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कहानी का पहला भाग : मेरी सगी बहन और मुंहबोली बहन -1
अब तक आपने पढ़ा:
‘ये किताबें सोनू लेकर आता है।’ ‘हे भगवान्..’ अनीता दीदी के मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गई। ‘क्या तू सच कह रही है? सोनू लेकर आता है?’
नेहा उनकी शक्ल देख रही थी- तुम इतना चौंक क्यूँ रही हो दीदी?
अनीता दीदी ने एक लम्बी साँस ली और कहा- यार.. मैं तो सोनू को बिलकुल सीधा-साधा और शरीफ समझती थी। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि वो ऐसी किताबें भी पढ़ता है। ‘इसमें कौन सी बुराई है दीदी.. आखिर वो भी मर्द है.. उसका भी मन करता होगा न..’ ‘हाँ यह तो सही बात है..’
दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा- लेकिन एक बात बता.. ये किताब पढ़कर तो सारे बदन में हलचल मच जाती है.. फिर तुम लोग क्या करते हो? कहीं तुम दोनों आपस में ही तो??
अब आगे..
अनीता दीदी की आवाज़ में एक अजीब सा उतावलापन था, उन्हें शायद ऐसा लग रहा था कि हम भाई-बहन आपस में ही चुदाई का खेल न खेलते हों।
इधर उन दोनों की बातें सुनकर मेरी आँखों की नींद ही गायब हो गई। मैंने अब हौले से अन्दर झांका और उन्हें देखने लगा। वो दोनों बिस्तर पर एक-दूसरे के साथ लेटी हुई थीं और दोनों पेट के बल लेट कर एक साथ किताब को देख रही थीं।
तभी दीदी ने फिर पूछा- बोल न नेहा.. क्या करते हो तुम दोनों? अनीता दीदी ने नेहा की बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने हाथों से मसल डाला। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
‘ऊंह.. दीदी… क्या कर रही हो.. दर्द होता है..’ नेहा ने अपने उरोजों को अपने हाथों से सहलाया और अनीता दीदी की तरफ देख कर मुस्कारने लगी।
अनीता दीदी की आँखों में एक शरारत भरी चमक थी और एक सवाल था… नेहा ने उनकी तरफ देखा और कहा- आप जैसा सोच रही हैं.. वैसा नहीं है दीदी। हम भाई-बहन चाहे जितने भी खुले विचार के हों.. पर हमने आज तक अपनी मर्यादा को नहीं लांघा है। हमारा रिश्ता आज भी वैसे ही पवित्र है जैसे एक भाई-बहन का होता है।
यह सच भी है.. हम भाई-बहन ने कभी भी अपनी सीमा को लांघने की कोशिश नहीं की थी। खैर.. अनीता दीदी ने नेहा के गालों पर एक चुम्बन लिया और कहा- मैं जानती हूँ नेहा.. तुम दोनों कभी भी ऐसी हरकत नहीं करोगे। नेहा मुस्कुराने लगी।
‘अच्छा नेहा एक बात बता.. जब तू यह किताब पढ़ती है तो तुझे मन नहीं करता कि कोई तेरे साथ कुछ करे और तेरी चूत को चोद-चोद कर शांत करे.. उसकी गर्मी निकाले?’ अनीता दीदी के चेहरे पर अजीब से भाव आ रहे थे.. जो मैंने कभी भी नहीं देखा था। उनकी आँखें लाल हो गई थीं।
‘हाय दीदी.. क्या पूछ लिया तुमने.. मैं तो पागल ही हो जाती हूँ। ऐसा लगता है जैसे कहीं से भी कोई लंड मिल जाए और मैं उसे अपनी चूत में डाल कर सारी रात चुदवाती रहूँ..’ ‘फिर क्या करती हो तुम?’
नेहा ने एक गहरी सांस ली और कहा- बस दीदी.. कभी कभी ऊँगली या मोमबत्ती से काम चला लेती हूँ। दीदी ने नेहा को अपने पास खींच लिया और उसके होंठों पर एक चुम्मा धर दिया। नेहा को भी अच्छा लगा। दोनों ने एक-दूसरे को पकड़ लिया और सहलाना शुरू कर दिया।
यहाँ बाहर मेरी हालत ऐसी हो रही थी जैसे मैं तेज़ धूप में खड़ा हूँ.. मैं पसीने पसीने हो गया था और मेरे लंड की तो बात ही मत करो.. एकदम अकड़ कर खड़ा होकर सलामी दे रहा था। मैंने फिर उनकी बातें सुननी शुरू कर दीं।
तभी अचानक मैंने देखा कि अनीता दीदी ने नेहा की टी-शर्ट के अन्दर अपना हाथ डाल दिया और उसकी चूचियों को पकड़ लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी। नेहा को बहुत मज़ा आ रहा था। उसके मुँह से प्यार भरी सिसकारियाँ निकल रही थीं। ‘उफ्फ दीदी.. मुझे कुछ हो रहा है.. आपकी उँगलियों में तो जादू है।’
फिर अनीता दीदी ने पूछा- अच्छा नेहा एक बात बता.. तूने कभी किसी लण्ड से अपनी चूत की चुदाई करवाई है क्या? ‘नहीं दीदी.. आज तक तो मौका नहीं मिला है। आगे भगवान् जाने.. कौन सा लण्ड लिखा है मेरे चूत की किस्मत में..
नेहा अपनी आँखें बंद करके बातें किए जा रही थी- दीदी.. तुमने तो खूब चुदाई करवाई होगी अपनी.. बहुत मज़े लिए होंगे जीजाजी के साथ… बताओ न दीदी कैसा मज़ा आता है.. जब सचमुच का लण्ड अन्दर जाता है तो?’ ‘यह तो तुझे खुद ही महसूस करना पड़ेगा मेरी बन्नो रानी… इस एहसास को शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है..’
‘हाय दीदी मुझे तो सच में जानना है कि कैसा मज़ा आता है.. इस चूत की चुदाई में… तुमने तो बहुत मज़े किए हैं जीजाजी के साथ.. बोलो न कैसे करते हो आप लोग? क्या जीजा जी आपको रोज़ चोदते हैं?’
तभी अनीता दीदी थोड़ा सा उदास हो गईं और नेहा की तरफ देख कर कहा- अब तुझे क्या बताऊँ.. तेरे जीजा जी तो पहले बहुत रोमांटिक थे.. मुझे एक मिनट भी अकेला नहीं छोड़ते थे। जब भी मन किया.. मुझे जहाँ मर्ज़ी वहीं पटक कर मेरी चूत में अपना लंड डाल देते थे और मेरी जमकर चुदाई करते थे।’
‘क्या अब नहीं करते..?’ नेहा ने पूछा। ‘अब वो पहले वाली बात नहीं रही.. अब तो तेरे जीजाजी को टाइम ही नहीं मिलता.. और मैं भी अपने बच्चों में खोई रहती हूँ। आजकल तेरे जीजाजी मुझे बस हफ़्ते एक या दो बार ही चोदते हैं.. वो भी जल्दी-जल्दी से.. मेरी नाइटी उठा कर अपना लंड मेरी चूत में डाल कर बस दस मिनट में ही लंड का माल चूत में झाड़ देते हैं।’
यह बात सुनकर मेरा दिमाग ठनका। मैंने पहले कभी भी अनीता दीदी को सेक्स की नज़रों से नहीं देखा था। अब मेरे दिमाग में कुछ शैतानी घूमने लगी। मैं मन ही मन उनके बारे में सोचने लगा… ऐसा सोचने से ही मेरा लंड अब बिल्कुल स्टील की रॉड की तरह खड़ा हो गया।
अनीता दीदी को उदास देख कर नेहा ने उनके गालों पर एक चुम्मा लिया और कहा- उदास न हो दीदी.. अगर मैं कुछ मदद कर सकूँ तो बोलो। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगी.. मेरा वादा है तुमसे।’
दीदी हल्के से मुस्कुराईं और कहा- मेरी प्यारी बन्नो.. जब जरूरत होगी तो तुझसे ही तो कहूँगी.. फिलहाल अगर तू मेरी मदद करना चाहती है तो बोल..
‘हाँ हाँ दीदी.. तुम बोलो मैं क्या कर सकती हूँ?’ ‘चल आज हम एक-दूसरे को खुश करते हैं और एक-दूसरे का मज़ा लेते हैं…’ नेहा थोड़ा सा मुस्कुराई और अनीता दीदी को चूम लिया।
अनीता दीदी ने नेहा को बिस्तर से उठने के लिए कहा और खुद भी उठ गई। दोनों बिस्तर पर खड़े होकर एक-दूसरे के कपड़े उतारने लगीं। नेहा की पीठ मेरी तरफ थी और अनीता दीदी का चेहरा मेरी तरफ। नेहा ने अनीता दीदी की नाईटी उतार दी और दीदी ने उसकी टी-शर्ट निकाल दी।
हे भगवान्.. मेरे मुँह से तो सिसकारी ही निकल गई.. आज से पहले मैंने अनीता दीदी को इतना खूबसूरत नहीं समझा था। वो बिस्तर पर सिर्फ अपनी ब्रा और पैंटी में खड़ी थीं। दूधिया बदन.. सुराहीदार गर्दन.. बड़ी-बड़ी आँखें.. खुले हुए बाल और गोरे-गोरे जिस्म पर काली ब्रा.. जिसमें उनके 36 साइज़ के दो बड़े-बड़े उरोज ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने दो सफेद कबूतरों को जबरदस्त कैद कर दिया हो।
उनकी चूचियाँ बाहर निकलने के लिए तड़प रही थीं। चूचियों से नीचे उनका सपाट पेट और उसके थोड़ा सा नीचे गहरी नाभि.. ऐसा लग रहा था जैसे कोई गहरा कुँआ हो। उनकी कमर 26 से ज्यादा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकती। बिल्कुल ऐसी जैसे दोनों पंजों में समां जाए।
कमर के नीचे का भाग देखते ही मेरे तो होंठ और गला सूख गया, उनके चूतड़ों का साइज़ 36 के लगभग था। बिल्कुल गोल.. और इतना ख़ूबसूरत कि उन्हें तुंरत जाकर पकड़ लेने का मन हो रहा था। कुल मिलाकर वो पूरी सेक्स की देवी लग रही थीं..
हे भगवान्.. मैंने आज से पहले उनके बारे में कभी भी नहीं सोचा था।
इधर नेहा के कपड़े भी उतार चुकी थी और वो भी ब्रा और पैंटी में आ चुकी थी। उसका बदन भी कम सेक्सी नहीं था। उसका 32-26-34 का मस्त फिगर.. वो भी ऐसी थी.. कि किसी भी मर्द के लंड को खड़े-खड़े ही झाड़ दे।
‘हाय नेहा.. तू तो बड़ी खूबसूरत माल है रे.. आज तक किसी ने भी तुझे चोदा कैसे नहीं.. अगर मैं लड़का होती तो तुझे जबरदस्ती पटक कर तुझे चोद देती।’ ‘ओह दीदी.. आप की जवानी के सामने तो मैं कुछ भी नहीं.. पता नहीं जीजाजी आपको क्यूँ नहीं चोदते?’ ‘उनकी बातें छोड़ो.. वो तो हैं ही चूतिया..’
अनीता दीदी ने नेहा की ब्रा खोल दी और नेहा ने भी हाथ बढ़ा कर दीदी की ब्रा का हुक खोल दिया।
मेरी तो सांस ही रुक गईं.. इतने सुन्दर और प्यारे उरोज.. मैंने आज तक नहीं देखे थे। अनीता दीदी के दो बच्चे थे.. पर कहीं से भी उन्हें देख कर ऐसा नहीं लगता था.. कि दो-दो बच्चों ने उनकी चूचियों से दूध पिया होगा..
खैर.. अब नेहा की बारी थी तो दीदी ने उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया और साथ ही साथ उसकी पैंटी को भी उसके बदन से नीचे खिसकाने लगीं। दीदी का उतावलापन देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें कई जन्मों की प्यास हो।
नेहा ने भी वैसी ही फुर्ती दिखाई और अनीता दीदी की पैंटी को हाथों से निकालने के लिए खींच दिया। संगमरमर जैसी चिकनी जांघों के बीच में फूले हुए पावरोटी के जैसी बिल्कुल चिकनी और गोरी चूत को देखते ही मेरे लंड ने अपना माल छोड़ दिया..
मेरे होंठों से एक सेक्सी सिसकारी निकली और मैंने दरवाज़े पर ही अपना सारा माल गिरा दिया.. मेरे मुँह से निकली सिसकारी थोड़ी तेज़ थी.. शायद उन लोगों ने सुन ली थी.. मैं जल्दी से आकर अपने कमरे में लेट गया और सोने का नाटक करने लगा। कमरे की लाइट बंद थी और दरवाज़ा थोड़ा सा खुला ही था। बाहर हॉल में हल्की सी लाइट जल रही थी.. जिसमें मैंने एक साया देखा। मैं पहचान गया। यह नेहा थी.. जो अपने बदन पर चादर डाल कर मेरे कमरे की तरफ ये देखने आई थी कि मैं क्या कर रहा हूँ और वो सिसकारी किसकी थी।
थोड़ी देर वहीं खड़े रहने के बाद नेहा अपने कमरे में चली गई और उसके कमरे का दरवाजा बंद हो गया, जिसकी आवाज़ मुझे अपने कमरे तक सुनाई दी। शायद जोर से बंद किया गया था। मुझे कुछ अजीब सा लगा.. क्योंकि आमतौर पर ऐसे काम करते वक़्त लोग सारे काम धीरे-धीरे और शांति से करते हैं। लेकिन यह ऐसा था जैसे जानबूझ कर दरवाजे को जोर से बंद किया गया था।
खैर.. जो भी हो, उस वक़्त मेरा दिमाग ज्यादा चल नहीं पा रहा था। मेरे दिमाग में तो बस अनीता दीदी की मस्त चिकनी चूत ही घूम रही थी।
थोड़ी देर के बाद मैं धीरे से उठा और वापस उनके दरवाज़े के पास गया और जैसे ही मैंने अन्दर झाँका..
दोस्तो.. अब मैं ये कहानी यहीं रोक रहा हूँ। मुझे पता है आपको बहुत गुस्सा आएगा.. कुछ खड़े लण्ड खड़े ही रह जायेंगे और कुछ गीली चूत गीली ही रह जाएंगी।
पर यकीन मानिए.. अभी तो इस कहानी की बस शुरुआत हुई है। अगर मुझे आप लोगों ने मेरा उत्साह बढ़ाया तो मैं इस कहानी को आगे भी लिखूँगा और सबके सामने लेकर आऊँगा।
वैसे भी अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है.. तो मुझे यह भी देखना है कि मेरी कहानी आप लोगों को कितनी पसंद आती है। मुझे इन्तज़ार रहेगा आपके जवाब का। अगर आपको लगे कि यह कहानी आगे बढ़े.. तो मुझे अपने विचार भेजें.. [email protected]
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