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लेखक: राघव पवार सम्पादक एवं प्रेषक: सिद्धार्थ वर्मा
अन्तर्वासना के अनेकानेक पाठिकाओं एवं पाठकों को मेरा सादर अभिनन्दन! मेरी लिखी एवं सम्पादित रचनाओं सम्पूर्ण काया मर्दन, संतुष्टि, वह मेरे बीज से माँ बनी, तृप्ति की वासना तृप्ति और वर्षों से प्यासी मार्था को मिली यौन संतुष्टि पर अपने विचार भेजने के लिए आप सब का बहुत धन्यवाद।
मेरे एक बचपन के मित्र राघव ने लगभग एक माह पहले मुझे अपने जीवन में घटी कुछ घटनाओं में से एक घटना पर एक रचना लिख कर भेजी थी। उसने मुझे अनुरोध भी किया था कि मैं उस रचना को हिंदी में अनुवाद एवं सम्पादित करके अन्तर्वासना पर प्रकाशित करा दूँ। मेरे मित्र राघव की इच्छा और अनुरोध का सम्मान करते हुए मैं निम्नलिखित रचना को अनुवाद एवं सम्पादित करके आप सब के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।
प्रिय मित्रो, मैं यौन सम्बन्ध पर लिखी गई रचनाओं में बहुत रूचि रखता हूँ तथा मैंने इन्टरनेट पर बहुत से श्रोताओं के जीवन में घटी काम-वासना की रोमांचक घटनाएँ भी पढ़ी हैं। मैंने अपने जीवन में घटित घटनाओं के बारे में कभी लिखने का सोचा भी नहीं था, लेकिन मेरे बचपन के मित्र सिद्धार्थ वर्मा के सुझाव एवं प्रोत्साहन पर ही मैं अपने जीवन की एक कामोत्तेजक घटना का विवरण लिखने का पहला प्रयास कर रहा हूँ!
मैं आप सब को मेरे साथ दो वर्ष पहले घटित एक घटना के बारे में बताना चाहता हूँ जो सौ प्रतिशत सत्य है और उसका सुख एवं आनन्द मैं आज भी प्राप्त कर रहा हूँ।
इससे पहले कि मैं उस घटना का उल्लेख करूँ मैं आप सब को अपने बारे में कुछ जानकारी देना चाहूँगा। मेरा नाम राघव है, मैं पच्चीस वर्ष का हूँ तथा मैं छह फुट का बहुत ही हष्टपुष्ट और सुडौल डील डौल वाला युवक हूँ।
मैं अजमेर में एक सरकारी बैंक में अकाउंटेंट हूँ और अपनी बाईस वर्षीय पत्नी रूचि के साथ उसी बैंक की कर्मचारी आवास कालोनी की एक बिल्डिंग में दूसरी मंजिल के सिंगल बैड रूम फ्लैट में रहता हूँ जिसमें एक बैठक, एक शयनकक्ष, एक रसोई, एक बाथरूम तथा दो बालकनी है।
मेरी शादी ढाई वर्ष पहले हुई थी और तब से मेरी पत्नी रूचि पास ही की मार्किट में एक बुटीक चलाती है तथा अधिकतर रात के आठ बजे तक वहीं पर ही रहती है। उसके तराशे हुए बदन की व्याख्या तो कोई कवि ही कर सकता है लेकिन फिर भी मैं थोड़ी चेष्टा कर के आपके लिए उसका कुछ विवरण देता हूँ।
रूचि बहुत ही खूबसूरत है, उसका कद पांच फुट सात इंच है, रंग गोरा है, चेहरा गोल, गुलाबी गाल तथा थोड़ा उठे हुए, आँखें हिरणी जैसी, नाक पतली और होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे। उसकी गर्दन सुराहीदार है, कंधे चौड़े हैं, उठी हुई चौड़ी छाती पहले चौंतीस-बी साइज़ की थी लेकिन अब शादी के बाद बढ़ कर चौंतीस-डी की हो गई है।
उसके नारंगी जैसे गोल और मखमल जैसी मुलायम त्वचा वाले उरोज बहुत ही सख्त, ठोस तथा कसे हुए हैं और उन गोरे उरोजों पर गहरे भूरे रंग की चूचुक एक नजरबट्टू का काम करते हैं। उसकी पतली कमर का नाप पच्चीस इंच, गोल मटोल नितम्बों का नाप छत्तीस इंच है, उसकी टांगें लंबी हैं तथा जांघें मसल एवं सुडौल हैं।
उसके सिर के काले बाल उसकी कमर तक लंबे है तथा बगल एवं जघनस्थल के बाल गहरे भूरे और छोटे हैं।
रूचि के माता पिता अलवर के पास खैरथल के निवासी हैं और वहाँ के बहुत बड़े आढ़ती होने के कारण बहुत ही धनवान भी हैं। रूचि उनके घर की इकलौती संतान होने के कारण उसके माता पिता मुझे अपना दामाद नहीं बल्कि पुत्र ही मानते हैं और आये दिन कोई न कोई तोहफा हमारे घर भेजते रहते हैं।
जब भी मैं ससुराल जाता हूँ या वे हमारे घर आते हैं तब रूचि की माँ यानि मेरी सास रूचि से अधिक मेरा बहुत ध्यान रखती है और अपना पूरा प्यार मुझ पर न्यौछावर करती है।
हमारी शादी के लगभग छह माह बाद यानि दो वर्ष पहले जब मेरी सास, पूरे वर्ष का राशन आदि अपने साथ ही लेकर, अकेले ही हमारे घर आई तब हमें थोड़ा आश्चर्य हुआ।
जब रूचि ने माँ से पापा के नहीं आने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि आजकल मंडी में अनाज की फसल आई हुई है इसलिए वे उसी में व्यस्त हैं और कुछ दिनों में आ जायेगें।
सासू माँ के आने के दो दिन बाद जब मैंने ससुर जी को फोन कर के हमारे घर आने के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि काम की वजह उन्हें आने में तीन से चार सप्ताह लग सकते हैं।
हमारे घर सिर्फ दो या तीन दिन रहने वाली मेरी सास जब डेढ़ माह तक वापिस अपने घर जाने का नाम नहीं लिया तब हमारे सुखमय तरीके से चल रहे जीवन में उथल पुथल मच गई थी।
रूचि की माँ के आने से मुझे थोड़ी दिक्कत महसूस होने लगी थी क्योंकि मेरा रूचि को प्यार करने के लिए उचित जगह और समय मिलना बहुत मुश्किल हो गया था।
सासू माँ के आस पास होने के कारण रूचि हमेशा मेरे से थोड़ी दूरी बना कर रखती थी और रात को जब सासू माँ बैठक में सो जाती थी तभी वह मेरे आलिंगन में आती थी। अगर मैं कभी ज़बरदस्ती उसका चुम्बन लेने की चेष्टा भी करता था तो वह माँ के आ जाने के डर से वह तुरंत अलग हो जाती थी।
यौन सम्बन्ध के अभाव के कारण मैं मानसिक तनाव में था और इस कारण मेरा स्वभाव भी कुछ चिड़चिड़ा हो गया था इसलिए एक दिन एक छोटी सी बात पर सासू माँ के सामने ही मेरा रूचि से मतभेद भी हो गया।
शायद अपने अनुभव के बल पर सासू माँ ने मेरा ऐसा व्यवाहर देख कर मतभेद का कारण जान लिया होगा इसलिए उन्होंने उसी रात रूचि को बैडरूम का दरवाज़ा बंद करके सोने के लिए कह दिया। उस रात रूचि ने अंदर से चिटकनी लगा कर निर्भीक हो कर हमेशा की तरह बिलकुल नग्न हो कर मुझसे संसर्ग किया और रात भर नग्न ही सोई।
अगली सुबह जब रूचि नहाने के लिए गई तब मेरे बदले मिजाज़ को देख कर सासू माँ ने मुस्कराते हुए कहा– बेटा, पति पत्नी को आपस में कभी झगड़ा नहीं करना चाहिए। अगर तुम्हे किसी समस्या का हल चाहिए हो तो मुझसे पूछ लिया करना।
एक सप्ताह तो हम रात को सोने के समय दरवाज़ा बंद कर के सोते रहे लेकिन फिर थोड़ा लापरवाह हो गए और कई बार बंद नहीं करते थे। सासू माँ को हमारे घर आये दो माह ही हुए थे जब एक रात मैं और रूचि रात को सम्भोग कर रहे थे तब मैंने कुछ आहट सुन कर बैड-स्विच दबा कर लाईट जला दी। रोशनी होते ही हमने देखा कि सासू माँ दरवाज़े के पास खड़ी हुई थी और वह नाइटी ऊंची कर के अपनी योनि में उंगली कर रही थी।
रूचि ने जब वह दृश्य देख कर चीख कर अपनी माँ से उनकी उस हरकत का उद्देश्य पूछा तब सासू माँ ने नाइटी को नीचे किया और सिर को झुका कर वहीं खड़ी होकर रोने लगी। क्योंकि उस समय हम दोनों बिलकुल नग्न थे इसलिए जल्दी में हमें जो भी कपड़ा मिला उससे अपना बदन ढांप कर भाग के सासू माँ के पास पहुंचे।
मैंने उन्हें पकड़ कर बैड पर बिठाया और रूचि ने पानी ला कर पिलाया तब कहीं उन्होंने रोना बंद किया और हमारी ओर देख कर हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करने लगी।
रूचि जब सासू माँ से कुछ पूछने ही वाली थी तब मैंने उसे समझाया कि इस बारे में दिन में वह बात कर ले और सासू माँ को उठा कर उनके बिस्तर पर लिटाया और सोने को कहा। लगभग आधे घंटे के बाद जब सासू माँ सो गई तब हम दोनों अपने कमरे में जा कर एक दूसरे की बाहों में लिपट कर निद्रा के आगोश में सो गए।
अगली सुबह हम दोनों की नींद कुछ देर से खुली इसलिए दोनों में से किसी ने भी सासू माँ से कोई बात नहीं करी।
मैंने रूचि को शाम को जल्दी घर आ कर सासू माँ से बात करने के लिए कह कर अपने काम पर चला गया और रूचि भी घर का काम समेट कर बुटिक खुलने के समय चली गई।
शाम को जब मैं देर से घर लौटा तो रूचि और सासु माँ को सामान्य पाया तथा उन्हें हँसते हुए बातें एवं काम करते देख कर मुझे थोड़ी राहत मिली। मैं समझ गया कि रूचि ने सासू माँ से बात कर ली होगी इसलिए घर में स्थिति सामान्य हो चुकी है।
कुछ देर के बाद मैंने जब रूचि को खींच कर अकेले में लेजा कर पूछा तब उसने कहा– अभी बहुत काम पड़ा है और रात के लिए खाना भी बनाना बाकी है। मैंने माँ से बात करी थी और उसके बारे में मैं आपको रात को बताऊँगी।
रात को जब हम सोने लगे तब मैंने सासू माँ के व्यवहार के बारे में रूचि से पूछा तो उसने जो भी कुछ बताया उसे सुन कर मेरे पाँव तले की ज़मीन निकल गई। रूचि ने जो भी बातें बताई वह कुछ इस प्रकार थी :
सासू माँ यौन सम्बन्ध के मामले में ससुरजी से संतुष्ट नहीं थी और पिछली बार जब वह हमारे यहाँ आई थी तब उन्होंने मुझे और रूचि को सम्भोग करते हुए देख लिया था।
सासू माँ को मेरा सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लिंग बहुत सुन्दर एवं शक्तिशाली लगा तथा हमारे सम्भोग करने की विधि भी बहुत पसंद आई थी।
उस दिन सासू माँ ने ससुर जी को भी मुझे और रूचि को उस विधि से सम्भोग करते हुए दिखाया था तथा अपने घर वापिस जा कर ससुर जी को उसी विधि से सम्भोग करने के लिए कहा था।
क्योंकि ससुर जी उस विधि से सम्भोग नहीं कर सके इसलिए सासू माँ उनसे नाराज़ हो कर हमारे पास आ गई थी।
रूचि ने यह भी बताया कि पिछले डेढ़ माह से हमें रोजाना सम्भोग करते हुए देख कर सासू माँ की लालसा इतनी बढ़ गई है कि उन्हें सही और गलत के बीच का अन्तर भी पता नहीं चल रहा था।
उस बढ़ी हुई लालसा के कारण वह पागलों की तरह एक ही बात दोहराने लगती थीं कि राघव बेटे से कहो कि वह मेरे साथ भी रोजाना सम्भोग किया करे।
जब मैंने रूचि से उसके विचार पूछे तो उसने सासू माँ की इच्छा पर एतराज़ जताया और कहा– मैं अपनी माँ को अपनी सौतन कैसे बना लूँ? जो वस्तु मेरे व्यक्तिगत प्रयोग के लिए है वह मैं किसी और के साथ कैसे साझा कर सकती हूँ?
रूचि की बात मुझे बहुत ही तर्क-संगत लगी लेकिन सासू माँ की दयनीय स्तिथि देख कर मुझे उनके साथ सहानुभूति भी थी! इस विषय के हल के बारे में सोचते सोचते हमे नींद आ गई और सुबह आठ बजे खुली तब मैं जल्दी से उठ कर तैयार हो कर ऑफिस चला गया।
कहानी जारी रहेगी.. [email protected]
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