनके साथ संसर्ग करने लगा।
थोड़ी देर में ही मामी बहुत ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ लेने लगी और मेरे हर धक्के पर अपने चूतड़ उठा कर मेरे लिंग को अपनी योनि की गहराई तक ले जाने लगी। जब मेरा लिंग उनके गर्भाशय की दीवारों से टकराता तब वह बहुत ही जोर से सिसकारी लेती और उनकी योनि थोड़ा सा सिकुड़ कर रस की एक खेप स्खलित करती।
लगभग दस मिनट के इस तीव्र संसर्ग के दौरान मामी की योनि में तीन बार तीव्र सिकुड़न के साथ बहुत सारा रस भी निकला।
अगले पांच मिनट जब मैंने अत्यंत तीव्र संसर्ग किया तब मामी की योनि में बहुत ही ज़बरदस्त हलचल हुई और उनकी योनि ने बहुत ही तेज़ी के साथ सिकुड़ते हुए मेरे लिंग को जकड़ लिया।
उस जकड़न के कारण मेरे लिंग पर बहुत ज़बरदस्त रगड़ लगी और मेरा लिंग फूल गया तथा उनकी योनि को अत्यंत रगड़ लगाईं जिस से हम दोनों एक साथ ही स्खलित हो गए।
अगले एक मिनट तक लगातार अपने लिंग से वीर्य रस की बौछार करके मैंने मामी की योनि को भर दिया और फिर पसीने से लथपथ तथा हाँफते हुए निढाल हो कर मामी के शरीर पर लेट गया। बीस मिनट तक मैं मामी के ऊपर वैसे ही लेटा रहा और मामी मेरे बालों में अपना हाथ फेरते हुए मुझे चूमती रही।
उसके बाद हम दोनों ने बाथरूम जा कर एक दूसरे को साफ़ किया और दोनों नग्न ही मेरे बिस्तर पर आपस में चिपक कर सो गए।
सुबह पांच बजे मामी ने उठ कर मुझे कपड़े पहन कर सोने को कहा और खुद कपड़े पहन कर अपने बिस्तर पर जा कर सो गई।
इसी प्रकार मैंने बाकी के अस्सी दिन एवं रात को भी अपनी छोटी मामी के साथ दो या तीन बार संसर्ग करके उन्हें सम्पूर्ण यौन सुख, आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करता रहा।
मुंबई से अपने घर वापिस आने से पहले मैंने मामी को इलेक्टिक शेवर से बाजू, बगल, टाँगे एवं जाघें, जघनस्थल एवं योनि के बाल साफ़ करना सिखा दिया और मैंने अपना वह इलेक्टिक शेवर मामी के उन तीन माह के सुखमय जीवन की याद में उन्हें भेंट में दे दिया।
अंत में मैं श्रीमती तृष्णा लूथरा मेरी इस रचना का सम्पादन एवं त्रुटि संशोधन करने तथा उसे अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने में मेरी सहायता करने के लिए धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करता हूँ।
मुझे आशा है कि आपको मेरे जीवन की इस घटना पर आधारित यह रचना पसंद आई होगी।
अगर आपकी कोई विशेष टिप्पणी या विचार हो तो आप उसे मेरे ई-मेल आई डी ([email protected]) या फिर श्रीमती तृष्णा लूथरा जी के ई-मेल आई डी [email protected] पर भेज सकते हैं।
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