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हैलो दोस्तो.. मैं अपनी आपबीती बताने जा रहा हूँ। पहले भेजी कहानियों को आपने सराहा.. उसके लिए धन्यवाद। इस बार भी आपकी प्रतिक्रियाओं एवं सलाह/सुझाव का इन्तज़ार रहेगा।
ये बात सन 2005 की है.. मेरी पत्नी को बच्चा होने वाला था.. जिस कारण से मैं अपनी पत्नी से कम सेक्स करता था और असन्तुष्ट था.. मेरे लण्ड और मन में बहुत बेचैनी थी।
तभी अखबार में रेडिफ़ पर चैट 5888 और 555 के बारे में पढ़ा.. सोचा चलो ऐसे ही मन बहलाया जाए।
स्वभाव से मैं वैसे ही शर्मीला था.. कोई महिला मित्र भी नहीं थी.. पर मैसेज़ पर तो बिना शर्म के भेज सकता था। यही सोच कर कई लड़कियों को मैसेज़ भेज़ दिया.. कुछ दिनों बाद एक लड़की का रिप्लाई आया और उससे बातों का सिलसिला चल निकला.. हमारे विचार बहुत से मुद्दों पर एक जैसे ही थे।
हमारे बीच दोस्ती गहरी होती जा रही थी और हम हर तरह की बातें करने लगे थे। यहाँ तक की सेक्स की बातें भी सामान्य बातों जैसी ही होने लगी थीं। चार महीनों तक हमें यह नहीं पता था.. कि किससे और कहाँ से बात हो रही है।
फ़िर एक दिन ये भी हुआ कि हमने जाना वह भुवनेश्वर से थी और उस समय मैं इलाहाबाद में था। वो मूलत: पंज़ाब की रहने वाली थी और भुवनेश्वर में नौकरी कर रही थी।
एक दिन मैंने उससे फ़ोन पर बात करने की इच्छा जताई.. उसने अपना फ़ोन नम्बर दिया। थोड़ा व्यस्त होने की वजह से 2-3 दिन फ़ोन नहीं कर पाया.. पर जैसे ही फ़ोन किया.. छूटते ही उसने पूछा- कहाँ गुम हो गए थे?
अब रोज़ हमारी बातें होने लगीं, फ़िर वही हुआ जो सामान्यतः हो जाता है.. हम एक-दूसरे के लिए तड़पने लगे। हमारी उम्र भी एक थी.. प्यार का इज़हार हो ही गया.. दोनों के दिल धड़कने लगे थे.. तड़प तो थी ही.. कोई दिन ऐसा नहीं जाता था कि बात ना होती हो।
यह सिलसिला चार साल तक यूं ही चलता रहा। चार साल बाद उसे अपने एक काम के कारण इलाहाबाद आना था और हमारी मिलने की तड़प पूरी होने वाली थी। आखिर वो समय आ ही गया.. जब हमारी वर्षों पुरानी मुराद पूरी होने वाली थी। उस समय मैं 28 साल का था और वो मुझसे एक महीने बड़ी थी। अभी उसकी शादी नहीं हुई थी.. जिसका कारण बाद में पता चला..
खैर.. वो इलाहाबाद आई और ऐसा हुआ कि मेरी तबीयत ऐसी खराब हुई कि मैं बिस्तर से उठ भी नहीं सकता था। सारे अरमानों पर मानों घड़ों पानी फ़िर गया.. आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी, मैं कुछ कर भी नहीं पा रहा था। वो वापस जा चुकी थी.. सिर्फ़ एक मैसेज़ आया ‘आज़ के बाद कभी बात मत करना!
मेरी बात ना उसने सुनी.. ना ही मैं बता पाया। उसने अपना फ़ोन बन्द कर दिया हमेशा के लिए..
सुना था ‘इश्क वो आग है जो लगाए ना लगे.. बुझाए ना बुझे..’
मैं अपनी घुटन छुपा भी नहीं पा रहा था और ना किसी से कह पा रहा था। अकेले ही उस तड़प में घुटता रहा।
आठ महीने बाद एक अनज़ान नम्बर से फ़ोन आया और वही आवाज़ कानों में शहद घोल गई।
कैसे भूल सकता था वो आवाज़..! वो तो मेरी तो हर साँस में बसी थी.. ‘अनिल कानपुर में हूँ.. आ सकते हो..? कल वापस चली जाऊगीं।’
मैंने तुरन्त आने को कहा.. इस बार किस्मत ने साथ दिया और अगले दिन मैं उसके पास पहुँच गया। यह हमारी पहली मुलाकात थी। वो दिखने में बहुत सुन्दर थी.. लम्बाई 5’6″ तन 36-30-42 का.. जिसका नाप मैंने बाद में लिया.. उसके बाल ‘ब्वाय-कट’ कटे हुए थे, होंठ गुलाब की पन्खुड़ियों से.. रस से भरे हुए।
मैं उसे देखता ही रह गया.. शिकवा-शिकायतों के बाद उसे लेकर गंगा किनारे चल दिया.. हम बाँहों में बाँहें डाले रेत में घूम रहे थे। उस दिन मैंने जाना कि पिछली बार नहीं मिलने पर उसने शादी कर ली है और यहाँ अपने किसी काम से आई थी.. पर आज़ भी दिल की कसक कम नहीं हुई और ना ही समर्पण कम हुआ। यह बात हम दोनों ही अच्छे से जानते थे।
उसने बताया कि आज़ वो वापस ज़ा रही है.. पर दो महीने बाद उसे लखनऊ आना है।
हम अपनी चाहत को दबा नहीं पा रहे थे। ये दो महीने कैसे कटे.. ये कोई आशिक ही समझ सकता है। हर पल.. एक-एक दिन काटना मुश्किल लग रहा था। समय गुजरा और वो दिन भी आ ही गया।
हम दोनों ही थे कमरे में.. समां जाना चाहता था.. लेकिन कोई जबरदस्ती नहीं.. उसकी आखों में देखा ‘हाँ’ थी.. वहाँ पर.. मैंने झट से उसे सीने से चिपका लिया.. वो भी बेल के मानिन्द लिपट गई।
बहुत देर तक हम ऐसे ही चिपके रहे। अलग हुए.. देखा एक-दूसरे की ओर.. आँखों में बूँदें छलक आई थीं। जाने क्या खो दिया था पिछले 10 महीनों में.. अचानक से सब पा लेने की खुशी छुप नहीं रही थी। साथ ही हमने लंच किया.. फ़िर से कमरे में आ गए।
वो बिस्तर पर बैठ गई और मैं उसकी गोद में सर रख कर लेट गया.. उसके हाथ मेरे बालों को सहला रहे थे.. बहुत ही प्यार उमड़ रहा था। मैंने अपनी बाँहें उसकी कमर के चारों लपेट लीं। मेरी उंगलियाँ उसके बदन से खेल रही थीं और हर पल को हम दोनों अपने अन्दर समा लेना चाह रहे थे।
मैं उठा.. उसके चेहरे को अपने हाथों में ले लिया..उसकी आँखें बन्द थीं.. एक मौन स्वीकारोक्ति थी उसकी.. मैंने अपने होंठों को उसके होंठों पर रख दिया.. बहुत नाज़ुक सा अहसास था.. जाने कितना रस भरा था उन होंठों में..
मैं पूरा का पूरा निचोड़ लेना चाह रहा था और वो भी भरपूर सहयोग कर रही थी। मैंने उसकी जीभ को अपने मुँह में ले लिया था.. और चूसे जा रहा था। मेरा हाथ उसके बालों को सहलाते हुए उसकी गर्दन पर आ गए थे और मैं उसके चेहरे को चूमे जा रहा था।
फ़िर मैंने चिपका लिया था उसे.. अब रहा नहीं जा रहा था.. पर हम अपने प्यार को हर पल में जीना चाह रहे थे.. मेरे हाथ उसके कन्धे से होते हुए उसकी चूचियों को सहला रहे थे.. उसके मुँह से ‘आह्ह.. ओ..ओ.. ह्ह्ह्ह्हह हहहहहह..’ की आवाजें आ रही थीं।
उसकी ‘आहें’ मुझे और उत्तेजित कर रही थीं, मैं उसके मम्मों को और जोर से दबाने लगा.. सासें तेज़ हो रही थीं.. मेरा मन उसकी चूचियों को चूसने को कर रहा था। मैंने उसके कपड़े ऊपर करने के लिए हाथ कपड़ों में डाल दिया।
अचानक वो सम्भली.. थोड़ा कुनमुनाई- मत उतारो.. पर उसके मना करने में भी ‘हाँ’ थी.. मैंने उसे एक जोर की किस की.. अन्दर हाथों को डाल कर उसके बूब सहलाने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
अब कोई भी विरोध नहीं था.. उसके कपड़े उतार दिए थे मैंने और चूचियों को जोरों से चूसने लगा। सच बताऊँ दोस्तो.. मखमली त्वचा पर मलाई जैसे थे.. बस चूसे जाओ.. यही मन कर रहा था। उसने शर्म से अपना चेहरा ढक लिया था.. पर मुँह से तो उन्मुक़्त आवाजें आ रही थीं ‘अनिल्..ल.. चूस डालो मुझे.. खा जाओ.. जान.. आ..ह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह्.. हहह.. मत तड़पाओ..
मैं एक हाथ से उसके बुब्बू दबा रहा था और दूसरे को मुँह में ले कर चूसे जा रहा था। उसकी आँखें बन्द थीं बस मादकता में मुझे समेट लेना चाह रही थी।
मैं बहुत अधिक उत्तेजना में था.. उसके मक्खन जैसी चूचियों को चूसे जा रहा था। वो मादक आवाजों से मुझे और भी उत्तेजित कर रही थी ‘ऊ.. ऊऊ.. ऊऊउ..हहह.. ह..ह..’ उसके हाथ अभी भी मेरे बालों से खेल रहे थे.. मेरे बदन को सहला रहे थे।
अचानक उसके हाथ तेजी से चलने लगे और बदन भी अकड़ने लगा.. मैं समझ गया कि वो आनन्द की अनंत गहराई में उतर गई है।
मेरा हाथ अब उसकी जाँघों के बीच जा रहा था और मैं उसका दूध चूसे जा रहा था। जाँघों को सहलाते हुए उसके कपड़े भी उतारता जा रहा था। उसकी जाँघें.. जैसे केले के तने सी चिकनी.. दूध सी सफ़ेद.. जाँघों को चाटने में बहुत ही मज़ा आ रहा था.. मचलती हुई और भी अच्छी लग रही थी।
वो मेरे सर को जोरों से दबा रही थी। इधर मैंने उसकी चूत को चूसना शुरू कर दिया ‘चो..चो..द.. दो मुझे..’ वो मस्ती में बोले जा रही थी, उसकी चूत ने रस बहाना शुरू कर दिया था। रस की महक मुझे और भी मस्त किए जा रही थी।
इधर मेरे लण्ड का भी बुरा हाल हो रहा था.. मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाल दी.. चूत बहुत गीली हो चुकी थी। जैसे ही उंगली उसकी चूत पर लगाई.. वो चिहुँक उठी ‘अनिल अब मत तड़पाओ..’
झटपट मैंने अपने कपड़े भी उतार डाले.. अपना लण्ड उसके हाथ में दे दिया.. वो लण्ड को सहलाने लगी ‘अ..निल.. बहुत मस्त लण्ड.. है तुम्हारा चो..चो..द.. दो मुझे.. मेरी जान..’
अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था.. बस मैं उसके साथ लिपट गया। मेरा लण्ड अपना रास्ता खुद ही खोजने लगा। बेसब्री की इन्तहा हो गई थी। ‘अनिल चोदो मुझे.. अनिल मेरी जान फ़क मी..’ जैसे शब्द मुझे और भी उत्तेज़ित कर रहे थे। मैं खुद को सम्भालना नहीं चाह रहा था।
मैंने लण्ड चूत के मुहाने पर लगाया और ज़ोर लगाते ही वो जोर से चीखी।
‘आह्हहहह्.. हह्ह.. ह्..ह..’
आधा लण्ड अन्दर घुस चुका था.. वो दिखने में ही लम्बी-चौड़ी थी.. पर चूत एकदम कसी हुई थी। मैंने उत्तेजना में जोर से अन्दर डाल लिया था.. तो चीखना तो लाजिमी था। मैंने थोड़ा सा लण्ड बाहर खींचा.. अब धीरे-धीरे उसे चोदने लगा। वो आनन्द ले रही थी- अनिल और करो.. बहुत मस्त लण्ड है.. फ़क मी हार्ड.. अनिल लव यू..
उसके मुँह से यही सब निकलता जा रहा था और हम दोनों चुदाई में सराबोर हुए जा रहे थे और अन्तत: मैंने सारा माल उसकी चूत में ही छोड़ दिया।
दोनों का तन-बदन-मन एक हो चुका था। थोड़ी देर बाद हम अलग हुए एक-दूसरे की ओर देखा.. बहुत प्यार आ रहा था फ़िर समा गए एक-दूसरे में..
दोस्तो.. कहानी कैसी लगी.. जरूर बताना मेरी email id [email protected] है। आपके सुझावों का इन्तज़ार रहेगा।
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