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अगले दिन बारात का दिन था तो सभी उस काम में व्यस्त थे। नाश्ते के बाद मुझको ऊषा मिली और कहने लगी- कैसे हो सोमू राजा? मैं भी शरारत भरे लहजे में बोला- कल तुमने तो बजा दिया था मेरा बाजा! ऊषा ज़रा सा मुस्कराई और हल्की सी आँख मार दी।
मैंने अपना मुंह ऊषा के मुंह के पास ले जा कर कहा- अब तुम्हारी बारी है, बजवा लो फिर से अपना बाजा, बाद में ना कहना किसी ने नहीं बजाया मेरा बाजा? ऊषा भी हँसते हुए बोली- जगह नहीं है, वर्ना ज़रूर कहती ‘आ बजा जा मेरा भी बाजा…’ छत पर चलोगे क्या? मैंने कहा- ले चलो जहाँ बज सके मेरा तेरा बाजा!
ऊषा मेरा हाथ पकड़ कर छत की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी और जैसे ही हम लोगों की नज़रों से दूर हुए, ऊषा ने लपक कर मेरा चेहरा अपने हाथों में ले लिया और मुझको एक बड़ी प्यार भरी चुम्मी दे डाली और मेरे भी चंचल हाथ उसकी कमर और चूतड़ों पर फिसलने के लिए मजबूर हो गए।
छत पर पहुँचे तो वहाँ एक बरसाती नुमा कमरा दिखा जिसके दरवाज़े भिड़े हुए थे। ऊषा उसका दरवाज़ा खोलने वाली ही थी कि मैंने उसको रोक दिया और चुपके से अंदर झाँक कर देखा। अंदर देख कर हैरान हो गया और ऊषा को चुप रहने का इशारा किया और फिर हम दोनों ने मिल कर अंदर देखा तो दो लड़कियाँ आपस में गुत्थम गुत्था हुई लेस्बो सेक्स कर रही थी।
ऊषा यह देख कर बहुत हैरान हो गई लेकिन मैं समझ गया कि रात वाले हमारे सबक को दोहराया जा रहा है। गौर से देखा तो पता चला कि दोनों लड़कियाँ तो अपनी जानी पहचानी थी यानि शशि और सुश्री थी। दोनों की सलवारें आधी उतरी हुई थी और उनकी कमीज़ें ऊपर हो रही थी जिससे उनके मम्मे साफ़ दिख रहे थे।
दोनों एक दूसरी की चूत को 69 के पोज़ में चाटने में इतनी मस्त थी कि उनको ज़रा एहसास नहीं हुआ कि कब हम दोनों कमरे के अंदर आ गये और कब उनके पास आकर खड़े हो गये।
वो तो अचानक ऊषा के मुंह से ‘आह…’ निकल गया जब सुश्री का पानी छूटा और वो हिल हिल कर कांपने लगी। दोनों ही डर के कारण घिघियाने लगी लेकिन जब उन्होंने हम दोनों को देखा तो उनकी जान में जान आई।
ऊषा सांवली शशि के उभरे हुए चूतड़ों को सहलाते हुए बोली- लग पड़ी एक दूसरी के साथ? ज़रा भी सब्र नहीं किया। मुझको बुला लेती या फिर सोमू को बुला कर सब कुछ करवा लेती। क्यों सोमू तुम कर देते इनकी इच्छा पूर्ण?
मैं चुपचाप उन तीनों लड़कियों को देखता रहा और फिर इस बात पर हैरानी जताई कि इन दोनों नौसिखिए लेस्बो ने 69 वाला पोज़ भी आज़मा लिया?? वाह वाह दिल्ली की लड़कियो!!
ऊषा बोली- मेरा क्या होगा सोमू राजा? इनको देख कर तो मैं बहुत ही गर्म हो गई हूँ? कुछ तो करो लखनऊ के शेर! मैं बोला- क्या करना है तुम को रानी? चुदवाना है या फिर सिर्फ चटवाना है? तीनों ही बोली- चटवाना है हमको… अभी पूरी तरह से ट्रेंड नहीं हुई ना!
मैं बोला- बरसाती का दरवाज़ा तो बंद कर लो और कुण्डी लगा लो। फिर मैंने तीनों की सलवारें उतरवा दीं और उनको समझा दिया कि एक मेरे मुंह पर बैठेगी, दूसरी मेरे खड़े लण्ड पर बैठेगी और तीसरी मेरी साइड में खड़ी हो जायेगी।
तीनों ने मेरी डायरेक्शन के मुताबकि अपनी अपनी जगह ले ली। ऊषा मेरे मुंह पर अपनी टांगें चौड़ी कर के बैठ गई ताकि उसकी चूत मेरे मुंह के सामने आ जाए और सुश्री मेरे लंड पर बैठ गई और शशि को मैंने साइड में खड़ा करके उसकी चूत में ऊँगली डाल कर उसकी भग से खेलना शुरू कर दिया।
दस मिनट की इस रंगारंग चुदाई से तीनों ही आनन्दित हो कर स्खलित हो गई और झट से उन्होंने अपनेआप पोजीशन बदल ली यानि सांवली मेरे मुंह पर, ऊषा मेरे लौड़े पर और सुश्री मेरी साइड में खड़ी हो गई। जल्दी ही यह ग्रुप फिर से पानी पानी हो गया और इस अनोखी चुदाई की पोजीशन फिर से बदल दी गई।
थोड़ी देर और लगी इस चुदाई चक्कर को पूरा करने में और फिर तीनों ने अपने कपड़े पहन लिए और मेरा शुक्रिया और मेरा गुणगान करती हुए वो मेरे साथ नीचे वाले कमरे में आ गई।
मुझ टॉयलेट जाने की ज़रूरत महसूस हो रही थी तो मैं अपने बड़े कमरे के टॉयलेट में घुस गया और अपने लौड़े को पकड़ कर अपनी तेज़ धार को छोड़ दिया और जब धार खत्म हो गई तो मैं अपना लंड हिलाता हुआ मुड़ा तो सामन एक भाभीनुमा औरत पूरी की पूरी नंगी अपना जिस्म तौलिए से पौंछ रही थी और वो अभी तक मेरे वहाँ होने से पूरी तरह से बेखबर थी, उसकी नज़र मेरे पेशाब करते हुए लौड़े पर अभी नहीं पड़ी थी।
मेरे को समय मिल गया और मैं आधा मुड़ कर उसके शरीर की इंस्पेक्शन करने में जुट गया था। एकदम मक्खन के माफिक मुलायम और गोरा शरीर… खून उभरे हुए स्तन और काफी गोल और मोटे नितम्ब… उफ़्फ़ मेरी आँखें तो बार बार उस भाभी के शरीर का दौरा कर रही थी।
जब भाभी अपना मुंह पौंछ चुकी तो मैंने अपना मुंह फेर लिया और पेशाब करने का नाटक करने लगा। अचानक भाभी की नज़र मेरे पर पड़ी और वो हल्के से चिल्ला उठी- कौन है, कौन है वहाँ? मैंने भी अनजान बनते हुए कहा- ओह्ह सॉरी… मैंने देखा नहीं था कि आप पहले से अंदर हैं, मेरे को बड़े ज़ोर का पेशाब लगा था तो मैं बिना देखे अंदर आ गया। माफ कर दीजिये जी, वेरी सॉरी !!!!
यह कहते हुए जैसे अनजाने में मैं अपना लंड भाभी की तरफ कर के उसको हिलाने का नाटक कर रहा था। गोरी भाभी की नज़र अब मेरे चेहरे से हट कर मेरे हिलते हुए खड़े लंड पर टिक गई थी। मैंने साफ़ देखा कि गोरी भाभी के चेहरे पर आ रहे गुस्से की जगह अब आश्चर्य के भाव आ रहे थे और वो काफी हैरान दिख रही थी और सबसे अजीब बात यह थी कि वो अपनी नग्नता बिल्कुल भूल कर मेरे खड़े लंड को बड़े ध्यान से देख रही थी।
फिर जब उनको अपनी नग्नता का बोध हुआ तब भी उन्होंने अपने तौलिए को अपने शरीर के चारों और लपेट लिया लेकिन मुझको वहाँ से जाने के लिए बिल्कुल नहीं कहा। थोड़ी देर लण्ड को निहारने के बाद वो धीरे से चल कर मेरे पास आई और मेरे लण्ड को अपने हाथों में लेकर उसको इधर उधर करने लगी।
फिर वो काफी सोचने के बाद बोली- विश्वास नहीं होता कि यह तुम्हारा लंड है क्यूंकि शक्ल से तो तुम उम्र के काफी छोटे लगते हो लेकिन यह हथियार देख कर ऐसा नहीं लगता कि यह तुम्हारा ही है? क्यों किसी का चुराया तो नहीं क्या? मैंने भी हँसते हुए कहा कहा- आपने ठीक पहचाना… यह तो मैं अपने मोहल्ले के दारोगा जी से उधार मांग कर लाया हूँ. अगर आपको पसंद है तो आप रख लीजिए, मैं दूसरा ले लूँगा?
गोरी भाभी अब ज़ोर से हंस पड़ी और बोली- बड़े दिलचस्प लड़के हो… कहाँ रहते हो तुम? मैं बोला- लखनऊ में और आप कहाँ की हैं? यह सुन कर भाभी खिलखिला कर हंस पड़ी और हँसते हुए ही बोली- मुझ को मालूम था कि यह लंड लखनऊ का ही है क्योंकि मेरी सहेली ने इस तरह के लंड की बड़ी तारीफ की थी कुछ दिन पहले!
मैं हैरान था कि यह भाभी क्या ऊलजलूल बोल रही है लेकिन मैं चुप रहा और जल्दी से अपने लंड को पैंट के अंदर डालते हुए बोला- अच्छा भाभी चलता हूँ। भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे जाने से रोक दिया और अपने दूसरे हाथ से मेरी पैंट की ज़िप खोल कर मेरे लंड को फिर से बाहर निकाल लिया।
अब गोरी भाभी ने अपने शरीर पर पड़े तौलिए को भी हटा दिया और मेरा एक हाथ अपने गोल मोटे मम्मों पर रख दिया। मैं समझ गया कि भाभी की क्या मंशा बन रही है लेकिन मैं यौन पीड़ा से ग्रसित किसी भी नारी को कभी निराश नहीं करता सो मैं भाभी के लबों पर एक हॉट किस देते हुए बोला- भाभी यहाँ नहीं कोई आ जाएगा। आप कपड़े पहन लो फिर मैं आप को दूसरे कमरे में ले चलता हूँ और आप की इच्छा पूर्ण ज़रूर करूँगा।
थोड़ी देर बाद हम दोनों उसी बरसाती वाले कमरे में पहुँच गए और अभी वो कमरा बिल्कुल खाली था। मैंने भाभी को एक कामुक चुम्बन और आलिंगन देने के बाद उसके ब्लाउज को ऊपर उठा कर उसकी चूचियों को भी चूसा और उसके गोल और सुडौल चूतड़ों को भी मसला, उसकी काले बालों से भरी चूत को भी छुआ और उसकी चूत में उसकी भग को भी उंगली से रगड़ा।
फिर मैं वहाँ बिछे पलंग पर बैठ गया और गोरी भाभी को अपनी गोद में अपने पैरों को मेरे चारों और फैला कर बिठा लिया और उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल कर झूला झूलना शुरू कर दिया और मेरे लंड की गर्मी को अपनी चूत के अंदर महसूस करते हुए भाभी मुझ से लिपट कर मुझको चोदने लगी।
भाभी का शरीर इतना अधिक मुलायम था कि बड़ी मुश्किल से मेरा हाथ कहीं भी टिक पाता था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
भाभी काफी गर्म हो चुकी थी, वो जल्दी ही पहली बार स्खलित हो गई लेकिन उसने मुझको छोड़ा नहीं और वैसे ही झूला झूलती रही और फिर एक बार बड़े ही तीव्र स्खलन को प्राप्त हो गई।
अभी भी उसकी मर्ज़ी मुझको छोड़ने की नहीं थी लेकिन मैंने थोड़ी ज़बरदस्ती करते हुए उसको अपने से अलग किया। गोरी भाभी ने अपना नाम गौरी बताया और कहा कि वो लखनऊ की रहने वाली है और कल शादी के बाद वो लखनऊ लौट रही है।
बातें करते हुए हम नीचे आ गए और वहाँ मुझको ऊषा और सुश्री मिल गई, उनको गौरी भाभी से मिलवाया और ऊषा ने मेरी आँखों में झाँक कर यह जान लिया कि मैं इस भाभी की भी चुदाई कर चुका हूँ,
ऊषा ने अपनी आँखें ऊपर करते हुए ऐसा अंदाज़ जताया कि मैं तो वाकयी ही चूत का दीवाना हूँ लेकिन सच्चाई बिल्कुल इसके उलट थी। जो लड़की या फिर औरत मुझको देखती थी वो शायद यह समझने लगती थी कि मैं तो एक छोटे बालक के समान हूँ, जब चाहो मुझसे कुछ भी खेल कर लो। मैंने ऊषा, सुश्री और शशि से वायदा ले लिया कि रात में निकलने वाली बरात में वो सब मेरे साथ ही रहेंगी और लड़की वाले घर में वहाँ की लड़कियों से मेरा बचाव करेंगी।
कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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