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बात पिछली होली की है लेकिन जब भी याद आती है तो तन-मन में आग सी लग जाती है। दरअसल जिन दिनों हमारी शादी होने वाली थी, उन दिनों होली का त्यौहार आया और अचानक ये किसी काम का बहाना करके मेरे घर पर धमक गये। मम्मी पापा चौंके लेकिन होने वाले दामाद जी से क्या कहते! पूरी सेवा की गई, हमें अकेले में मिलने का मौका भी दिया गया। इस मौके पर रवि ने पूरी बेशर्मी से कह दिया कि उनके कुछ दोस्त होली पर अपनी बीवी को खूब मज़े से ठोकते हैं और वो शादी से पहले ही यह रस्म करना चाहते हैं।
मैंने हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की थी, घाट-घाट का पानी पी चुकी थी लेकिन थोड़ा नाटक करते हुए बोली- …ऐसा… कैसे हो सकता है? रवि पूरे इंतजाम से आए थे, कहने लगे- बस तुम राजी हो जाओ, बाकी मुझ पर छोड़ दो। मेरे हाँ कहने पर इन्होंने पापा से कहा- शहर में कुछ दोस्तों से होली खेलनी है तो रेनू को भी साथ ले जाना चाहता हूँ। थोड़ी हिचक के बाद पापा मान गये।
बाद में पता चला कि दोस्त तो कोई नहीं था, होटल में एक कमरा जरूर था जहाँ होली के दिन मेरी चुदाई हुई। बस उस दिन से हर होली के दिन मेरी चुदाई जरूर होती थी।
लेकिन पिछली होली से एक हफ्ते पहले रवि को उनके बॉस ने मुंबई जाने का फरमान सुना दिया, पंद्रह दिन का दौरा था। अब होली पर चुदाई का मामला अटका। मैंने साफ कह दिया- शादी से पहले आपने वचन दिया था, अब निभाओ उसे!
अगले दिन रवि ने बताया कि दफ्तर में दो चुदक्कड़ साथी हैं, उनसे होली पर चूत चुदाई की रस्म निभानी हो तो कोशिश की जा सकती है। मेरे हाँ कहने पर रवि ने उन्हें शाम को घऱ आने के कह दिया।
शाम के समय मैंने कमरे में अंधेरा किया और खिड़की के पास बैठ गई। यहाँ से ड्राइंग रूम का पूरा नजारा दिखता था। रवि को दो दोस्त नवीन और परेश घर पर आये। हट्टे कट्टे… उन्हें देख कर मेरे मुंह में पानी आ गया। और चूत में भी…
रवि ने उनसे कहा कि वो मुंबई जा रहा है, होली पर रेनू अकेली रहेगी इसलिये होली का रंग लगाने आ जाना! दोस्त कहने लगे- देख यार, कई बार गालों पर रंग लगाने पर महिलाएं बुरा मान जाती हैं। इस पर रवि ने एक पैकेट दिया और बोला- इसमें भांग है, रेनू से ही बनवा लेना कि ‘ठण्डाई है’ और उसे ही पिला देना, फिर वो बुरा नहीं मानेगी।
दोनों दोस्तों नवीन और परेश ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर बोले- ..ठीक है यार, तेरी इच्छा पूरी कर देंगे।
दोस्तों के जाने के बाद मैंने रवि से कहा- भांग का नशा तेज होता है। इस पर रवि बोले- वो भांग नहीं थी, असल में ही ठण्डाई का हरे रंग का पाउडर है, थोड़ा नाटक कर लेना, बाकी रस्म दोस्त कर देंगे।
होली के दिन मैंने ऐसा ब्लाउज पहना जिसका ऊपर का बटन कमजोर था। सुबह दस बजे नवीन और परेश घर में हाजिर थे। थोड़ी बातचीत के बाद नवीन मुझे एक पैकेट देते हुए बोले- भाभी जी, प्यास लगी है, यह ठण्डाई पाउडर है, दूध में घोल कर बना लाओगी क्या? यह वो पैकेट नहीं था जो मेरे पति ने उन्हें दिया था। मैं उनका मतलब समझ गई, तुरंत ठण्डाई बना लाई, मेज पर गिलास रख कर मैंने कहा- अभी नमकीन भी लाती हूँ।
दरअसल नमकीन तो एक बहाना था, मैंने दूसरे कमरे से चुपके से देखा तो नवीन ने अपनी जेब से दूसरा पैकेट निकाला और पाउडर मेरी ठण्डाई में मिला दिया। जब उनका काम हो गया तो मैं एक प्लेट में नमकीन लेकर पहुंच गई।
इसके बाद हम तीनों ने ठण्डाई पीना शुरू कर दिया, नवीन और परेश कनखियों से मुझे देख रहे थे। मैंने थोड़ी देर में नाटक करना शुरू कर दिया, मैंने नवीन को देखकर कहा- अरे रवि, तुम कब आये? नवीन और परेश को लगा कि मुझे भांग चढ़ गई।
नवीन बोला- नहीं भाभी, मैं रवि नहीं हूँ। मैंने कहा- ..नहीं… तुम तो रवि हो… होली नहीं खेलोगे? और उठ कर नवीन को रंग लगा दिया।
दोनों को पक्का यकीन हो गया कि मुझे भांग का नशा चढ़ गया है। नवीन ने मुझे अपनी बाहों में लिया और बोला- ..हाँ हाँ मेरी जान, तुझे तो पूरा रंग दूंगा। मैं झटके से पीछे हुई तो मुझे संभालने में उसका हाथ मेरे ब्लाउज पर चला गया और एक आवाज के साथ मेरा ब्लाउज फट गया।
अंदर से मेरी मल्टी कलर ब्रा चमकने लगी थी। दोनों थोड़ी देर खड़े रहे लेकिन मेरी नाटक जारी था। अब उन्हें भांग के चढ़ने का पूरा भरोसा हो गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
नवीन आगे बढ़ा और बोला- हाँ रेनू डार्लिंग, मैं रवि हूँ, होली खेलने आया हूँ। उसने आगे बढ़कर मेरी साड़ी और पेटीकोट उतार दिया, मेरे पीछे खड़े परेश ने मेरा ब्लाउज फाड़ कर पूरा उतार दिया। अब मैं पैंटी और ब्रा पहने खड़ी थी। वे दोनों भी जल्दी ही अंडरवियर में आ गये।
परेश ने मेरी ब्रा में हाथ डाला और मेरी चूचियाँ दबाने लगा और नवीन नीचे बैठकर पैन्टी के ऊपर से मेरी चूत सूंघने लगा। मेरी सांस तेज हो चली थी। उसने मेरी कच्छी नीचे सरका दी और चूत पर जीभ फ़िराने लगा। मेरी चिकनी चूत देख कर नवीन को लंड फौलादी हो गया था। परेश ने मेरी ब्रा खोल कर उतार दी और उन दोनों ने अपने कच्छे भी उतार दिए। अब हम तीनों पूरे नंगे थे।
उन दोनों ने रंग निकाला और मेरे पूरे शरीर में पोत दिया। इसके बाद परेश ने नवीन के लंड पर रंग लगा दिया और बोला- भाभी की चूत में रंग नहीं लगा है। नवीन ने मुझे सोफे पर लिटाया और अपना लंड मेरी चूत में डाल कर बोला- ..लो मेरी जान ..तुम्हारी चूत भी होली खेल रही है। नवीन के धक्के रफ्तार पकड़ने लगे थे। तभी दूसरी तरफ से परेश मेरी चूचियों को चूसने लगा, एक साथ दो मर्दों से लंड चूत का खेल खेलने का मेरा ये पहला मौका था।
थोड़ी देर में एक तेज आवाज के साथ मेरी चूत झड़ गई। नवीन ने अपने लंड का माल मेरे मुंह में डाल दिया।
अब मेरे लिये नाटक करना भी मुश्किल हो गया था, मैंने कहा- देवर जी तुम तो रवि से मस्त लंड रखते हो। मेरी बात सुनते ही दोनों सकपका गये, कहने लगे- आप पर तो भांग का नशा था। मैंने कहा- वो भांग थी ही नहीं, मुझे तो होली पर चुदाई की रस्म करनी थी जो पूरी हो गई।
इसके बाद दोनों की शर्म खत्म हो गई। परेश ने कहा- अभी तो उसे भी होली खेलनी है। उसने मुझे गोदी में उठाया और बाथरूम में ले गया।
दोनों दोस्तों ने मल मल कर मुझ नहलाया। चूत का रंग साफ करने में दोनों की उंगलियां भी रंग गई लेकिन मुझे पूरा चमका दिया।
इस बार वो मुझे बालकॉनी में ले गये। इस बात का थोड़ा डर था कि कोई देख सकता है। ऐसे में मैंने बालकॉनी में चादर डाल दी।
नीचे सड़क से होली के हुड़दंगियों का शोर आ रहा था और ऊपर हम तीनों तैयार थे। इस बार नवीन ने नीचे लेट कर मेरी गांड में लंड डाल दिया और ऊपर से परेश ने मेरी चूत में लंड डाला, दोनों ने एक साथ झटके देने शुरू कर दिये। एक साथ दो लंड की मस्ती का क्या कहना…
थोड़ी देर में उन्होंने करवट ली, अब परेश नीचे था लेकिन उसका लंड मेरी चूत में ही था। मेरे ऊपर नवीन था और अपने लंड से मेरी गांड मार रहा था। थोड़ी देर में हम तीनों के हथियारों ने पानी छोड़ दिया। मैंने जल्दी से परेश का लंड मुंह में डाला और लंड का माल पीते हुए बोली- देवर जी, आपके साथ नाइंसाफी नहीं होने दूंगा। आपके लंड का माल भी गटक लूंगी।
अब इस होली पर आपका क्या प्रोग्राम है? होली के बाद अपने सेक्सी अनुभव मेरी प्रिय अन्तर्वासना पर भेजें। [email protected]
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