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अन्तर्वासना के पाठकों को आपकी प्यारी नेहारानी का प्यार और नमस्कार। अब तक आपने पढ़ा..
मैं चाचा से बोली- हटो.. मैं बाद में आती हूँ.. पर चाचा ताबड़तोड़ मेरी चूत मारते हुए मेरी चूत में झड़ने लगे। चाचा को मेरी बातों का एहसास हो चुका था। मैं किसी तरह चाचा को ढकेल कर प्यासी और वीर्य से भरी चूत को अनमने से ना चाहते मैं अपनी छत पर जाकर सीढ़ी से नीचे उतर गई। मैंने जाकर गेट खोला.. सामने एक नाटे कद का काला सा लड़का खड़ा था।
अब आगे..
मैं चुदाई के कारण कुछ हांफ सी रही थी और मेरी जाँघ से वीर्य गिर रहा था.. जिससे एक महक सी आ रही थी।
मेरे अस्त-व्यस्त कपड़े और मेरी बदहाशी की हालत देख कर वह केवल एकटक मुझे देख रहा था और मैं भी उसके शरीर की बनावट को देखे जा रही थी। एक तो पहले से ही आज मेरी बुर की प्यास हर बार किसी ना किसी कारण अधूरी रहे जा रही थी। मैं भी सब कुछ भूल कर उसको देख रही थी।
मुझे होश तब आया.. जब उसने कहा- मेम.. मुझे साहब ने भेजा है। ‘ओह्ह..ह्ह्ह.. आओ अन्दर..’
वह मेरे पीछे-पीछे वह मेरी लचकते चूतड़ों को देखते हुए अन्दर आ गया। मैं अन्दर आते समय यही सोच रही थी कि आज इसका पहला दिन है और आज ही इसने मेरी गदराई जवानी को जिस हाल में देखा है.. इससे तो जरूर इसका लण्ड खड़ा हो गया होगा।
फिर मैं सोफे पर बैठ गई और मैं अपने एक पैर को दूसरे पैर पर रख कर आराम से सोफे पर बैठ गई। मैंने जब उसकी तरफ देखा.. तो वह अपनी आँखों से मेरी जांघ और मेरी चूचियों का मुआयना कर रहा था।
मैं अपने शरीर के अंगों को संतोष को घूरते देख कर उससे पूछने लगी- तो मिस्टर आप का नाम? वह जैसे नींद से जागा हो- जी..ज्ज्ज्जी संस्स्स्स्न्तोष है.. ‘तुम क्या-क्या कर लेते हो?’ ‘मेम.. मैं सब कुछ..’
‘अच्छा.. तो आप सब कुछ कर लेते हो..’ ‘जी.. मेमसाहब..’ ‘मैं कुछ जान सकती हूँ कि आप क्या क्या कर सकते हो..?’ ये कहते हुए मैंने अपने पैर नीचे कर लिए और दोनों पैरों को छितरा लिया। मेरे ऐसा करते मेरी जाँघ के बीच से वीर्य की एक तीखी गंध आने लगी। मेरी चूत और जाँघें चाचा के वीर्य से सनी हुई थीं।
शायद संतोष को भी महक आने लगी, वह बोला- मेम साहब, कुछ अजीब सी महक आ रही है? ‘कैसी महक?’ ‘पता नहीं.. पर लग रहा है कि कुछ महक रहा है।’ ‘तुमको कभी और ऐसी महक आई है.. कि आज ही आ रही है?’ ‘मुझे याद नहीं आ रहा..’
‘चलो याद आ जाए कि यह महक किस चीज की है.. तो मुझे भी बताना.. क्योंकि मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ कि यह महक किस चीज की है। खैर.. तुमने बताया नहीं कि क्या- क्या कर लेते हो?’ ‘जी मेमसाहब.. मैं खाना बनाऊँगा.. और घर के सभी काम करूँगा.. जो भी आप या साहब करते हैं।’
‘अच्छा तो तुम साहब के भी सारे काम करोगे?’ ‘जी मेम साहब..’ वह मेरी दो अर्थी बातों को नहीं समझ पा रहा था। मैं तो उस समय सेक्स में मतवाली थी, मैं वासना के नशे में चूर होकर हर बात कर रही थी, मैं यह भी भूल गई थी कि यह मेरे बारे में क्या सोचेगा।
‘तुम्हारी उम्र क्या है?’ ‘जी.. 19 साल और 3 महीने..’ ‘गाँव कहाँ है?’ ‘मोतीहारी.. बिहार का हूँ।’ ‘ओके.. तुम को यहाँ रहना पड़ेगा..’ ‘जी मेम साहब..’
वह बात के दौरान मेरी जाँघ के बीच में निगाह लगाए हुए ज्यादा से ज्यादा अन्दर देखने की कोशिश में था। वह बिल्कुल मेरे सामने खड़ा था.. जहाँ जाँघ से अन्दर का नजारा दिख रहा था.. पर शायद उसे मेरी चूत के दीदार नहीं हो पा रहे थे.. इसलिए वह कोशिश कर रहा था कि मेरी मुनिया दिखे.. और मैंने भी संतोष की यह कोशिश जरा आसान कर दी।
मैंने पूरी तरह सोफे पर लेटकर पैरों को चौड़ा कर दिया। मेरा ऐसा करने से मानो संतोष के लिए किसी जन्नत का दरवाजा खुल गया हो.. वह आँखें फाड़े मेरी मुनिया को देखने लगा।
‘वेतन क्या लोगे?’ मेरी चूत के दीदार से संतोष का हलक सूख रहा था। वह हकलाते हुए बोला- जो..ज्ज्ज्जो आअअप दे दें..
‘मैं जो दूँगी.. वह तुम ले लेगो?’ ‘जरूर मैडम..’ ‘और कुछ और नहीं माँगेगा?’ मैं यह वाक्य बोलते हुए पैर मोड़ कर बैठ गई। मैंने गौर किया कि जैसे कोई फिल्म अधूरी रह गई हो.. ठीक वैसे ही उसका मन उदास हो गया था।
‘अच्छा.. तो मैं तुमको 5000 हजार दूँगी। ‘ठीक है मेम साहब..’ ‘फिर तुम काम करने को तैयार हो?’ ‘जी मेमसाब..’
‘अभी तुम रसोई में जाओ और अपने हाथ की पहली चाय पिलाओ। मैंने उसे रसोई में ले जाकर सब सामान दिखा दिया।
‘तुम दो कप चाय बना कर ले आओ..’
मैं उसे कहकर बेडरूम में चली गई और मैं अपने बेडरूम में पहुँच कर कपड़े निकाल कर बाथरूम में घुस गई और सूसू करने बैठी। मेरी फड़कती और चुदाई के लिए तड़पती चूत से जब सूसू निकली.. तो ‘सीसी सीस्स्स्स्सीइ..’ की तेज आवाज करती हुई मेरी मुनिया मूत्र त्याग करने लगी।
सूसू करने से मुझे काफी राहत मिली और फिर मैं फुव्वारा खोल कर नहाने लगी.. जिससे मेरे तन की गरमी से कुछ राहत मिली। मैंने नीचे हाथ ले जाकर चूत और जाँघ पर लगे वीर्य को साफ किया और चूत को हल्का सा सहलाते हुए मैं बीते हुए पल को याद करने लगी।
आह.. क्या लौड़ा है चाचा का.. मजा आ गया.. आज रात तो जरूर चुदूँगी.. चाहे जो हो जाए.. हाय क्या कसा-कसा सा मेरी चूत में जा रहा था। अगर चाचा मेरी फोन पर बात ना सुनते और जल्दबाजी में अपना पानी ना निकालते.. तो मैं भी अपना पानी निकाल कर ही आती।
यही सब सोचते हुए मैंने एक उंगली बुर में डाल दी और बड़बड़ाने लगी ‘आहह्ह्ह् सीईईई.. चाचा.. आह क्या माल झड़ा था.. चाचा के लण्ड से आहह्ह्ह्.. सीईईई काफी समय बाद लग रहा था कि चाचा को बुर मिली है.. इसलिए मेरी बुर को अपने पानी से भर दिया।’ मैंने अपनी बुर में उंगली करना चालू रखी थी कि बाहर से संतोष की आवाज आई- मेम साहब चाय ले आया हूँ।
मैंने बुर से उंगली निकाल कर चाटते हुए तौलिया लपेटकर बाहर आ गई। मुझे ऐसी हाल देख कर संतोष आँखें फाड़ कर मुझे देखने लगा। मैंने बेड पर बैठ कर संतोष की तरफ देखा, वह अब भी वहीं खड़ा था और मेरी अधखुली चूचियों को घूर रहा था।
‘संतोष चाय दोगे कि यूँ ही खड़े रहोगे?’ ‘हह्ह्ह्ह्हा.. मेम्म्म्म सास्साब..’ उसने चौंकते हुए मेरी तरफ चाय बढ़ा दी। मैं कप उठाया और चाय पीते हुए.. दूसरे कप की चाय उसे पीने को बोल कर मैं पति को फोन करने लगी।
‘हैलो.. हाँ जी.. बात हो गई संतोष से.. वह आज से ही काम पर है। ‘ओके.. ठीक है जानू..’ मैंने फोन कट कर दिया.. फिर मैं संतोष को बाहर बने सर्वेन्ट क्वार्टर को दिखा कर बोली- तुमको यहीं रहना है और जो भी जरूरत हो.. तुम मुझसे ले लेना.. और मेन गेट खुला है.. ध्यान रखना।
फिर मैं वहाँ से चली आई और मैं कुछ देर आराम कर ही रही थी कि जेठ जी मुझे पुकारते हुए अन्दर मेरे कमरे में आ गए और मुझे किस करके बोले- जानू कोई लड़का आया है क्या?
‘हाँ.. वह आज से घर का सब काम करेगा..’ ‘वाह वैरी गुड.. इसका मतलब अब मेरी जान मुझसे बुर चुदाने के लिए बिल्कुल खाली रहेगी।’
‘हटिए आप भी.. जब देखो इसी ताक में रहते हो.. चलो हटो नहीं तो नायर देख लेगा..’ ‘वह साला अभी कहाँ आया है.. वह रात तक आएगा.. उसे कुछ काम था। मेरा मन नहीं लग रहा था इसलिए चला आया।’ जेठ जी ने मुझे बाँहों में कस कर मेरे होंठ चूसने लगे.. साथ में ब्रा के कप में हाथ घुसा कर मेरी छाती को दबाने लगे।
मैं तो पहले से ही सेक्स में मतवाली थी, जेठ जी के आगोश में जाते मैं चुदने के लिए बेकरार हो कर जेठ से लिपट गई। ‘यह हुई ना बात..’ ‘हाय मसल डालो मेरे राजा.. मेरी चूचियों को.. और मेरे सारे बदन अच्छी तरह से दबाकर चोद दो.. कि मेरी गरमी निकल जाए।’ ‘हाय मेरी जान.. तेरे जैसी औरत को कौन मर्द चोदना नहीं चाहेगा..!’ ‘हाँ मेरी जान जमकर चोद दो.. और किसी के आने से पहले मेरी बुर को झाड़ दो..’
बस फिर क्या था.. जेठ ने पीठ पर हाथ ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया। वे मेरी चूचियों को दबाते हुए चाटने लगे और मैंने भी जेठ के सर को पकड़ कर अपनी छातियों पर भींच लिया। जेठ जी ने मेरे सारे कपड़े निकाल कर मुझे चूमते हुए मेरी टांगों को खोल दिया और अपनी जुबान को मेरी चूत पर रगड़ने लगे।
जेठ मेरी चूत में अपनी जुबान घुसा कर मेरी चूत चाटते और कभी मेरे भगनासे को अपने होंठों और जीभ से रगड़ते.. तो मैं सिसकारी लेने लगती ‘आहह्ह्ह् सीईईई..’
मेरी सिसकारी को सुन कर जेठ मेरी फुद्दी को कस कर चाटने लगे। एक पल तो लगा कि सारे दिन की गरमी जेठ जी चाटकर ही निकाल देगें। मैं झड़ने करीब पहुँच कर जेठ से बोली- आहह्ह्ह् उईईसीई आह.. क्या आप मेरी चूत को अपने मुँह से ही झाड़ दोगे.. घुसा दो अपना टूल.. और मेरी मुनियाँ को फाड़ दो.. आहह्ह्ह..
तभी जेठ मुझे खींच कर बिस्तर के किनारे लाए और मुझे पलटकर मेरे चूतड़ों की तरफ से खड़े-खड़े ही अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाने लगे। आज दिन भर से लंड ले-लेकर बस मैं तड़पी थी.. इसलिए मेरी फुद्दी काफी पानी छोड़ कर चुदने के लिए मचल रही थी। तभी जेठ ने मेरी चूत पर शॉट लगा कर अपने लण्ड को मेरी चूत में उतार दिया।
देखते ही देखते जेठ का पूरा लंड मेरे अन्दर था और वे झटके देकर मेरी चूत का बाजा बजाने लगे। मैं घोड़ी बनी हुई पीछे को चूतड़ और चूत धकेल कर अपनी बुर मराने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
‘गपागप्प..’ जेठ का लण्ड मेरी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था। मैं ज़ोर से चुदने का मजा ले रही थी ‘आआआ.. सस्स्स्स स्स्सस्स.. ओह्ह.. हाय.. उम्म्म्मम.. सस्सस्स ज़ोर से.. अहह अहह.. चोदो आहह्ह्ह्.. मैं गई आहह्ह्ह!’ मेरी कामुक सिसकारी सुनकर जेठ जबरदस्त तरीके से चूत की कुटाई करने लगे और मैं भी ताबड़तोड़ लण्ड के झटके पाकर निहाल हो उठी।
मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया ‘आहह्ह्ह् सीईईई.. मेरी चूत आपके लण्ड की रगड़ पाकर झड़ रही है.. मेरे प्रीतम.. आह्ह..’ जेठ के मस्त झटकों से चूत झड़ने लगी.. पर जेठ का लण्ड अब भी मेरी चूत को ‘भचाभच’ चोद रहा था। जेठ मेरे छातियों को मसकते हुए मेरी फुद्दी की अपने लण्ड से ताबड़तोड़ चुदाई करते जा रहे थे, मेरी झड़ी हुई चूत में जेठ का लौड़ा ‘फ़च-फ़च’ की आवाज करता मुझे चोदता जा रहा था।
तभी जेठ सिसियाकर बोले- बहू मेरा लण्ड भी.. हाय रे.. गया.. मेरा लौड़ा निकला.. माल.. हाय रे.. निकला।’ अपना वीर्य निकलने से पहले ही जेठ ने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और लण्ड मेरे मुँह तक लाकर तेज-तेज हाथ से हिलाते हुए मेरे मुँह पर माल की पिचकारी मारने लगे। ‘आह.. बहू लो पी लो.. मेरे वीर्य को.. आहह्ह्ह् बह्ह्ह्हू..’
उन्होंने मेरे होंठ पर जैसे ही वीर्य गिराया.. मैंने मुँह खोल कर जेठ का लौड़ा अपने मुँह में ले लिया। जेठ जी मेरे मुँह के अन्दर ही पानी छोड़ने लगे और मैं उनका सारा वीर्य पी गई और जेठ का लण्ड पूरा चाट कर साफ़ कर दिया। फिर मैंने अपने होंठों से चेहरे का वीर्य भी जीभ निकाल कर चाट लिया। हम दोनों की वासना का सैलाब आकर जा चुका था। सुबह से मेरी प्यासी चूत को राहत मिल चुकी थी।
तभी मुझे संतोष का ध्यान आया कि वो भी तो घर में ही है। मैं जेठ से बोली- भाई साहब मैं तो चूत चुदवाने के नशे में भूल गई थी.. पर आप भी भूल गए कि संतोष घर में ही है। उसने हम लोगों को देख लिया होगा तो क्या होगा.. आप जाईए और देखिए कि वह कहाँ है?
मित्रो, इसके बाद क्या हुआ क्या संतोष भी..!
कहानी कैसी लग रही है.. जरूर बताना और हाँ.. आप लोग मुझे बहुत प्यार करते हो.. मुझे पता है.. पर आप लोग अंतर्वासना पर आकर मेरी कहानी प्लीज लाईक और कमेन्ट जरूर करें ताकि मुझे प्रोत्साहन मिले और मैं आपका अधिकाधिक मनोरंजन कर सकूँ। आपकी नेहारानी.. कहानी जारी है। [email protected]
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