This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
मधु ने अपना पर्स खोला और मेरे लंड को चूम कर बोली- जाओ इसकी चूत की खुजली को शांत कर दो! और मुझे कंडोम पकड़ा दिया। नीलेश बोला- भाभी, मेरे शहजादे के लिए भी एक बढ़िया सा रेन कोट दे दो। मधु नीलेश की तरफ बढ़ी और उसके लंड को चूम कर बोली- तुम भी इनकी प्यास बुझा देना।
नीलेश का लंड पूरी तरह खड़ा था तो उसके लंड पर मधु ने अपने हाथ से कंडोम चढ़ा दिया। नीलेश बोला- बता, पहले किसका लंड लेगी?
आंटी मेरी तरफ बढ़ी और मेरे लंड को चाटने लगी, बोली- मैंने अभी अभी इसका वीर्य चखा है, इसका लंड पहले लूंगी। मैंने कहा- तो चढ़ जा लंड पे… सोच क्या रही है? आंटी बोली- मुझे नीचे आने दो और तुम मुझे चोदो।
मैं अपनी सीट से खड़ा हुआ तो आंटी अपनी टाँगें फैला कर लेट गई। मैंने कहा- नीलेश, तू इसके मुंह में अपना लंड पेल दे, मैं इसकी चूत में भरता हूँ।
नीलेश अपना लंड सहलाता हुआ आंटी के मुंह पर खड़ा हो गया। आंटी सच में कई सालों से नहीं चुदी थी, उसकी चूत बहुत टाइट थी। ऊपर से मेरा लंड भी अभी तक पूरी औकात में नहीं आया था। मैं थोड़ी देर आंटी की चूत पर अपने लंड को रगड़ता रहा जिससे मेरा लंड भी औकात में आ जाये और दूसरा आंटी की चूत भी थोड़ी चौड़ी हो जाये।
मैं नीलेश से बोला- इसके दोनों हाथ पकड़ के रखना! और मैंने एक झटका लगाया जो मेरे लंड के टोपे को थोड़ा सा अंदर ले गया, आंटी के मुंह से चीख निकल गई। मधु ने आंटी को उनका ब्लाउज दिया और कहा- इसे अपने मुंह में ठूंस लो जिससे चीख न निकले।
नीलेश ने हाथ छोड़े, आंटी अपने मुंह में ब्लाउज रखते हुए बोली- पूरा घुस गया है न! मैंने कहा- अभी तो टोपा भी अंदर नहीं गया है। अभी तो पूरा लंड बाकी है जाने को! आंटी ने मुंह में ब्लाउज ठूंस कर अपने हाथ नीलेश को पकड़ा दिए। शायद आंटी समझ गयी थी कि अगर उसे अपनी चूत की अच्छी सेवा करानी है तो इनकी पसंद के अनुसार काम करना ही उचित होगा।
अब मैंने थोड़ा सा और धक्का लगाया पर मुझे ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ कि मेरा लंड अंदर गया होगा। इसीलिए मैंने लंड को दुबारा बाहर निकाला और फिर से ठेल दिया अबकी बार थोड़ा और ताकत से! आंटी की आँखों से निकलता पानी और ब्लाउज के होते हुए उनकी दबी हुई चीख की आवाज़ बता रही थी कि हाँ अब आधा लंड तो अंदर जा चुका है।
मैंने फिर से थोड़ा लंड पीछे लिया और फिर पूरा लंड अंदर तक पेल दिया, फिर धीरे धीरे छोटे छोटे धक्के लगाने लगा जब तक कि आंटी के चेहरे का नक्शा नहीं बदल गया। अब आंटी के चेहरे पर संतुष्टि दिख रही थी। मैंने अपने हाथ से आंटी के मुंह में फंसा ब्लाउज हटाया और नीलेश के लंड को पकड़ के आंटी के मुंह में डलवा दिया।
अब में नीलेश के बॉल्स को भी सहला रहा था और इधर आंटी की चूत की चुदाई भी कर रहा था। आंटी इतनी कामोत्तेजित थी कि सपड़ सपड़ करके नीलेश के लौड़े को चूस रही थी।
मैंने कहा- आज तो तुमने बहुत सारे नए काम किये हैं। अब तुम मेरे ऊपर आ जाओ! बोल कर मैं खड़ा हो गया। आंटी की इतना मज़ा आ रहा था कि उन्होंने कुछ नहीं कहा, जैसा कहा जा रहा था, वैसा वो करे जा रही थी। जब आंटी मेरे ऊपर आ गई तो मैं नीलेश से बोला- आ जा इसकी गांड में अपना लंड पेल दे। आंटी बोली- पर मैंने कभी… मैंने इतना सुनते ही आंटी के मुंह पर हाथ रख दिया- नीलेश, प्यार से करियो ओ के! नीलेश बोला- तू चिंता मत कर, इतना मज़ा आएगा कि तू सब भूल जाएगी। और साथ साथ आंटी की गांड पर हाथ भी फेरता जा रहा था।
नीलेश भी अब चढ़ गया था। आंटी की गांड में लंड जैसे ही गया आंटी तिलमिला गई और गधे की तरह उछलने लगी। मैंने कहा- नीता मधु, तुम दोनों इसके बूब्स और पूरे बदन की अच्छी मसाज करो जिससे यह घोड़ी बिदके नहीं। मधु आंटी के बूब्स चूसने लगी और नीता आंटी के बदन पर पोले हाथों से मसाज देने लगी।
नीलेश ने फिर धीरे से आंटी की गांड में अपना लंड पेला, धीरे धीरे जब नीलेश का लंड पूरा अंदर चला गया तो नीलेश बोला- हाँ राहुल, गया पूरा लंड अंदर, अब जैसे ही में थ्री बोलूँ तू इसको चोदना शुरू करना! मैंने कहा- ओके। नीलेश बोला- वन, टू एंड थ्री…
मैंने थ्री सुनते ही धक्के लगाने शुरू कर दिए। नीलेश ने कुछ ऐसा प्रोग्राम बनाया था जिसमें जब मेरा पूरा लंड अंदर होता तो उसका आधा बाहर और जब उसका पूरा अंदर होता तो मेरा आधा बाहर।
अब आंटी के दोनों छेदों पर लगातार एक के बाद एक प्रहार हो रहे थे, आंटी अब तक कई बार झड़ चुकी थी। मैंने कहा- अब मैं तुम्हारी गांड मरूंगा और नीलेश तुम्हारी चूत चोदेगा। आंटी बोली- मैं इतनी बार झड़ चुकी हूँ कि अब गिन नहीं पा रही। मुझे पर थोड़ा रहम करो!
हमें कहाँ कुछ सुनाई दे रहा था, नीलेश हटा, मैंने आंटी को हटाया और नीलेश नीचे लेट गया, उसके ऊपर आंटी ने नीलेश का लंड अपनी चूत में डलवाया फिर मैंने ऊपर चढ़ के उसकी गांड में अपना लंड पेल दिया। मुझे ट्रेन के धक्कों के साथ ताल से ताल मिलाना पसंद आ रहा था। मैं बहुत देर से अपने लंड के पानी को रोक कर धक्कमपेल में लगा हुआ था पर अब मेरे लिए अपना स्खलन रोकना नामुमकिन था।
मैं नीलेश से बोला- नीलेश, आगे का तू ही सम्भाल, मैं तो इसकी गांड में अपनी मलाई छोड़ रहा हूँ। नीलेश बोला- चिंता मत कर, मैं भी आने ही वाला हूँ। बारी बारी से हम दोनों ने अपनी अपनी मलाई साथ साथ ही छोड़ दी और थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहे अपने अपने लंड गांड और चूत में डाले हुए। ट्रेन के हिलने से हल्के हल्के धक्के तो लग ही रहे थे।
थोड़ी देर बाद हम तीनों उठे, आंटी ने अपने कपड़े पहने और बाहर जाने लगी। मैं बोला- सुनो, तुमने हमें अपनी चूत गांड तक दे दी, अब यह तो बता दो कि तुम्हारा नाम क्या है? आंटी बोली- मेरा नाम आरती है। मैंने कहा- बाए आरती!
वो लंगड़ाती हुई अपनी सीट पर जा रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
लंड के खड़े होने की कोई उम्मीद नहीं थी पर दो जवान जिस्म मेरे सामने नंगे पड़े थे। तो सोचा चुदाई न सही जिस्म के साथ खेला तो जा ही सकता है, मैं नीता को बोला- आजा मेरे ऊपर लेट जा! वो बोली- हाँ भैया! नीलेश ने मधु से कहा- भाभी, आप मेरे ऊपर लेट जाओ। मधु मुस्कुरा कर नीलेश के ऊपर लेट गई।
दोनों ही औरतें हमारे बदन से खिलवाड़ कर रही थी। हम लोग भी थक कर चूर हो चुके थे और हम दोनों जल्दी ही सो गए। लड़कियाँ पता नहीं सोई या नहीं।
जब मेरे कान में गूंजा कि ‘उठ जाओ… भोपाल आने वाला है।’ तब कहीं जाकर मेरी नींद खुली, आँखें खोली तो देखा जो लड़कियाँ रंडियों की तरह नंगे बदन अभी तक हमारे लण्डों से खेल रही थी, वो एकदम सलीके से साड़ी पहन कर देवियों की भांति प्रतीत हो रही थी।
भोपाल स्टेशन आ गया। आरती को भी हमने ट्रेन से उतरते हुए देखा, मैं सामान उतरवाने के बहाने उसके करीब गया और अपना नंबर देकर बोल आया कि जब दिल करे फ़ोन करना, एक ही शहर में हुए तो मिलेंगे।
खैर फूफाजी हमें लेने स्टेशन आये हुए थे तो हम जल्दी ही घर भी पहुँच गए।
बुआ का घर बहुत बड़ा नहीं था पर छोटा भी नहीं था। बुआ के घर में 10 कमरे थे, उनमें से एक बुआ फूफाजी का कमरा, एक में नीलेश और नीता और तीसरे कमरे में शिखा जिसके लिए हम लड़का देखने आये थे, वो रहती थी।
शिखा का रूम छोटा भी था और उसे स्टोर रूम की तरह भी उपयोग में लाया जाता था। बाकी सभी कमरे में नीलेश के चाचा-चाची, दादा-दादी, ताऊजी-ताईजी और उन लोगों के बच्चे रहते थे।
काफी बड़ा परिवार था, परिवार क्या, एक दो लोग और होते तो जिला ही घोषित हो जाता। घर में हमेशा ही एक मेले जैसा माहौल रहता है।
खैर हमारे जाते ही हमारा उचित खाने पीने की व्यवस्था थी, हम लोग खाना खाकर अब सोने की तैयारी में थे पर यह समझ नहीं आ रहा था कि कौन कहाँ सोने वाला है। मैंने नीलेश को बोला- भाई ये सामान वगैरह कहाँ रख कर खोलें… और सोना कहाँ है? नीलेश मजाक के स्वर में बोला- पूरा घर तुम्हारा है, जहाँ मर्जी आये सामान रखो और जहाँ मर्जी आये सो जाओ।
मुझे लग रहा था कि सभी के लिए कमरे निर्धारित हैं तो शायद हमें ड्राइंग रूम में ही सोना पड़ सकता है। पर बुआ बोली- सारी औरतें एक कमरे में सो जाएँगी और सारे मर्द एक कमरे में।
कहानी जारी रहेगी। [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000