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अभी तक आपने पढ़ा कि मैं दो जाट पुलिस वालों के साथ बाइक पर बीच में बैठा हुआ गांव की तरफ जा रहा था… अब आगे की घटना…
एक स्पीड ब्रेकर आया और बाइक पर हल्का सा झटका लगते ही प्रवीण हल्का सा उछला और उसकी जिप का भाग मेरी गांड से बिल्कुल सट गया, अब उसकी बालों वाली छाती मेरी पीठ से बिल्कुल सट गई थी, उसकी जिप का एरिया मेरे चूतड़ों में घुसने को हो रहा था और उसकी मोटी मोटी गर्म जांघें मेरी नर्म नर्म जांघों से सटी हुई मुझे ऊपर से नीचे तक गर्म कर रही थीं..
आनन्द के मारे मेरी आंखें बंद होने लगीं थीं और मेरे शरीर का भार प्रवीण की ओर झुकता जा रहा था। मेरी गर्दन पर उसकी गर्म सांसें आकर लग रही थीं जिससे उसका मुझसे सटे होने का अहसास मेरी अन्तर्वासना की आग में घी का काम कर रहा था।
अगले स्पीड ब्रेकर पर से बाइक गुजरी और प्रवीण ने अपनी गांड उकसाते हुए अपनी जिप का हल्का सा झटका मेरे चूतडो़ं पे मारा, मेरी धड़कन थोड़ी सी बढ़ गई.. मैंने जब ध्यान से महसूस किया तो लगा कि उसकी जिप में कोई कड़ी और मोटी सी चीज़ झटके मार रही है जिसका हल्का सा अहसास मुझे अपने नर्म चूतड़ों पर हो रहा था।
मैं समझ गया कि उसका लंड खड़ा हो चुका है और वो मेरे गोरे नर्म चूतड़ों में घुसना चाहता है। यह सोचकर मेरी हवस उफान पर आ गई और अगले स्पीड ब्रेकर पर मैंने भी अपनी गांड हल्की सी उठाते हुए उसकी जिप की तरफ धकेल दी।
बदले में उसने डंडा बाइक में फंसाते हुए अपना दूसरा हाथ मेरे पेट पर लाकर कस दिया और मेरे पेट को भींचने लगा। उसकी ठोड़ी अब मेरे कंधे पर थी, उसका उल्टा हाथ मेरी जांघ पर फिर रहा था और सीधा हाथ दूसरी तरफ से मेरे पेट को भींचते हुए उसकी छाती की तरफ खींच रहा था।
और इस आनंद में मैं यह भूल गया कि मेरा सीधा हाथ जगबीर की जांघ को मसल रहा है। जगबीर ने हरियाणवी भाषा में कहा- अरै प्रवीण के कर रया है (अरे प्रवीण क्या कर रहा है) प्रवीण बोला- करूंगा इब(करुंगा अब) यह कहकर दोनों ठहाका मारकर हंसने लगे और जगबीर ने मेरा सीधा हाथ अपने हाथ से पकड़कर अपनी पैंट की जिप पर रखवा दिया।
हाथ रखते ही मैं तो कामवासना की अग्नि से जल उठा। उसका लंड उसकी जिप के नीचे झटके मार रहा था, मैंने भी वासना में आहें निकालते हुए उसके डंडे जैसे खड़े लंड को हाथ में पकड़ लिया और उसको सहलाने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उसका लंड और कड़ा हो गया और आनन्द के मारे उसने बाइक की स्पीड कम कर दी। इधर प्रवीण पीछे बैठे बैठे ही अपनी भारी सी गांड को हिलाता हुआ मेरे चूतड़ों में झटके मारने लगा था।
अब वह थोड़ा पीछे खिसका और मेरा उल्टा हाथ पकड़ते हुए पीछे ले गया और अपने झटके मार रहे लंड पर रख दिया। मैं तो जैसे पागल हो गया.. दो पुलिसवालों के बीच में बैठा हुआ मेरे हाथ में आगे भी मोटा लंड और पीछे उससे भी मोटा लंड.. मैं दोनों को मस्ती में रगड़ने लगा.. और प्रवीण मेरी कोमल चूचियों को अपनी सख्त उंगलियों से मुट्ठी में भरकर जोर से भींचने लगा।
मेरी सिसकारियाँ निकलने लगीं… जगबीर ने कहा- प्रवीण भाई, इब कंट्रोल ना हो रया.. (अब कंट्रोल नहीं हो रहा है)
यह कहते हुए उसने बाइक साइड में एक पेड़ के नीचे रोक दी और बंद करके चाबी निकाल ली। प्रवीण अपनी दाईं टांग घुमाता हुआ बाइक से उतर गया और बाइक की साइड में आकर हमारी बगल में खड़ा हो गया। डिवाइडर पर लगी लाइट से पीली रोशनी आ रही थी और उस रोशनी में प्रवीण की जिप की साइड में तना हुआ उसका लगभग 3 इंच मोटा और 7 इंच लंबा लंड झटके मार मार कर उसकी पैंट में बने तंबू को बार उछाल रहा था।
मैं एकटक उसके लौड़े को देखे जा रहा था..और मेरा उल्टा हाथ अभी भी आगे बैठे जगबीर के लंड पर ही कसा हुआ था, मैं प्रवीण के लंड को देखता हुआ उत्तेजना के शिखर पर था और जगबीर के लंड को मसले जा रहा था।
जगबीर बोला- पाड़ेगा के इसनै (इसको उखाड़ेगा क्या)
मैंने पकड़ थोड़ी हल्की की और प्रवीण के मर्दाना शरीर को निहारते हुए बार बार पैंट में झटके मारते उसके लंड को देखकर लार गिरा रहा था.. उसने भी मेरी इच्छा भांप ली थी और बोला- चिंता ना कर बेटा.. ये हाथ का डंडा और मेरा डंडा दोनों ही आज तेरे अंदर उतारने हैं.. यह कहकर वो जगबीर से बोला- नीचे ले आ इसको..
मैंने जगबीर के लंड से हाथ हटाया और बाइक से नीचे उतर गया। मेरे नीचे आते ही जगबीर भी टांग घुमाता हुआ बाइक से नीचे आ गया..
दोनों मेरे सामने खड़े थे और दोनों के ही लंड पैंट में तने हुए एक साइड में आकर लग गए थे। आस पास गेहूं के खेत थे चिड़िया की भी आवाज नहीं थी… बस था तो रात का सन्नाटा..
दोनों ने आस-पास देखा और एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए। प्रवीण बोला- आज तो सारी ठंड यही दूर करेगा.. यह कहकर प्रवीण मुझे पेड़ की तरफ धेकलते हुए बोला- चल बेटा.. आजा तू अब.. तेरी इच्छा मैं पूरी करता हूँ..
लेकिन जगबीर बीच में टोकते हुए बोला- रुक प्रवीण.. यहाँ सेफ नहीं है.. बाय चांस कोई आ गया तो बदनामी हो जाएगी.. थोड़ा अंदर ले चल इसे.. ‘हाँ ठीक कह रहा है तू.. चल बाइक को यहीं झाड़ियों के पीछे लगा दे..’
जगबीर ने बाइक स्टार्ट की और झाड़ियों के पीछे लगाकर बंद कर दी। तब तक प्रवीण ने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए दूसरा हाथ अपनी पैंट में खड़े लंड पर रखवा दिया और बोला- आ जा जान.. खुश कर दे आज तू..
मैं उसकी छाती के पास खड़ा हुआ उसके लंड को पैंट के ऊपर से सहला रहा था और उसको मुंह में लेने के लिए बेताब था! और अगले ही पल उसने मेरी गर्दन को दबाते हुए मुझे घुटनों के बल बैठाते हुए मेरा मुंह अपनी जिप पर लगा दिया, मेरे नर्म होंठ उसके सख्त लौड़े पर जा लगे और उसको कवर करने की कोशिश करने लगे लेकिन लंड बहुत ही मोटा और लंबा था.. मैं भी उसके लौड़े को पैंट पर से चाटे जा रहा था।
जगबीर पास आकर बोला- साले अंदर ले चल इसको.. यहाँ सेफ नहीं है.. प्रवीण बोला- भोसड़ी के यहाँ क्या होटल खोल रखा है तन्नै (तूने) जगबीर बोला- आंख खोल के देख, अंदर खेत में एक झोंपडी सी है.. चल वहाँ ले चल..
प्रवीण और मैंने नजर उठाई तो सच में वहाँ एक झोंपड़ी सी नजर आ रही थी जिसमें शायद एक बल्ब की रोशनी थी जो हल्की हल्की नजर आ रही थी। जगबीर का लंड अब आधे तनाव में था और उसकी पैंट में वो और भी कहर ढा रहा था.. मन कर रहा था कि अपने मुंह में लेकर चूस चूस कर खड़ा करुं उसको.. यही सोचते हुए मैं उन दोनों के पीछे पीछे झोपड़ी की तरफ चल दिया।
आगे की कहानी बस जल्दी ही .. आपका अंश बजाज.. [email protected]
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