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दोस्तो.. मैं पेशे से अध्यापक हूँ.. मेरे ही स्कूल में मेरी मुँह बोली दीदी भी अध्यापक हैं। मैं उनके घर अकसर आता-जाता रहता हूँ। दीदी की एक बेटी पूजा है.. जो पढ़ाई करती है। वो मुझको मन ही मन बहुत चाहती थी.. मेरे साथ मोबाइल पर देर रात सेक्सी बातें किया करती है।
एक दिन मैंने उसको शहर में बुलाया और अपनी गाड़ी पर घुमाया। घुमाते-घुमाते मैंने एक हाथ से गाड़ी संभाली और दूसरे हाथ से चूची को मसलने के साथ-साथ उसकी बुर के ऊपर भी सहलाना शुरू किया। फिर एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक कर उसकी चड्डी के अन्दर हाथ डालकर चैक किया.. तो पाया कि उसकी बुर पानी छोड़ चुकी थी।
मैंने उसकी बुर को सहलाते-सहलाते एक उंगली उसकी बुर में डाल दी। कुछ देर तक वो मेरी उंगली से अपनी चूत को रगड़वाती रही.. लेकिन उसने चोदने नहीं दिया.. जगह भी नहीं थी।
अब मैं उसके घर अकसर जाता.. और जब कोई नहीं रहता.. तो डरते-डरते उसकी बुर को सहलाता और चूचियों को मींजता.. कोई आ न जाए.. उस भय से उसकी चुदाई नहीं कर पाया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
कुछ दिनों बाद स्कूल में दीदी बोलीं- मैंने पूजा की शादी तय कर दी है। मुझे दिन भर कुछ अच्छा नहीं लगा।
शादी के दिन भी आ गए, शादी में मैं गया और फिर दीदी के रोकने के बावजूद मैं वहाँ से भाग आया। पूजा की शादी के बाद मैंने अध्यापिका दीदी के घर आना जाना छोड़ दिया। पूजा का मोबाइल नम्बर भी बदल गया था, मैं चाह कर भी उससे बात कर सका।
दीदी के घर नहीं जाने से दीदी भी नाराज रहती थीं। लगभग डेढ़ साल बाद शाम के समय दीदी ने फोन किया.. जबकि दिन में स्कूल में दीदी से मुलाकात हो चुकी थी। वो बोलीं- तुम मेरे घर क्यों नहीं आते हो?
मुझे शाम के समय बियर पीने की आदत हो गई थी.. मैं उस वक्त भी दो बियर पी चुका था। मैंने नशे में कह दिया- क्या करने आऊँ.. अब पूजा रहती तो आता भी। मैंने दीदी से नशे की झोंक में कह दिया।
दीदी बोलीं- वो नहीं है तो.. क्या अब कभी नहीं आओगे? मैंने बोला- पूजा मेरे लिए अच्छी थी.. जो मैं कहता.. वह करती.. अब वो नहीं हैं तो मैं भी नहीं आऊँगा। दीदी गहरी आवाज लेकर बोलीं- जो पूजा करती थी.. क्या वह कोई नहीं करेगा मेरे लिए.. तब भी? मैं चुप था..
दीदी मादकता से बोलीं- मैं अपने भाई के लिए कुछ भी करना पड़ेगा.. करूँगी।
मैं दीदी से क्या बोलता.. दीदी मुझसे 10 साल बड़ी थीं। मैं 35 का था तो दीदी 45 की थीं। लेकिन दीदी की चूचियों का आकार बड़ा ही जानदार था.. एकदम गोल 34 का साइज था। मुझे दीदी की आवाज में कुछ चुदास सी लगी.. तो मैंने मामला साफ़ करने का सोचा।
मैंने दीदी से साफ़ बोला- पूजा मुझसे बुर में उंगली करवाती थी.. चूचियों मिसवाती थी.. मेरा लन्ड पकड़ कर मुठ मारती थी। उसने बुर भी चुदवाने का वादा किया था.. लेकिन चुदवाने से पहले ही ससुराल चली गई.. क्या आपके यहाँ है कोई.. जो यह सुविधा हमको दे?
दीदी मेरी बिंदास बात सुनकर अवाक रह गईं.. लेकिन दीदी ने कहा- भाई मुझको जरा सोचने का समय दो.. ‘ओके..’
एक मिनट की चुप्पी के बाद वे बोलीं- तुमको तो मैं ही खुश कर देती.. लेकिन मैं तुमसे उम्र में 10 साल बड़ी हूँ.. हो सकता है कि पूजा जितना मजा नहीं दे पाऊँ! मुझे तो दीदी भी पसन्द थीं.. मैं बोला- आप भी कम जानदार नहीं हैं दीदी!
थोड़ी देर दीदी ने नानुकुर के बाद ‘हाँ’ कर दी। मैं दीदी से बोला- मैं आपके घर अभी आ रहा हूँ। दीदी ने मना किया- कभी बाद में आना..
उसके बाद भी मैं दीदी को बताकर दीदी के घर के लिए 8 बजे रात को गाड़ी से चल दिया। दीदी किराए के मकान में रहती थीं.. मैं ऊपर गया और मेन गेट की कॉलबेल बजाई, दीदी ने ही दरवाजा खोला, दरवाजा खुलते ही दीदी को देखकर मन में हलचल सी हो गई।
आपको बता दूँ कि दीदी के घर पूजा की शादी के एक साल छ: माह बाद दीदी के घर गया था। दीदी बोलीं- आज जीजाजी घर पर ही हैं और दारु पी कर अर्धनिद्रा में सोए हैं। लेकिन उस वक्त दीदी ने नेटवाली लाल साड़ी पहनी थी.. चूचों को ब्रा से खींचकर टाइट कर रखा था। मेरा लौड़ा तन्नाया हुआ था।
मैं घर में ही जाते जीजाजी के कमरे में गया.. उनके पैर छुए। जीजाजी ने ना ‘हाँ’ बोली और न ‘ना’.. मैं समझ गया कि वो नशे में टुन्न हैं।
गरमी के दिन होने के कारण मकान मालिक भी ऊपर ही टहल रहे थे, उसके बावजूद भी मैं दीदी के दूसरे कमरे में चला गया।
दीदी रसोई से मेरे लिए चाय लेकर बगल वाले कमरे में आईं। उस कमरे की लाइट खराब होने के चलते वहाँ अन्धेरा था। मैं दीदी से बोला- आपको चोदने का मन कर रहा है। दीदी बोलीं- जीजाजी घर पर ही हैं और मकान मालिक के घर वाले छत पर टहल रहे हैं.. आज यहाँ सम्भव नहीं है। मैंने दीदी से बोला- बात तो सही कह रही हैं.. पर आप हमसे चुदोगी कब?
दीदी बोलीं- अगर स्कूल में कोई नहीं रहेगा.. तो उधर ही चोद लेना भाई.. लेकिन पूजा की तरह मेरी बुर नहीं है.. भाई मेरी चुदी और ढीली भोसड़ी देखकर कहीं आप भाग न जाना.. वैसे तुम्हारे जीजाजी अब मेरी चुदाई बहुत कम करते हैं.. सो मेरी चूत भी कुछ कुलबुला रही है।
उसकी बातों से मेरा लन्ड खड़ा हो कर जींस में अकड़ गया था, मैं बोला- दीदी मैं आपकी चूत को अभी चूमना चाहता हूँ.. और साथ ही आपकी चूचियों को मींजने का मन कर रहा है। इसके लिए दीदी तैयार हो गईं।
फिर क्या था.. मैंने दीदी के नेटवाली साड़ी के चमकीले ब्लाउज का हुक खोलना शुरू किया। ब्लाउज को खोलते ही सफेद ब्रा में चूचियों का नजारा दिखाई दिया, मैंने उनकी ब्रा को भी खोल दिया। दीदी पेरिस ब्यूटी की महंगी ब्रा पहने हुई थीं।
मैंने उनकी चूचियों को मसलते हुए उनके साया में हाथ लगा दिया, दीदी पैन्टी भी साटन की पहने हुई थीं, उनकी चिकनी पैन्टी पर हाथ रखने पर फिसल जाता था।
मैंने उनकी पैन्टी में हाथ डाल कर बुर के ऊपर हाथ रखा, उनकी बुर काफी रसीली हो चुकी थी, मैंने बुर के छेद की स्थिति जानने के लिए उंगली डाली.. तब दीदी ने मेरे पैन्ट की जिप को खोलकर मेरा लन्ड बाहर निकाल लिया।
कुछ देर हाथों से लौड़े को सहलाने के बाद उन्होंने बैठ कर मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और लौड़ा चूसने लगीं। कुछ देर बाद दीदी ने मेरा लन्ड का सारा माल अपने मुँह में गिरवा लिया और पी गईं।
मेरा माल चाटते हुए वे बोलीं- आज इतना ठीक है.. कल स्कूल में जब कोई नहीं रहेगा.. तो मैं अपने प्यारे भाई से पक्के में चुदूंगी.. तुम लंच टाइम के समय में मेरी बुर को चोद लेना।
मैं वहाँ से निकल लिया।
अगले दिन स्कूल पहुँचा तो दीदी खड़ी थीं.. मैं उन्हें देखकर खुश हुआ। दीदी ने हरे रंग की साड़ी और उसी से मेल खाता ब्लाउज पहन रखा था।
मैं दोपहर में लंच टाइम का इन्तजार करने लगा। दोपहर हुई.. रोज के भांति मेनगेट के ताले खोल दिए गए.. और बच्चे अपने घर खाना खाने चले गए।
फिर मैं बच्चों के आने तक गेट में ताला मारकर आफिस में आकर बैठ गया। दीदी बाहर टहलने लगीं.. उनके मन में डर था कि कोई आ न जाए। फिर भी कल की बात के हिसाब से उनको इशारा किया और वो आ गईं, वो बोलीं- मुझे याद है मैंने अपनी बुर चुदवाने का वादा किया था.. लेकिन डर लग रहा है.. कोई आ न जाए।
मैंने दीदी को बताया- अरे आप चिंता मत करो.. मेनगेट में तालाबन्द कर दिया है.. डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन दीदी डरते-डरते बच्चों के बैठने वाली टाट पर बैठ गईं। मैं भी आराम से टाट पर बैठ गया और दीदी के चूचियों को मींजने लगा।
दीदी पानी-पानी हो गई थीं। मैंने दीदी के ब्लाउज को खोल दिया। दीदी ने काले रंग का गद्देदार ब्रा पहनी थी। मैंने उसको भी खोल दिया.. चूचियाँ तो दीदी की पूजा से भी ठोस थीं.. मैं मुँह में लेकर चूसने लगा और अपना एक हाथ उनके साया में डालकर पैन्टी के करीब पहुँच कर उनकी बुर को सहलाने लगा।
दीदी ने भी गर्म होकर मेरा लन्ड अपने मुँह में ले लिय, हम दोनों भाई-बहन गरम हो गए। मैंने दीदी का साया ऊपर करके उनकी पैन्टी को नीचे खींच कर अपना लण्ड उनकी बुर में पेलना शुरू किया। इतना चुदाने के बाद भी दीदी की बुर बहुत टाइट थी।
दीदी बोलीं- मैं अपने भाई को टाइट बुर दे सकूँ.. इसलिए मैंने चूत को फिटकरी से कई बार धोया है। मैंने अपना लन्ड दीदी की बुर में अन्दर तक घुसा दिया और उनको हचक कर चोदना शुरू कर दिया।
दीदी खुब खुश होकर चुदाई करा रही थीं.. वे कभी अपनी चूचियों को मेरे मुँह में चूसने के लिए दे रही थीं.. कभी अपनी कमर को उठा कर जोर से चोदने का इशारा कर रही थीं कि और जोर से चोदो। अन्त में हम दोनों झड़ गए।
दीदी अपने कपड़े पहन कर स्कूल का मेनगेट खोलने चली गईं।
अब जब भी और जहाँ भी दीदी को समय मिलता.. वे हमको बुला कर.. ऑफिस में या घर पर भी चुदाई करवा लेती थीं।
अब अगले भाग में उनकी बेटी के साथ क्या हुआ वो भी लिखूँगा।
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