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सम्पादक जूजा
आपी एक हाथ से मेरे लण्ड को पकड़ कर दूसरे हाथ से गीले तौलिये से साफ करने लगी- बहन इसी काम के लिये तो रह गई है अब?
आपी ने गीले तौलिये से सफाई के बाद.. तौलिए के खुश्क हिस्से से साफ किया और अलमारी से मेरा दूसरा सूट निकाल लाईं।
अब वे मेरे क़रीब ही बैठ कर बोलीं- अब उठ जाओ सगीर.. अम्मी भी उठने वाली हैं और कुछ देर में अब्बू भी घर आ जाएंगे। मैं चाय बनाती हूँ जल्दी सी नीचे आ जाओ।
आपी ने ये कह कर मेरे सिर पर हाथ फेरा और माथे को चूम कर बाहर निकाल गईं।
मुझे वाकयी ही बहुत कमज़ोरी महसूस हो रही थी.. कुछ देर बाद मैं हिम्मत करके उठा और बाथरूम चला गया। फ्रेश होकर अपना दूसरा सूट पहना और नीचे चला गया।
मैं चाय पीने के लिए बैठा ही था कि अब्बू घर में दाखिल हुए.. उन्होंने अपने हाथ में एक पैकेट पकड़ा हुआ था जो वहाँ ही मेज पर रखा। हमने उन्हें सलाम किया और वो अपने कमरे में चले गए।
मैं चाय खत्म करके वहाँ ही बैठा रहा। कुछ देर बाद अब्बू बाहर निकले और सोफे पर बैठते हुए कहा- रूही बेटा, मेरे लिए भी चाय ले आओ। ‘जी अब्बू अभी लाई..’ आपी ने किचन से ही जवाब दिया।
अब्बू मुझसे इधर-उधर की बातें करने लगे। आपी ने आकर चाय का कप आबू को दिया और सोफे पर उनके साथ ही बैठने लगी थीं कि अब्बू बोले- बेटा वो मेज पर एक पैकेट पड़ा है.. वो भी उठा लाओ।
आपी ने पैकेट ला कर अब्बू को दे दिया.. अब्बू पैकेट खोलते हुए मुझे मुखातिब कर के बोले- यार सगीर.. इसे देखो ज़रा विन्डोस की इन्स्टालेशन वगैरह कर देना।
अब्बू ने पैकेट से लैपटॉप निकाला और मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने लैपटॉप को बड़े गौर से देखते हुए कहा- ये कितने तक का मिला है अब्बू?
‘वो इहतिशाम ने दुबई से ला दिया है.. मैंने नहीं खरीदा..’ अब्बू ने जवाब दिया और घूँट-घूँट चाय पीने लगे।
इहतिशाम अंकल अब्बू के बहुत क़रीबी दोस्तों में से थे और इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस करते थे।
मैं लैपटॉप को ऊपर-नीचे से चैक करने के बाद ओपन कर ही रहा था कि अब्बू की आवाज़ आई- देखो आज रात इसमें जो भी काम है.. वो कर लो.. सुबह मैं ऑफिस जाते हुए ले जाऊँगा और मेरे पुराने लैपटॉप से सारा डाटा इसमें ट्रान्सफ़र कर दो और वो लैपटॉप अपने इस्तेमाल के लिए रख लो।
मैंने अब्बू की तरफ देखा तो वो चाय पी रहे थे और उनका ध्यान टीवी की तरफ था।
मैंने अपना रुख़ फेर कर आपी के चेहरे पर नज़र डाली, उनकी नजरें लैपटॉप की स्क्रीन पर जमी हुई थीं।
आपी ने मेरी नजरें अपने चेहरे पर महसूस करते हुए मेरी तरफ देखा.. तो मैंने उन्हें आँख मारी और फिर रुख़ अब्बू की तरफ करते हुए कहा- अब्बू मेरे पास तो पीसी है कमरे मैं… आप लैपटॉप आपी को दे दें.. उनको ज्यादा जरूरत होगी। आज कल वैसे भी आपी थीसिस लिख रही हैं।
‘अरे हाँ भाई रूही.. तुम्हारा वो.. क्या था.. हाँ ‘नीक़ाब औरत’ कहाँ तक पहुँचा है वो??’ अब्बू ने आपी की तरफ देखते हुए सवाल किया।
आपी ने अब्बू को अपनी तरफ मुतवजा पाकर अपना दुपट्टा सिर पर सही किया और कहा- अब्बू वो तो कंप्लीट हो ही गया है.. लेकिन मैं सोच रही हूँ.. इसी टॉपिक को लेकर एक किताब लिखना शुरू करूँ।
आपी ने अपनी बात खत्म करके अब्बू को देखा तो वो दोबारा टीवी की तरफ रुख़ फेर चुके थे। फिर आपी ने मुझे देखा और आँख मार कर मुस्कुरा दीं।
‘हाँ बेटा ज़रूर लिखो.. किसी चीज़ की भी जरूरत हो.. तो मुझे कह देना.. और बेटा सगीर तुम लैपटॉप आपी को दे देना अच्छा..’ अब्बू ने ये कहा और चाय का खाली कप टेबल पर रखते हुए उठ खड़े हुए। ‘रूही बेटा मेरा सूट निकाल दो कोई.. मैं ज़रा नहा कर फ्रेश हो लूँ..’ ये कहा और अपने कमरे की तरफ चल दिए।
मैंने अब्बू को कमरे में दाखिल हो कर दरवाज़ा बंद करते हुए देखा तो आपी के नज़दीक़ होते हुए सरगोशी और शरारत से कहा- अब तो मेरी बहना जी दिन रात गंदी फ़िल्में, पोर्न मूवीज़ देखेंगी और वो भी मज़े से अपने बिस्तर में लेट कर..
एक लम्हें को आपी के चेहरे पर शर्म के आसार नज़र आए और फिर फ़ौरन ही अपनी हालत पर क़ाबू पा कर बोलीं बकवास ना करो.. मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूँ और दूसरी बात यह कि मैं कमरे मैं अकेली नहीं होती हूँ समझे?
मैंने यह बात कही तो वैसे ही शरारत से थी.. लेकिन आपी की बात सुन कर मैंने एक लम्हें को कुछ सोचा और मेरी आँखों में चमक सी लहरा गई।
मैंने आपी की तरफ देखा.. तो आपी ने मुस्कुराते हुए गर्दन को ऐसे हिलाया.. जैसे उन्होंने मेरी सोच पढ़ ली हो और कहा- सगीर कमीने.. मैंने कहा है ना.. मैं तुम्हारी रग-रग से वाक़िफ़ हूँ। मैं जानती हूँ तुम्हारे खबीस दिमाग में क्या चल रहा है।
मैंने झेंपते हुए अपने सिर को खुज़ाया और नज़र झुका कर मुस्कुरा दिया। फिर फ़ौरन ही नज़र उठाई और आपी से बोला- आपी यह तो इत्तिफ़ाक़न ही बहुत अच्छा मौका बन गया है, किसी तरह राज़ी कर लो हनी को भी.. फिर मिल कर मज़े करेंगे ना?
आपी ने सीरीयस अंदाज़ में कहा- शर्म करो सगीर.. उसको तो छोड़ दो.. वो अभी कमसिन है यार..
मैं फ़ौरन बोला- खैर.. अब इतनी छोटी भी नहीं है वो.. मैं कल जब अपने गंदे कपड़े वॉशिंग मशीन में डालने गया.. तो वहाँ मैंने हनी की पैन्टी पड़ी देखी थी। उस पर 4-5 स्पॉट लगे हुए थे.. ब्लड के और दिन में आपने उसकी सलवार भी देखी ही थी।
आपी ने मेरी गुद्दी पर एक चपत रसीद की और कहा- मेनसिस तो उससे 3 साल पहले से हो रहे हैं.. लेकिन है तो नादान ही ना..
मैंने अपनी गुद्दी को सहलाते हुए कहा- मेनसिस 3 साल से हो रहे हैं.. सीने के उभार आप से कुछ ही छोटे हैं.. कूल्हे मटकने लगे हैं.. तो नादान कहाँ से है?
‘अच्छा बस करो फिज़ूल की बहस.. बाद में देखेंगे कि क्या करना है.. मैं जाती हूँ अब्बू को कपड़े दे दूँ..’ आपी यह कह कर खड़ी हुईं.. तो मैं भी उनके साथ-साथ ही खड़ा हो गया।
आपी ने 2 क़दम उठाए और रुक गईं.. फिर वापस घूमीं और आहिस्ता आवाज़ में बोलीं- सगीर मैं आज रात को तुम्हारे कमरे में नहीं आऊँगी.. सुबह यूनिवर्सिटी लाज़मी जाना है क्योंकि मेरी प्रेज़ेंटेशन है।
फिर मेरे सामने दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने के अंदाज़ में बोलीं- और प्लीज़.. प्लीज़ तुम लोग भी आपस में कुछ नहीं करना.. कुछ तो अपनी सेहत का ख़याल रखो.. अभी डिस्चार्ज होने के बाद क्या हालत हो गई थी तुम्हारी.. याद है ना? यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं कुछ देर तो चुप रहा.. फिर बोला- अच्छा ठीक है आप नहीं आना और बेफ़िक्र रहें.. हम कुछ नहीं करेंगे। आज वैसे भी अब्बू के लैपटॉप को सैट करना है.. उसमें ही बहुत टाइम लग जाएगा। सुबह तैयार ना हुआ तो अब्बू की बातें सुननी पड़ेंगी।
आपी ने मेरी बात सुनी तो मुस्कुरा दीं और मेरे गाल को चुटकी में पकड़ कर दबा दिया और दाँत चबा कर बोलीं- शाबाश मेरा सोहना भाई.. ‘आआअप्प्प्प्पीईई..’ मैंने अपने दोनों हाथ आपी के हाथ पर रख के अपना गाल छुड़ाया और बुरा सा मुँह बना के गाल को सहलाते हुए कहा- यार ये नहीं किया करो ना.. आपी दर्द होता है ना..
आपी तेज आवाज़ में खिलखिला कर हँसी और बगैर कुछ बोले ही अब्बू के कपड़े लेने चल दीं।
मैं कुछ देर बुरा सा मुँह बनाए अपना गाल सहलाता रहा और फिर बाहर की तरफ चल दिया कि काफ़ी दिन हो गए स्नूकर की बाज़ी नहीं लगाई थी।
रात को फरहान ने आपी का पूछा.. तो मैंने कह दिया- सुबह आपी की प्रेज़ेंटेशन है.. इसलिए वो नहीं आएँगी और मैंने भी काम करना है.. तुम सो जाओ।
फरहान को टालने के बाद मैं भी अब्बू के लैपटॉप को ही सैट करता रहा। डेटा ट्रान्स्फर करने के बाद.. आपी के कहे बिना ही.. अपने पीसी से तमाम ट्रिपल एक्स मूवीज भी आपी वाले लैपटॉप में ट्रान्स्फर कर दीं.. ये काम भी तो जरूरी ही था।
अपना काम खत्म करने के बाद मैं भी सोने के लिए लेट गया और आगे का सोचने लगा कि अब बात को आगे कैसे चलाया जाए और इसी सोच में जाने कब नींद ने तमाम सोचों से बेगाना कर दिया।
मेरी बहन को भी अब इस सब खेल में मज़ा आने लगा था और उनकी झिझक काफ़ी हद तक खत्म हो गई थी।
मैं हमेशा यह सोचता था कि लड़कियाँ.. लड़कों के मुक़ाबले में सेक्स की तरफ कम ही मुतवजा होती हैं.. लेकिन अब मेरी सोच का नजरिया बदल चुका था और मैं जान गया था कि जितनी शिद्दत सेक्स की हम लड़कों में होती है.. उससे कई गुना ज्यादा लड़कियों में होती है। बस ये है कि उनमें फितरती झिझक और खौफ होता है.. जो उन्हें सेक्स के मामले में आगे नहीं बढ़ने देता।
मर्दों का तो कुछ नहीं जाता और ना ही कोई ऐसा सबूत होता है.. जो उनके कुंवारेपन को चैलेन्ज कर सके, जबकि लड़कियाँ अगर अपना कुंवारापन खो दें.. तो वे उसे कभी छुपा नहीं सकती हैं।
यह वाकिया मुसलसल जारी है। [email protected]
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