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दोस्तो नमस्कार, मैं आपका दोस्त राज आज एक बार फिर से आप सबके लिए एक मस्त मादक कहानी ले कर आया हूँ। जो मुझे जानते हैं उन्हें पता है कि मैं चूत का कितना रसिया हूँ, चूत देखते ही बस उसको खा जाने की तमन्ना एकदम से दिल में उभर पड़ती है।
मैंने आज तक चुदाई करते हुए यह नहीं देखा, सोचा कि चूत किसकी है। बस अगर चोदने को मिली तो चोद दी। अपने परिवार में मैंने ऐसा कभी नहीं किया पर रिश्तेदारी में मैंने कभी इस बारे में सोचा नहीं। यही कारण है कि मैं अपनी रिश्तेदारी में कई हसीन चूतों का मज़ा ले चुका हूँ और आज भी जो मिल जाए चोदने को तैयार रहता हूँ। ऊपर वाले की दया से कभी चूत के लिए नहीं तरसा हूँ।
चलो अब आज की कहानी की बात करते हैं।
कुछ दिन पहले की बात है, मैं अपने बिज़नस के सिलसिले में आगरा जा रहा था। मुझे आगरा में लगभग एक हफ्ते का काम था।
जब मेरे एक दोस्त को पता चला कि मैं आगरा जा रहा हूँ तो वो मेरे पास आया और मुझे कुछ सामान देते हुए बोला- आगरा में मेरी बुआ जी रहते हैं, प्लीज ये सामान उन्हें दे देना। मैंने वो सामान अपने दोस्त से ले लिया और उसी रात आगरा के लिए निकल पड़ा।
आगरा में मैं होटल में रहने वाला था। सुबह सुबह आगरा पहुँच कर मैंने एक दो होटल देखे पर कुछ समझ नहीं आया। फिर सोचा कि पहले दोस्त का सामान ही दे आता हूँ, दोस्त की बुआ के यहाँ चाय पीकर फिर आराम से होटल देखते हैं।
बस फिर मैंने अपनी गाड़ी दोस्त के बताये एड्रेस की तरफ घुमा दी। दस मिनट के बाद मैं दोस्त के बताये पते के सामने था।
मैंने बेल बजाई तो कुछ देर बाद एक लगभग पैंतीस चालीस की उम्र की भरे भरे शरीर वाली औरत ने दरवाजा खोला। मैंने अपने दोस्त का नाम बताया और बताया कि उसने अपनी आरती बुआ के लिए कुछ सामान भेजा है।
तो वो बोली- मैं ही आरती हूँ, आप अंदर आ जाइए! जैसे ही वो मुड़ कर अन्दर की तरफ चली तो उसकी मटकती गांड देख कर मेरे लंड ने एकदम से सलामी दी। आखिर ठहरा चूत का रसिया।
वैसे मेरे दोस्त की बुआ जिसका नाम आरती था, थी भी बहुत मस्त औरत… पूरा भरा भरा शरीर, मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ जो उसके सीने की शोभा बढ़ा रही थी, हल्का सा उठा हुआ पेट जोर पतली कमर के साथ मिलकर शरीर की जियोग्राफी को खूबसूरत बना रहा था, उसके नीचे मस्त गोल गोल मटकी जैसे थोड़ा बाहर को निकले हुए कुल्हे जो उसकी गांड की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे।
आप भी सोच रहे होंगे कि शरीर की इतनी तारीफ़ कर दी, चेहरे की खूबसूरती के बारे में एक भी शब्द नही लिखा। अजी, इतने खूबसूरत बदन को देखने में इतना खो गया था कि चेहरे की तरफ तो निगाह गई ही नहीं।
खैर जब अन्दर पहुंचे तो आरती बुआ ने मुझे बैठने के लिए कहा तो मेरी नजर उनके चेहरे पर पड़ी। जब बदन इतना खूबसूरत था तो चेहरा तो खूबसूरत होना ही था।
रंग जरूर थोड़ा गेहुआ था पर चेहरे की बनावट और खूबसूरती में कोई कमी नहीं थी, ऐसी खूबसूरती की देखने वाला देखता रह जाए। कमजोर लंड वालो का तो देख कर ही पानी टपक पड़े।
मुझे बैठा कर आरती बुआ रसोई में चली गई और कुछ देर बाद चाय और नाश्ता लेकर वापिस आई। जब से आया था तब से मुझे घर में आरती बुआ के सिवा कोई भी नजर नहीं आया था। अभी तो सुबह के लगभग नौ बजे का समय था और बुआ अकेली थी।
नाश्ता करते समय बुआ मेरे सामने ही बैठ गई और दोस्त की फॅमिली के बारे में बात करने लगी। मुझे आये लगभग आधा घंटा हो चुका था, अब मुझे वहाँ से निकलना था, आखिर होटल भी तो देखना था हफ्ता भर रुकने के लिए। बुआ की खूबसूरती को देखते हुए मैं इतना खो गया था कि मेरा मन ही नहीं कर रहा था वहां से जाने का… पर जाना तो था ही!
कहते हैं ना भगवान अपने भक्तों की बहुत परीक्षा लेता है… पर यह भी सच है कि कमीनों की बहुत जल्दी सुनता है। यही कुछ मेरे साथ भी हुआ।
जब चलने लगा तो बुआ ने पूछा कि कितने दिन के लिए आये और कहाँ रुक रहे हो? तो मैंने बोल दिया- अभी एक हफ्ता रुकूँगा और अभी जाकर कोई होटल देखूँगा रुकने के लिए। ‘अरे… होटल में क्यूँ… तुम्हारे दोस्त की बुआ का घर है तो होटल में क्यों रुकोगे?’
‘नहीं बुआ जी, मेरा काम कुछ ऐसा है कि रात को देर सवेर तक काम करना पड़ता है और घर पर रहकर आप लोगों को तकलीफ होगी, होटल ही ठीक है।’
‘तुम ठीक हो, बुआ भी कहते हो और बुआ की बात भी नहीं मानते… मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी तुम्हारे यहाँ रहने से, उल्टा मुझे कंपनी मिल जायेगी तुम्हारे यहाँ रहने से!’ ‘वो कैसे..?’
‘तुम्हारे फूफा जी एक महीने के लिए सिंगापुर गये हुए हैं, उनका कोस्मटिक का काम है ना, तो घर पर सिर्फ मैं और मेरी ननद ही है… तुम्हारे यहाँ रहने से हम अकेली औरतें भी सेफ महसूस करेंगी।’ ‘पर…मैं…’
‘राज बेटा जैसा मेरे लिए विकास (मेरा दोस्त, जिसकी आरती बुआ लगती थी) वैसे तुम… अगर तुम हमारे पास रुकोगे तो हमें ख़ुशी होगी… बाकी तुम्हारी मर्जी!’ आरती बुआ ने थोड़ा सा मायूसी भरी आवाज में कहा तो मैं रुकने के लिए राज़ी हो गया।
सच कहूँ तो मेरे अन्दर का कमीनापन जागने लगा था, दिमाग में बार बार आ रहा था कि अगर पास रहेंगे तो शायद आरती जैसी खूबसूरत बला की जवानी का रसपान करने का मौका मिल जाए। वैसे आरती बुआ ने अपनी ननद का जिक्र भी किया था पर वो इस समय घर पर नहीं थी। दो दो चूत घर पर अकेली मिले तो कमीनापन कैसे ना जाग जाए।
मैंने गाड़ी में से अपना सामान निकाला और अन्दर ले आया। बुआ ने मेरे लिए एक कमरा खोल दिया जिसका एक दरवाजा बाहर की तरफ भी खुलता था।
मैंने सामान रख लिया तो बुआ ने एक चाबी मुझे दी और बोली- देर सवेर जब भी आओ, यह दरवाजा खोल कर तुम आ सकते हो। जब तक यहाँ हो, इसे अपना ही घर समझो।
बिजनेसमैन हर चीज का हिसाब लगा लेता है। यहाँ रहने से कम से कम दस हजार तो होटल के बच रहे थे और फिर घर जैसा खाना होटल में थोड़े ही नसीब होता है। फिर होटल में अगर चूत का इंतजाम करता तो पैसा खर्च करना पड़ता पर यहाँ अगर आरती बुआ से बात बन गई तो चूत भी फ्री में और अगर ननद की भी मिल गई तो एक्स्ट्रा बोनस।
मैंने अपना सामान कमरे में रखा ही था कि आरती बुआ आई, बोली- नहाना हो तो दरवाजे से निकलते ही बाथरूम है।
नहाना तो था ही, रात भर के सफ़र की थकान जो उतारनी थी, मैं आरती बुआ के साथ गया तो बुआ ने बाथरूम दिखा दिया। बाथरूम का दरवाजा कमरे में तो नहीं था पर था कमरे से बिल्कुल लगता हुआ।
मैंने बैग में से अपने कपड़े और तौलिया निकाला और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया। बाथरूम में घुसते ही पहले फ्रेश हुआ फिर कपड़े निकाल कर नहाने लगा।
नहाने के बाद जब कपड़े पहनने लगा तो देखा कि अंडरवियर तो बैग में ही रह गया है। जो पहना हुआ था वो गीला हो चुका था।
घर पर होता तो आवाज लगा कर मांग लेता पर यहाँ तो आवाज भी नहीं लगा सकता था। मैंने तौलिया लपेटा और जल्दी से कमरे में घुस गया।
कमरे में घुसा तो देखा कि एक अट्ठारह बीस साल की लड़की पौंछा लगा रही थी, मैं उसको देख कर चौंक गया और वो मुझे देख कर! वो हतप्रभ सी मेरी ओर देख रही थी और मैं उसे!
अचानक उसने शर्मा कर अपना मुँह दूसरी और फेर लिया। उसके मुँह फेरने के बाद मुझे कुछ होश आया तो देखा कि मेरा तौलिया खुल कर मेरे पाँव में पड़ा था और मैं नंगा खड़ा था उस लड़की के सामने। लंड तना हुआ तो नहीं था पर हल्की हल्की औकात में जरूर था।
मैंने हाथ में पकड़े हुए कपड़े बेड पर फेंके और झुक कर अपना तौलिया उठाया। वो लड़की हँसती हुए मेरे पास से निकल कर बाहर चली गई।
क्या यह आरती बुआ की ननद है? मैं सोच रहा था। पर वो आरती बुआ की ननद नहीं थी बल्कि वो घर पर झाड़ू पौंछा करने वाली थी। नाम पहले मैंने नहीं पूछा था पर बाद में आरती बुआ ने बताया था, उसका नाम शबनम था पर सब उसको शब्बो कहते थे।
तीसरी चूत… सोच कर ही लंड अंगड़ाइयाँ लेने लगा था, उसे समझ में आ रहा था कि तीन में से एक आध चूत तो जरूर उसको मिलने वाली थी अगले पाँच-सात दिन में।
तीन तीन चूतों के बारे में सोच सोच कर ही लंड करवटें लेने लगा था। तीसरी चूत वाली के अभी दर्शन नहीं हुए थे पर उम्मीद थी कि वो भी मस्त ही होगी।
मैं तैयार हुआ और अपने काम पर निकल गया।
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