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बड़ी नटखट और चुलबुली सी लड़की मंजू (औरत ही लगती थी वह) उस समय करीब इक्कीस या बाइस साल की होगी। भरी जवानी उसके कपड़ों में से जैसे छलक रही थी। वैसे भी उनकी जमात में छोटे ब्लाउज और छोटा घाघरा ही पहनते थे। शायद वह कबायली जाती की थी। कानों में बाली, नाक में नथनी, आँख में काजल और हाथ और पाँव के नाखुन लाल रंग से रँगे, मंजू साक्षात रति की प्रतिकृति लगती थी। ऐसे हो ही नहीं सकता की मंजू को देखते ही, कोई भी मर्द का मन और लण्ड मचल ने न लगे। उसकी भौंहें गाढ़ी और नजर तीखी थी। फ्री हिंदी सेक्स स्टोरीज हिंदी चुदाई कहानी
उसके उरोज इतने उभरे हुए थे की उनको उस धागों से कारीगिरी भरी और आयने के छोटे छोटे गोल गोल टुकड़ों को अलग अलग भड़काऊ रंगीले कपड़ों में भरत काम से शुशोभित चोली में समाना लगभग नामुमकिन था। उसके लाल पंखुड़ियों जैसे होठों को लिपस्टिक की जरुरत ही नहीं थी। वह जब चलती थी तो पिछेसे उसकी गांड ऐसे थिरकती थी की देखने वाले मर्दों का सोया हुआ लण्ड भी खड़ा हो जाए। हमारे घर में वह बर्तन, झाड़ू पोछा का काम करती थी। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
वह बर्तन साफ़ करने अपना घाघरा अपनी टांगों पे चढ़ा कर जब बैठती थी तो वह एक देखने वाला द्रश्य होता था। मैं उस समय स्कूल में पढ़ता था। मैं अक्सर कई बार उसे बर्तन माँजते हुए देखता रहता था और मन ही मन बड़ा उत्तेजित होता था। जब मैं उसे लोलुपता भरी नजरों से देखता था तो वह भी मुझे शरारत भरी नजरों से देख कर मुस्कुराती रहती थी। मैं अकेला ही नहीं था जो मंजू के बर्तन साफ़ करने के समय उसकी जाँघों को देखने का शौक़ीन था। एक और शख्श भी उसका दीवाना था। उसका नाम था देव प्रसाद। सब उसे देव के नामसे बुलाते थे। हमारी कोठीमें वह पाइप से पानी भरने लिए आता था। वह यूपी का भैया था और हॉस्पिटल में वह वार्ड बॉय का काम करता था।
हम एक छोटे से शहर में रहते थे। मेरे पिताजी एक डॉक्टर थे। हमें हॉस्पिटल की और से रहनेके लिए घर मिला था जिसमें पानी का नल नहीं था। हॉस्पिटल के प्रांगण में एक छोटा सा बगीचा था। उसमें एक नल था। हमारे घरमें एक बड़ी टंकी थी जिसमें रोज सुबह देव एक लम्बे पाइप से उस नल से पानी भर जाता था। उसी में से रोज हम पानी का इस्तेमाल करते थे।
पता नहीं क्यों, पर मंजू भी शायद मुझे पसंद करती थी। मैं उससे छोटा था। वह मुझे छोटे भैया कह कर बुलाती थी। खास तौर से जब माँ कहीं बाहर गयी होती थी और घरमें मैं अकेला होता था तो झाड़ू लगाते हुए अवसर मिलता था तब वह मेरे कमरे में आती थी वह मेरे पास आकर अपनी मन की बातें करती रहती थी। शायद इस लिए क्यूंकि मैं उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुनता था और बिच बिच में अपने सुझाव या अपनी सहमति दर्शाता था। इसी लिए शायद वह मुझे भी खुश रखना चाहती थी।
मैं उससे उम्र में छोटा था। उसका और मेरा शारीरिक सम्बन्ध उन दिनों होना संभव नहीं था फिर भी वह थोड़े समय के लिए ही सही, मेरे पास आकर कुछ न कुछ बातें जरूर करती थी। और मैं जब कुर्सी या पलंग पर से पाँव लटका कर बैठता था तो वह मेरे पास आकर निचे बैठ कर मेरे पाँव पर थोड़ी देर के लिए अपना हाथ फिरा देती थी जिससे मेरे मनमें एक अजीब सा रोमांच होता था और मेरे पाँव के बिच मेरा लण्ड फड़फड़ाने लगता था। पर मैं उस समय अपनी यह उत्तेजना को समझ नहीं पाता था।
अक्सर देव सुबह करीब साढ़े नव बजे आता था। उसी समय मंजू भी झाड़ू, पोछा, बर्तन करने आती थी। मैं देखता था की देव मंजू को देख कर मचल जाता था। कई बार मेरी माँ के इधर उधर होने पर वह मंजू को छूने की कोशिश करता रहता था। पर मंजू भी बड़ी अल्हड थी। वह उसके चंगुल में कहाँ आती? वह हँस कर देव को अंगूठा दिखाकर भाग जाती थी। मंजू की हँसी साफ़ दिखा रही थी की वह देव को दाना डाल रही थी। घर में सब लोगों के होते हुए देव भी और कुछ कर नहीं पाता था।
एक दिन माँ पूजा के रूम में थी। माँ को पूजा करने में करीब आधा घंटा लगता था। देव को यह पता था। मंजू घर के सारे कमरे में झाड़ू लगा रही थी। जैसे ही देव पाइप लेकर आया की मंजू ने मुझसे बोला, “देखो ना छोटे भैया, आजकल के जवानों के पास अपना तो कुछ है नहीं तो लोगों को पाइप दिखा कर ही उकसाते रहते हैं।” ऐसा कह कर वह हँसते हुए भाग कर पूजा के कमरे में झाड़ू लगाने के बहाने माँ के पास चली गयी।
वह देव को छेड़ रही थी। थोड़ी देर के बाद मंजू जब झाड़ू लगाकर माँ के कमरे से बाहर आयी तो देव अपना काम कर रहा था। जब देव ने उसे देखा तो देव फुर्ती से मंजू के पास गया और उसको अपनी बाहों में जकड लिया। मंजू देव के चँगुल में से छूटने के लिए तड़फड़ाने लगी, पर उसकी एक भी न चली। तब उसने जोर से माँ के नाम की आवाज लगाई। देव ने तुरंत उसे छोड़ दिया। जैसे ही मंजू भाग निकली तो देव ने कहा, :आज तो तू माँ का नाम लेकर भाग रही है, पर देखना आगे मैं तुझे दिखाता हूँ की मुझे पाइप से काम नहीं चलाना पड़ता। मेरे पास अपना खुद का भी मोटा सा पाइप है, जिसका तू भी आनंद ले सकती है।”
मंजू उससे दूर रहते हुए बोली, “हट झूठे, बड़े देखें है आजकल के जवान।” और फिर फुर्ती से घर के बाहर चली गयी।
मैं देव को देखता रहा। देव ने कुछ खिसियाने स्वर में कहा, “भैया यह नचनियां मुझ पर डोरे डाल तो रही है, पर फंसने से डरती है। साली जायेगी कहाँ? एक न एक दिन तो फंसेगी ही। ”
खैर उसके बाद कुछ दिनों तक देव छुट्टी पर चला गया। मंजू आती थी और मैं देख रहा था की उसकी आँखें देव को ढूंढती रहती थी। दो दिन के बाद जब मैंने देखा की वह देव को ढूंढ तो रही थी पर बेबसी में किसी को पूछ ने की हिम्मत जुटा नहीं पा रही थी। मैंने तब चुपचाप मंजू के पास जा कर कहा, “देव छुट्टी पर गया है। उसके दादा जी का स्वर्गवास हो गया है। एक हफ्ते के बाद आएगा।”
तब वह अंगूठा दिखाती ठुमका मारती हुई बोली, “उसको ढूंढेगी मेरी जुत्ती। मुझे उससे क्या?”
मैं जान गया की वह सब तो दिखावा था। वास्तव में तो मंजू का दिल उस छोरे से लग गया था और उसका बदन देव को पाने के लिए अंदर ही अंदर तड़प रहा था।
करीब दस दिन के बाद जब देव वापस आया और घरमें पाइप लेकर आया तो मंजू को देख कर बोला, “याद कर रही थीं न मुझे? बेचैन हो रही थीं न मेरे बगैर?”
मंजू अंदर से तो बहुत खुश लग रही थी, पर बाहर से गुस्सा दिखाती हुई बोली, “कोई आये या कोई जाए अपनी बला से। मुझे क्या पड़ी है? मझे बता कर कोई थोड़े ही न जाता है?” बात बात में मंजू ने देव को बता ही दिया की उसके न बता ने से मंजू नाराज थी।
खैर देव के आते ही वही कहानी फिर से शुरू हो गयी। देव मौक़ा ढूंढता रहता था, मंजू को छूने का या उसे पकड़ने का, और मंजू बार बार उसे चकमा दे कर भाग जाती थी।
जब देव आता और मंजू को घाघरा ऊपर चढ़ाये हुए बर्तन मांजते हुए देखता तो वह उसे आँख मारता और सिटी बजा कर मंजू को इशारा करता रहता था। मंजू भी मुंह मटका कर मुस्कुरा कर तिरछी नजर से उसके इशारे का जवाब देती थी। हररोज मैं मेरे कमरे की खिड़की में से मंजू और देव की यह इशारों इशारों वाली शरारत भरी हरकतें देखता रहता था। उस समय मुझे सेक्स के बारें में कुछ ज्यादा पता तो नहीं था पर मैं समझ गया था की उन दोनों के बिच में कुछ न कुछ खिचड़ी पक रही थी। मैं मन ही मन बड़ा उत्सुक रहता था यह जानने के लिए की आगे क्या होगा।
कुछ अर्से के बाद मुझे भी मंजू की और थोड़ा शारीरिक आकर्षण होने लगा। मैं उसके अल्हडपन और मस्त शारीरिक रचना से बड़ा उत्तेजित होने लगा। मैंने अनुभव किया की मेरा लण्ड उसकी याद आते ही खड़ा होने लगता था। मुझे मेरे लण्ड को सहलाना अच्छा लगने लगा। पर मैं तब भी मेरी शारीरिक उत्तेजनाओं को ठीक से समझ नहीं पा रहा था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
एकदिन मैं अपने कमरे में बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था। माँ पडोसी के घर में कोई धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने गयी थी। झाड़ू लगाते हुए मंजू मेरे कमरेमें आ पहुंची। जब उसने देखा की आसपास कोई नहीं था तो वह मेरे पास आयी और धीरे से फुफुसाकर बोली, “छोटे भैया, एक बात बोलूं? तुम बुरा तो नहीं मानोगे?”
मैं एकदम सावधान हो गया। लगता था उस दिन कुछ ख़ास होने वाला था। मैंने बड़ी आतुरता से मंजू की और देखा और कहा, “नहीं, मैं ज़रा भी बुरा नहीं मानूंगा। हाँ, बोलो, क्या बात है?”
मंजू मेरे [पाँव के पास आकर बैठ गयी और बोली, “तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। तुम सीधे सादे भले इंसान हो। आगे चलकर पढ़ लिख कर तुम बड़े इंसान बनोगे। मैं भला एक गंवार और गरीब। क्या तुम मुझे याद रखोगे?”
ऐसा कह कर वह मेरे निचे लटकते पाँव पर वह हलके हलके प्यारसे हाथ फिराने लगी। उस दिन मैंने चड्डी पहन रखी थी। धीरे धीरे उसका हाथ ऊपर की और बढ़ा और उसने मेरी जांघों पर हाथ फिराना शुरू किया। मेरे मनमें अजीब सी हलचल शुरू हो गयी। मंजू ने फिर उसका हाथ थोड़ा और ऊपर लिया और उसका हाथ मेरी चड्डी के अंदर घुसेड़ा। मैं थोड़ा हड़बड़ाकर बोला, “मंजू यह क्या कर रही हो?”
मंजू अपना हाथ वहीं रखकर बोली, “भैया, अच्छा नहीं लग रहा है क्या? क्या मैं अपना हाथ हटा दूँ?”
मैं चुप रहा। अच्छा तो मुझे लग ही रहा था। मैं जूठ कैसे बोलूं। मैंने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं, पर यह तुम क्या कर रही हो?”
“ऐसी कोई बात नहीं” यह सुनकर मंजू समझ गयी की मुझे उसका हाथ फिराना बहुत अच्छा लग रहा था। उसने अपना हाथ मेरी चड्डी में और घुसेड़ा और मेरा लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और उसे प्यार से एकदम धीरे धीरे हिलाने लगी। मेरा लण्ड किसी ने पहली बार पकड़ा था। मुझे एहसास हुआ की मेरे लण्ड में से चिकनाई रिसने लगी थी। उस चकनाई से शायद मंजू की उंगलियां भी गीली हो गयी थी। पर मंजू ने मेरे लण्ड को पकड़ रखा। जब मैंने उसका कोई विरोध नहीं किया तो साफ़ था की मैं भी मंजू के उस कार्यकलाप से बहुत खुश था। मैंने महसूस किया की मेरा लण्ड एकदम बड़ा और खड़ा हो रहा था। देखते ही देखते मेरा लण्ड एकदम कड़क हो गया।
मंजू ने बड़े प्यार से मेरी निक्कर के बटन खोल दिए और मेरे लण्ड को मेरी चड्डी में से बाहर निकाल दिया। मंजू बोली, “ऊई माँ यह देखो! हे दैया, यह तो काफी बड़ा है! लगता है अब तुम छोटे नहीं रहे। भैया, देखो, यह कितना अकड़ा हुआ और खड़ा हो गया है।”
मैं खुद देखकर हैरान हो गया। मैं मंजू की और देखता ही रहा। मेरा गोरा चिट्टा लण्ड उसकी उँगलियों में समा नहीं रहा था। मंजू ने कहा, “भैया तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। चलो आज मैं तुम्हें खुश कर देती हूँ।”
ऐसा कहते हुए मंजू ने मेरे लण्ड को थोड़ी फुर्ती से हिलाना शुरू किया। तब मेरी हालत देखने वाली थी। मैं उत्तेजना के मारे पागल हो रहा था। मैंने लड़का लडकियां एक दूसरे से सेक्स करतें हैं और उसमें लण्ड की भूमिका होती है यह तो सूना था पर यह पहली बार था की मेरा लण्ड कोई दुसरा इंसान हिला रहा था। जब भी मुझे कोई उत्तेजनात्मक विचार आता था या तो मैं कोई लड़की की सेक्सी तस्वीर देखता था तो मैं ही अपना लण्ड सहलाता था। पर जब मंजू की उंगलियां मेरे खड़े लण्ड से खेलने लगी तो मुझे एक अजीब एहसास हुआ जो बयान करना मुश्किल था।
मेरे पुरे बदन में एक अजीब सी उत्तेजना और आंतरिक उन्माद महसूस होने लगा। न सिर्फ मेरा लण्ड बल्कि मेरे पूरा बदन जैसे एक हलचल पैदा कर रहा था। जैसे जैसे मंजू ने अपनी उंगलियां मेरे लण्ड की चमड़ी पर दबा कर उसे मुठ मारना तेजी से शुरू किया तो मेरे मन में अजीब सी घंटियाँ बजने लगीं। मंजू ने मुठ मारने की अपनी गति और तेज कर दी। अब मैं अपने आपे से बाहर हो रहा था ऐसा मुझे लगने लगा।
मैंने मंजू का घने बालों वाला सर अपने दोंनो हाथों के बिच जकड़ा और मेरे मुंह से निकल पड़ा, “अरे मंजू यह तुम क्या कर रही हो?” मुझे एक अजीब सा अद्भुत उफान अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रहा था। मेरा पूरा बदन अकड़ रहा था। मैं मंजू के हाथ से किया जा रहा हस्तमैथुन की लय में लय मिलाते हुए अपना पेडू ऊपर निचे करने लगा जिससे मंजू को पता लग गया की मैं भी काफी उत्तेजित हो गया था और जल्दी ही झड़ने वाला था। मंजू ने अपने हाथों से मुठ मारने की गति और तेज कर दी। मेरा सर चक्कर खा रहा था। एक तरह का नशा मेरे दिमाग पर छा गया था। मेरे शरीर का कोई भी अंग मेरे काबू में नहीं था।
एक ही झटके में मेरे मुंह से “आह…” निकल पड़ी और इस तरह सिसकारियां लेते हुए मैंने देखा की मेरे लण्ड में से पिचकारियां छूटने लगीं। सफ़ेद सफ़ेद मलाई जैसा चिकना पदार्थ मेरे लण्ड में से निकला ही जा रहा था। मंजू की उंगलियां मेरी मलाई से सराबोर हो गयीं थी।
मैंने पहली बार मेरे लण्ड से इतनी मलाई निकलते हुए देखि। इसके पहले हर बार जब मैं उत्तेजित हो जाता था, तब जरूर मेरे लण्ड से चिकना पानी रिसता था। पर मेरे लण्ड से इतनी गाढ़ी मलाई निकलते हुए मैंने पहली बार देखि।
मंजू अपनी उँगलियों को अपने घाघरे से साफ़ करते हुए बोली, ” भैया अब कैसा लग रहा है?”
मुझे अपना फीडबैक देने के लिए कृपया कहानी को ‘लाइक’ जरुर करें। ताकि कहानियों का ये दोर देसी कहानी पर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।
मैं बुद्धू की तरह मंजू को देखता ही रह गया। मेरी समझ में नहीं आया की क्या बोलूं। उस समय मैं ऐसे महसूस कर रहा था जैसे मैं आसमान में उड़ रहा था। मैं अपने आपको एकदम हल्का और ताज़ा महसूस कर रहा था जैसे पहले कभी नहीं लगा। इतना उत्तेजक और उन्माद पूर्ण अनुभव उसके पहले मुझे कभी नहीं हुआ था।
मेरी शक्ल देखने वाली रही होगी, क्यूंकि मेरी शक्ल देखकर मंजू खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, “देखा न? अब चेहरे पर कैसी हवाईयां उड़ रही हैं? भैया आज आप एक लड़के से मर्द बन गए। अब समझलो की आपको कोई अपनी मर्जी से तैयार हो तो ऐसी औरत को चोदने का लाइसेंस मिल गया। ”
मैं मंजू के इस अल्हड़पन से हतप्रभ था। एक लड़की कैसे इतनी खुल्लमखुल्ला सेक्स के बारेमें ऐसी बात कर सकती है, यह मेरी समझ से बाहर था। खैर, उस दिन से जब भी मौक़ा मिलता, मंजू जरूर मेरे कमरे में झाड़ू पोछे का बहाना करके आती और एक बार मेरे लण्ड को छूती। जब कोई नहीं होता तो वह अपने हाथों से मुझे हस्तमैथुन करा देती। मैं भी उसका इंतजार करने लगा। पर यह कहानी मेरे बारे में नहीं है।
पढ़ते रहिये.. क्योकि ये फ्री हिंदी सेक्स स्टोरीज हिंदी चुदाई कहानी अभी जारी रहेगी और अपने अभिप्राय मुझे जरुर लिखें, मेरा ईमेल पता है “[email protected]”.
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