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अब तक आपने पढ़ा.. मैं कबीर के बेडरूम में था और नेहा और कबीर के बीच चल रही चूत चुदाई का मजा ले रहा था। अब आगे..
अब नेहा ने भी होंठ चूसने चालू कर दिए, दोनों एक-दूसरे से लिपटे हुए थे, कबीर नेहा के गले पर ‘डीप किस’ कर रहा था। अब नेहा भी काफी नार्मल हो गई थी। कबीर ने नेहा की चूची ब्रा के ऊपर से मसलनी चालू कर दी। मेरा लण्ड खड़ा हो गया था.. मेरा मुठ मारने का मन कर रहा था.. पर मार नहीं सकता था।
कबीर ने नेहा की ब्रा ऊपर कर दी और नंगी चूचियां मसलने लगा, नेहा ने ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करना शुरू कर दिया। कबीर बोलने लगा- आओ न जान..
उसने पीछे से नेहा की ब्रा का हुक खोल दिया, नेहा अब ऊपर पूरी नंगी थी, वो उसकी चूची मसले जा रहा था और निप्पल चूसता जा रहा था।
मुझसे अब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने धीरे-धीरे लंड सहलाना शुरू कर दिया। कबीर ने अब अपनी उंगली नेहा की पैन्टी में डाल कर उसकी चूत में घुसा दी और उसकी भगनासा (क्लाइटोरिस) को रगड़ने लगा।
नेहा बुरी तरह उत्तेजित हो गई थी, वह बोली- कबीर यार, तुम न पागल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हो। यह कहते हुए उसने भी कबीर की फ्रेंची में हाथ घुसा दिया और कबीर का लंड जोर-जोर से हिलाने लगी।
पर वो कबीर था.. वो बहुत देर तक कबीर का लंड सहलाती रही और वो उसकी क्लाइटोरिस को मसलता रहा। अब दोनों पूरे गर्म हो उठे थे।
कबीर की नज़र मेरे ऊपर गई, उसने नेहा से बहुत धीरे से कहा- तुम्हारा चम्पू मुठ मार रहा है। नेहा बोली- बस वो यही कर पाता है।
अब उन दोनों का मेरे होने न होने का बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था। ऐसा लग रहा था कि वो दोनों एक-दूसरे के बदन में घुस जाएंगे।
कबीर ने अपनी फ्रेंची निकाल कर फेंक दी, उसकी फ्रेंची मेरे पास में आकर गिरी। तभी कबीर ने नेहा की पैन्टी भी उतार दी और वो भी मेरी तरफ फेंक दी।
फिर कबीर सीधा हो गया और मेरी तरफ देख कर बोला- हाँ.. मैं हड़बड़ा गया.. मैंने कहा- जी सर.. जी सर.. कबीर बोला- जी सर जी नहीं मेरे चम्पू.. तुमको बुरा तो नहीं लगता.. कि मैं तुमको चम्पू बोलूँ? मैंने कहा- नहीं सर..
कबीर बोला- तो चम्पू.. मैडम को खुश करना सीख रहे हो? मैंने कहा- जी सर जी.. कबीर हँसने लगा फिर बोला- यार चम्पू अपनी मेमसाहब की पैन्टी और मेरी चड्डी उठा कर ऊपर रख दो। मैंने ऐसा ही किया।
अब वो पलंग पर टेक लगा कर पीठ के बल नंगा बैठ गया और नेहा उसके लण्ड से खेलने लगी, वो कबीर के लौड़े को को किस कर रही थी। फिर कबीर ने नेहा से कहा- जान भोग का क्या हुआ? नेहा बोली- चुप रहो कोई भोग-वोग नहीं..
कबीर ने नेहा के बाल सहलाते हुए मुझसे पूछा- चम्पू भोग तो मालूम है न? मैंने कहा- सर भोग मैं समझा नहीं सर.. कबीर बोला- जानू, चम्पू को भोग नहीं लगाती हो?
नेहा चुपचाप थी.. कबीर ने इस बार उससे जोर देकर बोला- बताओ मेरी जाने जिगर.. नेहा बोली- वो भोग लगाने के लायक नहीं है। कबीर जोर से हँसने लगा।
कबीर मेरी तरफ मुँह करके बोला- भोग क्या होता है.. नहीं मालूम? मैंने कहा- सर किसी काम के पहले भगवान को मीठे का भोग लगाते हैं। कबीर बोला- सही कहा चम्पू.. यार तुम्हारा चम्पू तो बहुत होशियार है जान। नेहा बोली- तुम भी न..
कबीर बोला- अब मैं अपनी जान से भोग लगवाऊँगा और मेरी जान मेरा भोग लगाएगी.. समझे चम्पू? मैं बोला- जी सर.. वो बोला- अब जाओ चम्पू.. अब मैंने कहा- सर जा रहा हूँ..
पर मैं वहीं बैठा रहा।
कबीर ने नेहा से कहा- जान तुम्हारा भोग तो लगा दूँ? नेहा बोली- नहीं कबीर.. प्लीज नहीं कबीर.. पर वो कहाँ रुकने वाला था। उसने कहा- हाँ मेरी जान.. आ जाओ।
कबीर ने उसको दोनों टांगों से पकड़ कर खींच लिया और टांगें फैला कर ऊपर करके उसकी चूत में अपना मुँह घुसा दिया.. और अपनी जीभ उसकी चूत में पेल दी। नेहा ‘उउउ.. उउउहह.. उईई’ करते हुए बोलने लगी- छोड़ो न प्लीज..
वो मुझ पर भी जोर से चिल्लाई और गुस्सा होते हुए मुझसे बोली- जाओ यहाँ से बाहर.. गधे की तरह बैठे रहोगे क्या?
नेहा ने मेरी बहुत बुरी बेइज्जती कर दी थी.. पर मुझको अच्छा लग रहा था। मैं उठने लगा तो कबीर नेहा से बोला- छोड़ो न जान.. क्यों गुस्सा हो रही हो। नेहा कबीर से बोली- भेजो यार इस चम्पू को..
कबीर ने नेहा को चिपका लिया और बिस्तर पर नीचे सरक गया और नेहा की चूत में जीभ मारने लगा। ‘बैठे रहने दो चम्पू को.. इसको मालूम चल जाएगा..’
नेहा कबीर का मुँह पीछे को करने लगी.. पर कबीर उसकी चूत को कुत्ते की तरह उसकी क्लाइटोरिस को होंठों में दबा कर खूब जोर से खींचते हुए चूस रहा था।
नेहा जोर-जोर से सीत्कार कर रही थी ‘उईईई ओह्ह.. आहा.. ओह्ह्ह..’
कबीर नेहा की गांड पीछे से दबाता जा रहा था और उसकी चूत को चूसता जा रहा था। नेहा की चूत जब पूरी तरह पानी छोड़ने लग गई.. तब उसने उसकी चूत से जीभ निकाल ली और ऊपर को खिसक गया, वो बिल्कुल पीठ का सहारा ले कर बैठ गया।
मैं बहुत बुरी तरह से पैन्ट में ही झड़ चुका था।
अब नेहा उसके लंड को बुरी तरह से मसले जा रही थी। उसका मोटा लंबा लंड पूरा तना हुआ था। उसने नेहा के बाल पीछे से पकड़ रखे थे। कबीर ने मेरी तरफ पीठ कर ली और अपना लंड नेहा के मुँह में घुसा दिया.. क्योंकि कबीर की मेरी तरफ पीठ थी, मैं नेहा को कबीर का लण्ड चूसता हुआ नहीं देख पा रहा था।
कबीर के मुँह से निकल रहा था ‘वाओ वाओ.. नेहा मेरी जान.. आई लव यू.. मेरी जान आह..’
मुझे लग रहा था कि नेहा खूब कायदे से उसका लंड चूस रही थी।
कबीर बोलने लगा- हाय क्या चूसती हो मेरी जान.. क्या भोग लगा रही हो।
कबीर धीरे-धीरे थोड़ा सीधा होने लगा। मुझको अब नेहा का सर ऊपर-नीचे जाता नज़र आने लगा। अब वो धीरे-धीरे पूरा सीधा हो गया था, अब मैं नेहा को उसका लंड चूसते साफ़ देख रहा था. वो उसके सुपारे पर जीभ मार रही थी और लौड़े की चमड़ी ऊपर-नीचे कर रही थी। कबीर ‘आह.. आह..’ करता जा रहा था।
अब कबीर सीधे पीठ के बल लेट गया और उसने नेहा को अपने ऊपर खींच कर लिटा लिया। इस स्थिति में दोनों एक-दूसरे के होंठ चूस रहे थे। मैं तो दो बार झड़ चुका था। वो बहुत देर स्मूच करते रहे और फिर कबीर ने नेहा की टाँगें फैला दीं।
नेहा की चूत उसके लण्ड पर रगड़ रही थी, कबीर ने अपना लंड पकड़ कर नेहा की चूत में घुसेड़ दिया। अब नेहा कबीर के लण्ड के ऊपर थी। कबीर ने नेहा को धीरे-धीरे उछलना शुरू किया.. तो नेहा भी आगे-पीछे होने लगी। कबीर उसकी आगे से दोनों चूचियां पकड़ कर मसल रहा था और बीच-बीच में निप्पल भी निचोड़ता जा रहा था।
कबीर ने नेहा को बिल्कुल अपने ऊपर झुका लिया और उसके निप्पलों को चूसने लगा। वो नेहा के चूतड़ों को अपने ऊपर उछालने लगा। नेहा मादक सीत्कार कर रही थी।
कबीर ने नेहा को मेरी तरफ इशारा किया। मैं आँखें फाड़ कर देख रहा था। नेहा मेरी तरफ देख कर बहुत तेज़ भड़क गई। कबीर के लंड की सवारी करते-करते जोर से बोली- भाग जाओ यहाँ से.. चले जाओ अभी.. साले, दिखाई मत पड़ना इस कमरे में.. साले गांडू।
मैं समझ गया कि बाहर जाने में ही भलाई है। मैं कमरे से बाहर आ गया और दरवाजे को ऐसे लगाया कि बिल्कुल पतली सी झिरी छोड़ दी।
अब कबीर ने नेहा को जोर-जोर से उछालना शुरू कर दिया था।
चूत से लौड़े के टकराने की ‘फ़च्छ फ़च्छ’ की आवाजें कमरे से बाहर आ रही थीं, नेहा की ‘आह्ह.. ऊह्ह..’ जैसी मादक सीत्कारों से कमरा गूँज रहा था।
मेरा लंड बड़ी मुश्किल से तीसरी बार खड़ा हुआ.. वो भी ठीक से नहीं हुआ था। मैं लण्ड सहला रहा था। मैंने दरवाजे की पतली सी झिरी से देखा कि कबीर थोड़ा बैठ सा गया और उसने नंगी नेहा को अपनी गोद में ले कर बिस्तर पर पटक दिया और उसकी दोनों टाँगें पूरी तरह से फैला दीं। अब वो जोर-जोर से झटके देने लगा।
पूरा कमरा चुदाई की कामुक आवाजों से गूँज रहा था। मेरे उधर से बाहर आ जाने से नेहा भी खुल कर सीत्कार भरने लगी थी, नेहा कबीर से कह रही थी- आऊह्ह.. जान प्लीज धीरे करो.. मेरी चूत फटी जा रही है..
कमरे से और तेज़-तेज़ ‘फट.. फट..’ की आवाज आने लगी।
तभी नेहा एकदम से अकड़ गई और उसी वक्त कबीर ने तीव्र गति से अपने लंड की पिचकारी नेहा के पेट पर छोड़ दी और एक साइड में लेट गया। नेहा भी ऐसे ही टाँगें फैलाए हुए लेटी रही।
मैं चुपचाप आकर सोफ़े पर बैठ गया।
पांच मिनट बाद कबीर की आवाज आई- अबे चम्पू.. मैं बैठा रहा.. उसने इस बार थोड़ी जोर से आवाज लगाई- चम्पू.. मैंने दरवाजा थोड़ा सा खोल कर झांका और पूछा- जी सर जी? वो बोला- जा.. जाकर बाथरूम से तौलिया ले कर आ।
मैं तौलिया ले आया। वो बोला- मैडम का पेट साफ़ कर दे।
मैं नेहा का पेट साफ़ करने के लिए बढ़ा.. नेहा ने तौलिया ले लिया और अपना पेट पोंछने लगी। कबीर ने पूछा- क्या टाइम हुआ है? मैंने कहा- सर पौने ग्यारह हुआ है। उसने नेहा से पूछा- तुम्हें देर तो नहीं हो रही?
नेहा बोली- नहीं साढ़े ग्यारह बजे तक घर पहुँचना है। उसने नेहा को अपने पास खींच लिया और चिपका लिया। नेहा ने धीरे से कबीर से पानी के लिए कहा। कबीर मुझसे बोला- जा बे.. जाके फ्रिज से पीने का पानी ले आ। दोनों एक-दूसरे से नंगे हो कर चिपक गए।
मैं पानी ले कर आया, कबीर ने मेरे हाथ से ले कर कहा- जान.. पानी पी लो। फिर कबीर मुझसे बोला- सुन.. लाइट बंद कर दे चम्पू.. और हम दोनों को थोड़ी देर आराम करने दे।
मैं बाहर आकर बैठ गया और उनके उठने का इंतज़ार करने लगा। मैं मैगजीन पढ़ने लगा।
जब आधा घण्टा हो गया.. तो मैंने अन्दर झाँक कर देखा.. वो दोनों नंगे चिपके सो रहे थे। मैंने थोड़ी देर इंतज़ार के बाद धीरे से दरवाजा खटखटाया।
कबीर बोला- क्या हुआ? मैंने कहा- सर 11.30 होने वाला है। वो बोला- ठीक है.. आते हैं।
उसने धीरे से नेहा को उठाया और बोला- जान उठो घर नहीं जाना। वो नेहा को किस करने लगा, नेहा उससे चिपक गई और वो फिर बोला- उठो देर हो रही है।
तभी अन्दर लाइट जल गई और कुछ ही मिनट में नेहा और कबीर कपड़े पहन कर बाहर आ गए।
नेहा मुझसे बोली- चलो.. जब हम दरवाजे के पास पहुँच गए.. तो कबीर ने कहा- इधर आ चम्पू.. मैंने कहा- जी सर.. उसने कहा- घर जाकर सोने से पहले क्या करना है.. मालूम है? मैंने कहा- जी सर.. बोला- जी सर नहीं.. नेहा जी को अच्छे से तेल लगा देना। मैंने कहा- ठीक है सर..
फिर हम अपने घर की ओर निकल गए। घर पहुँचे तो 12 बज़ चुके थे और हमने धीरे से अपनी चाबी से दरवाजा खोला और बेडरूम में चले गए।
नेहा जाते ही लेट गई.. मैं भी सोने लगा थोड़ी देर बाद उसने हिलाया। बोली- उठो.. मैंने कहा- क्या हुआ? बोली- क्या होगा.. कबीर ने पूरे बदन को तोड़ दिया है। मैंने कहा- कैसे तोड़ दिया?
बोली- पूरे गधे हो क्या.. आँखें फाड़-फाड़ कर क्या देख रहे थे.. उसने कैसे रगड़ रगड़ कर मेरी चूत ली.. उसने पूरा निचोड़ दिया.. वो मेरा पूरा बदन तोड़ देता है.. ऐसे चोदता है यार.. देखा था ना कैसे चोदता है.. जाओ तेल लाओ और मालिश करो और अन्दर से कमर बंद कर लो। यह बोल कर उसने अपनी नाईटी उतार ली।
अगले आधे घण्टे तक मुझे नेहा की मालिश करनी पड़ी और वो ऐसे सो रही थी कि पता नहीं कितनी थक गई हो।
दोस्तो, जब भी कबीर को नेहा की चूत लेने का मन करता या नेहा का चुदने का मन करता.. कबीर मुझको बेहिचक फ़ोन करता- अबे चम्पू क्या कर रहा है? मैं कहता- जी सर.. वो कहता- मैडम (नेहा) को शाम को लेते आना।
जब मैं नेहा को उसके घर लेकर पहुँचता था.. तो वो जाते ही मेरे सामने उससे लिपट जाता। नेहा भी वैसा ही करती। फिर कई बार मेरे सामने दोनों स्मूच करते.. उसके बाद वो बिना किसी फॉर्मेलिटी के नेहा से कहता- जानू बेडरूम में चलो न..
नेहा मेरी तरफ अगर इशारा करती तो बिल्कुल बेशरम होकर मेरा गाल थपथपा कर कहता- अरे यार.. चम्पू के लिए क्यों परेशान होती हो है.. क्यों बे चम्पू.. मैं कहता- जी सर.. जी सर.. तो वो बोलता- जी सर.. नहीं तू निकल यहाँ से.. मैडम तेरे सामने खुल कर एंजॉय नहीं कर पाती।
कई बार मैं चला जाता.. कई बार जब मैं उससे कहता.. तो वो मुझसे कहता- चल बैठ जा..
कुछ दिनों बाद कबीर की वाइफ मायके से आ गई। फिर 6 महीने के कबीर आउट ऑफ़ इंडिया चला गया.. पर इन दो-तीन महीनों में नेहा की मेरे सामने चुदने और एंजॉय करने की शर्म बिल्कुल ख़तम हो गई थी।
मैं इसमें ही खुश था। अगले 3 साल कुछ नहीं हुआ।
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