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रितेश ऑफिस को चल दिया, मुझे बॉस ने छुट्टी दे दी तो मैं लेटी-लेटी करवट बदलने लगी कि तभी सूरज आ गया।
मैं लेटी हुई थी, मेरा देवर मेरे बगल में बैठते हुए बोला- क्या हुआ भाभी, लेटी हुई क्यों हो? ‘कुछ नहीं, थोड़ी थकान जग रही है।’ वह बोला- भाभी, कहो तो तुम्हारे बदन की मसाज कर दूँ? ‘यार, मैं चाहती भी यही थी।’
मेरा इतना कहना ही था, सूरज बोला- भाभी, तुम कपड़े उतार कर नंगी हो जाओ, मैं तेल लेकर आता हूँ! कहकर वो ड्रेसिंग टेबिल से तेल की शीशी निकाल लाया, मैं भी जब तक कपड़े उतार कर नंगी होकर पेट के बल लेट गई।
सूरज मेरी नंगी पीठ पर तेल की एक एक बूंद धीरे-धीरे से टपकाने लगा, फिर उसने अपने हाथ का कमाल मेरी पीठ पर दिखाने लगा, पीठ की मालिश करते हुए वो फिर मेरे चूतड़ों और जांघों की मालिश करने लगा, बीच-बीच में मेरे चूतड़ को चूची समझ कर बहुत तेज भींच देता था और चूतड़ों के बीच छेद में तेल की दो बूंद टपकाने के बाद अपनी एक उंगली उसके अंदर डाल कर मालिश करता।
मेरे जिस्म को थोड़ा आराम मिल रहा था और सूरज जिस तरह से मेरी मालिश कर रहा था, वो भी आनन्द दे रहा था।
जब सूरज ने मेरे जिस्म के पीछे की हिस्से की मालिश कर ली तो उसके कहने पर पलट गई। एक बार फिर बड़ी मस्ती के साथ सूरज मेरी मालिश कर रहा था, वो मेरे चूची को अच्छे से दबाता, चूत और उसके आस पास की जगह भी वो बहुत ही बढ़िया मालिश कर रहा था।
जब उसने अच्छे से मेरी मालिश कर दी तो सूरज बोला- भाभी, तुम्हारी झांटें बड़ी हो गई हैं, झांट तो बना लेती!
मैंने अलसाते हुए सूरज को बताया कि आज शाम को उसके पापा यानि मेरे ससुर के साथ कोलकाता जा रही हूँ और थोड़ा झूठ बोलते हुए कहा कि काम के वजह से झांट बनाने का मौका नहीं मिला।
सूरज मेरी बात को सुनने के बाद बोला- कोई बात नहीं भाभी, तुम नहा कर आ जाओ, मैं तुम्हारी चूत को अच्छे से चिकनी कर दूंगा।
सूरज के कहने पर मैं नहा ली और जब वापस कमरे में पहुंची तो सूरज वीट की क्रीम, कुछ कॉटन, एक मग में पानी और तौलिया लेकर मेरा इंतजार कर रहा था। सबसे मजे की बात तो यह थी कि सूरज ने जमीन पर एक चादर भी बिछा रखी थी, ताकि मैं आराम से लेट सकूं।
मैं सीधी लेट गई, सूरज ने तुरन्त ही मेरी चूत पर और उसके आस पास जहां भी उसकी नजर में बाल के हल्के फुल्के रोंयें थे, वहां उसने क्रीम लगा दी और फिर मेरे पास आकर मेरे निप्पल से खेलने लगा। मैं आँखें बन्द करके उसकी हरकतों का मजा ले रही थी।
सूरज कभी मेरे निप्पल को दबाता तो कभी चूचियों को मसलता। उसके ऐसा करते रहने के कारण मेरी बीच बीच में हल्की सी सीत्कार सी भी निकल जाती।
करीब दस मिनट बीतने के बाद सूरज ने कॉटन लिया और मेरी चूत पर लगे क्रीम को साफ करने लगा। फिर थोड़ा और कॉटन को गीला करके और अच्छे से मेरी चूत साफ कर दी, आखिर में उसने तौलिये से मेरी चूत साफ की और बोला- लो भाभी, तुम्हारी चूत फिर पहले जैसी चिकनी हो गई है।
मैंने हाथ लगा कर देखा तो वास्तव में चूत काफी चिकनी हो चुकी थी। मैंने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सूरज को अपना ईनाम लेने का ऑफर किया। पहले तो उसने मना किया, बोला- आप आज ट्रेवल करोगी, इसलिये आज जाने दो। जब वापस आओगी तो अच्छे से लूंगा। लेकिन मैं उसकी बात काटते हुए बोली- देखो, तुमने अभी मेरे साथ बहुत मेहनत की है और तुम अब अपनी मेहनत का फल ले लो।
मेरे बहुत कहने पर सूरज ने पलंग से दो तकिये उठाए और मेरी कमर के नीचे लगा दिया। हालांकि मेरी भी बहुत ज्यादा इच्छा नहीं थी और चाहती थी कि जिस पोजिशन में मैं लेटी हूँ, उसी पोजिशन में सूरज मुझे चोदे और सूरज ने मेरी कमर के नीचे दो तकिया लगा कर मेरे मन की बात कर दी थी।
उसके बाद उसने अपने लंड को मेरी चूत में पेल दिया और धक्के लगाने लगा, थोड़ी देर तक वो मुझे उसी तरह चोदता रहा, उसके बाद वो मेरे ऊपर लेट गया, मेरे निप्पल को अपने मुंह में लेकर बारी बारी से चूसने लगा।
वो इसी तरह कुछ देर तो चूत को चोदता और फिर थोड़ा रूककर मेरे निप्पल को चूसता।
करीब पंद्रह-बीस मिनट तक तो इसी तरह से चोदता रहा, मैं झड़ चुकी थी, मेरे झड़ने के एक मिनट बाद ही सूरज भी झड़ गया और मेरे ऊपर निढाल होकर लेट गया।
थोड़ी देर तक वो उसी तरह मेरे ऊपर लेटा रहा, फिर मेरे से अलग हुआ तो मैं उससे बोली- मैं तो सोच रही थी कि तुम अपनी मलाई मुझे चटाओगे लेकिन तुम तो मेरे अन्दर ही झड़ गये? वो पास पड़े तौलिये को उठाकर मेरी चूत को साफ करते हुए बोला- आज मेरा मन अन्दर ही झड़ने का हो रहा था, इसलिये मैं तुम्हारे अन्दर झड़ गया।
मेरी चूत को तौलिये से साफ करने के बाद अपने लंड को भी साफ किया और फिर मेरे माथे को चूम कर चला गया। मैंने भी दरवाजे को बन्द किया और नंगी ही सो गई।
हाफ ड्यूटी करके रितेश भी आ गया।
मुझे हल्की सी हरारत लग रही थी, सोचा थोड़ी देर में दवा ले लूंगी, लेकिन रितेश के आने के बाद और फिर ट्रेवल की तैयारी करने में पता ही नहीं चला कि मैंने दवा खाई नहीं है और स्टेशन चलने का वक्त भी आ गया था। इसी आपाथापी में हरारत का अहसास ही नहीं हुआ।
मैं तैयार होकर नीचे आई तो देखा कि पापाजी जींस और सफेद टी-शर्ट पहने हुए थे और क्या डेशिंग लग रहे थे, क्लीन शेव्ड, छोटे-छोटे बाल, काला चश्मा लगा कर वो तो अपने तीनों लड़कों से यंग लग रहे थे।
आज से पहले मैंने कभी पापाजी को इतने ध्यान से नहीं देखा था लेकिन आज देखने पर लग रहा था कि छः फ़ीट लम्बे मेरे ससुर जी तो जींस और सफेट टी-शर्ट में तो कयामत लग रहे थे। खैर मुझे क्या!
लेकिन दोस्तो, ऐसी कहानी मैं कभी नहीं चाहती थी जो मेरे साथ होने वाली थी और वो सिर्फ मेरी लापरवाही का नतीजा ही था जिससे इस कहानी का जन्म हुआ।
हम लोग स्टेशन पहुंचे, थोड़ी देर में ही गाड़ी भी आ गई और मेरे बॉस अभय सर ने जिस बोगी में रिजर्वेशन कराया था, वो केबिन थी। उस केबिन में मुझे और मेरे ससुर को ही सफर करना था।
केबिन देखकर रितेश मुझसे बोला- मैं चूक गया, काश इस केबिन में पापा न होते, मैं होता तो कोलकाता तक का सफर बड़े मजे से कटता।
ट्रेन चलने तक मेरे और रितेश के बीच बातचीत होती रही लेकिन जब ट्रेन चली तो मैं सोचने लगी कि जब बॉस को मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जायेंगे तो फिर उन्होंने केबिन वाले कोच का रिजर्वेशन क्यों कराया।
मैं इसी सोच विचार में थी और गाड़ी अपनी स्पीड पकड़ चुकी थी। ससुर जी ने शायद दो तीन बार आवाज दी होगी, लेकिन मैं सोच में डूबी हुई थी कि उनकी आवाज सुन ना सकी तो उन्होंने मुझे झकझोरते हुए पूछा कि मैं क्या सोच रही हूँ। मैं बोली- कुछ नहीं।
फिर ससुर जी बोले- आकांक्षा, मैं बाहर जा रहा हूँ, तुम चाहो तो चेंज कर लो और फ्री हो जाओ। ‘कोई बात नहीं पापा जी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। हाँ मैं बाहर जाती हूँ, अगर आप चेंज करना चाहो तो कर लो।’
कहकर मैंने अपना मोबाईल उठाया और केबिन के बाहर आकर मैंने बॉस को कॉल मिलाई और उनसे पूछा- जब आपको मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जी भी जा रहे हैं तो आपने केबिन क्यों बुक कराया?
बॉस ने बताया कि मैंने राकेश को ऑप्शन दिया था कि जिसमें सीट खाली मिले, उसे बुक करा ले और उसने केबिन का रिजर्वेशन करा दिया।
‘राकेश॰॰॰ हम्म… अच्छा और होटल के बारे में पूछने पर बताया कि लिफाफे में ही होटल का ऐड्रेस है, यह एक महीने पहले से ही बुक है। सुईट रूम है। इसलिये इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता था।
इतना सुनना था कि मेरे मुंह से निकला- लौड़े के… जब होटल में सुईट रूम एक महीने पहले से बुक कराया था तो मुझे क्यों नहीं बताया? बॉस को खरी-खोटी सुनाकर मैं केबिन में आ गई।
पापा जी कैपरी और वेस्ट में थे, मेरी कानी नजर उन पर पड़ी, क्या शरीर था उनका… किसी पहलवान से कम नहीं थे, क्या बड़े-बड़े बल्ले थे, चौड़ा सीना और सीने में घने-घने बाल!
वो सामने वाली सीट पर लेटे हुए थे, मैं भी अपने को समेटते हुए लेट गई और बॉस ने जिस बन्दे का नाम लिया उसके बारे में सोचने लगी। बड़ा ही हरामखोर था, साले का वजन भी 40 किलो से ज्यादा न था लेकिन हरामीपन में वो सभी को मात करता था।
एक दिन उस हरामी ने मुझे अभय सर के साथ देख लिया, बस मेरे पीछे ही पड़ गया। जहां कभी भी मौका देखता, मेरे पिछवाड़े आकर अपना हाथ सेक लेता। हालांकि वो मेरा कुछ कर नहीं सकता था, लेकिन मैं उसे एवाईड कर देती थी। राकेश भी मेरे पिछवाड़े हाथ लगाने के अलावा कभी आगे नहीं बढ़ा।
चूंकि वो हमारे ऑफिस का कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर देखता था और अकसर उससे काम पड़ जाता था। इसी में एक दिन उसे मौका लग गया।
हुआ यूं कि मुझे अपने हेड ऑफिस एक रिपोर्ट मेल करनी थी, रिपोर्ट मैं तैयार कर चुकी थी और बस मेल करने जा ही रही थी कि सिस्टम अपने आप ही ऑफ हो गया। मुझे लगा कि मेरी गलती के कारण ही कम्प्यूटर बन्द हो गया होगा, मैंने एक बार स्टार्ट किया, लेकिन कम्प्यूटर बार-बार ऑन करने के बाद भी ऑन नहीं हो रहा था।
मैं चाह रही थी कि किसी तरह वो रिपोर्ट फाईल ही मिल जाये तो मैं किसी और कम्प्यूटर पर जाकर मेल कर दूंगी, पर मेरा पूरा प्रयास व्यर्थ हो रहा था। हार कर मैंने राकेश को फोन लगाया तो पता चला कि वो लीव पर है और नहीं आ सकता है। रिपोर्ट इतनी जरूरी थी कि उस पर कम्पनी का करोड़ों दांव पर लगा था और एक चूक का मतलब था कि करोड़ों का नुकसान! मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से बॉस को कोई बात सुननी पड़े… भले ही मेरी चूत के कारण, बॉस हमेशा मेरा सपोर्ट करता था।
मेरे बहुत कहने पर राकेश आने को तैयार हो गया था, लेकिन साले मादरचोद ने बदले मेरी चूत चोदने की डिमांड कर दी। वैसे तो किसी का लंड मेरी चूत में जाये, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था, बस थोड़ा राकेश से चिढ़ सी थी तो मैं उसे उतना भाव नहीं देती थी। पर वो दिन उसका था, नहीं चाहते हुए भी मैंने हां कर दी।
ऑफिस बन्द होने का समय भी हो रहा था, राकेश ऑफिस आ चुका था, कम्प्यूटर चेक करने के बाद बोला- बिना फार्मेट हुए नहीं चल सकता। मुझे अगले 10 मिनट में मेल करनी थी, तो एक बार फिर मैंने राकेश से बोला- किसी तरह मेल करा दो, फिर फार्मेट करना! ‘ठीक है!’ वो बोला- मैं मेल तो करा दे रहा हूँ लेकिन जब मैं सिस्टम फार्मेट करूं तो तुम मेरे साथ रहोगी।
मेरे हां बोलने में उसने 2-3 मिनट में सिस्टम को ऑन करके रिपोर्ट निकाल ली और फिर उस रिपोर्ट को मेल भी कर दिया। मेल करने के बाद वो मुझसे बोला- देखो मैंने तुम्हारा काम कर दिया, अब तुम्हारी बारी है। ‘मैं तैयार हूँ, बोलो कहां?’ ‘यहीं ऑफिस में… मैं तुम्हारे कम्प्यूटर को सही करूंगा और तुम मेरे!’ ‘लेकिन अभी तो काफी लोग हैं।’ राकेश बोला- पांच मिनट के बाद ऑफिस खाली हो जायेगा, बॉस से कह कर तुम रूक जाना!
राकेश ने मुझे बताया कि मुझे बॉस से क्या कहना है। मैं और राकेश दोनों ही बॉस के सामने थे और जैसा राकेश ने मुझसे कहने को कहा, वैसा मैंने बॉस से कह दिया।
बॉस ने चपरासी दीपक जो 60 वर्ष का था को बुला कर रूकने के लिये बोला, बेचारा बॉस के सामने कुछ भी न बोल पाया, पर हम दोनों के पास आकर अपनी परेशानी बताई और बोला- जब भी आपका काम खत्म हो जाये तो मुझे कॉल कर देना, मैं तुरन्त आकर ऑफिस बन्द कर दूँगा।
मेरे बोलने से पहले ही राकेश बोल उठा- हाँ हाँ जाओ, पर समय पर आ जाना।
थोड़ी देर बाद पूरा ऑफिस खाली हो गया था, सबके जाने के बाद दीपक भी चला गया। सब के जाते ही राकेश ने मुझे पीछे से जकड़ लिया और मेरी गर्दन को चूमने लगा, मेरे कान को दांतों से काटने लगा और मेरी चूची को जोर जोर से दबाने लगा। मैं उसकी गिरफ्त से निकलते हुये बोली- सिस्टम को रिपेयर भी करते चलो और जो भी तुमको मेरे साथ करना है वो करो, ज्यादा समय नहीं है, घर भी जाना है।
राकेश अपने कपड़े को उतारता हुआ बोला- चलो, तुम भी अपने कपड़े उतारो, अब ऑफिस में कोई नहीं है।
सेक्स करते हुए जब तक तक कि जिस्म पूरा नंगा न हो, मुझे मजा नहीं आता है। इसलिये राकेश के कहने पर मैंने भी अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। राकेश देखने में ही पतला दुबला था लेकिन उसका लटका हुआ लंड भी बड़ा तगड़ा लग रहा था। कपड़े उतारते हुए राकेश बोला- बेबी, आज जब तुम मेरा लंड अपनी चूत में लोगी तो तुम सभी लंड को भूल जाओगी!
कह कर एक सीडी निकाली, कम्प्यूटर पर लगा दी और कम्प्यूटर को इन्स्टॉलेशन पर कर दिया और मुझको अपने जिस्म में चिपकाते हुए मेरी पीठ और हिप पर हाथ फिराने लगा।
मैंने भी राकेश को कस कर पकड़ लिया। वो मेरे दरार में भी अपनी उंगली को रगड़ता। राकेश के इस तरह करते रहने से मेरी जीभ स्वतः ही उसके निप्पल को चूसने लगी।
जैसे ही मेरी जीभ ने राकेश को अपना कमाल दिखाना शुरू किया, वैसे ही राकेश के हाथ भी मेरे चूतड़ों को सहलाता, मेरी गांड में उंगली करता और मेरी छाती को कस कर मसलता था। मेरा हाथ और मुंह उसके निप्पल पर ही थे, मैं उसके दानों को दांतों से काट रही थी, वो हल्के से सिसकारी लेता और उतनी ही तेजी से मेरे जिस्म के जिस हिस्से में उसके हाथ होते वो कस कर मसल देता।
मेरे और राकेश के बीच में जंग चल रही थी, मेरे हाथ उसके लंड को भी पकड़े हुए थे और अगर मेरे हाथों में उसके गोले आ जाते तो मैं उसको भी मसलने से नहीं चूकती और राकेश भी कुछ इसी तरह से मेरे साथ बदला लेता, वो मेरे चूत के अन्दर अपनी उंगली बड़ी ही बेदर्दी के साथ डालता और मेरे पुत्तियों को मसल देता और मेरी क्लिट को भी बुरी तरह नोचता।
सीत्कारें दोनों ही तरफ से हो रही थी और शायद इसमें हम दोनों को ही मजा आ रहा था। फिर राकेश मेरे होंठों को चूसने लगा और मेरी जीभ को अपने मुंह के अन्दर लेकर चूस रहा था।
जब तक इन्स्टॉलेशन का पहला पार्ट चल रहा था, तब तक हम दोनों यही करते रहे, फिर राकेश ने सिस्टम को आगे की कमाण्ड देकर मेरी कमर को पकड़ कर वही खाली पड़ी हुई दूसरी कम्प्यूटर टेबल पर बैठा दिया और मेरी टांगों को फैला कर मेरी चूत को चूम लिया और फिर धीरे-धीरे सहलाने लगा।
उसके बाद अपने उंगलियों पर खूब सारा थूक लिया, उसको मेरी चूत पर मल दिया और फिर चूत की दोनों फांकों को फैला कर अपनी जीभ चलाने लगा।
जिस तरह से राकेश पिछले पंद्रह मिनट से मुझे मजा दे रहा था, उससे मैं झड़ने के काफी करीब आ गई थी और सिसकारते हुए बोली- राकेश, मैं झड़ने वाली हूँ।
लेकिन राकेश ने शायद मेरी बात अनसुनी कर दी और जोर जोर से अपनी जीभ को मेरी चूत में चलाना चालू रखा। आखिरकार मैं अपने को रोक नहीं सकी और मेरा पानी छूटने लगा लेकिन राकेश को इसकी भी परवाह नहीं थी।
वो मेरी चूत उसी तरह चाटता रहा और जब उसने मेरे निकलते हुए पानी की एक एक बूंद को चाट लिया तो वो खड़ा हो गया और मुझे उसी टेबल पर लेटा दिया और हल्के से मुझे अपनी तरफ खींच लिया, मेरी पीठ ही टेबल पर थी, बाकी का हिस्सा हवा में ही लटका हुआ था, राकेश ने अपने लंड को मेरी चूत में एक झटके से पेल दिया।
राकेश का लंड वास्तव में तगड़ा और लम्बा था। भला हो जो मेरी चूत रोज रोज किसी न किसी का लंड जाता था, तो राकेश के तगड़े लंड का असर मुझे न हुआ। राकेश मेरी चूत को पेलता रहा और मैं कल्पना करने लगी कि राकेश अनचुदी लड़की का क्या करता होगा, निश्चित रूप से जो लड़की उससे पहली बार चुदती होगी, वो पक्का उसकी फाड़ कर रख देता होगा।
राकेश के धक्के समय के साथ-साथ और तेज होते गये और जितनी तेज उसके धक्के होते गये उतने ही तेज उसके और मेरे मुंह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ की आवाज आती जा रही थी।
तभी राकेश बोला- आकांक्षा मैं झड़ने वाला हूँ, अपना माल कहाँ निकालूँ? तुम्हारी चूत के अन्दर या फिर तू मेरे माल का स्वाद चखेगी? राकेश के साथ चुदाई की शुरूआत से पहले तक मैं उसे पसन्द नहीं करती थी और न ही अपने पास फटकने देती थी, हाँ आज जिस तरह से उसने मुझे मजा दिया, मैं सब कुछ भुला बैठी और उठकर उसके लंड को अपने हाथ में लिया और बड़े प्यार से सहलाने लगी। अगर उस समय स्केल होती तो मैं जरूर नापती, लेकिन मुझे फिर भी लग रहा था कि कम से कम नौ इंच का तो होगा ही।
मैंने उसके सुपारे पर अपनी जीभ रखी। पहले तो मुझे मेरे ही पानी का स्वाद मिला और फिर दो चार बार जीभ फेरने से उसके लंड ने फव्वारा छोड़ दिया, मेरा पूरा मुंह उसके वीर्य से भर गया था, कुछ बूंद मेरे चेहरे पर थी और कुछ मेरी दोनों चूचियों के ऊपर पेट पर और जमीन पर गिरी थी।
उसके लंड से एक-एक बूंद निकल चुकी थी लेकिन लंड उतना ही टाईट था और एक बार और मेरी चूत की अच्छे से चुदाई कर सकता था। इधर सिस्टम भी फार्मेट हो चुका था और जरूरी सॉफ्टवेयर भी लोड हो चुका था।
मैं अपने कपड़े पहनने लगी तो राकेश ने फिर मुझे पीछे से पकड़ लिया और एक राउन्ड के लिये और बोला लेकिन मुझे देर हो रही थी, सो उससे नेक्स्ट टाईम के लिये बोला तो वो भी मेरी बात को मान गया, बस इतना ही बोला- आकांक्षा, तुम्हारी जैसी गांड आज तक मुझे देखने को नहीं मिली, बस पाँच मिनट रूको तो मैं तुम्हारी गांड को अपनी जीभ से थोड़ा सा गीला कर दूं!
उसकी बात सुनकर मेरी गांड में झुरझुरी सी होने लगी थी, मैं उसकी बात काट नहीं पाई, मैंने अपने ज़ींस को एक बार फिर जमीन पर गिरा दिया और उसी कम्प्यूटर टेबल पर अपने हाथों को टिका दिया।
राकेश मेरे दोनों उभारों को पकड़ कर भींचने लगा और फिर थोड़ा सा फैलाते हुए अपनी जीभ छेद पर लगा दी और फिर बाकी का काम उसकी जीभ कर रही थी।
थोड़ी देर तक गांड चाटने के बाद राकेश उठा, चपरासी दीपक को फोन किया। दीपक के आने तक हम दोनों ही अपने कपड़े पहन चुके थे।
दीपक ने ऑफिस को बन्द किया और मैं और राकेश ने अपने-अपने रास्ते को पकड़ लिया। राकेश से साथ हुई चुदाई को सोच कर कब मुझे नींद आ गई ट्रेन में, पता ही नहीं चला लेकिन जब हावड़ा स्टेशन आ गया तो पापाजी ने मुझे जगाया।
मैं अपने आपको फ्रेश महसूस कर रही थी लेकिन वो नई पैन्टी जो अभय सर ने मुझे दी थी, वो गीली हो चुकी थी।
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