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सम्पादिका: श्रीमती तृष्णा लूथरा मामा के साथ मुंबई स्टेशन से ठाणे तक पहुँचने में हमें डेढ़ घंटा लग गया और हम दोपहर के लगभग साढ़े बारह बजे के बाद ही उनके घर पहुंचे।
जब हम घर पर पहुंचे तब मेरा स्वागत सिर्फ मामी ने ही किया क्योंकि मामा मामी के शादी शुदा जीवन में अभी तक उनकी कोई संतान नहीं हुई थी।
मामा का घर ठाणे की एक छोटी सी चौल की पहली मंजिल पर था और उसमें सिर्फ एक हाल कमरा था और एक छोटा कमरा था जिसे उन्होंने अपना बैडरूम बना रखा था। हाल कमरे के एक कोने में रसोई थी तथा दूसरे कोने में बाथरूम था बाकी के हिस्से को बैठक बना रखा था जिसमें एक दीवान और एक सोफे सेट तथा दो कुर्सियाँ रखी थीं।
मैं थोड़े असमंजस से हॉल कमरे को देख रहा था, तभी मामी ने मुझे दीवान पर बिठाया और पानी पिलाया। मेरे चेहरे के भाव देख कर मामी बोली- विवेक, हम बहुत साधारण वर्ग के हैं इसलिए बहुत ही छोटी सी जगह में जीवन बसर कर रहे हैं। मेरा वादा है कि मैं तुम्हें इस छोटी सी जगह में भी कोई कष्ट नहीं होने दूंगी लेकिन तुम्हें इस दीवान पर ही सोना पड़ेगा।
इतना कह कर मामी ने मेरा सामान उठा कर उनके बैड रूम में रखी अलमारी के पास रख दिया और बोली- विवेक, मैंने अपनी अलमारी में तुम्हारे लिए दो खाने खाली कर दिए है, इसलिए तुम अपना सामान निकाल कर उन में रख सकते हो। तुम्हारे लिए बाथरूम में पानी रखा है, तुम जल्दी से नहा लो।
मैंने अच्छा कह कर अपना सामान मामी की अलमारी में लगा दिया और नहाने के लिए जब बाथरूम में घुसा तब देखा कि उसके दरवाज़े में कुण्डी ही नहीं थी। जब मुझे वहाँ पर कुण्डी का कोई विकल्प दिखाई नहीं दिया तो दरवाज़े को भेड़ दिया और अंडरवियर पहन कर ही नहाया।
नहाने के बाद मैंने मामी से पूछा- मामी, कपड़े कहाँ सुखाते हैं? मैंने अपना अंडरवियर सूखने के लिए डालना है। मेरी बात सुन कर मामी ने मेरे हाथ से गीला अंडरवियर ले कर बाथरूम में फेंकते हुए कहा- अरे, तुम्हें इसे धोने की कोई ज़रूरत नहीं थी, मैं खाना खाने के बाद बाकी मैले कपड़ों के साथ इसे भी धो कर सुखा देती।
फिर मामा-मामी के साथ चटाई पर बैठ कर खाना खाने के बाद मामी के कहने पर मैं सुस्ताने के लिए दीवान पर जैसे ही लेटा मुझे नींद आ गई।
शाम पांच बजे जब नींद खुली तो देखा मामा और मामी बैडरूम में डबल-बैड पर सो रहे थे तब मुझे बारह वर्ष पुरानी कुछ बाते याद आ गईं जो कुछ इस प्रकार थी:
मेरे मामा पढ़ाई में अधिक अच्छे नहीं थे इसलिए बारहवीं के बाद उन्होंने आई॰टी॰आई॰ में इलेक्ट्रीशियन की ट्रेनिंग ले कर फैक्ट्री में नौकरी शुरू कर ली थी। मेरे ननिहाल में पास वाले घर में एक परिवार दूसरे धर्म का रहता था और मेरी मामी उसी परिवार की सदस्य थी।
क्योंकि मामा और मामी आपस में प्रेम करते थे इसलिए जब मामा ने मेरे नाना को बताया कि वह उससे विवाह करना चाहते हैं तब वह बहुत गुस्सा हुए और मेरे मामा को घर से निकाल दिया।
उसके बाद मेरे मामा और मेरी मामी दोनों ही घर से भाग कर मुंबई आ गए और आपस में शादी करके तब से यहीं पर ही बस गए थे। क्योंकि मेरी मम्मी को छोटे मामा से बहुत लगाव और हमदर्दी थी इसलिए उन्होंने मामा की बहुत सहायता भी करी थी। मामा को मुंबई वाला घर खरीदने के लिए मम्मी ही ने पैसों से उनकी बहुत मदद भी करी थी।
मुझे यह भी याद आ रहा था कि मैंने मामी को सिर्फ एक बार ही देखा था, जब मैं दस वर्ष का था और मामा मामी शादी करने के तुरंत बाद मेरी मम्मी से मिलने के लिए आये थे।
अब मैं मामी से ग्यारह वर्षों के बाद दोबारा मिल रहा था इसलिये मामा के साथ सोई हुई मामी को बहुत गौर से देखने लगा था।
मुझे दस वर्ष पहले देखी मामी और वर्तमान की मामी में कोई अधिक अंतर दिखाई नहीं दे रहा था। अब भी उनका रंग गोरा, बाल काले एवं लम्बे, नैन नक्श एवं रूप उसी प्रकार आकर्षक और सुडौल शरीर की बनावट अभी भी 34-26-34 में ज़रा भी अंतर दिखाई नहीं दिया था। अब भी उनके गोल चहरे पर हिरनी जैसी आँखें, छोटा सा सुंदर नाक, पतले गुलाबी होंठ, सुराहीदार लम्बी गर्दन, सीधे कंधे, पतली बाजू, छोटे ठोस उरोज, पतली कमर, सपाट पेट, दिलकश नाभि, लुभावने गोल गोल नितम्ब, लम्बी एवं मासल टांगें तथा जांघें बिल्कुल वैसी ही थी जैसी मैंने ग्यारह वर्ष पहले देखी थी।
पुरानी यादों से बाहर निकल कर मैं उन दोनों को सोता हुआ छोड़ बाहर बालकनी में खड़ा हो कर सूर्य-अस्त का नज़ारा देखने लगा तभी मामा ने मुझे चाय के लिए अंदर बुलाया।
चाय पर बातों ही बातों में पता चला की दोनों के कम पढ़े लिखे होने के कारण मामा के फैक्ट्री में काम करने के साथ साथ मामी भी बच्चों के रेडीमेड वस्त्र की फैक्ट्री में कपड़े सिलाई का काम करती था।
मामा को तो काम पर सुबह छह से दोपहर दो बजे या फिर दोपहर दो से रात दस बजे या रात दस से सुबह छह बजे वाली पारियों में एक एक सप्ताह के लिए जाना पड़ता था। मामा ने यह भी बताया की जब कभी भी फैक्ट्री में काम अधिक होता था तब उन्हें अपनी पारी के बाद अगली पारी में भी आठ घंटे के लिए ओवर-टाइम करना पड़ता था।
लेकिन मामी ने बताया कि उन्हें काम पर सिर्फ सुबह नौ से पांच बजे की पारी में ही जाना पड़ता था।
अगले दिन मामा को सुबह छह बजे से दोपहर दो बजे तक की पारी में जाना था और मुझे तथा मामी को सुबह साढ़े आठ बजे काम पर जाना था इसलिए सभी रात को दस बजे खाना खा कर सो गए।
सोमवार सुबह छह बजे जब मेरी नींद खुली तो देखा कि मामा तो काम पर जा चुके थे और मामी नहा धोकर तथा कपड़े बदल कर कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रही थी।
जब मैंने पूछा की वह कहाँ जा रहीं थी तो उन्होंने बताया कि वह दूध लेने जा रही थी और साथ में मुझे निर्देश दिया कि बाथरूम में ताज़ा पानी आ रहा था इसलिए मैं भी जल्दी से नहा लूँ।
उनके बाहर जाने के बाद मैं उठ कर बाथरूम में घुस गया और जब तक नहा कर बाहर निकला तब तक मामी वापिस आ कर रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी। मुझे भी अपने प्रोजेक्ट के लिए नौ बजे फैक्ट्री में पहुंचना था इसलिए मैं भी तैयार हो कर मामी के साथ नाश्ता चाय कर के साढ़े आठ बजे घर से निकल गया।
शाम को साढ़े पांच बजे जब मैं घर पहुंचा तो देखा की मामा और मामी आ चुकी थे और मामी चाय बना रही थी। मैंने जल्दी से हाथ मुँह धोया और मामा-मामी के साथ बैठ कर दोनों ने चाय पी।
उसके बाद मामी रसोई में जा कर रात के लिए खाना बनाने लगी, मामा टी वी देखने लगे और मैं उस दिन फैक्ट्री में जो भी हुआ था उसकी रिपोर्ट बनाने लगा।
मामी और मैं अपने अपने काम से खाली होने के बाद मामा के साथ बैठ कर कुछ देर बातें करते हुए टी वी देखते रहे। फिर रात को साढ़े आठ बजे के हम सब खाना खाया और लगभग रात के दस बजे तक सो गये।
मंगलवार सुबह साढ़े छह बजे जब मेरी नींद खुली और जब मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया तब मैं इधर-उधर देखते हुए उठ बैठा तभी मामी अपने बदन पर सिर्फ तौलिया बांधे हुए बाथरूम में से बाहर आई। मुझे जगा देख कर मुस्कराई और अपनी अलमारी, जो दीवान से साफ़ दिखाई देती थी, के पास जा कर कपड़े पहनने लगी।
मैंने पहले तो अपना मुँह दूसरी ओर मोड़ लिया था लेकिन मामी के नग्न शरीर को देखने के लालसा में मैंने अपना मुँह उनकी ओर मोड़ कर पूछा- मामी, मामा काम पर कब गए? मामी ने बिना मेरी ओर देखे उत्तर दिया- सुबह की पारी में तो वह साढ़े पाँच बजे ही चले जाते हैं।
उनका उत्तर सुन कर मैं अगला प्रश्न पूछने ही वाला था कि देखा, मामी उस समय पैंटी पहन चुकी थी और ब्रा पहनने के लिए उन्होंने तौलिया हटा कर बैड पर रख दिया था।
उनके उठे एवं गठे हुए गोल नग्न उरोजों को देख कर मेरी घिग्गी बंध गई उम्म्ह… अहह… हय… याह… और मैं अपना प्रश्न ही भूल गया। मेरा लिंग अचानक ही चेतना की अवस्था में आ गया जिसे छुपाने के लिए मैं अपना तौलिया उठा कर बाथरूम में घुस गया और हस्त-मैथुन करने के बाद नहा धो कर ही बाहर निकला।
निश्चित समय पर मैंने चाय नाश्ता कर के अपने काम पर चला गया और शाम को साढ़े पांच बजे घर लौटा।
शाम की चाय पी कर मामा मामी से कुछ देर तक बात करी जिसके बाद मैंने अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर काफी देर तक काम किया और फिर रात का खाना खा कर सो गया।
बुधवार सुबह पांच बजे मेरी नींद खुल गई लेकिन मैं अपने बिस्तर से उठा नहीं और एक आँख खोल कर कमरे में क्या हो रहा है, देखता रहा।
साढ़े पांच बजे जब मामा तैयार हो कर चले गए तब मामी ने अलमारी के पास से मुझे सोया देख कर अपनी नाइटी उतारी और बिना ब्रा एवं पैंटी पहने सिर्फ सलवार-कमीज़ पहन कर दूध लेने चली गई। दस मिनट के बाद वह वापिस आई और रसोई में जा कर काम करने लगी।
मैं बिना हिले-डुले उसी तरह लेटा रहा और रसोई में काम कर रही मामी की हर कार्यविधि को देखता रहा।
लगभग सवा छह बजे मामी रसोई से बाहर निकली और मेरी ओर देखा तथा मुझे सोया समझ उन्होंने अलमारी के पास जाकर अपनी सलवार कमीज़ उतार दी और अपने नग्न शरीर पर तौलिया बाँध कर इठलाती हुई बाथरूम में चली गई।
वह दृश्य देख कर मेरा लिंग एकदम तन कर खड़ा हो गया था, मेरी हालत खराब हो रही थी तथा बाथरूम में क्या हो रहा है यह देखने की लालसा होने लगी। मैं चुपके से उठा और बाथरूम के बिना कुण्डी वाले दरवाज़े को थोड़ा सा धकेल कर खोल दिया और फिर उसकी ओट में खड़े होकर अन्दर झाँक कर देखने लगा।
अंदर मामी बहुत ही मज़े से गुनगुनाती हुई अपने शरीर पर साबुन मल मल कर नहा रही थी। मुझे सबसे मनमोहक दृश्य तब देखने को मिला जब उन्होंने अपने उरोजों, जघन-स्थल और योनि पर साबुन लगा कर जोर से रगड़ रगड़ कर मला और सिसकारियाँ भी ली।
जब मामी नहा कर अपने बदन को तौलिये से पोंछ रही थी तब मैं अपने बिस्तर पर जा कर आँखें बंद करके लेट गया।
कुछ देर के बाद मामी बाथरूम से निकली और मुझे पुकार कर कहा- विवेक, सात बजने वाले है। जल्दी से उठ कर नहा लो, नहीं तो पानी चला जायेगा।
मैं थोड़ा अलसाते हुए उठा और मामी की ओर देखा तो पाया की वह अलमारी के आईने के सामने खड़ी अपने लम्बे बाल सवार रही थी। मैं बिस्तर से उठ कर अलमारी से अपना शेविंग का सामान एवं तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया।
थोड़ी देर बाद जब मैं अपने बिजली से चलने वाले शेवर से अपनी शेव बना रहा था तब उसकी आवाज़ सुन कर मामी बाथरूम में झांक कर देखने लगी। मैंने आईने में से उनको देखा तो मुड़ कर पूछा- मामी क्या हुआ, क्या देख रही हैं? क्या आप यहाँ कुछ भूल गई हैं? मामी बोली- नहीं, यह आवाज़ सुन कर मैं देखने आई थी की यह किस चीज़ के आवाज़ है।’
जब मैं फिर शेवर चला कर शेव करने लगा तब मामी मेरे नज़दीक आ कर ध्यान से देखते हुए बोली- यह तो बहुत सफाई से तुम्हारी शेव कर रहा है और एक भी बाल नहीं छोड़ रहा है।’ मैंने उत्तर में कहा- हाँ यह बहुत बढ़िया शेवर है। पापा पिछले माह ही मेरे लिए अमरीका से ले कर आये हैं।’
फिर मामी चली गई और मैंने जल्दी से नहा धो कर अंडरवियर और बनियान पहन कर कमरे में आया तथा बाकी के कपड़े पहन कर तैयार हो गया।
उसके बाद मैंने और मामी ने चाय नाश्ता किया और अपने अपने काम पर चले गए। शाम को जब मैं घर पहुंचा तब मामी घर के दरवाज़े पर लगे ताले को खोल कर अंदर जा रही थी। मैं भी उनके पीछे पीछे घर में घुसा और पूछा- मामी, आज आप ताला खोल रही है, मामा जी कहाँ है?’
मामी ने उत्तर दिया- बाज़ार से तरकारी और दूसरा सामान लाने के लिए मैंने उन्हें फ़ोन किया था। वह वही सब लेने गए हैं अभी आते ही होंगे।’
मामा के आने के बाद हम ने चाय नाश्ता किया और फिर रोजाना की तरह अपने अपने काम में व्यस्त हो गए तथा रात खाना खा कर दस बजे तक सभी सो गए।
बृहस्पतिवार और शुक्रवार के दिन सामान्य ही रहे और रोजाना की दिनचर्या की अनुसार हमने समय अनुसार अपना अपना कार्य किया तथा रात के दस बजे तक सो गए।
शनिवार की सुबह सात बजे मामी के उठाने पर ही मैं उठा और रोजाना की तरह जल्दी से तैयार होकर काम पर चला गया। शाम को साढ़े पांच जब मैं घर पहुंचा तब मामी घर के दरवाज़े पर लगे ताले को खोल जा रही थी।
उन्हें ताला खोलते हुए देख कर मैंने मामी से पूछा- मामी, मामा जी कहाँ है? क्या आज भी आप ने मामा को कुछ सामान लाने के लिए फ़ोन कर दिया था?
मामी ने दरवाज़े का ताला खोल कर घर के अंदर जाते हुए बोली- आज उनका ओवर-टाइम है इसलिए रात को दस बजे के बाद ही आयेंगे। मामी का उत्तर सुन कर मैंने बाथरूम में जा कर मूत्र-विसर्जन किया और जब कमरे में आया तो देखा कि मामी अपने कमरे में बिल्कुल नग्न खड़ी अपनी नाइटी पहन रही थी।
मामी ने जब देखा कि मैंने उसे कपड़े बदलते हुए देख लिया था तो मामी मुस्करा कर जल्दी से नाइटी को नीचे करते हुए रसोई में चाय बनाने चली गई।
मामी की नग्नता को देख कर मैं उत्तेजित हो उठा और मेरा लिंग सख्त होने लगा तब मैं कपड़े बदलने के बहाने से फिर बाथरूम में घुस गया और मामी के नाम का हस्त-मैथुन किया।
मैं कपड़े बदल कर बाथरूम से बाहर निकला तो देखा की मामी मेज़ पर चाय रख कर मेरी प्रतीक्षा कर रही थी।
मैं मामी के सामने की कुर्सी पर बैठ कर चाय पी रहा था तब मेरे मन में मामी के साथ संसर्ग की इच्छा जागृत हुई और मैं सोचने लगा कि काश मुझे मामी की सुन्दरता एवं यौवन को भोगने का अवसर मिल जाए।
चाय पीने के बाद मामी रात का खाना बनाने के लिए रसोई में चली गई और मैं अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर काम करने लगा।
शाम साढ़े सात बजे जब हम दोनों अपने अपने काम से मुक्त हुए तब मामी ने कहा- विवेक, एक बात बताओ, अगर मैं तुम्हारे शेवर से अपनी बाजू एवं टांगों पर उगे रोयें शेव करना चाहूँ तो क्या कर सकती हूँ?’ मैंने उत्तर दिया- मामी, मुझे मालूम नहीं कि मेरे शेवर से स्त्रीयों के शरीर के रोयें साफ़ हो सकते हैं या नहीं। लेकिन अगर आप चाहो तो एक बार प्रयास कर के देख सकती हैं।
तब मामी ने मुझे शेवर लाने को कहा और अपनी नाइटी की बाजू को बिल्कुल कंधें तक ऊँची कर दिया और बाजु के ऊपर के हिस्से पर उग रहे बहुत ही बारीक रोयें की शेव करने को कहा।
मैंने उनकी बाजू की उस जगह पर थोड़ा सा पाउडर लगा कर उस पर बहुत ही आराम से दो-तीन बार शेवर घुमाया तो वह सभी रोयें साफ़ हो गए और मामी की बाजू चमकने लगी।
मामी ने जब अपनी रोयें रहित बाजू को देखा तो बहुत खुश हुई और मेरे सामने अपनी दूसरी बाजू के बालों को शेव करने के लिए आगे कर दिया।
जब मैं मामी के बाजू पर उगे रोयों की शेव कर रहा था तब मुझे उनकी कांख में घने बाल दिखे, तब मैंने उनसे पूछा- मामी, आपकी बगल के बाल भी बहुत बड़े हो गए हैं और इसी कारण वहाँ के पसीने के दाग आपकी नाइटी पर भी लग गए हैं। अगर आप कहें तो मैं उन्हें भी शेवर से साफ़ कर दूं?
मामी ने अपने हाथ से उन बालों छू कर देखा और फिर अपनी बाजू ऊँची कर के कहा- हाँ, तुम ठीक कहते हो, ये काफी बड़े हो गए हैं। लो तुम इन्हें भी शेव करके साफ़ कर दो।
मैं जब उनकी दोनों बाजू और काँखों की शेवर से रोयें एवं बाल रहित कर रहा था तब मुझे उनकी नाइटी के गहरे गले में से उनके स्तनों का बहुत नज़दीक से दर्शन हो गए।
मामी की बाजू तथा बगल के बाल साफ़ होते ही मामी उठी और धन्यवाद कहते हुए बड़े प्यार से मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर गालों को चूम लिया।
उस रात हम सबने मामा के आने के बाद ही खाना खाया और लगभग ग्यारह बजे के बाद ही सोये।
अगला दिन रविवार था इसलिए सभी देर से उठे और नहा धो कर चाय नाश्ता करके तैयार हो कर मुंबई भ्रमण के लिए निकल गये रात का खाना खा खा कर नौ बजे घर पहुंचे।
अगले दिन सोमवार से मामा को दोपहर दो बजे काम पर जाना था इसलिए मामी और मैं सुबह जल्दी उठ कर तैयार को कर अपने अपने काम पर चले गए और शाम को साढ़े पांच बजे वापिस घर पहुंचे।
क्योंकि मामा काम पर गए हुए थे रात दस बजे ही लौटना था इसलिए चाय नाश्ता करके मामी ने रसोई का काम निपटाने लगी और मैं अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट लिखने लगा।
रात आठ बजे मामी और मैं टीवी देख रहे थे तब मामी ने कहा- विवेक, क्या तुम मेरी टांगों के रोये और बाल अपने शेवर से साफ़ कर दोगे?
मेरे हाँ कहने पर मामी झट से उठी और बैडरूम में जा कर कपड़े बदल कर नाइटी पहनी तथा अलमारी में से मेरा शेवर निकाल कर ले आई। मैंने उन्हें दीवान पर टांगें लम्बी कर के बिठा दिया और नाइटी को घुटनों तक ऊपर करके उनकी टांगों के रोये और बाल साफ़ कर दिए।
तब उन्होंने अपनी टांगों पर हाथ फेर कर कहा- तुमने तो इन्हें बहुत अच्छे से साफ़ कर दिए है। ऐसा लगता है कि यहाँ कभी रोये एवं बाल थे ही नहीं।
उसके बाद वह उठ कर अलमारी में से बिना आस्तीन की दो कुर्तियाँ और दो कैपरी निकाल कर लाई और बोली- इन रोयों एवं बालों के कारण मैंने जब से इन्हें खरीदा है तब से आज तक पहन नहीं सकी। लेकिन अब मैं इन्हें बे-झिझक पहन सकती हूँ।
इतना कहने के बाद मामी ने मेरे सामने ही अपनी पहनी हुई नाइटी उतार दी और उन दो कुर्तियों में से एक कुर्ती उठा कर पहन ली। क्योंकि वह बिना आस्तीन की तंग-फिट और खुले गले वाली कुर्ती थी इसलिए वह उनके शरीर के साथ चिपक गई और इस कारण मामी के उरोज एकदम से बाहर की ओर उभर आये थे। उस कुर्ती में सिर्फ दो पतले से प्लास्टिक के पारदर्शक स्ट्रैप थे जिनके सहारे वह उनके कंधों पर टिकी थी और मामी के कंधे, बाजू और कांखें चमक रहीं थी।
उसके बाद उन्होंने उस कुर्ती के साथ की मैचिंग कैपरी पहनी और एक मॉडल की तरह कमरे में चल कर मुझे दिखने लगी। उन कपड़ों ने मामी के रूप में चार चाँद लगा दिए थे और वह आज की एक आधुनिक युवती की तरह लग रही थी।
उनकी नंगी गर्दन, उभरा हुआ वक्ष, सपाट कंधे तथा बाल रहित चमकते हुए बाजू उन्हें इतना कामुक बना दिया था की मेरा मन डोलने लगा। मैं अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण नहीं रख सका और आवेश में आ कर उन्हें अपने बाहुपाश में लेते हुए उनके दोनों गालों को चूमते हुए कहा- मामी, तुम्हारे तन की सुन्दरता इन कपड़ों में निखर कर बाहर आ गई है।
फिर मामी से अलग होकर जब मैंने उन कपड़ों में उनकी सुन्दरता की अत्यधिक प्रशंसा करी, तब उन्होंने भी मुझे अपने बाहुपाश में लेकर मेरे गालों पर कई चुम्बन दे कर धन्यवाद दिया।
उसके बाद मामी ने बिना किसी झिझक के मेरे सामने अपने कपड़े बदल कर नाइटी पहन ली और मामा के आने तक हम दोनों टी वी देखते रहे।
रात दस बजे के बाद मामा के आने पर सब ने खाना खा कर रात को लगभग ग्यारह बजे सोये।
सुबह जब छः बजे मेरी नींद खुली तो देखा की मामा सो रहे थे और मामी दूध लेने गई हुई थी इसलिए मैं तुरंत उठ कर बाथरूम में नहाने के लिए घुस गया। नहा कर मैं तैयार हुआ और मामी के साथ ही चाय-नाश्ता किया तथा रोज़ की तरह काम के लिए निकल गया। कहानी जारी रहेगी। अगर आपकी कोई विशेष टिप्प्णी या विचार हों तो आप उसे मेरे ई-मेल आई डी ([email protected]) या फिर श्रीमती तृष्णा लूथरा जी के ई-मेल आई डी [email protected] पर भेज सकते हैं।
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