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हैलो दोस्तों आपका अपना दीप पंजाबी एक बार फेर आपकी सेवा में एक नए अनुभव के साथ हाज़िर है। सबसे पहले तो आप सब को नए साल और लोहड़ी की हार्दिक बधाई हो। दुआ करते हैं के ये आने वाला साल आपकी ज़िन्दगी में नई उमंगे, खुशिया लेकर आये। जो भी खुवाहिशें पिछले साल पूरी नही हो पायी थी, भगवान उन्हें इस साल पूरी करे।
पिछले महीने दिसंबर में प्रकाशित हुई दो कहानियो अनोखा दान, और हम प्यासे ही रह गए – भाग 2, के बारे में बहुत से मेल्स आये हैं और मैं बहुत ही आभारी हूँ देसी कहानी की पूरी टीम का जिनकी वजह से हम लोग आपके मनोरंजन के लिए जगह जगह से मसाला इकठ्ठा करके लेकर आते है।
अब बात आती है परिचय देने की तो मुझे लगता है, उसकी तो जरूरत ही नही है। आप सब दोस्त जानते ही हो पंजाब से हूँ, और डेढ़ दर्जन के लगभग कहानिया आपकी सेवा में भेज चूका हूँ।
सो ज्यादा वक़्त जाया न करते हुए सीधा आज की कहानी पे आते है। जो के एक होने वाले नए किरायेदार के बारे में है। उसका नाम नीलम था। उसकी उम्र यही कोई 28-30 के लगभग थी, वो थोडा पढ़ी हुयी थी और यहां अपने परिवार समेत यूपी से यहां काम करने आये हुए थे। उसके परिवार में उसका पति, बच्चा कुल मिलाके वो 3 मेंबर थे। उसका पति मज़दूरी करता था। हमारे पड़ोस में रहने की वजह से अकसर उनसे मुलाक़ात होती रहती थी।
हुआ यूं के एक दिन मैं घर का कोई जरूरी सामान लेने स्कूटर पे बाज़ार गया हुआ था। तो वापसी पे मेरे ही गांव में किराये पे रह रही एक औरत नीलम जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है, वो मिल गयी और मुझे अकेला देखकर उसने हाथ के इशारे से रुकने का इशारा किया। मैंने स्कूटर रोक लिया और उसकी बात सुनने लगा।
वो — क्यों दीप जी, घर जा रहे हो क्या ??
मैं — हांजी कहिये कोई काम था क्या ??
नीलम — हाँ मुझे भी गांव तक जाना है। कब से यहाँ खड़ी हूँ। कोई बस या आटो आ ही नही रहा। ऊपर से धूप भी देखो जान निकाल रही है।
मैं — हांजी गर्मी तो बहुत पड रही है। आओ बैठ जाओ, आपको भी गांव तक छोड़ देंगे।
वो मेरे साथ अपना सामान लेकर बैठ गयी और हम बाते करते घर की तरफ रवाना हो गये।
रास्ते में उसने बात जारी रखते हुए पूछा,” आपकी नज़र में कोई अच्छा सा मकान हो तो बताना। हमे किराये पे चाहिये। वैसे तो आपसे मुलाकात होते ही रहती है। फेर भी मेरा मोबाइल नम्बर ले लो और अपना नम्बर मुझे दे दो, ताकि एक दूसरे से सम्पर्क बना सके।
उस वक़्त मेरे मन में कोई भी ऐसी वैसी भावना नही थी तो मैंने बिन सोचे समझे अपना नम्बर दे दिया। और वो अपने घर चली गयी।
करीब हफ्ते बाद एक अनजान नम्बर से लड़की की काल आई। जब मैंने रिसीव किया तो…
वो — हलो आप दीप बोल रहे हो ??
मैं — हांजी, दीप ही बोल रहा हूँ, पर क्षमा करना मैंने आपको पहचाना नही। आप कौन हो ??
वो — इतनी जल्दी भूल भी गए क्या ?
मैं — इतनी जल्दी, मैं कुछ समझा नही जी ।
वो — बड़े भूळकड़ किस्म के इंसान हो आप तो, अभी हफ्ता पहले ही तो हम बाज़ार में मिले थे और घर तक साथ बैठकर आये थे। याद आया या अभी भी और कुछ बताना पड़ेगा क्या ??
मैं — अच्छा…. अच्छा…. याद आ गया आप नीलम हो। माफ़ करना आपको पहचानने में भूल हो गयी। हांजी कहिये कैसे याद किया आज इतने दिनों बाद ??
वो — बस वही काम था, मकान ढूंढने वाला, है कोई आपकी नज़र में तो बतादो, जिस जगह हम रह रहे है न उस जगह का मालिक बड़ा खड़ूस किस्म का है। बात बात पे लड़ाई करने लगता है। यहां ये नही करना, वो नही करना। बस तंग आ गयी हूँ। रोज रोज़ के झगड़े से, इस लिये आपको फोन किया है।
मैं — हाँ ! ठीक है, मेरी नज़र में मेरे एक दोस्त का मकान खाली तो पड़ा था। लेकिन पता नही वो भाड़े पे चढ़ा या नही।आज ही उस से बात करके आपको दुबारा काल वापिस करता हूँ। मुझे आस है के वो मकान हमे मिल जायेगा।
वो — आपका बहुत बहुत धन्यवाद, और हाँ, जो भी हाँ या ना पता चले। मुझे बताना ताजो कही और भी मकान के बारे में बात कर सकू ।
मैं — ठीक है नीलम जी।
मैंने अपने दोस्त से मकान के बारे में पूछा तो उसने कहा,” दीप यार, मकान तो खाली पडा है, लेकिन कोई ग्राहक अच्छा मोल किराये के रूप में नही देता ! तो इस लिए कई सालो से बन्द ही पडा है। ये लो चाबी और किरायेदार से खुद ही किराये की बात कर लेना।
मैं उस से मकान की चाबी लेकर अपने घर आ गया और आकर अपने फोन से सुबह आये हुए नम्बर पे वापिस कॉल किया तो आगे से नीलम ने ही फोन उठाया।।
वो — हांजी दीप जी, आपके ही फोन का इंतज़ार कर रही थी। क्या बना अपने घर वाले मामले का?? मिल जायेगा हमे या कही और पड़ेगा।
मैं — अरे, नही नीलम जी, आपका काम हो गया है। आप काम काज से फ्री होकर इस पते पर पहुंचिये जो आपको मैसेज में लिखकर भेजा है।
वो — (ख़ुशी से हँसकर) — आपका बहुत बहुत धन्यवाद दीप जी, आपने हमे रोज़ की झिक झिक से निजात दिला दी। आपका ये अहसान ज़िन्दगी भर याद रखूंगी। बाय बेटे को स्कूल भेजकर आती हूँ ।
करीब एक घण्टे बाद नीलम का कॉल आया के वो अपने घर से निकल चुकी है । बस 10 मिनट में बताए पते पे पहुँच जायेगी। तब तक आप भी आ जाइये। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
इधर मैं भी तैयार होकर उससे पहले स्कूटर से निश्चित जगह पे पहुँच गया और मकान का दरवाजा खोलकर, नीलम की राह देखने लगा। थोडी ही देर में नीलम ऑटो से वहां आ गयी। उसने मुझे नमस्ते बोला, मैंने उन्हें बैठने को बोला।
थोड़ी देर इधर उधर की बाते करने के बाद वो बोली, चलो मुझे पहले घर तो दिखादो । मैं उसके साथ उसे घर दिखने के लिए चला आया। वो मेरे आगे और मैं उसके पीछे चल रहा था । आज उसने सफेद काली मैचिंग की एक दम टाइट सलवार कमीज़ पहनी हुई थी। जो के उसपे बहुत ही जच रही थी। एक दम फिट कपड़ो में उसका उभरा ज़िस्म कयामत ढाह रहा था। जिसे देखकर मेरा मन कुछ कुछ बेईमान होने लगा। मेरी नज़र बार बार उसी को ही देखे जा रही थी। जो के उसने भी नोट कर लिया था। मैंने उसे कहा,” अगर आप बुरा नही मनो तो एक बात बोलू?
वो — हांजी, कहिये और आपका बुरा नही मानूंगी। आपसे वादा है।
मैं — इस ड्रेस में आप बहुत खूबसूरत लग रहे हो। मानो कोई परी आसमान से उतरकर यहाँ आ गयी हो। मेरी तो नज़र ही नही हट रही आपसे ?
वो – (थोडा शर्माके) — बहुत बहुत धन्यवाद, हाँ मैं भी कब से नोटिस कर रही हूँ आपको, आप इस तरह से न देखो। मुझे शर्म आ रही है।
मैं — ओये.. होये.. हमसे कैसी शर्म नीलम जी। आप हो ही इतने सुंदर के बार बार आपको देखने को जी चाहता है। काश मेरी भी कोई इतनी सुंदर गर्लफ्रेंड होती। तो मैं उसे दिन रात टिकटिकी लगाकर देखता रहता।
मेरी बात सुनकर वो शर्म से पानी पानी हो रही थी और बोली,” क्या सच में आपकी कोई गर्ल फ्रेंड नही है या ऐसे ही बना रहे हो?
मैं — नही यार गॉड स्वेअर, नही है। होती तो आपको इतना क्यों टिकटिकी लगाकर देखता।
इसपे हम दोनों हंस पड़े। फेर वो बोली,” बाते तो होती रहेगी लेकिन पहले जो काम आये है वो तो करले। मैंने उसे उस घर का पहला कमरा दिखाया जो के एक बेडरूम था। परन्तु धूल मिटटी की वजह से उजडा चमन लग रहा था। बाद में रसोई, बाथरूम, स्टोर रूम आदि सब कुछ दिखाया। उसे घर बहुत पसन्द आया। उसने थैंक्स बोलकर कहा,” आपका बहुत बहुत मेहरबानी आज आपकी वजह से मेरी बहुत बड़ी समस्या हल हो गयी।
मैं — हांजी, इट्स ओके.. लेकिन धन्यवाद से काम नही चलेगा। इसकी पार्टी देनी पड़ेगी।
वो — हांजी जरूर। आपको पार्टी मिल जायेगी। बोलो क्या चाहिए पार्टी में.. कोई गिफ्ट या खाना पीना आदि।
मैं — (मैंने अपने होंठो पे जीभ फेरते हुए उसे अपना इशारा समझाया)….और कहा वो समय देखकर निर्धारित होगा। बस आप अपना वादा भूल न जाना।
वो – (शायद वो समझ चुकी थी के मैं पार्टी में क्या चाहता हूँ) हंसती हुई बोली…. नही.. नही हो ही नही सकता के नीलम अपना वादा भूल जाये। हाँ बस इतना ध्यान रखना आपकी पार्टी मेरे बस की बात होनी चाहिए। मतलब के कोई ऐसी चीज़ न मांग लेना के मेरी पहुँच में न हो या कहलो के ज्यादा महंगी क्योंके हम गरीब घर से सम्बंधित है।
मैं – अरे ! नही नीलम जी, कैसी बात करते हो। इतना भी तंग नही करूँगा आपको के आपको अपनी पहुच से बाहर जाना पड़े। मेरी पार्टी का समान आपकी पहुँच में है और इसे सिर्फ आप ही दे सकते हो।
वो — (इस बार मेरा इशारा एकदम साफ समझ चुकी थी) चलो ठीक है, डील पक्की समझो। घर की साफ सफाई के बाद आपको आपकी पार्टी मिल जायेगी। हाँ लेकिन ये तो बतादो इसका महीने का भाड़ा कितना लोगे आप ?
मैं — अरे, नीलम जी, आपसे ज्यादा थोड़ी लेंगे। जितना आपको अच्छा लगे दे देना, लेकिन इस बात का ध्यान रहे के अपना हक देना नही, हमारा हक मारना नही।
इस तरह से 2 हज़ार में बात पक्की हो गयी और हम अपने अपने घर आ गए।
अगले दिन काम काज से फ्री होकर सादे कपड़े पहने नीलम झाड़ू लेकर नए घर की सफाई करने आ गयी। उसने मुझे फोन लगाया और घर की चाबी देकर जाने को कहा।
मैं बाइक से उसे चाबी देने उनके होने वाले घर पे चला गया। मैं जैसे ही चाभी देकर वापिस आने लगा। तो नीलम बोली,” आप जा रहे हो? अगर बुरा न मानो तो मेरे साथ थोड़ी मदद करवा दो। जिस से मुझे काम में आसानी हो जाये और अकेली बोर भी न होउंगी।
मेरा मन तो रुकने का नही था, लेकिन मन में आया शायद आज पार्टी न दे दे कही।
मैंने कहा,” कोई बात नही नीलम जी, वैसे भी आज फ्री था, चलो आपके साथ मदद करवा देता हूँ। जिस से हम दोनों का मन भी लगा रहेगा।
मैंने बाइक घर के अंदर करली और गेट को अंदर से बन्द कर लिया। फर्नीचर के नाम पे वहां एक खटिया और एक स्टूल, दो कुर्सिया पड़ी थी। हम दोनों कुर्सियो पे बैठ गए और बाते करने लगे। कल की तरह आज भी मेरे मन में सिर्फ वासना का तूफान उमड़ रहा था।
सच मानो तो मेरा मन मेरे कण्ट्रोल में नही था। बार बार उसके चेहरे और उसके बदन को निहारे ही जा रहा था। थोड़ी देर बाते करने के बाद वो बोली,” आओ हम कमरे की दीवारे और फर्श साफ करते है।
मैंने भी सहमती में सर हिलाया और उसने झाड़ू उठाया और जहाँ तक उसका हाथ पहुंचा वो दीवारो पे झाड़ू फेर कर मकड़ियों के जाले उतार रही थी। मैं कमरे में पड़ा फालतू समान बाहर आँगन में निकाल कर रख रहा था। नीलम ने स्टूल उठाया और उसपे चढ़कर हाथ ऊँचा करके छत पे झाड़ू से सफाई कर रही थी।
उसने मुझे आवाज़ दी,” दीप जी, आप प्लीज़ स्टूल को पकड़ लो, जिस से मैं गिरु भी ना और मेरे भार का संतुलन स्टूल पे बना रहे। मैंने स्टूल को दोनों हाथो से पकड़ लिया और अब वो निश्चित होकर स्टूल पे चढ गयी।
झुका रहने की वजह से मेरी पीठ में दर्द होने लगा। तो मैंने सीधा खड़ा होकर स्टूल को छोड़कर नीलम की टाँगो को पकड़ लिया। मेरी इस प्रतिकिर्या से वो सकपका गयी और मेरी ओर देखने लगी।
मैंने उसकी तरफ देखते हुए सॉरी कहा। मैंने जैसे ही उसकी टाँगो से हाथ हटाया उसका संतुलन बिगड़ गया और वो गिरने लगी। मैंने फेर से उसे हाथो का सहारा देकर गिरने से बचा लिया। उसने धन्यवाद कहा और अपने काम पे दुबारा लग गयी।
गर्मी होने की वजह से हम दोनों पसीने से भीग रहे थे। मैंने अपने मन को काबू करने की बहुत कोशिश की लेकिन कहते है न लौड़े और घोड़े की लगाम जितना खिचोगे ज्यादा तंग करता है। वो सब मेरे साथ हो रहा था।
मैंने पहल करते हुए अपने हाथो से उसकी टाँगो को ऊपर की ओर सहलाना शुरू कर दिया। इस बार पता नही क्यू वो मुझे रोक नही रही थी। शायद उसे भी अच्छा लग रहा था। अब उसका हाथ सफाई करते करते रुक गया था और उसकी आँखे बन्द हो गयी थी और मेरे सहलाने को महसूस कर रही थी।
उसकी ऐसी दशा देखकर मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं बेझिजक उसकी टाँगों को जांघो तक सहलाने लगा। उसके मुंह से सी…. आह….. सी…. सी…. जैसी कामुक सिसकियाँ आने लगी।
मेने मन में खुद से बोला,” ले बेटा तेरी पार्टी का इंतज़ाम हो गया है। अब खुल के इंजॉय करले। मैंने उसे स्टूल से उठाकर वहां पड़ी खटिया पे ले आया। उसने एक बार भी मुझे दिखाने के लिए विरोध भी नही किया। खाट पे लिटाकर मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठो पे अपने होठ रखकर उनका रसपान करने लगा। वो शायद बहुत दिनों से चुदासी थी।
इस लिए मेरा तहदिल से भरपूर साथ दे रही थी। मैंने कमीज़ के ऊपर से ही उसके उरोजों को दबाना शुरू कर दिया। परन्तु दबाने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी। उसने मुझे थोडा पिछे हटाकर अपनी पसीने से सनी कमीज़ उतार दी। कमीज़ उतरते ही उसके बड़े बड़े उरोज़ हवा में झूलने लगे। मैं उसके उरोज़ों को मुंह में लेकर बारी से चूसने लगा।
पसीने की वजह से उनका स्वाद थोडा नमकीन जरूर था लेकिन फेर भी उन्हें चूसने में बहुत मज़ा आया। मैंने शरारत से कई बार उनकी निप्पल को अपने दाँतो से भी काटा तो उसके मुंह से आउच… सी.. हट जाओ प्लीज़, जितना चूसना है चूस लो लेकिन काटो मत, वरना आपके काटने के निशान देखकर, मेरे पति को मुझपे शक हो जायेगा।
मैंने उसकी मज़बूरी को समझते हुए उसे काटना छोड़कर निचे पेट की और चूमना आरम्भ कर दिया। उसकी हालात बहुत पतली हो रही थी और वो मुझे जलदी से लण्ड पेलने का वास्ता दे रही थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मैंने उसकी नज़ाकत को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। उसने एक झटके में ही सलवार अपने पैरों से निकाल कर खाट के निचे फेंक दी। उसकी चूत पे नामात्र ही बाल थे। जो के चूतरस लगने के कारण आपस में उलझे हुए थे।
मैंने हाथ की बीच वाली बड़ी उगली से उसकी चूत की गहरायी को नापा। मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए और अपना तना हुआ 6 इंची लण्ड उसके हाथो में थमा दिया और इशारे से उसे चूसने को कहा।
तो इसपे वो बोली,” नही दीप जी, मुझे ये सब अच्छा नही लगता, मैंने आज तक कभी अपने पति का लण्ड भी चूसा नही है। मुझे उलटी आ जाती है। सो प्लीज़ मुझे माफ़ करना, हाँ अगर आप चाहो तो मैं आपकी मुठ मार सकती हूँ।
उसकी ये बात मुझे जरा सी भी अच्छी नही लगी। लेकिन अब मरता क्या न करता वाली बात मुझपे लागू हो रही थी। मेरे तो जैसे सारे अरमान ख़ाक में मिल गए हो। सेक्स से पहले फोरप्ले का सपना चूर हो गया। मेरे चेहरे पे नामोशी छा गई। उसने भी महसूस किया के मेरे मना करने से इसका दिल टूट गया है।
वो मेरा दिल रखने के लिए दो बार मेरे तने हुए लण्ड को मुंह में लेने का प्रयास करने लगी। लेकिन हर बार उबकाई लेकर रह जाती। मुझे उसपे तरस आ गया। मैंने उसे छोड़ देने और सीधा लेट जाने को कहा। उसने मेरे आदेश का पालन किया और चुनरी से अपना मुंह पोंछ कर लेट गयी।
मैंने उसकी एक टांग उठाकर अपने कन्धे पे रखी। जिस से उसकी चूत का मुंह जरा सा खुल गया और अपना, उसके थूक से लबरेज़ लण्ड उसकी कामरस उगलती चूत के मुंह पे रखकर हल्का सा धक्का दिया तो उसकी ज़ोर से आह्ह्ह्ह्ह्… निकल गई।
मैंने उसके दर्द को कम होने तक रुककर एक बार फेर धक्का दिया। इस बार आधे से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में घुस चूका था और वो आखे बन्द करके इस मीठे दर्द को महसूस किये जा रही थी। उसने बिन बोले हाथ के इशारे से मुझे हिलने का आदेश दिया।
मैं भी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसका हुक्म मानकर उसपे आधे लेटी हालात में ही हिलना आरम्भ कर दिया। उसकी चूत के पानी की वजह से लण्ड का अंदर जाना, बाहर आना आसान हो गया। वो मेरी पीठ को दोनों हाथो से सहला रही थी।
जैसे उसे थोडा मज़ा आता या दर्द होता तो वो मेरी पीठ पे नाख़ून गाड़ देती और मेरे होंठो को भी चूस रही थी। मैं कभी उसके होंठो को छोड़कर उसके उरू को चूसने लगता तो कभी उसके गर्दन को चूमने लगता। वो काम आवेश में पागल होए जा रही थी और गांड उठा उठा कर मेरा लण्ड ले रही थी।
हमारा ये कामुक खेल 10-12 मिनट तक चला होगा। जिस दौरान वो 1 बार पहले और एक बार मेरे साथ झड़ चुकी थी। हम थक कर चूर हो चुके थे। उसने मुझसे पूछा,” क्यों जनाब कैसी लगी पार्टी ?
मैंने उसे किस करते हुए कहा,” बहुत ही लाज़वाब थी। मेरा मन तो पार्टी एक बार और लेने का है। इस पे हम दोनों हंस पड़े। हमने एक बार फेर सेक्स किया और घर की सफाई करकइ सकूटर से वापिस अपने अपने घर आ गए।
इस तरह से हमे जब भी वक्त मिलता हम पार्टी के लिए तैयार हो जाते। सो मित्रो ये थी एक और सेक्स गाथा, आपको जैसी भी लगी लगी मेल्ज़ के जरिये बताना, हमारा ईमेल पता है “[email protected]” इस पते पर आप अपनी सेक्स गाथा भी भेज सकते है। हम आपकी पहचान गुप्त रखने की गॅरेंटी देते है।
आज के लिए इतना ही , फेर किसी दिन एक नई कहानी लेकर फेर हाज़िर होऊंगा। तब तक आप अपने दीप पंजाबी को दो इज़ाज़त नमस्कार, छब्बा खैर…
?? समाप्त ??
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