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शाम को ऑफिस से लौटते समय मैंने रचना के लिये एक पारदर्शी गाउन खरीदा, शाम को मुझे लौटने में देर हो गई, लगभग 9 बजे मैं ऑफिस से लौटा तो मुझे कमरा बाहर से लॉक मिला। मुझे याद आया रचना शॉपिंग करने गई है और आने में देर हो जायेगी। मैंने भी बाहर ही टाईम पास करने की सोची और एक चाय की दुकान में बैठ कर चाय पीने लगा।
करीब आधे घण्टे और बीत गया तभी रचना का फोन आया कि मैं शेविंग वगैरहा करवा कर तैयार रहूँ, वो आ रही है और फिर बाहर मूवी देखने जायेंगे और बाहर ही खाना खायेंगे। न चाहते हुए भी मुझे उसकी बात माननी पड़ी क्योंकि रचना ने बहुत जिद की।
खैर बाहर से शेविंग करवा कर मैं आया, दूसरी चाबी से कमरे का दरवाजा खोलकर अन्दर आया और अन्दर आकर अपने कपड़े पहनकर सेंट वगैरह लगा कर में भी ठीक-ठाक से तैयार हो गया और रचना का इंतजार करने लगा। पर रचना नहीं आई तो थककर मैंने उसको फोन लगाया तो पास वाले कमरे से उसके फोन बजने की आवाज आई।
मुझे ध्यान आया कि अभी तो रचना ने मुझे फोन किया कि तैयार रहना हम लोग बाहर चलेंगे, लेकिन ये आई कब? इसी उत्सुकता में मैंने उस कमरे के दरवाजे को खोला तो एक नया सरप्राईज रचना के द्वारा तैयार मिला। वो कमरा बिल्कुल एक सुहागरात वाले कमरे जैसा सजा था और रचना उस पर दुल्हन की तरह सजी हुई बैठी थी और बगल में दूध से भरा हुआ गिलास रखा था।
मैं आश्चर्य में? तभी उसने मेरे तरफ बड़ी अदा व तिरछी नजर से देखी और बोली- कल हम लोग वापस अपने शहर चले जायेंगे, इसलिये मैंने सोचा कि आज रात मैं अपनी सुहागरात तुम्हारे साथ मनाऊँ।
मैं उसके पास आकर बैठ गया। कुछ भी हो, आज वो और दिनों से बिल्कुल अलग दिख रही थी। पता नहीं उसने इतने कम समय कैसे इतना इंतजाम किया था। निहायत खूबसूरत लग रही थी, उसका रंग वैसे भी बहुत साफ था और इस समय वो गजब की सुंदर दिख रही थी।
उसने एक बार फिर अपनी नजर को नीचे झुका लिया। मैंने धीरे से उसकी ठुड्डी को ऊपर की ओर किया और बोला- वास्तव में आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो। उसके लाल सुर्ख होंठ काँप रहे थे, उसके जिस्म से निकलती हुई खुशबू बड़ी मादक थी।
उसने कमरे को और पलंग को गुलाब के फूलों से पाट दिया था, चारों तरफ गुलाब की महक ही महक थी। उसकी इस अदा पर मुझे एक अलग सा अपनेपन का अहसास था। अगर मैं शादीशुदा न होता तो मैं उससे वहीं शादी कर लेता।
मैंने हल्के से उसके होंठों को चूमा, गालों को चूमा और दोनों पलकों को हल्के से चूमा और उसको अपने बाँहों में जकड़ लिया। तभी रचना ने धीरे से कहा- डार्लिंग, आज मेरी इस रात को यादगार बना दो। ‘मैं पूरी कोशिश करूँगा…’ कहकर मैंने उसको हौले से अपनी बाँहों का सहारा देते हुए लेटाया और उसके माथे को चूम लिया, उसके बालों की लटों को हल्के से एक किनारे किया, ताकि उस हल्की मद्धम रोशनी में उसका दूध जैसे चेहरा किसी काली घटा में छुपा हुआ न लगे।
उसके होंठ अभी भी काँप रहे थे, आँखें उसकी बन्द थी और उसकी सांसों में सरसराहट सी थी। फिर धीरे से मैंने उसके सीने से उसकी लाल साड़ी का पल्लू हटाया, जहाँ पर उसके कबूतर छुपे हुए थे। पल्लू हटाते ही ब्लाउज के अन्दर फंसे दोनों कबूतर नजर आये और उन दोनों कबूतर के बीच की घाटी तो और जान मारू लग रही थी।
हालाँकि आज उस साड़ी में वो उतनी मोटी नजर नहीं आ रही थी, जितनी कि वो है। या यूँ कहें कि आज मुझे वो कहीं से मोटी नजर ही नहीं आ रही थी, बल्कि वो आज किसी हिरोईन से कम नहीं लग रही थी।
खैर! मैं उसकी घाटी में गुम हो जाने को बेकरार हो रहा था, मैंने उसको उसी तरह लेटे रहने का इशारा किया और अपने जिस्म पर चड्डी को छोड़कर सब कपड़े उतार कर उसके बगल में आकर लेट गया और अपनी एक टांग उसके ऊपर चढ़ा दी। उसके बालों के सहलाते हुए मैं उसके होंठों को धीरे-धीरे चूमने लगा और कभी-कभी बीच में उसके होंठों को चाटता।
फिर मेरे हाथ उसके बड़े-बड़े स्तनों को सहलाने लगे और बीच-बीच में तेजी से दबा भी देते। अब मैं धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा और मेरे होंठ उसके कबूतर को ब्लाउज के ऊपर से ही चूमने लगे। जैसे-जैसे मैं रचना के जिस्म के नीचे के भाग में उतरता, वैसे-वैसे उसकी साड़ी का पल्लू भी हटता जाता।
मैं अब उसकी गहरी नाभि के पास पहुँच चुका था और मेरी जीभ उस नाभि रूपी गहरी खाई में उतर चुकी थी। रचना के मुँह से सिसकारी की अवाजा आ रही थी, जैसे ही मैं उसके नाभि को उंगली से कुरेदने लगा उसने तकिया को बड़ी ही कस कर पकड़ लिया और उसकी तेज-तेज सिसकारी निकलने लगी और अपनी कमर को उचकाने लगी।
तभी मेरा ध्यान रचना की दोनों टांगों पर गया जो एक-दूसरे को कस कर जकड़ी हुई थी, ऐसा लग रहा था कि रचना मछली जैसे बिन पानी को तड़प रही थी। मैं तुरन्त ही उसके पैरों की तरफ गया और उसकी दोनों टांगों को एक दूसरे से अलग करते हुए चूमने की शुरूआत उसके पैरों की उंगलियों से की और चूमते-चूमते उसके साड़ी को भी ऊपर उठाने लगा।
मुझे लगा वो आज वैक्सिंग करा कर भी आई है, बहुत ही चिकनी टांगें थी। मैं उसकी चिकनी टांगों को चाट रहा था, मेरी जीभ शुष्क हो रही थी, लेकिन मैं चाट रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
धीरे-धीरे उसकी साड़ी को ऊपर करते हुए उसकी मोटी जांघों के बीच आ गया, जैसे-जैसे मैं उसकी योनि के पास जो अभी भी साड़ी से छिपी हुई थी, पहुँच रहा था, रचना की तड़प बढ़ती जा रही थी और उसकी सिसकारी तेज होती जा रही थी।
इससे पहले रचना को जिस तरह से चोदा था, वो हम दोनों की हवस थी, लेकिन इस समय पता नहीं क्यों मुझे रचना मेरी दुल्हन नजर आ रही थी इसलिये मैं उसके साथ वैसा ही कर रहा था जैसा कि कोई मर्द अपनी पहली रात को अपनी दुल्हन के साथ करता है।
दोनों जांघें बिल्कुल चिपकी हुई थी, बस एक अंगुल की दूरी थी मेरे मुँह और उसके चूत के बीच की… क्या महक आ रही थी, लगता है रचना ने सेन्ट अपने जिस्म के हर उस हिस्से में लगाया था, जहाँ पर मैं पागल हो जाऊँ। उसके जिस्म से निकलती हुई खुशबू को सूँघते हुए और चाटते हुए मैं उसकी चूत के पास पहुँच गया।
गजब की बुर थी उसकी, बिल्कुल पाव रोटी के तरह जो एक पारदर्शी पन्नी में पैक हो। उसने जो पैन्टी पहन रखी थी वो केवल उसकी चूत को ही ढक पा रही थी, बाकी आस-पास की जगह तो खुली हुई थी। उसकी पैन्टी काफी गीली हो चुकी थी, उसने खूब पानी छोड़ा था। मेरे नथुने में उसके परफ्यूम के साथ-साथ रज की भी खूशबू आ रही थी।
बड़ी मादक खूशबू थी, जिससे मेरी उत्तेजना में भी बढ़ोत्तरी हो रही थी और इसीलिये बीच-बीच में मेरा हाथ मेरे लंड को मसलने लगता था। खैर, जैसे ही उसके मादक रज को अपनी जीभ में लेने के लिये मैंने अपनी जीभ उसके चूत के ऊपर रखी, वैसे ही रचना ने मुझे ताकत से अपनी चूत से अलग करने की कोशिश कि और बड़े कस कर अपने दोनों पैरों से अपनी चूत को जांघों के बीच छुपा ली।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो लड़की अपनी चूत का हर कमाल मेरे मुँह में कर चुकी थी, वही लड़की अब अपनी चूत के रज को मुझे पीने से रोकने की कोशिश कर रही है। फिर भी मैंने उसके हाथ अपने से अलग किए और उसकी दोनों टांगों को थोड़ा फैलाया और अपनी नाक उसकी चूत की सुगन्ध को सूँघने के लिये लगा दिया पर रचना जैसे मुझे अपनी चूत से दूर रखने के लिये जिद्द पर अड़ी हो इसलिये मैंने थोड़ी सी ताकत से उसके दोनों हाथों को कस कर पकड़ लिया और उसकी पैन्टी के ऊपर से ही उसके रज को चाटना शुरू किया।
वो सिसयाती रही और मुझे अपनी चूत से भरकस दूर करने की कोशिश करती रही, पर इस बार वो नकाम ही रही। उसके बाद मैं उसकी पैन्टी को उसके चूत से अलग करने लगा, इसमें उसने अपनी गांड उठाकर पैन्टी को चूत से अलग करने में मदद की।
पैन्टी चूत से अलग हो चुकी थी और उसकी पाव रोटी जैसी चूत अब मेरे सामने बिल्कुल नंगी थी। अब मैंने भी अपनी चड्डी उतार दी, क्योंकि मेरा लौड़ा एकदम से तन गया था। एक टांग़ रचना की टांग पर रख कर मैं उसके ब्लाउज को उतारने लगा।
क्या गजब की ब्रा पहनी थी… जालीदार थी उसकी ब्रा… केवल निप्पल ही ढके हुए थे! वैसे भी उसकी भारी भरकम चूचियों में ब्रा का कोई काम नहीं होता। पर उस रात को जो कुछ भी उसने पहना हुआ था वो सब बहुत ही सेक्सी लग रहा था।
अब उसकी ब्रा भी उसकी चूचियों को छोड़ चुकी थी, केवल उसकी साड़ी और पेटीकोट ही उसके जिस्म में था वो भी कमर पर… अब मेरी उँगली उसकी चूत की गहराई में गोते लगा रही थी जबकि मुँह उसकी चूचियों को चूस रहा था।
रचना सिसकारी लेने के साथ-साथ मेरे बालों को सहला रही थी और मैं कभी उसकी चूत के अन्दर उंगली करता तो कभी उसकी पुतिया को मसलता तो कभी गांड के अन्दर उँगली करता तो कभी उसके बुर की फाँकों को सहलाता और रचना सिसकारी लेती।
करीब दस मिनट तक ऐसा करता रहा और जब मेरे लंड के भी बर्दाश्त की सीमा खत्म हो गई तो मैं उठकर उसके चूत के मुहाने पर आया और आस-पास नजर दौड़ाई पर ऐसी कोई चीज नहीं मिली जो उसके चूतड़ों के नीचे रख कर उसकी चूत को उभार पाता।
खैर कोई बात नहीं, मैंने उसकी टांगों के बीच में अपने को सेट किया और लंड को उसकी चूत से रगड़ते-रगड़ते एक ही झटके में पूरा लंड उसकी चूत में पेल दिया। एक तो रोज उसकी चूत चुद रही थी, ऊपर से उस समय उसकी चूत गीली भी थी इसलिये लंड को अन्दर जाने में कोई परेशानी नहीं हुई, बस एक झटके से पेलने के कारण रचना के मुंह से आह की आवाज आई।
उसकी चूत के अन्दर अभी भी एक लावा जैसा धधक रहा था। इस पूरे घटना में मैंने रचना को कुछ भी नहीं करने दिया, जैसे मैंने अपनी सुहागरात में अपनी बीवी को कुछ नहीं करने दिया था।
अब मेरा लंड उसकी चूत में हलचल मचा रहा था और सुनाई पड़ रही थी तो सिर्फ बुर और लंड के मिलन की आवाज फच-फच या फिर रचना की आह ओह-आह ओह! करीब पांच-सात मिनट ऐसे ही चलता रहा और फिर मैं खलास हो गया उसकी चूत में ही और उसके ऊपर निढाल सा पड़ गया।
जब थोड़ी चेतना आई तो मैं उसके बगल में आ कर लेट गया, वो भी मेरी तरफ घूमी और अपनी भारी भरकम टांग को मेरी टांग पर रखते हुए मेरे माथे को चूमते हुये बोली- शरद… उसने पहली बार मेरा नाम लिया, इससे पहले वो मुझे या तो डार्लिंग या जानू कहकर सम्बोधित करती थी।
‘हूँ…’ मैंने बोला। तो वो बोली- अगर सुहागरात इस तरह मनाई जाती है तो इस रात को मैं कभी नहीं भूलूँगी। मेरे लिये यह रात हमेशा यादगार रहेगी। जिस तरह तुम मेरे जिस्म के साथ खेल रहे थे, मैं अपनी आँखों को बन्द किये हुए उस एक-एक पल को अपने दिल में संजो रही थी।
‘रचना तुम भी तो रोज मुझे एक सरप्राईज देती थी… और सच बताऊँ तो जिस तरह तुम आज दुल्हल के वेश में थी, मुझे कहीं से नहीं लगा कि मैं एक बार पहले भी सुहागरात मना चुका हूँ।
इस सुहागरात वाली पूरी चुदाई पर मैंने एक चीज का ध्यान ही नहीं दिया कि उसने कुछ गहने भी पहने हैं जो अब रचना के मेरे जिस्म से चिपकने के कारण मुझे चुभ रहे थे। जब उसके गहने मुझे चुभे तो मैंने रचना से पूछा- ये गहने कहाँ से? तो वो बोली- मैंने यहीं मार्केट से किराये पर लिए हैं। मैं चाहती थी कि तुम्हारे साथ सुहागरात मने। यह विचार मुझे कल रात आया। बस इसलिये आज सुबह से ही जब तुम ऑफिस गये, तभी से मैं ये सब तैयारी कर रही थी।
बातों बातों में मैंने उसके पूरे गहने उतार दिए और उसके बालों को खोल दिया। तभी रचना बोली- वैसे शरद, तुमने मुझे इन दिनों में बहुत ही सुख दिया। ‘नहीं रचना… मैंने नहीं, तुमने! मेरा शुरू से ही मानना था कि पार्टनर अच्छा हो तो सेक्स का मजा बहुत आता है।’ ‘अच्छा एक बात बताओ, ये मूत पीने-पिलाने वाली बात तुम्हारे दिमाग में कहाँ से आई?’
‘देखो अभी तुमने कहा कि पार्टनर अच्छा हो तो सेक्स का मजा बहुत आता है। और तुम्ही ने तो मुझे कुछ साईट्स दी थी क्लिप देखने के लिये। तो मैं तुम्हारे जाने के बाद क्लिप देखती थी और उसी में एक क्लिप मुझे पिसिंग क्लिप मिली, देखा! शुरू में बड़ा गन्दा लगा, लेकिन दो-तीन क्लिप और देखी तो मजा आने लगा। फिर सोचा ये भी किया जाये सो मैंने कर लिया।’
बात होते होते हमारे होंठ फिर एक दूसरे से मिल गये, मेरे हाथ उसकी चूची को मसल रहे थे और उसकी दो उंगलियाँ मेरे निप्पल के दाने को मसल रहे थे और दोनों एक दूसरे के होठों को तेज तेज चूस रहे थे। मैं फिर हल्के से उठना चाह रहा था कि उसके एक बार चित कर के उसके पूरे जिस्म को एक बार और चाटने की, पर रचना ने मुझे चित्त ही लेटने का इशारा किया और अपने बालों को समेटते हुए उसने मेरे निप्पल को चूसना शुरू किया।
अब मेरे मुँह से सिसकारी निकलने की बारी थी, मैंने रचना से कहा- रचना तुम ये सब बाद में कर लेना, इस समय मुझे तुम्हारी मुलायम गांड चाटने की बड़ी इच्छा है। ‘डार्लिंग, मेरी गांड भी तुम्हारी जीभ के लिये बेताब है, पर अब मेरी बारी है। पहले मुझे करने दो जो मैं करना चाहती हूँ।’ कहकर उसने निप्पल को चूसना शुरू किया और एक हाथ से मेरे लंड को सहलाने लगी।
इस तरह करते-करते वो मेरी नाभि के पास आई और जैसे मैंने उसके साथ किया था, ठीक उसी तरह से रचना मेरी नाभि के अन्दर जीभ डाल कर घुमाने लगी, उसी तरह अपनी जीभ का प्रयोग करके अब वो मेरे नीचे के हिस्से पर पहुँची और जांघ के आस-पास के क्षेत्र के आस-पास अपनी जीह्वा का प्रर्दशन करने लगी।
जांघ को चाटते हुए कभी मेरे अण्डों को वो अपने मुँह में भर लेती तो कभी सुपाड़े के कट पर अपने दाँत चलाती तो कभी पूरे लंड को मुँह में भर लेती। इस तरह करते हुए एक बार फिर रचना एक अण्डे को मुँह में भर लिया और अपनी एक उँगली मेरी गांड के अन्दर डालने का प्रयास करने लगी।
एक तो सूखी गांड… उसकी उँगली कहाँ जाती तो उसने अपनी जीभ को गांड के छेद में लगा दिया। जैसे ही रचना की जीभ मेरे गांड को सहलाने लगी, मेरी टांगें खुद-ब-खुद उठ गई, मैंने अपनी टांगों को हाथों से पकड़ कर अपनी तरफ झुका लिया ताकि रचना को चाटने में आसानी हो। उसके गांड चाटने से मुझे एक हल्की मदमस्त सी गुदगुदी सी होने लगी लेकिन मजा भी बहुत आ रहा था।
थोड़ी देर चाटने के बाद रचना फिर उसी तरह मेरे जिस्म को चाटते हुए मेरे लबों तक पहुँच गई और मेरे ऊपर चढ़कर 69 की अवस्था में आ गई। अब रचना के भारी भरकम चूतड़ और उनके बीच छिपी हुई उसकी छोटी से चूत मेरे मुँह के पास थी।
वो मेरा लंड पकड़ कर अपने मुँह में भर कर चूसने लगी, इधर मैं उसकी गांड को फैला कर अपनी उँगली से उसकी गांड को रगड़ता और फिर उस उंगली को थूक से गीला करता और उसकी गांड को एक बार फिर रगड़ता।
इस तरह करने के बाद मेरी एक उँगली उसकी गांड में अन्दर तक चली गई और उसकी चूत जो अब पानी छोड़ चुकी थी, मेरे मुँह से सटी हुई थी और मैं उसके रस को बड़े ही मजे से चाटे जा रहा था।
थोड़ी देर तक इस पोजिशन में रहने के बाद रचना उठी और मेरे लंड को अपने फ़ुद्दी के छेद में ले लिया और एक बार फिर उसकी उछलती हुई चूचियों और थप थप की आवाज से कमरा गूँजने लगा। कुछ देर तक वो ऐसा करती रही पर शायद उछलते हुए वो थक गई थी, इसलिये वो मेरे बगल में आकर लेट गई और अपनी टांगों को चौड़ा करके मुझे चोदने का इशारा किया।
मैं उठा और अपने लंड को जो उसकी चूत में जाकर गीला हो गया था एक बार फिर उसके चूत में पेल दिया। उसने मुझे तुरन्त ही अपनी बाहों में कसकर जकड़ लिया। अब मैं उसके जकड़न की वजह से उससे पूरी तरह सटा हुआ था, जबकि मेरा पिछावाड़ा अपने काम को अंजाम दे रहा था यानि रचना की चूत की चुदाई चल रही थी।
कुछ देर बाद ही मेरे लंड ने भी मेरा साथ छोड़ दिया और अपने पानी से रचना की पूरी चूत भर दी। मैं काफी हाँफ रहा था।
कुछ देर बाद रचना की पकड़ ढीली हुई तो मैं बगल में उसके आकर लेट गया और उससे बोला- मेरा पूरा माल आज तुम्हारी चूत के अन्दर है। ‘कोई बात नहीं…’ वो बोली- जो होगा देखा जायेगा। कहकर वो मेरे से और मैं उससे चिपक कर सो गया।
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