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शायद रचना के साथ यह मेरी अन्तिम चुदाई थी।
फिर हम लोग नहा धोकर खाना खाने गये और बाकी की पैकिंग की और स्टेशन की ओर गाड़ी पकड़ने के लिये चल दिये और घर वापस लौटने के 10 दिन के बाद जब मैं इस एक्सपिरियेन्स को लिखने बैठा ही था कि रचना का फोन मेरे पास आया, हाल चाल पूछा और बोली कि अगर मुझे ऐतराज न हो तो वो सोमवार को गुड़गांव निकल रही है और वो चाहती है कि इस रविवार को मैं उसके घर मैं उसके साथ लंच शेयर करूँ!
मुझे क्या ऐतराज होता, मैं तो खाली ही बैठा था, मैंने हामी भर दी।
उसने मुझे किस तरह उसके घर पहुचना है पूरा रास्ता बता दिया था और साथ ही उसने मुझे सुबह 10 बजे बुलाया था। मैं रविवार को नियत समय पर उसके घर पहुंचा और बेल बजाई तो दरवाजा एक बहुत ही खूबसूरत शादीशुदा महिला ने खोला। मैं उसको देखकर अचकचा गया, फिर सम्भलते हुए उसको अभिवादन किया बदले में उसने भी मुस्कुरा कर अभिवादन किया।
मेरे रचना के बारे मैं पूछने पर उसने मुझे अन्दर बुलाया। अन्दर आने पर उस महिला ने मुझे इशारे से सोफे पर बैठने के लिये कहा और वो अन्दर चली गई। मैं वहीं बैठे-बैठे रचना का इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद वही महिला चाय पानी लिये फिर प्रकट हुई और उसके पीछे-पीछे रचना भी आ गई। रचना शायद तुरन्त ही नहा धो कर निकली थी, उसके गीले व बिखरे बाल और उनसे गिरती पानी की बूँदें और उसके जिस्म पर वही गाउन जो मैंने उसे दिल्ली में दिया था। मुझे देखकर मुस्कुराई और हेलो बोलकर एक किनारे बैठ गई।
मैं झिझक रहा था क्योंकि वो महिला जो हम दोनों के बीच में थी, उसके वजल से मैं खुल कर बोल नहीं पा रहा था।
तभी सहसा रचना बोली- शरद! ये मेरी भाभी ॠचा है। तभी ॠचा हंसी और बोली- क्या रचना, तुमने तो इनके बारे में क्या-क्या तारीफ की पर ये तो बिल्कुल लल्लू लग रहा है। और जोर जोर से हँसने लगी।
मुझे बड़ा गुस्सा आया लेकिन मैं चुप रहा और सिर्फ इतना ही बोला- परिचय न होने की वजह से चुप बैठा था नहीं तो रचना ने जो मेरी तरीफ की है, बिल्कुल सच है। और आप दिखने में तो बहुत ही सुन्दर है, वैसे क्या नाप है आपका?
वो तुरन्त ही खड़ी हुई और अपने दोनों चूचों पर हाथ रखते हुए बोली- ये 36 की हैं। फिर कमर पर हाथ रखकर बोली- यह 34 की है। और फिर बड़ी ही अदा से अपने चूतड़ पर हाथ रखते हुए बोली- मेरा यह हिस्सा 38 का है।
उसकी भाभी की इस अदा पर मैंने रचना की ओर देखा तो वो मुझे आँख मारते हुये बोली- लो, ये तुम्हारे लिये एक नया सरप्राईज है।
मैं उसकी भाभी के पास खड़ा हो गया और उसके होंठों पर उँगली फिराते हुये बोला- इतने मादक होंठ… मजा आ गया! रचना की भाभी काफी गोरी चिट्टी थी, लाल साड़ी में लो कट ब्लाउज में बड़ी ही सुन्दर लग रही थी। ॠचा भाभी की आँखें बड़ी-बड़ी, नाक तोते की चोंच जैसे नुकीली थी उसकी।
मेरी इस हरकत में रचना की भाभी बोली- अरे… शरद जी, जरा ठहरिये! मैं ठिठका, क्या हो गया। तभी वो अपनी मादक मुस्कान बिखेरती हुई बोली- थोड़ा आराम से… पहले नाश्ता तो कर लीजिये, हम तीनों ही हैं और कोई नहीं है। उसके बाद जितनी देर चाहे मजा लीजियेगा।
फिर हम लोग नाश्ता करने लगे। उसके बाद हम तीनों ॠचा के बेडरूम में पहुँचे। ॠचा का रूम… क्या कहने… सब कुछ तो था! ए.सी. पहले से ही चालू था, जिससे कमरा पूरी तरह से ठंडा था, इत्र से कमरा सुगंधित था और एक चीज जो सबसे अलग थी और जिसके कारण मुझे पूछने में मजबूर होना पड़ा कि घर में कौन कौन है।
और सुनने के बाद तो मेरे होश उड़ गये। घर में ॠचा के सास-ससुर, रचना, ॠचा के पति और एक देवर था और फिर भी उसके कमरे में नंगे लड़कियों और लड़कों के पोस्टर लगे हुए थे।
फिर मैंने आश्चर्य से पूछा- जब घर में इतने लोग हैं तो फिर ये पोस्टर? तो ॠचा बोली- जब कभी भी मैं और मेरे पति चुदम-चुदाई का खेल खेलते हैं तो उससे पहले वो इन पोस्टर को लगा लेते हैं, ऐसा करने से बड़ा मजा आता है।
कहते-कहते ॠचा ने मेरे चूतड़ पर कस कर एक चपत लगाई और बोली- मेरी ननद को खूब चोदा है। मैं भी कहाँ कम था, जैसे उसने मुझे मेरे चूतड़ पर चपत लगाई, वैसे ही मैं उसके पास गया और उसकी चूची को कस कर मसलते हुए बोला- तुम भी चुदना चाहो तो मैं तैयार हूँ तुम्हें भी चोदने के लिये।
ॠचा के मुँह से उफ करके एक तेज सिसकारी निकली- इतनी तेज मत दबाओ। ‘इससे तेज तो तुम्हारे पति भी दबाते होंगे?’
हम दोनों बात कर ही रहे थे कि रचना मेरे पास आई और बोली- शरद, तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। मेरी भाभी को देखा तो उसी के पीछे लग गये और मुझे भूल गये? ‘नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है। अब बताओ क्या करना है? ‘ये भाभी बतायेगी।’
ॠचा बोली- जो तुमने दिल्ली में रचना के साथ किया है, वो ही सब करना है और क्या!’वो तो ठीक है, लेकिन जो तुम दोनों बताओगी वो ही करूँगा।’ ‘ठीक है…’ ॠचा रचना की ओर घूमते हुये बोली- रचना बाहर दरवाजा ठीक से बन्द कर दो और सब जगह पर्दे डाल दो। हम सब अब से लेकर शाम तक नंगे ही रहेंगे।
रचना को जो काम दिया गया था उसको करने चल दी और मैंने बिना देरी लगाये अपने सब कपड़े उतार दिये। मैंने आज सुबह ही अपनी झांटों को साफ किया था और भाभी के पास खड़े होने मात्र से ही मेरे में वासना की अनुभूति होने लगी थी इसलिये मेरा लंड तना हुआ था।
भाभी ने तुरन्त ही कमेन्ट मारा- लल्ला बड़ी जल्दी है? पर जब उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी तो लंड को हाथ से सहलाते हुये बोली- आज ही सुबह हम भी बनाये हैं।कहकर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी चूत के ऊपर रख दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं उसके कपड़े के ऊपर से ही उसकी चूत सहलाने लगा। तभी भाभी बोली- लल्ला मैं पानिया गई हूँ। ‘तो क्या हुआ भाभी, कपड़े उतारो तो तुम्हारे पानी को चाट लेता हूँ।’
मेरा इतना कहना ही था, भाभी ने मेरा लंड सहलाना बंद कर दिया और अपने कपड़े उतार कर एक पैर को पलंग के ऊपर टिका दिया। मैं तुरन्त पोजिशन बना कर भाभी की चूत को चाट रहा था। रचना ने भी अपना काम खत्म कर लिया था और वो भी कमरे में आ गई और भाभी के पीछे खड़ी होकर चूत को और खोल दिया। भाभी की चूत का कसैलापन भी किसी मीठे से कम नहीं था।
थोड़ी देर बाद रचना ने मैक्सी को ऊपर किया और जिस पोजिशन में भाभी थी, उसी पोजिशन में खड़े होकर मेरे मुँह में अपनी चूत को सटा दिया। दोस्तो! इस कहाँ मैं इस कहानी को खत्म समझ रहा था, लेकिन रचना ने मुझे बुला कर कहानी को और आगे बढ़ाने में मेरी मदद ही कर रही थी और मेरा रविवार को सुखद भी कर दिया था।
कहाँ मुझे इस रविवार को एक भी माल को चोदने की उम्मीद नहीं थी और कहाँ दो-दो मिल रही थी। खैर मैं चूत चाट चुका तो मैंने पाया कि भाभी बेड में लेटे हुए मुझे रचना का चूत चाटना देख रही थी और अपनी चूची को मसल रही थी।
चूत चटवाने के बाद रचना ने भी अपनी गाउन उतार कर एक किनारे फेंक दिया और भाभी के बगल में लेट कर उनकी चूची को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी। मैं भी कहाँ पीछे रहने वाला था, मैं भी भाभी की दूसरी चूची को मुँह में भर कर चूसने लगा और हम दोनों का ही हाथ भाभी की चूत को भी मसल रहा था।
भाभी ने अपनी टांगों को इस तरह फैला दिया था ताकि हम दोनों उनकी चूत के खेल सके। फिर रचना मुझे किनारे करते हुए अपनी भाभी के ऊपर चढ़ गई और अपनी चूत से भाभी की चूत को चोदने लगी।
मैं पास खड़े होकर अपने लंड को सहलाते हुए उनके इस काम क्रीड़ा को देख रहा था, तभी भाभी चिल्लाई- रचना देख, तेरे चोद यार का नाश्ता आ रहा है। मैं अपने अनुभव से समझ चुका था कि मेरे लिये कैसा नाश्ता आ रहा है। वो झड़ने वाली थी।
तभी भाभी मुझे इशारे से पास पड़ी हुई प्लेट उठाने को बोली। तब तक रचना भी उनके ऊपर से हट चुकी थी और जमीने पर उकड़ू अवस्था में बैठ कर अपनी चूत में उँगली कर रही थी और भाभी भी मुझसे प्लेट लेकर रचना वाली पोजिशन में बैठ गई और प्लेट को अपने नीचे रख लिया और वो भी अपनी चूत में उँगली कर रही थी और मैं अपने लंड को अपने हाथ से मसल रहा था।
भाभी अपनी चूत में उँगली करती रही और उनका माल प्लेट में गिरता रहा। उसके बाद रचना ने भी अपना माल उसी तरह से निकाला जैसा कि उसकी भाभी ने किया। दोनों ने अपना माल प्लेट में निकाल दिया था।
इधर मैं भी फिनिंशग लाइन पर आ चुका था, मैंने रचना से बोला- यार मैं झड़ने वाला हूँ। तभी रचना ने वो प्लेट मेरे लंड पर लगा दी और मेरा माल भी उसी प्लेट में गिराने के लिये कहा। उन दोनों के कहने पर मैंने भी अपना पूरा माल उसी प्लेट पर निकाल दिया।
फिर भाभी ने वो प्लेट लेकर उँगली से तीनों के माल को मिला दिया और उधर रचना मेरे लंड को मुँह में लेकर बचे हुए माल को चूसने लगी और तीनों के वीर्य को आपस में मिलाने के बाद उसी उँगली से भाभी ने सबको वो माल चटाया और मेरी तरफ देखते हुए बोली- और लल्ला कैसा लगा हमारा स्वागत?
ये लल्ला शब्द उसके मुँह से बड़ा ही प्यारा जान पड़ रहा था। मैंने भाभी की कलाई को पकड़ा और थोड़ा झुकते हुए और उनको अपने गोदी में उठाते हुए मैंने उनके होंठों से अपने होंठ सटा दिए और चूसने लगा। काफ़ी देर हम तीनों एक दूसरे के बदन से खेलते रहे, चूमाचाटी करते रहे। कहानी जारी रहेगी। आपका अपना शरद [email protected]
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