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मैंने बसंती से पूछा- क्यों बसंती, यहाँ दिल लग गया क्या? बसंती मुस्कराते हुए बोली- दिल क्यों न लगेगा छोटे मालिक, जहाँ आप जैसे कारीगर शहज़ादे हों, वहाँ दिल क्या, सब कुछ लग जाएगा।
मैंने मुस्कराते हुए कहा- अच्छा तो तुम मुझको कारीगर शहज़ादा समझती हो? लेकिन अभी तक तुमने मेरी कौन सी कारीगरी देखी जिस से यह अंदाजा लगाया?
बसंती हँसते हुए बोली- आपकी कारीगरी और होशियारी तो रोज़ देखती हूँ जब मैं आपको चाय देने आती हूँ हर सुबह!
मैंने हैरानी जताते हुए कहा- क्या कह रही हो बसंती तुम? जब तुम आती हो सुबह, उस वक्त तो मैं सोया होता हूँ ना? तो फिर तुमने मेरी कौन सी कारीगरी देख ली?
बसंती कुछ सोचते हुए बोली- क्या वाकई में ही आपको कुछ भी नहीं पता होता हर सुबह?
मैं एक्टिंग करते हुए बोला- कसम तुम्हारी बसंती… मुझको कुछ भी पता नहीं होता कि सवेरे मैं कौन सी कारीगरी करता हूँ? ज़रा खोल कर बताओ तो सही किस कारीगरी की तरफ तुम्हारा इशारा है?
अब बसंती शरमा गई और अपनी धोती का पल्लू मुंह में दबाते हुए वहाँ से भाग गई।
थोड़ी देर बाद कम्मो बैठक में आई और बोली- यह बसंती क्या कह रही थी आप से छोटे मालिक? अब मैं ज़ोर से हंस दिया और कम्मो को एक टाइट जफ्फी मारते हुए बोला- यह बसंती काफी चालाक और चतुर है और वो मेरे सारे हथकंडों से वाकिफ हो चुकी है, सवेरे के मेरे लण्ड के खड़े होने को वो मेरी कारीगरी कह रही थी और मज़ा ले रही थी।
अब कम्मो थोड़ी संजीदा होती हुई बोली- लगता है बसंती काफी तेज़ है और वो आपकी चालबाज़ी को समझ रही है। चलो उसको पटाने का कोई और प्रोग्राम बनाते हैं! आप क्यों नहीं पहल करते… उसको कल सुबह एक कामुक जफ्फी मार देना जब वो चाय देकर जा रही हो तभी!
मैंने कहा- कम्मो डार्लिंग, तुम तो जानती हो इस मामले में मैं कभी भी पहल नहीं करता। यह लड़की या फिर औरत के ऊपर छोड़ देता हूँ कि वो मेरी तरफ या फिर मेरे खड़े लण्ड की तरफ आकर्षित होती है या नहीं। अगर आकर्षित है तो स्वयं आगे कदम बढ़ाएगी वरना नहीं!
कम्मो मेरे पजामे में हाथ डालते हुए बोली- लण्ड लाल तो खड़े हैं आपके, क्या पारो को भेज दूँ? वो भी बहुत प्यासी है बहुत दिनों से आपके लण्ड की!
मैं बोला- अभी तो मैं कॉलेज जा रहा हूँ! आज रात को तुम और पारो आ जाना दोनों तो तुम सबकी प्यास मिटा देंगे। क्यों ठीक है नाकम्मो रानी?
दोपहर को जब मैं कॉलेज से लौटा तो बसंती ने मेरा खाना परोसा और ऐसा करते हुए वो जानबूझ कर अपनी कमर और चूतड़ों को मेरे बाज़ू से रगड़ कर चली गई। कमरे से निकलने से पहले उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और फिर एक प्यारी सी मुस्कान छोड़ती हुई चली गई रसोई में!
खाना खाकर मैं भी अपने कमरे में आ कर थोड़ी देर के लिए लेट गया और बसंती के बारे में ही सोचता रहा।
रात को प्रोग्राम के मुताबिक पारो का भी कल्याण करना था तो उस रात पारो ने बड़ा ही लज़ीज़ खाना बनाया जिसमें तीन चार तरह के कवाब भी थे और बहुत ही ज़ायकेदार मीट के व्यंजन भी थे।
खाना खा चुकने के बाद मैं और कम्मो अपने बगीचे में टहलने के लिए निकल गए और जहाँ कहीं पेड़ों के नीचे अँधेरा दीखता हम दोनों एक दूसरे से लिपट जाते और खूब चूमा चाटी करते थे।
कम्मो की साड़ी के नीचे से अंदर हाथ डाल कर उसकी गीली चूत को महसूस करना और उसकी भग को हलके से रगड़ना मुझको बहुत ही अच्छा लगता था।
कोठी के अंदर आये तो गेट पर ही हमको बसंती रानी मिल गई जो ऐसा लगता था कि वो हमारी राह ही देख रही हो।
रात के दो घंटे लगा कर मैंने पारो की प्यासी चूत की पूरी तरह से तसल्ली कर दी और फिर वो अपने कपड़े पहन कर अपनी कोठरी में चली गई।
कम्मो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहने हुए ही बसंती के कमरे में चक्कर लगा आई और आकर बोली- छोटे मालिक, बसंती तो बेसुध हुई सो रही है और उसका पेटीकोट उसकी जांघों के ऊपर आ चुका है। चलो बसंती के अधनंगे शरीर का नज़ारा देखते हैं।
कम्मो पेटीकोट में और मैं अपने पजामे में कम्मो के कमरे में चले गए। वहाँ देखा कि बसंती अपने कपड़ों से बेसुध टांगें फैलाए सोई है।
गलियारे में लगी लाइट में देखा कि बसंती की चूत साफ़ दिख रही और उसकी चूत पर छाई घनी बालों की लतायें मद्धम रोशनी में चमक रही हैं।
बसंती के बिस्तर की एक तरफ मैं बैठ गया और दूसरी तरफ कम्मो विराजमान हो गई।
अब मैंने बड़े ही धीरे धीरे बसंती की चूत पर हाथ फेरना शुरू कर दिए और फिर एक उंगली से उसकी भग को भी मसलने लगा।
जैसे जैसे बसंती को चूत की छेड़छाड़ का मज़ा आने लगा वो थोड़ी थोड़ी बाद अपनी जांघों को सिकोड़ने और खोलने लगी।
यह देख कर कम्मो ने इशारा किया कि मैं बसंती की चूत को चूमूँ और चाटूँ।
मैं झुक कर अपने मुंह और जीभ से बसंती की चूत चाटने लगा और कम्मो ने उसके ब्लाउज को खोल दिया और उसके मम्मों को चूसने लगी।
हमने सिर्फ दस मिनट ही ऐसा किया कि बसंती का शरीर एकदम से ऐंठा और उसकी कमर उठ कर मेरे मुंह से चिपक गई और वो थर थर कांपते हुई तीव्रता से झड़ गई।
कम्मो ने मुझ को इशारा किया कि मैं अपने खड़े हुए लंड को मुठ मार कर अपना पानी बसंती के पेट पर झड़ा दूँ।
मैंने ऐसा ही किया और अपना वीर्य बसंती के पेट पर झाड़ कर हम दोनों चुपचाप मेरे कमरे में आ गए और वहाँ एक दूसरे के गले में बाहें डाल कर सो गए।
सुबह होने से पहले ही कम्मो अपने कमरे में जाकर बसंती के साथ लेट गई।
बसंती जब चाय देने आई तो उसने मेरे लण्ड को बड़े ध्यान से देखा क्यूंकि उसको शक था कि रात को उसके साथ कुछ हुआ है। एक दो बार उसने हाथ आगे बढ़ाया मेरे लंड को छूने के लिए लेकिन फिर वो पीछे हट गई और वापस चली गई।
नाश्ते के समय कम्मो ने बताया कि बसंती काफी परेशान दिख रही थी और मेरे पूछने पर उसने सारी बात बताई लेकिन कम्मो ने उस को समझा दिया था कि अक्सर जवान लड़कियों के साथ ऐसा होता है। वो जो सफ़ेद गाड़ा पदार्थ उस के पेट पर पड़ा था वो शायद उसकी अपनी ही चूत से निकला होगा क्यूंकि हो सकता है रात को उसको कोई कामुक गर्म सपना आया हो।
बसंती कम्मो की बात को मान गई और अपने काम में लग गई।
उस रात हम दोनों ने फिर बसंती को ऐसे ही छकाने की योजना बनाई और उसका मुंह और जीभ से छुटाने के बाद कम्मो ने मेरे लौड़े को खूब प्यार से चूसा और जब मेरा वीर्य छूटने लगा तो वो मैंने बसंती की चूत के ऊपर छोड़ दिया।
अगले दिन फिर बसंती बड़ी हैरानी और परेशानी में घूम रही थी।
जब मैं कॉलेज से लौटा तो बिंदू की बहन इंदू भी आई हुई थी, कम्मो और बसंती साथ पुरानी बातें याद कर रही थी।
जब मैं अपने कमरे में पहुंचा तो कम्मो भी मेरे पीछे आ गई और कहने लगी- छोटे मालिक अगर आप मानो तो कुछ दिनों के लिए इंदु को अपने साथ रख लेते हैं, शायद उसको देख कर बसंती चुदवाने के लिए तैयार तैयार हो जाए? मैं बोला- ठीक है उसको यहीं ठहरा लो, कोई हर्ज नहीं।
रात को खाना खाने के बाद हम सब बैठक में इकट्ठे हुए जहाँ मैं कम्मो और इंदु बैठे हुए थे।
बातों बातों में बिंदु की बात चल निकली तो इंदु ने बताया कि वो अपने बच्चे के साथ बहुत खुश है और उसका पति भी उसकी खूब सेवा और खातिरदारी करता है।
थोड़ी देर रुक कर इंदु बोली- लेकिन कम्मो दीदी मुझ को यह समझ नहीं आया कि इतने साल बाद बिंदु दीदी के बच्चा कैसे हो गया एकदम से? और वो भी इतना सुंदर? कुछ समझ नहीं आया मुझको?
अब कम्मो ने चोर नज़रों से मुझको देखा और मैंने भी उसकी तरफ देखा और तब कम्मो इंदु से बोली- देख इंदु, यह सब कुदरत के खेल हैं, कब क्या कहाँ होना है, सब ईश्वर की तरफ से तय हो कर आता है। तो जब सही समय आया, बिंदु को ईश्वर की किरपा से बच्चा हो गया। क्या तेरे साथ भी कुछ प्रॉब्लम है? या फिर तेरे पति में?
इंदु सर झुका कर बोली- यह बात छोटे मालिक के सामने करने की नहीं है, चल ज़रा दूसरे कमरे में चलते हैं दीदी!
कम्मो इंदु को लेकर अपने कमरे में चली गई और इस बीच बसंती काम से फ़ारिग़ होकर मेरे कमरे में आ गई।
आज उसने बड़ी लुभावनी साड़ी पहन रखी थी और बार बार अपनी साड़ी का पल्लू अपने वक्षस्थल से बार बार ऊपर नीचे कर रही थी और मैं भी टकटकी लगाए हुए उसकी यह मन लुभावनी हरकत मन ही मन मुस्कराते हुए देख रहा था।
वो भरसक कोशिश कर रही थी कि मेरा ध्यान उसकी सुंदरता की ओर आकर्षित हो और मैं भी उसकी यह सेक्सी हरकतें देख कर भी अनजान बन रहा था।
इतने में इंदु और कम्मो अपने कमरे से वापस लौट आई और कम्मो ने हम सबके लिए चाय लाने के लिए बसंती को रसोई घर भेज दिया।
बसंती के जाने के बाद कम्मो बोली- छोटे मालिक, इंदु की हालत भी बिंदु जैसी है, इसका पति भी इसका कोई ख़ास ख्याल नहीं रखता। अव्वल तो महीने में एक दो बार ही इस के साथ चुदाई करता है और वो भी चुदाई के दौरान ज़्यादा देर नहीं टिकता। बस 5-6 मिनट में ही झड़ जाता है तो इंदु बेचारी का कुछ भी नहीं हो पाता, इसी कारण इस को गर्भ नहीं ठहर पाता। अब तुम ही बताओ क्या करे यह बेचारी?
मैंने इंदु की तरफ मुस्करा के देखा और काफी संजीदगी से कहा- बहुत ही बुरा हो रहा है इंदु के साथ लेकिन इसका इलाज क्या है? यह तो इंदु को फैसला करना है कि वो आगे क्या करना चाहती है।
इंदु सर झुका कर और थोड़ी शर्माती हुई बोली- जो कम्मो दीदी कहे, वो मैं करने के लिए तैयार हूँ।
तब कम्मो ने इंदु से पूछा- अगर बसंती को पता चल गया तो क्या करोगी?
इंदु बोली- बसंती तो छोटे मालिक की पक्की मुरीद है और जब से मैं आई हूँ वो छोटे मालिक के अलावा किसी और की बात ही नहीं कर रही है। लगता है छोटे मालिक वो आप पर पक्की आशिक हो गई है और जो आप कहेंगे वो करने के लिए तैयार है।
मैं कुछ दुविधा में बोला- अब तुम बताओ कम्मो, पहले किसका काम करना है?
कम्मो बोली- मैं सोचती हूँ पहले आप इंदु को हरा कर दो फिर बाद में बसंती का भी काम कर देना! क्यों इंदु ठीक है ना?
इससे पहले इंदु कुछ बोलती, मैंने कहा- देखो कम्मो, अगर बसंती ने इंदु को चोदते हुए पकड़ लिया न तो वो कुछ ज़्यादा महसूस कर सकती हैं क्यूंकि वो अब मुझसे प्रेम करने लगी है, ऐसा मैं समझता हूँ।
इंदु बोली- ठीक है छोटे मालिक, जैसा आप कहें।
तब कम्मो बोली- क्यों इंदु, यह बसंती तो शायद अभी कुंवारी ही है ना? इंदु झट बोल पड़ी- हाँ हाँ… वो बिल्कुल कंवारी है यह मैं पक्का जानती हूँ।
अब कम्मो बोली- बसंती अभी चाय लाने गई है, जैसे ही वो आये… छोटे मालिक आप उसको पकड़ लेना।
मैं बोला- नहीं कम्मो, ऐसे नहीं… ऐसा करते हैं कि हम तीनों एकदम नंगे हो जाते हैं और एक दूसरे से प्रेमालाप शुरू कर देते हैं। जैसे ही बसंती आयेगी, वो हमको एकदम नंगे देख कर चौंक जायेगी। तब इंदु उसको पकड़ कर मेरे पास ले आयेगी और फिर हम तीनों मिल कर उसको भी नंगी कर देंगे। क्यों कैसा प्लान है यह?
कम्मो और इंदु ने कहा- यही ठीक लगता है!
हम तीनों जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगे और थोड़ी देर में हल्फ नंगे हो गये और इससे पहले कि हम एक दूसरे के पास आते उस से पहले बसंती के आने की आहट हो गई। हम तीनों भाग कर एक दूसरे से चिपट गए।
यह दृश्य देख कर बसंती के हाथ में चाय की ट्रे खड़खड़ाने लगी और वो आँखें फाड़ कर यह कामुक दृश्य देखने लगी।
इंदु ने जल्दी से उसके हाथ से कपों की ट्रे ले ली और बसंती को पकड़ कर मेरे पास ले आई और उसको मेरी तरफ धकेलते हुए बोली- लो छोटे मालिक, यह बसंती आप से बहुत प्यार करती है, आज आप इस का प्यार कबूल कर लो और इसको निहाल कर दो।
मैंने अपने खड़े लौड़े को हाथ में लेकर बसंती से पूछा- क्यों बसंती, क्या तुम सच में मुझसे और मेरे इस तुच्छ लंड से प्यार करती हो? इंदु ने मेरे खड़े लंड को बसंती के हाथ में पकड़ा दिया।
बसंती बड़ी हैरानी से अपने हाथ में पड़े हुए मेरे लंड को देख रही थी और यह समझ नहीं पा रही थी कि वो उस मुए लंड का क्या करे!
तब कम्मो के आँख इशारे के बाद दोनों ने मिल कर बसंती के कपड़े उतारने शुरू कर दिए और जब बसंती भी हम सबकी तरह पूरी नंगी हो गई तो इंदु उस को पकड़ कर फिर मेरे पास ले आई और उसको धकेल कर मेरे आगोश में डाल दिया।
मैंने बसंती को उसके पतले और कुंवारे लबों पर चूमा और अपने एक हाथ को उसके गोल लेकिन छोटे से चूतड़ों पर रख दिया।
बसंती अब काफी संयत हो गई थी और यह समझ रही थी कि उसके साथ क्या हो रहा है।
उधर इंदु देखने में काफी सेक्सी और जवान लग रही थी और अपनी मदहोश करने वाली नज़रों से मेरे लंड का और मेरे कसरती जिस्म का नज़ारा कर रही थी।
बसंती आँखें बंद किये हुए मेरी बाहों में झूल रही थी और उसकी बालों से पूरी ढकी हुई गुलाबी चूत के दर्शन करने के लिए हम सब की आँखें बेकरार हो रही थी।
मैं बसंती के होटों को छोड़ कर उसके गोल और सख्त मम्मों को चूस रहा था और उसके अनछुये चूचुकों को अपने मुंह में गोल गोल घुमा रहा था।
तब कम्मो हम दोनों को धकेलते हुए बेड पर ले गई और पहले बसंती को लिटा दिया और फिर उसकी चूत में उंगली डाल कर काफी अंदर तक ले गई और बोली- बसंती अभी पूरी कुंवारी है और सील बंद शराब की बोतल है। जो किस्मत वाला होगा वही इस बंद बोतल का मज़ा लूट सकेगा। क्यों री… तू क्या छोटे मालिक को अपनी बंद बोतल की शराब पिलाएगी?
बसंती शरमा गई और अपने हाथ से अपना चेहरा ढक लिया।
अब इंदु ने उसके हाथ को मुंह हटा कर पूछा- क्यों री बसंती, छोटे मालिक को अपनी बंद बोतल की शराब पिलाएगी? बोल हाँ या ना?
बसंती अब एकदम शर्म से लाल हो गई और फिर बहुत धीरे से बोली- पी लें मेरी बोतल की शराब, यह सब उनके लिए ही तो है।
यह सुन कर कम्मो और इंदु ने ज़ोर से ताली मारी और बसंती के होटों पर एक एक प्यार की चुम्मी जड़ दी।
अब दोनों मुझको पकड़ कर बसंती के पास ले गई और बसंती के हाथ को मेरे हाथ में देते हुए बोली- ऐ नवाब ए अवध… यह शराब की उम्दा बंद बोतल आपकी नज़र है, नोश फरमायें!
जब मैं पलंग के पास खड़ा हुआ तो इंदु ने मेरा खड़ा लौड़ा बसंती के हाथ में दे दिया और कहा- ऐ कमसिन हसीना… मज़े ले इस खड़े हुए जादू के डंडे के!
अब कम्मो ने ढेर सारी कोल्ड क्रीम बसंती की चूत के अंदर और बाहर लगा दी और काफी क्रीम मेरे लौड़े को लगा कर उसका मेकअप कर दिया।
मैं बसंती की फैली हुई टांगों में बैठ गया और अपने लौड़े को बसंती की चूत पर रगड़ने लगा। उधर इंदु और कम्मो दोनों ही बसंती के मम्मों को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।
फिर कम्मो ने इशारा किया और मैंने एक हलके धक्के से लंड को बसंती की चूत के अंदर डाल दिया लेकिन वो उसकी चूत की झिल्ली के कारण रुक गया।
अब मैंने लंड को आधा निकाला और फिर एक हल्का धक्का मारा लेकिन वो ससुर फिर वहीं जाकर रुक गया। हर बार लंड के झिल्ली के साथ टकराने पर एक हल्की सी हाय बसंती के मुंह से निकल जाती थी।
कम्मो और इंदु लगातार बसंती को गर्म करने में लगी हुई थी लेकिन फिर भी लंड अंदर नहीं जा पा रहा था। शायद बसंती की झिल्ली कुछ ज़्यादा ही सख्त थी।
अब मैंने पूरा लौड़ा निकाला और कम्मो ने उसके ऊपर और ज़्यादा कोल्ड क्रीम थोप दी और फिर कम्मो ने ही लंड को बसंती की चूत के मुंह पर रख कर मेरी गांड पर एक ज़ोर का धक्का मारा और लंड फच कर के झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर चला गया।
और इससे पहले कि बसंती दर्द से चिल्लाती, इंदु ने उसके होटों पर अपने होंठ रख दिए और इस तरह उसके मुंह से कोई आवाज़ नहीं निकल सकी।
इधर मैंने बसंती को अपनी बाहों की गिरफ़्त में ले रखा था ताकि वो ज़रा भी ना हिल सके।
जब वो थोड़ी शांत हुई तो मैंने उसको धीरे धीरे से चोदना शुरू कर दिया और जैसे जैसे ही चुदाई का आलम बढ़ता गया, वैसे ही बसंती को मज़ा आने लगा और वो अब चुदाई में पूरा सहयोग दे रही थी।
मेरी पूरी कोशिश रहती थी कि जिस भी किसी कुंवारी कन्या का योनि भेदन किया जाए उसको पहली बार ही पूरा आनन्द प्रदान हो जाना चाहिए।
इसी कोशिश में थोड़ी देर की चुदाई के बाद ही बसंती बड़ी तीव्र कंपकंपी के साथ स्खलित हो गई और मेरे शरीर से बेतहाशा लिपट गई और उसने मेरे मुंह और होटों पर चुम्बनों की बौछार लगा दी।
जब मैं बसंती के शरीर के ऊपर से हटा तो मेरा लंड एकदम रक्त से लाल हो रहा था और मैं अपने रक्त रंजित लंड को दोनों औरतों के सामने लहराता हुआ अपने बाथरूम में चला गया।
इंदु मेरे अभी भी खड़े हुए लंड को बड़ी हैरानी से देख रही थी क्यूंकि उसका पति तो चंद मिनटों में ही अपना पानी छोड़ देता था और करवट ले कर सो जाता था।
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