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सम्पादिका: श्रीमती तृष्णा लूथरा अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज के प्रिय पाठको, कृपया मेरा अभिनन्दन स्वीकार करें! मेरी रचनाओं को पढ़ने, पसंद करने तथा उन पर अपनी प्रतिक्रिया अथवा टिप्पणी भेजने के लिए बहुत धन्यवाद!
मैंने अपनी पिछली रचना चाची की सम्पूर्ण यौन आनन्द कामना पूर्ति के अंत में लिखा था कि मैं अगली रचना में आप सब को अपने जीवन में घटने वाली नई घटना का विवरण बताऊंगा लेकिन पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण मैंने पिछले एक वर्ष से अधिक समय के लिए मैंने कहानी लेखन का कार्य ठंडे बस्ते में डाल दिया था इसलिए आपको मेरी ओर से कुछ नया पढ़ने को नहीं मिला था।
अब वह समय आ गया है कि मैं अपने कथन को पूरा करने के लिए अपने व्यस्त समय में से कुछ समय निकाल कर आप सब को उस नई घटना से भी अवगत करा दूँ।
जो सेक्स कहानी मैं अब प्रस्तुत कर रहा हूँ वह भी मेरी पिछली रचनाओं की शृंखला का ही हिस्सा है और मेरी पिछली रचना ‘चाची की सम्पूर्ण यौन आनन्द कामना पूर्ति’ के दो वर्ष बाद यह घटना घटित हुई थी।
मेरी अन्य रचनाओं की तरह इस रचना को भी श्रीमती तृष्णा लूथरा जी ने ही सम्पादन और व्याकरण सुधार आदि कर के त्रुटियों रहित किया है तथा अन्तर्वासना पर प्रकाशित करवाने में मेरी सहायता भी की है।
अपनी रचनाओं की शृंखला में एक और कड़ी जोड़ते हुए मैं अपनी नई रचना का विवरण नीचे लिख रहा हूँ।
मेरी ऊपर लिखी रचनाओं से आपको यह तो ज्ञात हो ही गया है कि लगभग पिछले तीन वर्षों से मैं कैसे अपनी बुआ तथा अपनी बड़ी चाची की यौन वासना की तृप्ति करता आ रहा हूँ। बुआ तो हमारे साथ ही रहती थी इसलिए उसके साथ तो सप्ताह में दो-तीन बार संसर्ग हो ही जाता था।
लेकिन बड़ी चाची के साथ लगातार भरपूर संसर्ग तभी हो पाता था जब मैं उनके पास गाँव जाता था या फिर जब कभी भी वह हमारे पास शहर में आती थी। उन दोनों के साथ मेरी यह प्रक्रिया अभी भी ज़ारी है क्योंकि मेरे साथ सहवास करने के बाद उन दोनों को बहुत अधिक यौन सुख, आनन्द एवं संतुष्टि मिलती है।
मेरे जीवन के इस आनन्दमई पड़ाव में जब मैं अपनी इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के दूसरे स्तर (सेमिस्टर) में था तब कॉलेज प्रसाशन से हमें निर्देश मिला कि उस वर्ष की ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में हर छात्र को एक प्रोजेक्ट करना था। उस प्रोजेक्ट को हमें कॉलेज द्वारा बताई गई कंपनी में जाकर तीन माह तक कार्य करना था तथा वहाँ पर मिले अनुभव को एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट में तैयार करके कॉलेज प्रसाशन को प्रस्तुत करना था।
इस प्रोजेक्ट कार्य के लिए कॉलेज प्रसाशन ने मुझे मुंबई के ठाणे में स्तिथ एक कंपनी में जाने के लिए कहा।
जब मैंने इस बारे में अपनी मम्मी से बात की तब उन्होंने कहा- चिंता की कोई बात नहीं है, तुम्हारे छोटे मामा ठाणे में ही रहते हैं, तुम उनके साथ रह कर यह प्रोजेक्ट पूरा कर लेना।
अगले ही दिन मम्मी ने छोटे मामा से फ़ोन पर बात करके ग्रीष्म ऋतु के उन तीन महीनों के लिए उनके साथ रहने की व्यवस्था कर दी तथा मुझे निश्चिन्त हो कर ठाणे जाने के लिए कह दिया। ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों के शुरू में ही मुझे ठाणे पहुंचना था इसलिए मैंने छुट्टियाँ शुरू होने से दो सप्ताह पहले से ही हर रोज़ बुआ के साथ संसर्ग करके उनकी वासना की संतुष्टि करता रहा।
छुट्टियाँ शुरू होने से दो सप्ताह पहले ही जब मैंने बड़ी चाची को फोन पर तीन माह के लिए मुंबई जाने के बारे में बताया तब उन्होंने मुझे ठाणे जाने से पहले उनसे मिलने के लिए गाँव में आने के लिए कहा।
मैंने चाची का वह सन्देश मम्मी को सुनाया और शनिवार की शाम को ही पांच दिनों के लिए गाँव चला गया।
गाँव में पहुँचते ही मैं दादा जी और दादी जी से मिलने के बाद जब छोटी चाची से मिलने गया तो पता चला कि वह दो दिन पहले ही बच्चो सहित अपने मायके चली गई थी।
जब मैं रसोई में जा कर बड़ी चाची से मिला तब उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर मेरी आव भगत करी। पांच मिनट बाद जब हम अलग हुए तब बड़ी चाची ने बताया कि अगले ही दिन बड़े चाचा भी बच्चों को उनके ननिहाल छोड़ने के लिए चार दिनों के लिए जा रहे हैं।
उनके मुँह से यह खुशखबरी सुनते ही मैं उछल पड़ा और चाची से चिपट कर उनके गालों और होंटों को चूमते हुए मैंने उनके स्तनों का मर्दन कर दिया। तब चाची ने मुझसे कहा- विवेक बस आज की रात सब्र कर ले। कल से मैं तुझे वह सब कुछ दूंगी जो हमेशा देती आई हूँ। मैंने उनसे कहा- चाची, मुझमें सब्र की बहुत कमी है और अगले तीन माह तक तो मुझे सब्र करना ही है। इसलिए मैं यहाँ एक क्षण भी व्यर्थ नहीं करना चाहता हूँ। क्या हम एक झटपट वाला संसर्ग नहीं कर सकते?
मेरे जोर देने पर चाची झटपट वाले संसर्ग के लिए मान गई और मुझे छोटी चाची के कमरे में जाकर उनकी प्रतीक्षा करने को कहा। लगभग दस मिनट की प्रतीक्षा के बाद बड़ी चाची ने उस कमरे में कदम रखा और अंदर आते ही उन्होंने दरवाज़े को बंद करके उस पर कुण्डी लगा दी।
फिर मुड़ कर मुझसे पूछा- यह झटपट वाला संसर्ग क्या होता है और इस संसर्ग में कितना समय लगेगा? मैंने तुरंत उत्तर दिया- जैसा मैं कहता हूँ बस आप वैसा ही करते जाइए। दस मिनट में आप को पता चल जायेगा कि झटपट वाला संसर्ग क्या है और कैसे करते हैं।
इसके बाद मैंने उनके होंटों का छोटा सा चुम्बन लेते हुए उन्हें झुक कर घोड़ी बनने के लिए कहा और उनकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर उठा दिया। जब चाची ठीक से घोड़ी बन कर स्थिर होकर खड़ी हो गई तब मैंने उनकी पहनी हुई काली पैंटी को उनके घुटनों से नीचे कर के उनकी योनि को सहलाने लगा।
एक हाथ से उनकी योनि के साथ साथ उनके भगनास को भी सहलाता रहा और दूसरे हाथ से मैंने अपनी पैंट की ज़िप खोल कर अपने खड़े लिंग को बाहर निकाल कर हिलाने लगा।
दो मिनट के बाद जब मैंने चाची के मुँह से पहली सिसकारी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ सुनी तब मैंने तुरंत अपने लिंग को उनकी योनि के अंदर धकेल कर अंदर बाहर करने लगा। दो मिनट तक तो हलके एवं अगले दो मिनट तक तेज़ धक्के मारने पर मैंने चाची की एक लम्बी सिसकारी के साथ उनकी योनि में ज़बरदस्त सिकुड़न महसूस करी। तब मैंने दो मिनट के लिए अत्यंत ही तेज़ी से धक्के मारे और उसके बाद के एक मिनट में ही चाची की तेज़ सिसकारियों और मेरी हुंकार के दौरान हम दोनों के रस का उनकी योनि अंदर ही स्खलन हो गया।
उसके बाद मेरे लिंग के योनि से बाहर निकलते ही चाची ने खड़ी होकर अपने पैंटी को ऊपर किया और अपने कपड़ों को ठीक करके मुझे चूमा तथा तुरंत कमरे से बाहर चली गई।
मैंने भी छोटी चाची के बाथरूम में जाकर अपने लिंग को साफ़ किया और कमरे से बाहर निकल कर अपने कमरे में जाकर आराम करने लगा।
आधे घंटे के बाद चाची मेरे पास आई और बोली- विवेक, यह तुम्हारा झटपट वाला तो बहुत बढ़िया था। केवल नौ मिनट में बहुत आनन्द भी आया और किसी को शक भी नहीं हुआ। मैंने चाची को चूमते हुए कहा- चाची, यह झटपट वाली क्रिया हर समय करने के लिए नहीं है। यह तो जब कोई बहुत उत्तेजित हो या व्यस्तता के कारण उसके पास समय का अभाव हो तभी करनी चाहिए।
मैं उस रात को सिर्फ उस झटपट वाले से ही संतोष करके रह गया और आने वाले दिनों की प्रतीक्षा में रात का खाना खा कर अपने बिस्तर पर जा कर सो गया।
अगले दिन सुबह पांच बजे जब चाचा बच्चों को ले कर चले गए तब मैं उठ कर चाची के कमरे में गया तो देखा की वह बिस्तर की चादर बदल कर नई चादर बिछा रही थी। मेरे पूछने पर की उन्होंने बिस्तर की चादर क्यों बदली है तो उन्होंने उतारी हुई चादर उठा कर मुझे पकड़ा दी। जब मैंने उस चादर को थोड़ा फैला कर देखा तो उस बहुत से ताज़ा एवं कुछ नम दाग दिखे।
मैंने जब चाची की ओर देखा तो उसने कहा- तेरे चाचा ने आज सुबह जाने से पहले मेरे साथ जो सहवास किया है यह उसी के दाग है। मैंने इसे इसलिए बदल दिया क्योंकि मैं इस दागी एवं मैली चादर पर तुम्हें नहीं सोने देना चाहती हूँ।
यह सुन कर मैंने चाची को पकड़ कर होंटों पर चूम लिया और उसके शरीर को जगह जगह से मसलने लगा। तब उन्होंने कहा- विवेक, अभी काम का समय है इसलिए अभी कोई मस्ती मत कर। मैं दस बजे तक सभी काम निपटा कर तुम्हारे पास आ जाऊँगी तब तुम दो घंटे तक जितनी भी मस्ती करनी चाहो कर लेना।
चाची की बात सुन कर मैंने चाची की नाइटी ऊपर उठा कर उनके स्तनों और योनि का चुम्बन ले कर जब मैं कमरे से जाने लगा तब चाची ने मुझे रोका। उन्होंने मेरे पास आकर मेरे लोअर को खींच कर नीचे किया और मेरे लिंग को चूमने के बाद ही मुझे जाने दिया।
चाची के कमरे से बाहर निकल कर मैंने अपने कमरे में जा अपने सभी कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नग्न हो कर बिस्तर पर सो गया।
दस बजे के बाद चाची सभी काम निपटा कर जब मेरे कमरे में आई और मुझे पूर्ण नग्न देखा तो उसे मस्ती करने की सूझी इसलिए उसने मुझे जगाने के लिए आवाज़ लगाने के बजाए मेरे लिंग को मुँह में ले कर चूसने लगी।
उनके द्वारा मेरे लिंग को चूसने से वह चेतना की अवस्था में आ गया और इसके साथ मेरी निंद्रा भी टूट गई। मैंने तुरंत उठ कर उन्हें चूमा तथा उनके सभी कपड़े उतार कर उन्हें भी नग्न करके अपने पास लिटा लिया।
अगले आधे घंटा तक हम दोनों अपनी अपनी कामवासना को उत्तेजित करने के लिए एक दूसरे के गुप्तांगों से खेलते, मसलते और चूसते-चाटते रहे।
उसके बाद जब दोनों की उत्तेजना बहुत बढ़ गई तब हमने संसर्ग किया और आधे घंटे की सम्भोग क्रिया के बाद दोनों के रसों का एक साथ ही चाची की योनि में स्खलन हो गया।
इसी प्रकार अगले चार दिन भी मैंने चाची के साथ आठ बार नियमित और चार बार झटपट वाला सम्भोग करके उन्हें आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करी थी।
बड़ी चाची के साथ अंतिम झटपट वाला संसर्ग मैंने उन्हीं के आग्रह पर आखरी दिन दोपहर को खाना खाने के बाद शहर की ओर प्रस्थान करने से पहले छोटी चाची के बैडरूम में ही किया था।
उस शाम को जब मैं घर पहुँचा तो बुआ ने मेरी बहुत आवभगत की और बताया कि मम्मी पापा किसी पार्टी में गए हुए थे तथा रात को देर से आयेंगे।
मम्मी पापा के घर पर नहीं होने के कारण उस रात बुआ को पूर्ण आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करने के लिए मुझे उनके साथ भी सम्भोग करना पड़ा। मैंने अगले दो दिन का समय तो अधिकतर मम्मी के साथ बिताये लेकिन रातें बुआ के साथ चार बार संसर्ग करके बितानी पड़ी।
शनिवार शाम को साढ़े चार बजे की गाड़ी से मैंने मुंबई के लिए प्रस्थान किया और मेरी गाड़ी रविवार सुबह ग्यारह बजे मुंबई पहुंची तो स्टेशन पर मेरे छोटे मामा मुझे लेने के लिये आये हुए थे।
मामा के साथ मुंबई स्टेशन से ठाणे तक पहुँचने में हमें डेढ़ घंटा लग गया और हम दोपहर के लगभग साढ़े बारह बजे के बाद ही उनके घर पहुंचे। कहानी जारी रहेगी। अगर आपकी कोई विशेष टिपण्णी या विचार हो तो आप उसे मेरे ई-मेल आई डी ([email protected]) या फिर श्रीमती तृष्णा लूथरा जी के ई-मेल आई डी [email protected] पर भेज सकते हैं।
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