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सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार!
मेरा नाम साहिल है, मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता हूँ, मेरा क़द 6 फ़ीट है और मेरा रंग गेंहूआ है। मेरा शारीरिक अनुपात एक खिलाड़ी जैसा है, मेरे लिंग की लंबाई 6.5 इंच और मोटाई 2.5 इंच है। कहने को तो यह सामान्य है मगर किसी को संतुष्ट करने के लिए प्रतिभा/अनुभव की ज़रूरत होती है न की लंबाई और मोटाई की।
दोस्तो, आज मैं आपको सुख के एक ऐसे सागर में गोते लगवाने ले जा रहा हूँ, जिसमें डूब कर आप असीमित सुख की अनुभूति करेंगे। यह कहानी मेरे जीवन का सबसे हसीन सच है जिसे मैं अब तक भुला नहीं पाया और इस असमंजस में पड़ा रहा कि यह कहानी अन्तर्वासना पर प्रेषित करूँ या नहीं! अंततः मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यह कहानी अन्तर्वासना पर प्रेषित करूँ और सबके साथ अपना अनुभव बांटूँ।
अब आपका और समय नष्ट न करते हुए मैं आपको अपनी कहानी की तरफ ले कर चलता हूँ, जो प्रेम सुख, यौन सुख और भावनाओं से ओतप्रोत है। यह घटना आज से चार साल पहले की है जब मैं दिल्ली में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत था, वहीं मेरी मुलाक़ात उससे हुई जो मेरे दिल में, मेरे दिमाग में, मेरे नसों में इस तरह समा गई कि मैं बस उसका ही होकर रह गया।
बात दिसम्बर के सर्दियों की है, जब मैं ऑफिस से निकल कर अपने कैब का इंतज़ार कर रहा था और साथ ही साथ धुएँ को अपना साथी बनाए हुए था। तभी एक बहुत ही मादक और सुरीली आवाज़ ने मुझे दस्तक दी, मैं तो एकदम स्तब्ध उसे देखते ही रह गया, क्या करिश्मा था कुदरत का, एक 23 या 24 साल की अदम्य सुंदरता की मूरत मेरे सामने खड़ी थी और शायद मुझसे कुछ पूछना चाहती थी।
मगर मेरी हालत देख कर वो भी चुपचाप वही खड़ी हो गई, हमारी चुप्पी तब टूटी जब मेरी धुएँ की डंडी ने मेरी उंगली जलाई, तब मैंने अपने आप को सामान्य किया और उससे पूछा- जी बताइये? वो कुछ समझ नहीं पाई और वहीं खड़ी रही, शायद वो भी मेरे साथ ही मेरे कैब में जाने वाली थी और वो उसी के बारे में जानना चाहती थी।
खैर तभी हमारी कैब हमारे सामने आकर रुकी और हम उसमें बैठ गए, क्या संयोग था किस्मत का कि वो वहाँ भी मेरे बगल में ही बैठी थी और उसके शरीर की मादकता मुझे मदहोश कर रही थी, मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पा रहा था क्योंकि कैब में और भी लोग थे और दूसरा कहीं वो बुरा न मान जाए।
मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि यह मेरा प्रेम है उसके लिए या काम वासना! वैसे भी काम और प्रेम दोनों तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
उस दिन मेरा सफर इतनी जल्दी कैसे खत्म हो गया मैं समझ नहीं पाया, और कैब से उतरकर घर चला गया और दूसरे दिन का इंतज़ार करने लगा कि कब शाम हो और उससे मुलाक़ात हो। पहली ही मुलाक़ात में उसका ऐसा नशा मुझ पे चढ़ा था कि मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, बस उसी की याद आ रही थी हर पल, उसका एक एक अंग, उसकी एक एक अदा मुझे हर पल उसकी याद दिला रही थी।
उसका शरीर 34-26-36, रंग ऐसा जैसे दूध में हल्का सा केसर डाला हो, काले बाल जैसे बादल की घटा, नीली आँखें जैसे झील की गहराई और उसके होंठ, ऐसा लग रहा था जैसे भगवान ने उसके होंठ की जगह पर गुलाब की पंखुड़ियाँ ही लगा दी हों। पूरी की पूरी अप्सरा थी वो… अप्सरा ही तो थी वो क्योंकि ऐसी सुंदरता मनुष्यों के पास नहीं होती, और अगर कोई भी मनुष्य उसे देख ले तो या तो पागल हो जाए या अपना आपा ही खो दे, उसको पाने की ऐसी चाहत की सभी मर मिटें।
अब तक मैं इसे प्रेम ही कह सकता हूँ कि अभी तक मेरे मन में उसके लिए कोई भी वासना का ख्याल नहीं था। खैर फिर वो शाम आ ही गई जिसका मुझे इंतज़ार था। कैब का कॉल आया और मैं घर से बाहर आ कर सड़क पर खड़ा होकर इंतजार करने लगा।
तभी मेरी कैब भी आ गई और मैंने आगे बढ़ कर जैसे ही दरवाजा खोला तो वहीं खड़ा का खड़ा रह गया बिलकुल स्तब्ध जैसे साँप सूंघ गया हो! क्या लग रही थी पीले रंग के सलवार कुर्ते में… हल्का गुलाबी लिपस्टिक, थोड़े सीधे पर लरजते बाल, नीली आँखें और उनमें एक पतली लकीर काजल की, पैर ऐसे जैसे ज़मीन पर रखने के नाम से ही गंदे हो जाएँ, हाथ में एक ब्रेसलेट; अगर वो उस वक़्त मेरी जान भी मांगती तो मैं हंसी खुशी दे देता!
खैर तभी वो हंसी और कहा- बाहर ही रहना है क्या? हम लेट हो रहे हैं। मैंने कैब का दरवाजा बंद किया और बैठ गया और पूरे रास्ते बस उसी के बारे में सोचता रहा कि काश ये मेरी हो जाए और मैं उसमें समा जाऊँ, उसे अपनी बना लूँ, उसे जब चाहे प्यार करूँ और जब जी चाहे बातें, बस उसके ही पास और उसके ही साथ ज़िंदगी खत्म हो जाए।
क्या सुखद अनुभूति होती है जब किसी को किसी से प्यार होता है, आशा करता हूँ मेरे सभी पाठकों को कभी ना कभी प्यार तो हुआ ही होगा।
कई दिन निकल गए, बस ऐसा ही चलता रहा और मुझे उसका नाम तक पता नहीं चल पाया, हिम्मत ही नहीं होती थी कि उससे पूछूँ और वो थी कि किसी से भी बात नहीं करती थी।
फिर अचानक एक दिन ऐसा हुआ कि लगा सब कुछ खत्म… उसका आना ही बंद हो गया, मुझे लगा उसने नौकरी छोड़ दी, मैंने उसके डिपार्टमेंट में पता लगाने की कोशिश भी की पर कुछ भी पता नहीं चला। और अब तो ये आलम हो गया था कि मैं भी उसे भूल जाऊँ और फिर हमेशा की तरह अपनी जिंदगी में मस्त हो जाऊँ पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
एक दिन अचानक ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी, वो मुझे एक मार्केट में दिख गई, वो अकेली ही थी शायद और कुछ समान लेने आई थी और इत्तेफाक से मैं भी वहीं अपने लिए शॉपिंग करने गया था। मैं अपने लिए वहाँ कपड़े देख रहा था, तभी मैंने देखा वो अपने घर के लिए कुछ समान ले रही थी और अचानक से उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई और उसने मुझे हैलो किया।
लेकिन मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि वो मुझे हैलो कर रही है। फिर वो मेरे पास आई, मैंने भी जवाब में उसे हैलो किया। उसने बताया कि उसकी शिफ्ट टाइमिंग बदल गई है, तब जाकर मेरी जान में जान आई। अभी हम बातें ही कर रहे थे कि उसने मुझे कॉफी ऑफर किया और हम वहीं बगल में एक कॉफी शॉप में चले गए।
और फिर जो हमारी बातों का दौर शुरू हुआ, मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, घंटों निकल गए उसी कॉफी शॉप में। करीब डेढ़ महीने बाद जाकर मुझे उसका नाम पता चला, जैसी वो वैसा ही उसका नाम था उपासना। जैसी उसमें एक अलग सी कशिश थी, वैसा ही उसके नाम में था। मुझे तो बस ऐसा लग रहा था कि सुबह, शाम, रात, दिन बस उसी की उपासना करूँ। अब हमारे अलग होने का समय आ गया था और उसने चलने को कहा। मेरा मन उससे अलग होने का नहीं हो रहा था लेकिन मजबूरी भी थी, मैंने पैसे दिये और हम साथ साथ बाहर आ गए।
उसने बताया कि वो वही मार्केट से थोड़ी सी दूरी पे रहती है अकेली एक रूम लेकर! फिर उसने विदा ली और चलने लगी।
जैसे ही वो दो कदम चली होगी, मुझे एक बेचैनी सी महसूस हुई कि शायद अब हम नहीं मिल पाएंगे और मैंने उसको कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से ही पुकार लिया, वो वहीं रुक गई, मुड़ कर मुझे देखा मेरे पास आई और ज़ोर से हंसी- ये तुम्हारा चेहरा उड़ा उड़ा सा क्यों लग रहा है? उसने पूछा।
मैंने अपने चेहरे की घबराहट छुपाते हुए उससे कहा- कुछ नहीं… पर शायद वो जान चुकी थी, उसने तुरंत ही कहा- मेरा नंबर ले लो, फिर हम फोन पे बातें करते हैं। उसने मुझसे अपना नंबर एक्स्चेंज किया और चली गई। मुझे तो ऐसा लगा मानो मैंने दुनिया ही जीत ली।
मैं बहुत खुश था और उसका नंबर मिलते ही सबसे पहले चेक किया कि वो whats app पर है या नहीं… और वो थी वहाँ, मैंने जैसे ही उसका प्रोफ़ाइल देखा एक मैसेज भेज दिया हैलो का! तुरंत ही उसका जवाब आया, उसने कहा- मैं आपके ही मैसेज का इंतज़ार कर रही थी! अब तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
फिर शुरू हुआ हमारी बातों का सिलसिला और हम कभी मैसेज में तो कभी फोन पे घंटों बातें करने लगे। उसने बताया कि यहाँ वो अकेली ही रहती थी और उसका होम टाउन उसने हिमाचल बताया और यह भी बताया कि यहाँ उसके ज़्यादा दोस्त भी नहीं हैं। और यही बात मेरा प्लस पॉइंट हो गई उसे पाने के लिए। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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