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नमस्कार दोस्तो.. मेरा नाम कुन्दन है, जयपुर का रहने वाला हूँ।
यह मेरे जीवन की एक सच्ची घटना है। इस घटना के समय में जयपुर से बाहर एक कंपनी में काम करता था।
बात तब की है जब जयपुर में आई.ओ.सी. के टैंक्स में आग लगी थी.. जो कि कोई दस दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से बुझी थी। उन्हीं दिनों मुझे अचानक बॉस के साथ कंपनी के काम से जयपुर जाने का एक ऑर्डर आया।
लेकिन हमारे शहर से जयपुर जाने वाली सभी गाड़ियाँ बंद हो गई थीं.. क्योंकि आग लगने से वहाँ सिक्यूरिटी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने गाड़ियों की एंट्री बंद कर दी थी। मैंने बड़ी मुश्किल से सैटिंग करके एक बस में सीटें बुक करवाई थीं.. लेकिन ठीक जाने के समय बॉस किसी ज़रूरी काम आ जाने के कारण बोले- सभी पेपर्स लेकर तुम अकेले ही चले जाओ।
मैं अपनी बस में बैठ चुका था.. मुझे स्लीपर कोच वाली एसी वोल्वो बस मिली थी.. जिसमें मुझे और बॉस को साथ में सोते हुए जाना था.. लेकिन बॉस को कोई ज़रूरी काम आन पड़ा था तो वो मुझे बस में बिठा कर चले गए।
बॉस के जाने के बाद मैं पानी की बोतल लेने नीचे उतरा.. तो बुकिंग काउंटर पर देखा कि एक लेडी.. जो कोई 32 साल की थी.. जयपुर जाने के लिए टिकट माँग रही थी।
लेकिन उस दिन की बस फुल हो चुकी थी और कोई गुंजाइश नहीं थीम वो बहुत रिक्वेस्ट कर रही थी, वो कह रही थी- मैं कितने भी पैसे दे सकती हूँ.. प्लीज़ मेरे लिए.. सीट या बर्थ उपलब्ध करवा दो।
लेकिन बस के मैनेजर ने भी मना कर दिया।
मेरे पास अभी बॉस की सीट खाली थी.. लेकिन कोई आदमी होता तो मैं बर्थ शेयर करने की बात करता.. लेकिन लेडी के साथ यह मुझे ठीक नहीं लग रहा था। वह अच्छे घर की लग रही थी।
उसकी आँखों में आँसू आ गए.. लेकिन बस वाले ने मना कर दिया। तब वो रोते हुए अपना बैग लेकर जाने लगी। इधर बस स्टार्ट होकर जाने के लिए हॉर्न मार रही थी।
तभी मैंने हिम्मत करके उससे बोला- मेरे पास एक बर्थ फालतू है.. आप चाहे तो हम अड्जस्ट हो सकते हैं.. लेकिन प्राब्लम यह है कि ये स्लीपर कोच है। उसने तुरंत मना कर दिया.. तो मैं बस की ओर जाने लगा।
तभी उसने कुछ सोचा और बस की ओर दौड़ी.. तब तक मैं बस पर चढ़ चुका था और बस भी धीमे-धीमे आगे बढ़ने लगी थी। उसने मुझे इशारा किया.. तो मैंने ड्राइवर को बोलकर गाड़ी रुकवाई और उसे अन्दर ले लिया।
उसके पास एक छोटा सा बैग था। मैंने बड़ी शालीनता से उसे बिठाया और अपना परिचय देते हुए उससे बोला- आप चाहें तो सो जाएं.. मैं एक कोने में बैठ जाऊँगा।
तो वो बोली- थैंक्स.. लेकिन आप मेरे कारण परेशान ना हों.. मैं बैठ कर सफ़र पूरा कर लूँगी.. प्लीज़, आप सो जाएं.. वैसे भी बर्थ आपकी है।
मैंने हँस कर कहा- हाँ, मेरे परदादा जी मेरे लिए यह वोल्वो छोड़ गए थे। तो वो भी हँस पड़ी।
खैर हम दोनों ही एक-एक कोने से सट कर बैठ गए। मैं अपने कान में मोबाइल का इयरफोन लगा कर गाने सुनने लगा और वो बर्थ की जेब में लगा हुआ न्यूज़पेपर निकाल कर पढ़ने लगी।
जब गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली तो वो मुझे बोली- प्लीज़.. आप मेरे कारण परेशान ना हों.. आप आराम करते हुए जर्नी करें। तब मैं बोला- एक काम करते हैं.. रात में गाड़ी खाने के लिए होटल पर रुकेगी.. उसके बाद आधी रात आप सो जाना और उसके बाद मैं सो जाऊँगा।
मेरी ज़िद के आगे वो हार गई और बोली- ठीक है.. आप जीते.. मैं हारी।
अब मैं फिर से आँखें बंद करके गाने सुनने लगा और वो पेपर पढ़ते हुए ऊंघने लगी।
तभी अचानक ब्रेक लगने पर मेरी आँख खुली तो देखा कि वो बैठे-बैठे ही सो रही थी। मैंने अब बड़े गौर से उसके शरीर का मुयायना किया, वो गोरे बदन की मांसल चिकनी महिला थी.. और उसने साड़ी ब्लाउज पहन रखा था। उसका ब्लाउज कम लंबाई का था.. यानि पीठ और गला काफी खुला छोड़ा हुआ था और साड़ी भी काफी नीची बंधने के कारण उसकी नाभि भी दिखाई पड़ रही थी। उसका गोरा पेट गाड़ी की रफ़्तार के कारण बड़े ही मादक अंदाज़ में थिरक रहा था।
बैठे-बैठे सोने के कारण उसके गुंदाज़ चूचे भी एक तरफ से साड़ी के पल्ले से बाहर झाँक रहे थे। ब्लाउज महीन कपड़े का होने के कारण अन्दर से डार्क कलर की लेस वाली ब्रा भी दिखाई पड़ रही थी।
अचानक उसके शरीर में हरकत हुई.. और उसने नींद में पैर फैला दिए.. जिस कारण उसकी साड़ी थोड़ी ऊपर को चढ़ गई। केले के तने के समान गोरी और चिकनी टाँगें देख मेरा लंड फूल कर कुप्पा हो गया।
वो तो गनीमत थी कि मैं सफ़र में जाने के लिए घर से ही बरमूडा पहना कर आया था। मेरा लंड कड़क हो चुका था.. लेकिन मैं अपनी सीमा रेखा जानता था।
तभी बस धीरे-धीरे स्लो हुई और खाने के लिए होटल पर रुकी। मैंने उसे आवाज़ दी तो उसने कोई रिप्लाई नहीं दिया.. तब मैंने उसके पैरों को छूते हुए उसे हिलाया। उसे छूते ही मुझे मानो करेंट लग गया।
मेरा लंड अंडरवियर में कसमसाने लगा। मेरे ज़ोर से हिलाने पर वो जाग गई और बोली- सॉरी थकान के कारण नींद लग गई.. कहाँ पहुँचे? मैं बोला- चलिए.. खाना खा लीजिए..
पहले तो उसने मना किया.. लेकिन मेरी रिक्वेस्ट करने पर वो मान गई और बस से उतर आई। बस से नीचे उतरने के बाद उसकी निगाहें ढाबे के आस-पास कुछ ढूँढ रही थीं।
मैंने पूछा- कोई प्राब्लम? तो वो थोड़ी संकोच के साथ बोली- लेडीज टॉयलेट ढूँढ रही हूँ। मैंने कहा- पीछे हो सकता है।
फिर मैं उसके आगे चलकर उसे ढाबे के पीछे ले गया.. लेकिन वहाँ लेडीज टॉयलेट जेंट्स के ठीक पास में था.. जहाँ इतनी गंदगी और बदबू आ रही थी कि कोई वहाँ एक सेकेंड भी नहीं रुक सकता था।
वो भी वहाँ नहीं रुकी। मैंने कहा- चलिए.. यहीं कहीं अंधेरे में कोई और जगह ढूँढ लेते हैं।
वो थोड़ी शरमाई.. लेकिन शायद प्रेशर होने से मना नहीं कर पाई। कुछ ही दूरी पर एक कोने में एक पुरानी बेकार ट्रैक्टर ट्रॉली खड़ी थी। मैंने कहा- आप इसके पीछे चले जाएं। वो मजबूरी में ना चाहते हुए भी पीछे गई।
वहाँ ढाबे की रोशनी आ रही थी। मैं पास ही मुँह फेर कर खड़ा था। रात के अंधेरे में सुनसान होने के कारण उसकी पेशाब करने की सीटी के समान आवाज़ इतनी ज़ोर से आई कि मेरा लंड फिर जोश में आ गया।
वह बहुत देर तक पेशाब करती रही.. शायद बहुत देर से रोक कर बैठी थी।
मेरी निगाह जब ट्रैक्टर ट्रॉली के नीचे गई तो देखा कि उसकी मूत की धार ज़मीन में ढाल होने के कारण मेरी ओर बही चली आ रही थी। मैंने चोर निगाह से उसकी ओर देखा.. तो लाइट में उसकी परछाई ज़मीन पर दिखाई पड़ रही थी। परछाई में वह खड़ी हुई तो उसकी साड़ी उसके चूतड़ों पर चढ़ी हुई थी और वो अपनी पैन्टी को जाँघों पर चढ़ा रही थी। मेरे लिए यह सब नया था.. जब वो बाहर आई.. तो मैंने तत्काल मुँह फेर लिया।
वो बोली- अब आप भी फ्रेश हो लें।
मैं तुरंत ट्रॉली के पीछे गया और खड़े होकर मूतने लगा.. मुझे भी ढेर सारा मूत आया। मैं ठीक उसकी मूत की धार के ऊपर ही मूत रहा था। मैंने थोड़ा उचक कर ट्रॉली के उस पार देखा तो पाया कि वो भी मेरी परछाई को देख रही थी।
मैंने जब मेरी परछाई पर गौर किया तो देखा कि ज़मीन पर मेरे लंड की परछाई बहुत बड़ी नज़र आ रही थी।
खैर.. मैं भी ढेर सारा मूत कर अपने आपको काफ़ी आराम महसूस कर रहा था। जब मैं आगे आया तो देखा कि वो भी हम दोनों के मूत की बहती धार को ही देख रही थी।
मेरी निगाह मिलते ही वह शर्मा गई.. मैंने थोड़ा फ्लर्ट करने के अंदाज़ में कहा- हम दोनों ने तो यहाँ बाढ़ (फ्लड) ही ला दी। वो बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकती हुए बोली- गंगा ज़मुना का मिलन हो गया है।
हम अपने हाथ-पैर धो कर ढाबे पर खाने की टेबल पर आए.. हमने साथ ही खाना ऑर्डर किया। हल्की-फुल्की बातों के बीच पता चला कि उसका नाम कविता है और वो एक शादीशुदा महिला है। शादी को तीन साल हो चुके है.. पति अक्सर बाहर रहते हैं और अभी पिछले दो महीनों से विदेश गए हैं। वह यहाँ अकेली रहती है और कोई बच्चा भी नहीं है। वो हमारे शहर में कोई लीगल पेपर लेने आई थी.. जो कि उसके पति को उसे तुरंत भेजना था। इसी लिए वो वापस जयपुर लौटने के लिए इतनी बेचैन थी।
हमारे शहर में उसका कोई परिचित नहीं था और वो होटल में अकेले रुकने के पक्ष में भी नहीं थी। खाना ख़त्म होने के बाद उसने अपने पर्स में से सौंफ-सुपारी निकाली और मुझे भी ऑफर की।
तभी अचानक उसका हैण्डबैग उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया और उसमें से कुछ सामान गिर गया।
मैं तुरंत झुक कर उसे कविता के साथ ही उठाने लगा.. तो देखा कि पर्स में ‘मेरी सहेली’ नाम की टेबलेट्स का पैकेट था.. जो कि मैरिड लेडीज प्रेग्नेन्सी रोकने के लिए रोज खाती हैं।
वह थोड़ी झेंपी.. तभी उसका पल्लू झुकने के कारण उसके कंधे से सरक गया। मेरी निगाह का उठना हुआ और उसकी विशाल मादक गोलाइयों को देख मेरी जान हलक में आ गई। वो ‘सॉरी’ बोली.. तो मैंने कहा- इट्स ऑल राइट..
मेरे लाख मना करने पर भी ढाबे का बिल उसने पे किया.. फिर उसने वहीं से एक किताब खरीद ली।
जब गाड़ी स्टार्ट हुई.. तो बस वाले ने सभी बर्थ्स के पर्दे गिरा दिए.. जो कि अन्दर प्राइवेसी का मज़ा देते थे। पहले तो हम दोनों ही बड़े अपसेट से हुए.. लेकिन उसे किताब पढ़ना थी और लाइट जलाने पर उसकी रोशनी बाहर दूसरों को डिस्टर्ब करती.. इसलिए उसे पर्दे बंद ही करना पड़े।
हमारे पास पानी की बोतल थी.. उसने अपने पर्स से वही गोली धीरे से निकाली और मेरी निगाह से बचाते हुए उसे निगल गई। लेकिन मैं सब कुछ देख चुका था।
अभी भी हम पहले की तरह ही एक-दूसरे कोने से सटे हुए थे कि कहीं से एक-दूसरे को टच ना हो जाएं। मेरी आँखें गाने सुनते हुए बंद थीं और वो दूसरी तरफ किताब पढ़ रही थी।
या तो उसे उसकी जाँघों के बीच खुजली हो रही थी या फिर वो कोई रोमाँटिक स्टोरी पढ़ रही थी.. क्योंकि वो बार बार मेरी ओर देखती और फिर अपने हाथों को अपनी जाँघों के जोड़ों के बीच चलाती। ऐसा कई बार हुआ.. मैं सोने का नाटक करता रहा।
बस ए सी होने के बावजूद गर्मी ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। वो भी बेचैन थी.. बार-बार नैपकिन से अपने गले और सीने से पसीना पोंछती।
मैंने कहा- आप इस तरफ आ जाएं.. शायद आपकी साइड का एसी का वेंटिलेटर ठीक से खुला हुआ नहीं है। तो वो बोली- फिर आप परेशान होंगे।
मैंने कहा- फिर तो सिर्फ़ एक ही तरीका है कि हम दोनों ही एक साइड ही लेट जाएं। पहले तो वो खामोश रही.. फिर खुद ही अपनी मर्ज़ी से मेरी ओर आ गई।
हम दोनों कुछ दूरी बनाकर लेट गए लेकिन इतनी जगह थी ही नहीं कि ज़्यादा दूरी बनाए रख पाते। गाड़ी के झटकों की वजह से हम खुद ब खुद ही पास आ गए।
अब उसे नींद लग चुकी थी और मैं उसके गोरे बदन का भूगोल नाप रहा था। उसका पल्लू उसके सीने से थोड़ा हट गया था.. जिस वज़ह से उसके गुंदाज़ गोरे-गोरे उभार और स्तनों की गहराई साफ दिखाई पड़ रही थी।
वो थोड़ा हिली तो उसकी साड़ी उसके पेट से भी हट गई, अब मेरे सामने उसका खुला हुआ पेट साफ दिखाई पड़ रहा था। नाभि के नीचे बँधी साड़ी और ऊँचा चढ़ा हुआ ब्लाउज देखते ही बनता था।
उसके मेरी साइड वाला बोबा भी अब साड़ी के पल्लू से बाहर आ गया था। उसकी डार्क कलर की लेस वाली ब्रा पतले कॉटन के ब्लाउज से साफ दिखाई पड़ रही थी। ब्रा की स्ट्रॅप्स कंधे से बाहर आ कर मुझे रिझा रही थीं। मेरा मन उसे छूने को हो रहा था.. लेकिन मैं हिम्मत नहीं कर पा रहा था। परन्तु मैं सोकर इस आनन्दमयी यात्रा का मज़ा भी नहीं बिगाड़ सकता था।
मैंने अब उसकी मैगजीन उठाई.. जिस स्टोरी को पढ़ते समय वह सो गई थी। वास्तव में वह एक मादक प्रेम कहानी थी, उसमें लिखा था कि कैसे उसके प्रेमी ने उसे छुआ.. उसके अंगों में हुई हलचल का सजीव चित्रण था।
मैं खुद भी उस कहानी का थोड़ा सा भाग पढ़कर खुद पर काबू ना रख सका और अपने बरमूडा के ऊपर से ही अपने मस्त राम को सहलाने लगा।
उसको चोदने की बड़ी इच्छा थी.. पर सभ्यतावश कुछ कर पाना अनुचित था।
अगले भाग में आगे की कहानी लिखूंगा, आपके पत्रों का इन्तजार रहेगा। [email protected]
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