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लेखिका : अर्पिता चौहान संपादिका एवम् प्रेषक: टी पी एल
अन्तर्वासना की आदरणीय पाठिकाओं एवम् पाठकों को टी पी एल का अभिनन्दन!
लगभग तीन माह पहले मेरी रचना संतान के लिए परपुरुष सहवास पढ़ कर मुझे राजस्थान प्रदेश की रहने वाली अर्पिता चौहान का एक सन्देश मिला था।
उस सन्देश में मेरी रचना के बारे परपुरुष सहवास पर उसने अपने विचार लिख कर भेजे थे और उस विषय पर कुछ दिनों तक मेरा उसके साथ संदेशों का आदान प्रदान होता रहा।
अंत में अर्पिता ने अपने विचारों के पक्ष में अपने जीवन के एक अनुभव का विवरण लिख कर भेजा जिससे मुझे उसके विचारों से कुछ हद तक सहमत होना पड़ा।
अर्पिता द्वारा उसके जीवन के अनुभव पर लिखे गए विवरण के आधार पर मैंने यह रचना लिख कर अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने की अनुमति लेने के लिए उसे एक माह पहले भेजी थी।
कुछ दिन पहले अर्पिता ने मेरी उस रचना में कुछ तथ्यों पर सही जानकारी दे कर मुझे अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने का अधिकार दे दिया।
मैंने अर्पिता के द्वारा भेजे गए सही तथ्यों को उसी के शब्दों में लिखी निम्नलिखित रचना में सम्मलित करते हुए उसे सम्पादित कर के आप सब के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रही हूँ।
अन्तर्वासना की असंख्य पाठिकाओं एवम् पाठकों को मेरा प्रणाम!
मेरा नाम अर्पिता चौहान है और मैं अपने ससुराल में अपने पति, पुत्र एवम् विधवा सास के साथ राजस्थान प्रदेश के एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर में रहती हूँ।
मैं अपने मम्मी-पापा की इकलौती संतान हूँ और जब मैं अल्प व्यस्क थी तब एक दिन बहुत ही तेज़ ज्वर से पीड़ित होने के कारण अकस्मात् ही मेरी मम्मी की निधन हो गया।
मम्मी की आकस्मिक मृत्यु के बाद पापा ने मुझे सम्भाल तो लिया लेकिन मम्मी की कमी को पूरा नहीं कर सके और वह भी उनके गम में दो वर्षों के बाद इश्वर को प्यारे हो गए।
इतनी कम आयु में मेरे सिर से मम्मी एवम् पापा का साया उठ जाने के बाद मेरे सबसे छोटे मामा और मामी मुझे रहने के लिए अपने ही घर ले आये थे।
मेरे मामा-मामी दोनों ही हमारे शहर के प्रसिद्ध डॉक्टर हैं और दोनों का शहर में एक नर्सिंग होम है जिसमें मामा जी सर्जन हैं तथा मामी प्रसूति विशेषज्ञ हैं।
उन दोनों की उन्नीस वर्षीय बेटी अपूर्वा पिछले वर्ष से दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में मेडिकल की पढ़ाई कर रही है और वहीं हॉस्टल में रहती है।
मामा-मामी ने अपूर्वा के साथ साथ मुझे भी अपनी बेटी की तरह बहुत ही प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया।
लगभग ढाई वर्ष पहले जब मैं इक्कीस वर्ष की हुई थी और मेरी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी तब उन्होंने मेरी शादी कर दी थी।
मेरे पति शहर के एक बहुत बड़े औषिधि व्यापारी एवम् विक्रेता माने जाते हैं और हमारे घर पर हर तरह की सुख-सुविधा का सामान उपलब्ध है।
क्योंकि औषधि कंपनियों की ओर से आये दिन उन्हें कोई न कोई उपहार मिलते ही रहते हैं जिसके कारण घर में किसी भी वस्तु की कमी नहीं है।
मेरी विधवा सास बहुत ही विन्रम और धार्मिक स्वभाव की महिला है और वह भी मुझे बेटी की तरह प्यार करती है।
मेरे पति मुझे बहुत ही प्रेम करते हैं और मेरी हर की इच्छा की पूर्ति एवम् ख़ुशी का ध्यान भी रखते हैं तथा मेरे आनन्द एवम् संतुष्टि के लिए सदा तत्पर रहते हैं।
लेकिन हमारे बहुत बड़े व्यापार को अकेले ही सम्भालने के चेष्टा में वह हमेशा अत्याधिक व्यस्त रहते हैं और इसलिए हम दोनों सिर्फ रात के समय ही आपस में मिल पाते हैं।
वे हर सुबह आठ बजे ही काम पर चले जाते हैं और रात को लगभग दस बजे के बाद ही घर लौटते हैं इसलिए हम दोनों का शारीरिक मिलन बहुत कम होता है।
क्योंकि मेरी मामी शहर के मानी हुई प्रसूति विशेषज्ञ हैं इसलिए पिछले वर्ष जब मैं गर्भवती हुई तब मैंने और पति ने सासू माँ की अनुमति से मामी के नर्सिंग होम में ही प्रसव कराने का निर्णय लिया।
जब गर्भ के दूसरे माह के शुरू में मामी के पास निरीक्षण करवाया तब वह बहुत ही खुश हुई और उन्होंने मेरा परीक्षण बहुत ही अच्छी तरह से किया।
गर्भावस्था के सातवें माह के अंत में मामी ने हमारे परिवार के रीती रिवाजों के अनुसार मुझे अपने घर पर रख लिया और एक माँ की तरह मेरी पूरी देखभाल भी की।
जब गर्भावस्था के नौ माह और सात दिन पूरे हुए तब उस रात को एक बजे मुझे प्रसव की पीड़ा शुरू हो गई और मामी तुरन्त मुझे अपने नर्सिंग होम में ले गई।
वहाँ जाकर जब मामी को पता चला कि रात्रि पारी की उनकी सहायक डॉक्टर की तबियत खराब होने के कारण वह घर चली गई थी तब उन्होंने अपनी सहायता के लिए मामा जी को बुला लिया।
रात को तीन बजे जब मेरी प्रसव पीड़ा तीव्र होने लगी तब मामी ने मेरा परीक्षण करने के पाश्चात नर्सों को प्रसव की तैयारी के आदेश दे दिए।
उसके बाद ड्यूटी नर्स ने मामी के निर्देश के अनुसार मुझे प्रसव कक्ष में लिटा कर मेरे सभी कपड़े उतार दिए और मेरे जघन-स्थल और योनि के आस पास के सभी बाल साफ़ कर के मुझे एक चादर से ढक दिया।
लगभग चार बजे जब मुझे प्रसव की अत्यंत तीव्र पीड़ा होने पर मामी ने मेरी दोनों टांगें चौड़ी करके बाँध दी और उनके बीच में बैठ कर मुझे जोर लगा कर बच्चे को बाहर धकेलने के लिए कहा।
जब दर्द के मारे मैं ऐसा करने में असफल हो जाती, तब एक नर्स मेरे बगल में आकर मेरे पेट के दोनों हाथों से थोड़ा दबा कर मुझे जोर लगाने को कहती।
उस नर्स की सहायता से जोर लगा कर बच्चे को थोड़ा नीचे धकेलने में मुझे सफलता तो मिली लेकिन बच्चे का सिर बड़ा होने के कारण मेरी योनि के मुँह में फंस गया।
तब मामी ने नर्स को मेरी टांगों को और चौड़ा करने को कहा ताकि मेरी योनि का मुख थोड़ा अधिक खुल जाए लेकिन उनके ऐसा करने पर भी कोई अंतर नहीं पड़ा।
फिर मामी ने पास खड़े मामा जी के कहने पर मेरी योनि के नीचे वाले हिस्से में एक छोटा सा चीरा लगा दिया जिससे मेरी योनि का मुँह खुल गया और बच्चे का सिर मुक्त हो गया।
बच्चे के सिर के मुक्त होते ही मामी ने मुझे एक बार फिर से बच्चे को धकेलने के लिए जोर लगाने के लिए कहा और इस बार मेरे ऐसा करते ही बच्चे बाहर की ओर सरका।
बच्चे के सिर और कंधे के योनि से बाहर निकलते ही मामी ने उसे पकड़ कर बाहर खींच कर नर्स को पकड़ा दिया तथा बच्चे की नाभि से जुड़ी गर्भनाल को मेरी योनि में से बाहर नकालने लगी।
गर्भनाल के बाहर निकलते ही मामी ने उसे काट कर अलग किया और बच्चे का निरीक्षण एवम् उपचार करने के लिए वहाँ से दूसरे कमरे में ले गई।
मामी के वहाँ से हटते ही एक नर्स मेरी टांगों के बीच में बैठ कर मेरे पेट, नाभि तथा जघन-स्थल को दबा कर मेरी योनि के अन्दर से रक्त आदि को बाहर निकालने एवम् साफ़ करने लगी।
जब मेरी योनि साफ़ हो गई तब नर्स वहाँ से हट गई और मामा जी मेरी टांगों के बीच में बैठ कर मेरी योनि में लगे चीरे की जगह को साफ़ करने लगे ताकि वे उसमें टांके लगा सकें।
उनका इस तरह बैठ कर मेरी योनि को साफ़ करना तथा उसमें उँगलियाँ डाल कर टांकें लगाने से मुझे बहुत बेचैनी एवम् शर्मिंदगी महसूस होती रही लेकिन उस परिस्थिति में मैं कुछ नहीं कर सकती थी।
कुछ देर के बाद जब टांकें लग गए तब मामा जी ने मेरी योनि को अच्छी तरह से दबा कर साफ़ किया और टांकों पर मलहम लगाने के बाद नर्स को मेरी योनि पर सैनिट्री पैड बाँधने को कह कर चले गए।
वहाँ से मामा जी के जाते ही मामी अपने हाथों में बच्चे को उठाये आई और मुझे पकड़ते हुए बोली– अर्पिता, बहुत बधाई हो, तुमने अपने घर के चिराग को जन्म दिया है।
फिर नर्स ने सैनिट्री पैड बाँधने के बाद मुझे और बच्चे को मामी के ऑफिस के साथ वाले कमरे में स्थानांतरित कर दिया।
जब मैं उस कमरे में पहुँची तब मैंने अपने पति और सास को वहाँ देखा जो सुबह चार बजे से प्रसूति-गृह के बाहर प्रतीक्षा में खड़े हुए थे।
मुझे बिस्तर पर लिटाते ही वे मेरे पास आकर बैठ गए और उन्होंने बताया- तुम्हारी मामी ने हमें तीन बजे तुम्हारे प्रसव के बारे में बता दिया था और हम तुरंत नर्सिंग होम पहुँच गए थे।
तभी मामी ने बच्चे को मेरी सास की गोदी में देते हुए कहा– मुन्ने की दादी अम्मा जी को बहुत बधाई हो, यह लीजिये अपने खानदान एवम् परिवार के वारिस को। इसका जन्म सुबह चार बज कर पैंतीस मिनट पर हुआ था।
जब दो दिनों के बाद मेरी सास ने मामी से मुझे नर्सिंग होम से छुट्टी मिलने पर अपने घर ले जाने की बात कही तब मामी ने कहा– परिवार के रीति रिवाज़ के अनुसार बेटी प्रसव के चालीस दिनों के बाद ही अपने ससुराल जाती है।
यह सुन कर मेरी सास पहले तो थोड़ा मायूस हुई लेकिन फिर मुस्कराते हुए ली– हाँ, तुम सही कह रही हो कि रीति रिवाजों के अनुसार तो जच्चा को चालीस दिन के लिए वहीं रहना चाहिए जहाँ उसका प्रसव हुआ है। ठीक है, चालीस दिन तक आप बहु रानी और मेरे पोते को अपने पास रखो, तब तक मैं भी चार धाम की यात्रा कर आती हूँ।
अगले दिन मामी मुझे अपने घर ले आई और वहीं पर मेरी एवम् मेरे बेटे की देखभाल होने लगी।
इसके तीन दिनों के बाद तक मेरी सास रोजाना घर पर अपने पोते से मिलने आ जाती थी और उसके बाद वह चार धाम की यात्रा के लिए चली गई।
मेरे पति सुबह और शाम अपने काम में से समय निकाल कर मुझे और बेटे से मिलने आते तथा कुछ समय मेरे से भी बातें कर के चले जाते।
हर रोज़ मामी दिन में एक नर्स को घर पर भेज कर मेरी योनि में लगे टांकों की सफाई एवम् मरहम पट्टी तथा बेटे को नहलाना धोना आदि करा देती थी।
प्रसव के छह दिनों के बाद जिस दिन मेरी योनि में लगे टांके काटने थी उस दिन मामी के पास एक बहुत जटिल प्रसव केस आ जाने के कारण वह घर नहीं आ सकी।
तब उन्होंने टाँके काटने का सभी सामान नर्स के हाथ घर पर भिजवा दिया और मामा जी से उन्हें काटने के लिए फ़ोन कर दिया।
नर्स ने मेरी योनि को अच्छी तरह से साफ़ करने के बाद जब बेटे को नहलाने के लिए ले गई तब मामा जी नाइटी ऊँची करके मेरी टांगें फैला दी और उनके बीच में बैठ गए।
मामा जी को अपनी योनि के सामने बैठे देख कर मुझे बहुत संकोच हो रहा था और शर्म के मारे मैंने आँखें बंद कर ली।
तभी मैंने मामा जी की एक उंगली मेरी योनि के अन्दर घुसते हुए महसूस की तो मैंने अपनी टाँगें जोड़ने की चेष्टा की एवम् योनि को सिकोड़ लिया।
तब मामा जी ने कहा– अर्पिता, इसे सिकोड़ो नहीं। टांकों को काटने के लिए मुझे तुम्हारी योनि में उंगली डाल कर उन्हें बाहर तो निकालना पड़ेगा और इसलिए तुम इसे ढीला छोड़ दो।
मामा जी की बात सुन कर मुझे अपने टांगें और योनि को ढीला छोड़ना पड़ा और उनकी उंगली से मेरे अंदर होने वाली हलचल को सहन करना पड़ा।
पन्द्रह मिनट के बाद जब मामा जी ने सभी टांकें काट कर मेरी योनि को रुई से साफ़ करने लगे तब मेरे भगनासे पर रगड़ लगने से मेरी मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी।
तब मामा जी ने कहा– अर्पिता, अपने आप पर थोड़ा नियंत्रण रखो, बस एक मिनट और लगेगा।
मैंने अपने पर नियंत्रण किया और आँखें बंद कर के पड़ी रही।
तभी मैंने महसूस किया की मामा जी ने अपनी बड़ी उंगली पर रुई लपेट कर उसे मेरी योनि के अन्दर गर्भाशय के मुँह तक डाल दी। फिर वह उस उंगली को घुमा कर मेरी योनि की अन्दर से सफाई करने लगे जिसके कारण मेरे शरीर एवम् योनि में हलचल होने लगी और मैं अपने पर नियंत्रण खो कर जोर जोर से सिसकारी भरने लगी।
कुछ क्षणों के बाद मामा जी ने अपनी उंगली बाहर निकाल ली और योनि की बाहर से सफाई करके मेरी नाइटी को नीचे किया और कमरे से बाहर चले गए।
मामा जी द्वारा मेरी उत्तेजना को भड़का कर बेरुखी से चले जाने पर मैं कुछ नहीं कर सकी लेकिन मुझे अपने तथा उन पर बहुत रोष आया।
तभी मेरे बेटे के रोने की आवाज़ सुन कर मेरा वह रोष रफू-चक्कर हो गया और मैंने उत्तेजना को भूल कर उसे चुप कराने के लिए अपनी गोदी में उठा कर दूध पिलाने लगी।
बच्चे की देखभाल तथा घर के काम में व्यस्त रहने के कारण एक माह कब बीत गया मुझे पता ही नहीं चला।
जब मैंने अपनी योनि की सुध ली और उसकी देख-रेख करी, जब मैंने आईने में अपनी योनि का अक्स देखा तो हैरान हो गई क्योंकि वह बिल्कुल वैसी ही दिख रही थी जैसे की बेटा होने से पहले थी।
प्रसव के बाद मायके में रहते हुए मुझे एक माह ही हुआ था तभी एक दिन मामा-मामी के कमरे का वातानुकूलक खराब हो गया।
उस रात अधिक गर्मी होने के कारण जब मामा-मामी अपने कमरे में सो नहीं सके तब रात ग्यारह बजे वह मेरे कमरे में सोने के लिए आ गए।
कमरे में रखे हुए बहुत चौड़े बैड के पास ही रखे पालने में मैंने अपने बेटे को सुलाया हुआ था और मैं खुद उस बैड पर पालने के बिल्कुल साथ ही एक ओर सो गई थी।
बाकी का बैड खाली देख कर मामी मेरे साथ सो गई तथा मामा उनके साथ बैड के दूसरी ओर सो गए।
रात के लगभग बारह बजे जब मेरी नींद खुली तब मैंने मामा-मामी की खुसफुसाहट सुनी तो मैं चुपके से बिना हिले-डुले लेट कर उनकी बातें सुनने लगी।
मामा मामी से संसर्ग करने के लिए कह रहे थे लेकिन मामी मेरा हवाला दे कर उनकी बात नहीं मान रही थी।
कुछ देर की बहस के बाद मामा ने उन्हें समझाया कि पहले मैं अविवाहित थी इसलिए वह दोनों जब कभी भी मेरे कमरे में सोते थे तब कुछ नहीं करते थे।
क्योंकि अब मैं विवाहित हूँ और संसर्ग के बारे में सब कुछ जानती हूँ इसलिए उन दोनों को उस समय संसर्ग करने से मुझे कोई आपति नहीं होनी चाहिए।
मामा का यह तर्क सुन कर मामी संसर्ग के लिए मान गई और अपनी नाइटी ऊपर कर के ब्रा और पैंटी उतार दी और अर्ध-नग्न होकर लेट गई तब मामा भी अपनी लुंगी उतार कर अर्ध-नग्न हो गए।
फिर मामा ने अपना लिंग मामी के हाथ पकड़ाते हुए उसे चूसने का संकेत किया और वह खुद मामी की जाँघों के बीच में अपना मुँह डाल कर उसकी योनि को चाटने लगे।
लगभग पन्द्रह मिनट तक 69 की स्थिति में दोनों एक दूसरे के गुप्तांगों को चूसते एवम् चाटते रहे और जब दोनों उत्तेजित हो गए तब मामा ने मामी को सीधा लिटा कर उसकी टाँगें फैला दी तथा बीच में बैठ गए।
फिर मामा अपने सात इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे तने हुए लिंग के लिंग-मुंड को मामी के भगनासे पर रगड़ने लगे और मामी सिसकारियाँ भरने लगी।
पांच मिनट में ही जब मामी के मुख से खूब सिसकारियाँ निकलने लगी और मामी बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी। तब मामा ने अपने तने हुए लिंग को उनकी योनि के मुख पर रख कर एक धक्का लगा दिया।
उस धक्के से उनका पूरा लिंग मामी की योनि में समा गया और मामी की मुख से एक लम्बी सिसकारी निकल गई।
अगले दस मिनट तक मामा जी लगातार धक्के लगा कर अपने लिंग को मामी की योनि के अंदर बाहर करने लगे और मामी चूतड़ उचका कर उस लिंग को अपनी योनि की गहराई में उतारती रही।
दस मिनट के बीतते ही मामी का शरीर अकड़ गया और उन्होंने मामा जी को जकड़ लिया और बोली– जल्दी करो, मैं आने वाली हूँ।
मामा जी ने भी तेजी से धक्के देते हुए कहा– मैं भी आने वाला हूँ। और इसके साथ ही एक हुंकार और एक सिसकारी के साथ दोनों एक साथ ही स्खलित हो कर निढाल हो कर लेट गए।
पांच मिनट के बाद दोनों ने बाथरूम में जाकर अपने गुप्तांगों को साफ़ किया और कपड़े पहन कर एक दूसरे की तरफ पीठ कर के सो गए।
मामा मामी का संसर्ग देख कर मैं बहुत गर्म हो चुकी थी तथा मुझे योनि में गीलापन भी महसूस होने लगा था। इसलिए मैं उन दोनों के सोते ही उठ कर बाथरूम में गई और अपनी योनि को शांत करने के लिए उसमें उंगली करने के बाद उसे ठन्डे पानी से धोने के बाद ही सोई।
अगले दिन नर्सिंग होम का मैकेनिक वातानुकूलक का निरीक्षण करने आया और उसने बताया कि उसका कम्प्रेसर जल जाने के कारण उसे ठीक होने में तीन से चार दिन लग जायेंगे।
इसके बाद उसने वातानुकूलक को उतार कर ठीक करने के लिए अपने साथ ही ले गया।
रात को सोने के समय पिछले दिन की तरह मैं अपने बेटे के पालने के पास बिस्तर के एक तरफ सो गई और मामी बीच में तथा मामा बिस्तर के दूसरे तरफ सो गए।
आधी रात के बाद नर्सिंग होम से फोन पर किसी आपातकालीन प्रसव केस के आने की सूचना मिलते ही मामी को उसी समय वहाँ जाना पड़ा।
क्योंकि उस समय मैं जागी हुई बेटे को दूध पिला रही थी इसलिए मामी ने मामा जी को नहीं उठाया और जाने से पहले मुझे कहा– अर्पिता, तुम घर का मुख्य द्वार बंद कर लो क्योंकि मुझे रात भर नर्सिंग होम में ही रहना पड़ेगा और मैं सुबह ही घर आ पाऊँगी।
मामी के जाने का बाद मैंने द्वार बंद किया और अपने बिस्तर पर फ़ैल कर सो गई।
लगभग दो बजे मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरी बगल में लेटा हुआ था और वह मेरे उरोजों को सहला रहा था।
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मैंने आँख खोल कर देखा तो पाया कि मामा जी आँखें बंद किये मेरी ओर करवट कर के लेटे हुए थे और अपने एक हाथ से मेरे एक स्तन को सहला रहे थे।
क्योंकि कई माह के बाद किसी पुरुष द्वारा मेरे उरोजों को सहलाया था इस कारण मेरी वासना जागृत हो गई और मैं उस उत्तेजित अवस्था में यौन सुख एवम् आनन्द की प्राप्ति की लालसा ने मुझे मामा जी का हाथ नहीं हटाने दिया।
पांच मिनट के बाद मामा जी ने मेरी नाइटी ऊपर की ओर खींचते हुए बोले– सरोज, ऐसा करो तुम इस नाइटी को उतार कर मेरे ऊपर आ जाओ। जब तुम थक जाओ तो मुझे बता देना तब मैं ऊपर आ जाऊँगा।
मामा जी की यह बात सुन कर मैं समझ गई कि उन्हें मामी के जाने का पता नहीं है और वह गलतफ़हमी में मुझे अपनी पत्नी समझ कर संसर्ग करने के लिए कह रहे हैं।
पिछले पांच मिनट में उनके द्वारा मेरे उरोजों को सहलाने के कारण मैं बहुत उत्तेजित हो चुकी थी और यौन संसर्ग का आनन्द पाने के स्वार्थ ने मुझे मामा जी की इस भ्रान्ति को तोड़ने से रोक दिया।
वासना के वशाधीन मैं उनसे अलग होने के बजाय उनके कहे अनुसार अपने नाइटी को उतार कर उनके ऊपर लेट कर उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
मेरे होंठो का स्पर्श मिलते ही मामा जी ने उन्हें चूसना शुरू कर दिया और एक हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर अपनी लुंगी खोल दी तथा अपने तने हुए लिंग को मेरी योनि में डालने का प्रयास करने लगे।
मैंने भी उनके होंठों को चूसते हुए अपने शरीर को थोड़ा ऊँचा उठाया और उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि के मुख पर रख कर अंदर घुसाने की चेष्टा करने लगी।
मामा जी के ढाई इंच मोटे लिंग का मुंड फूल कर तीन इंच का हो गया था जिस कारण उसे योनि के प्रवेश करने में बाधा पड़ रही थी।
लिंग को मेरी योनि में नहीं जाते देख कर मामा जी बोले– सरोज, अगर अपनी योनि इस तरह सिकोड़ कर रखोगी तो अंदर कैसे जाएगा? मैं ज़बरदस्ती करूँगा तो तुम्हें तकलीफ होगी। इसलिए अपनी योनि की माँस-पेशियों को ढीला छोड़ो दो और मेरे लिंग के ऊपर बैठ जाओ तब वह अपने आप अंदर चला जायेगा।
मैं चुपचाप मामा जी के निर्देशों के अनुसार ऊँची हो कर बैठने की मुद्रा में होते हुए अपनी योनि के मुख को उनके लिंग की सीध में रखते हुए उस पर झटके से बैठ गई।
मेरे द्वारा झटके से बैठने के कारण मामा जी का लिंग मेरी योनि को चीरता हुआ पूरा का पूरा उसके अंदर घुस गया और हम दोनों के मुहं से एक साथ ही ‘आह्ह!’ का स्वर निकला।
मैं कुछ क्षण रुकने के बाद उचक उचक कर मामा जी के लिंग को अपनी योनि के अंदर बाहर करने लगी।
मामा जी ने भी नीचे से अपने कूल्हे उठा कर अपने सात इंच लम्बे लिंग को मेरी योनि की गहराइयों तक पहुचने की चेष्टा करने लगे।
दस मिनट तक इस क्रिया को बहुत तीव्रता से करते रहने के कारण जब मेरी साँसें फूल गई और पूरा शरीर पसीने से भीग गया तब मामा जी ने मुझे रोक कर नीचे लेटने के लिए कहा।
मैं उनके कहे अनुसार उनके ऊपर लेट गई और मामा जी ने मुझे कस के अपने बाहुपाश में जकड़ लिया तथा करवट लेकर मुझे नीचे कर के खुद मेरे ऊपर आ गये।
ऊपर आते ही मामा जी ने बहुत तीव्रता से अपने लिंग को मेरी योनि के अन्दर बाहर करने लगे और दस मिनट में ही मेरी योनि से रस स्खलित हो गया।
उसके बाद मामा जी ने अपनी गति बढ़ा कर अत्यंत तीव्र कर दी और उछल उछल कर अपने लिंग को मेरी योनि में धकेलते रहे।
दस मिनट बीतते ही मेरी टाँगें ऐंठ गई तथा मेरा शरीर अकड़ने लगा और तब मेरी योनि ने बहुत तेजी से सिकुड़ते हुए मामा जी के लिंग को जकड़ लिया।
मेरी योनि की जकड़ के कारण मामा जी के लिंग को बहुत ही ज़बरदस्त रगड़ लगी और दो धक्के लगते ही उनका गर्म गर्म वीर्य मेरी योनि में गिरने लगा।
उस गर्म वीर्य से पैदा हुई गर्मी को ठंडा करने के लिए मेरी योनि ने तुरंत अपने रस की बौछार कर दी जिससे आनन्द एवम् संतुष्टि की सुखद लहरें मेरे शरीर में उठने लगी।
मैं और मामा जी पसीने में भीगे तथा हाँफते हुए निढाल हो कर एक दूसरे को लिपटे कुछ समय तक बिस्तर में ही लेटे रहे।
जब सांस में सांस आई तब मामा जी मुझे चूमते हुए बोले– सरोज, सच कहूँ तो तुमने हनीमून के बाद आज पहली बार मुझे अत्याधिक आनन्द एवम् संतुष्टि दी है।
मैंने उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया तथा अपनी नाइटी पहनते हुए मैं योनि की सफाई करने के लिए बाथरूम में घुस गई।
मेरे पीछे पीछे नग्न मामा जी भी बाथरूम में घुसे लेकिन मुझे बाथरूम में देखते ही वह अपनी नग्नता छुपाने के लिए झट से मुड़ कर कमरे में चले गए।
जब उन्होंने कमरे की लाईट जला कर मामी को वहाँ नहीं देखा तब वह वापिस बाथरूम में लौटे और खूंटी पर टंगे हुए तौलिये को कमर में लपेट लिया।
तौलिया बाँधने के बाद मामा जी ने वापिस मुड़ कर जब मुझे अपनी योनि को धोते हुए देखा तो चौंक गए और मुझ से पूछा- अर्पिता, तुम्हारी मामी कहाँ है, अभी अभी तो बाथरूम में ही तो घुसी थी?
मैंने योनि को धोते हुए ही कहा– मामा जी, रात को बारह बजे नर्सिंग होम से एक आपातकालीन प्रसव केस के बारे में फ़ोन आया था तब मामी तुरंत वहाँ चली गई थी।
यह सुन कर मामा जी ने पूछा– तो फिर क्या तुम मेरे साथ सो रही थी? क्या अभी अभी मैंने तुम्हारे साथ सम्भोग किया था?
मैंने उत्तर दिया– जी हाँ, मामी के जाने के बाद आप करवट ले कर मेरे पास आ कर सो गए थे और अभी अभी आपने मेरे साथ ही सम्भोग किया था।
मेरी बात सुनते ही वह सकते में आ गए और मुझसे बोले- यह गलत बात हो गई है। क्या तुम मुझे रोक नहीं सकती थी?
मैंने उत्तर में कहा– मैं सो रही थी, तब आपने मेरे स्तनों को मसल कर मेरी सोई वासना को जगा दिया था। इससे पहले कि मैं आपसे कुछ कहती, मेरे अंदर की यौन वासना ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। कई माह के बाद यौन सुख, आनन्द और संतुष्टि मिलने की लालसा के वशीभूत मैं चुप रही।
मेरी बात सुन कर उन्होंने कहा– यह गलत हुआ है, बहुत ही गलत हुआ है। इस वासना और लालसा के वशीभूत होकर हम दोनों ने जो किया वह अनैतिक है।
उनकी बात सुन कर मैंने कहा– मामा जी, जैसे प्यार और युद्ध में कुछ भी नाजायज़ नहीं कहलाता उसी प्रकार यौन वासना और लालसा में कुछ भी अनैतिक नहीं होता।
इसके बाद मैं अपनी ताज़ी धुली ही गीली योनि को तौलिये से पोंछती हुई बाथरूम से बाहर निकल गई।
कुछ देर के बाद मामा जी भी अपने लिंग को धोकर उसे कमर से बंधे तौलिये से पौंछते हुए मेरे बगल में कुछ दूरी बना कर लेट गये।
दस मिनट चुपचाप लेटे रहने के बाद मामा जी ने कहा– अर्पिता, क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूँ कि तुम इस घटना के बारे में अपनी मामी या किसी और के साथ साझा नहीं करोगी?
मामा जी की बात सुन कर मैं कुछ सोच में पड़ गई की थोड़ी देर पहले मिले आनन्द एवम् संतुष्टि की तुलना पति से मिले आनन्द एवम् संतुष्टि से करने लगी।
मेरे मस्तिष्क द्वारा उस तुलना का विश्लेषण करने से मुझे महसूस हुआ कि मेरे पति का लिंग मामा जी के लिंग से एक इंच लम्बा तो है लेकिन आधा इंच पतला होने के कारण मुझे वह यौन आनन्द एवम् संतुष्टि नहीं देता है।
कुछ देर पहले मामा जी से मिले यौन आनन्द एवम् संतुष्टि को भविष्य में पुनः प्राप्त करने की लालसा से विवश होकर मैंने कहा– मामा जी, मैं वचन तो नहीं दे सकती लेकिन यह आश्वासन देती हूँ कि मैं इस बात का अपने तक सीमित रखूंगी बशर्ते कि आप भी मेरी एक बात मानने का आश्वासन देते हैं।
मेरा उत्तर सुन कर मामा जी मेरी ओर घूरते हुए पूछा– तुम्हारी क्या बात मुझे माननी पड़ेगी?
मैंने तुरंत कहा– भविष्य में अगर कभी मुझे आप से आज जैसा यौन आनन्द एवम् संतुष्टि चाहिए होगी तो आप कभी भी इन्कार नहीं करेंगे।
पलट कर मामा जी ने प्रश्न किया– अगर मुझे तुमसे आज जैसा यौन आनन्द एवम् संतुष्टि चाहिए होगी तो?
मैंने उत्तर में कहा– मामा जी, अगर परिस्थिति अनुरूप हुई तो मैं तुरंत ही आपको वह सब सुख प्रदान कर दूंगी। लेकिन विपरीत परिस्थिति होने पर आपको प्रतीक्षा करनी होगी जब तक कि परिस्थिति अनरूप नहीं हो जाती।
इसके बाद मामा जी ने मुझे बाहुपाश में ले लिया और हम दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूमते हुए लिपट कर सो गए।
उस रात के बाद जब तक मैं मामा-मामी के घर में रही तब तक मामी के नर्सिंग होम जाने के बाद हम रोजाना सम्भोग करके आनन्द एवम् संतुष्टि प्राप्त कर लेते थे।
पिछले छह माह से मैं हर माह दो तीन दिनों के लिए मामा-मामी को मिलने के लिए जाती हूँ और उन दिनों में जब भी एकांत मिलता है तब मामा जी और मैं के लिए सम्भोग कर लेते हैं।
मेरे द्वारा वासना के वशीभूत हो कर परपुरुष सहवास करने से अब मेरे अपने जीवन में यौन सुख, आनन्द एवम् संतुष्टि की कोई कमी नहीं है।
अंत में मैं अन्तर्वासना की लेखिका टी पी एल का बहुत धन्यवाद व्यक्त करना चाहूँगी जिन्होंने मेरे जीवन में घटी इस घटना के विवरण का अनुवाद एवम् सम्पादन करके अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने में सहयोग दिया।
अन्तर्वासना की पाठिकाओ एवम् पाठको, अगर आप अर्पिता चौहान के जीवन में घटी उस घटना के विवरण पर अपने विचार व्यक्त करना चाहते हैं तो आप डिसकस कमेन्ट्स पर लिख सकते हैं और साथ ही [email protected] या [email protected] पर सन्देश भेज सकते हैं।
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