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अन्तर्वासना के पाठकों को आपकी प्यारी नेहारानी का प्यार और नमस्कार। अब तक आपने पढ़ा..
मैं पूरी तरह झड़कर जेठ से लिपट कर झड़ी चूत पर लण्ड की चोट खाती रही। पर आज ना जाने क्यों जेठ झड़ ही नहीं रहे थे। काफी देर तक चूत को रौंदने के बाद भाई साहब भी अपना अनमोल रस मेरी चूत में छोड़ने लगे, उन्होंने मुझे बाँहों में भर कर एक आखिरी शॉट लगाकर लण्ड जड़ तक पेल कर अपने अनमोल खजाने को मेरी बच्चेदानी में डाल दिया।
पूरी रात जेठ ने कई बार बुरी तरह चोदा और मैं चुदाई से थककर जेठ की बाँहों में ही सो गई।
अब आगे..
काफी देर तक चूत को रौंदने के बाद भाई साहब भी अपना अनमोल रस मेरी चूत में छोड़ने लगे और मुझे बाँहों में भर कर एक आखिरी शॉट लगाकर लण्ड को मेरी चूत की जड़ तक डाल कर अपने अनमोल खजाने को मेरी बच्चेदानी में डालने लगे। आज पूरी रात जेठ ने कई बार बुरी तरह से मुझे चोदा और मैं चुदाई से थककर जेठ की बाँहों में सो गई।
मेरी नींद सुबह 6 बजे खुली.. वो भी तब जब नायर जेठ के कमरे का दरवाजा पीट रहा था। मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और जेठ को जगा कर बोली- बाहर नायर है और मैं इतनी सुबह तक आप ही के कमरे में पूरी नंगी लेटी हूँ.. अब क्या होगा? मैं आप को बता दूँ कि जेठ ने चोद कर मुझे इतना थका दिया था कि सुबह होने का पता ही नहीं चल पाया था।
तभी नायर ने फिर आवाज लगाई- भाई साहब उठिए.. भाभी कमरे में नहीं हैं और आप भी अभी तक सो रहे हैं। जेठ जी मुझसे बोले- नेहा तुम जिस रास्ते आई हो.. उसी से निकल कर छत पर चली जाओ.. ताकि नायर को लगे कि तुम छत पर थीं। जेठ ने नायर से बोला- हाँ भाई मैं उठ गया हूँ.. रुको खोल रहा हूँ। ‘ठीक है..’
जेठ ने जानबूझ कर एक बात कही- नेहा छत पर होगी.. उसकी क्या जरूरत पड़ गई? ‘भाई साहब.. चाय पीना चाह रहा था।’ जेठ जी ऐसा बोल कर यह जानना चाहते थे कि कहीं नायर ने छत पर भी जाकर ना देखा हो.. और अगर गया होगा तो कोई और बात बना कर बताई जाए.. तभी नायर ने आवाज दी- ठीक है.. मैं देखता हूँ छत पर.. आप उठिए..
नायर की बात सुन कर मेरी जान निकल गई.. मैं जेठ से बोली- जल्दी जाकर दरवाजा खोलो.. और रोको उसे.. नहीं तो सब काम चौपट हो जाएगा।
मैं कपड़े लेकर नंगी ही भागकर बगल वाले गेट को खोलकर बाहर निकल कर वहीं खड़ी रही.. क्योंकि नायर बाहर था.. मैं छत पर जा नहीं सकती थी और अगर जेठ ने देरी की.. तो वह इधर भी आ सकता है। मैं नंगी खड़ी अभी यही सोच ही रही थी कि अन्दर से जेठ की नायर को आवाज देते हुए दरवाजा खुलने का आवाज आई। मैं अब भी वहीं खड़ी रहकर यह जानना चाह रही थी कि नायर कमरे में अन्दर गया कि नहीं।
तभी नायर की आवाज सुनाई दी- बहुत देर तक सोते रहे हैं? ‘हाँ यार.. रात ठीक से सो नहीं पाया था.. और सुबह नींद आ गई।’ नायर बोला- भाभी ने अभी तक चाय ही तक नहीं पिलाई और वे इतनी सुबह छत पर क्या करने चली गईं? जेठ ने कहा- आप बैठो.. मैं बुलाता हूँ।
मैं इतना सुनते सीधे छत पर भागी और छत पर पहुँच कर ही रूकी। मैं हड़बड़ाहट में भूल ही गई थी कि मैं पूरी नंगी ही खुली छत पर आ गई हूँ। मैं यहाँ आपको बता दूँ कि मेरी छत पर दो तरफ से ऊँची दीवार है.. पर दो तरफ खुला है.. और जिस तरफ खुला है.. उसके एक तरफ सड़क है और उस तरफ छत पर लोहे की रेलिंग लगी है.. जिससे सब कुछ दिखता है.. और दूसरी तरफ एक मकान था.. जिस पर तीन फुट ऊँची दीवार है.. जो बिलकुल मेरी छत से सटी हुई है। मैं पूरे इत्मीनान से नंगी खड़ी हो कर लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थी। इस हड़बड़ी में मैं यह भूल गई थी कि कोई भी बगल वाली छत से मुझे देख सकता है।
मैंने जैसे ही नीचे से जेठ के बुलाने की आवाज सुनी.. मैं अपने होश में आई और मेरे पास नाईटी तो थी.. जिसे मैंने झट से पहन ली.. पर ब्रा-पैन्टी नहीं पहनने की वजह से मेरा जिस्म पूरी तरह से खुला ही था।
तभी मेरा ध्यान बगल वाली छत पर गया.. उधर बगल वाले चाचा जी थे.. जो अक्सर सुबह के समय छत पर आकर कसरत करते थे। आज तो वह एकटक मुझे घूर रहे थे.. वो भी एक कच्छा पहने हुए थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरा ध्यान जैसे ही उनके कच्छे पर पड़ा.. उसमें में से उनका लण्ड बाहर को निकला हुआ था.. जो कि इस टाईम पूरा तन कर खड़ा था.. और वह एक गधे के लण्ड के समान झूल रहा था।
मैं उनके लण्ड को देखने में यह भूल गई कि वह भी मुझे देख रहे हैं.. शायद उन्होंने मुझे पूरी नंगी देख लिया था.. इसी लिए वह मुझे वासना भरी निगाहों से देख रहे थे। उनकी निगाहें मेरे पूरे जिस्म को निहार रही थीं.. और मैं यह सोचकर शर्म और डर से लज्जित हो उठी कि पता नहीं वे मुझे पूरी तरह से नंगी देख कर क्या सोच रहे होंगे।
कहीं वे इस बात को किसी से कह बैठे.. तो क्या होगा.. बस यही सोचते हुए मैं शर्म से गड़ी जा रही थी और अपने अधखुले जिस्म को ढंकने की नाकाम कोशिश करते हुए मैं नीचे जाने के लिए जैसे ही सीढ़ी की तरफ जाने लगी..
तभी चाचा जी की आवाज मेरे कानों में पड़ी.. और मेरे पैर वहीं जम गए। जिन्होंने कभी मुझसे बात तक नहीं की है.. आज वह मेरा पूरा नंगा जिस्म ही देख चुके हैं और मेरे जिस्म को नंगा देख कर आज इनका लण्ड भी फड़फड़ा उठा है। उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाल कर मुझे भी अपने लौड़े के दीदार करा दिया है और अब पता नहीं क्या कहेंगे कि बहू कोई बात है क्या.. जो तुम बिना कपड़ों के छत पर घूम रही हो.. और जो कुछ भी पहने हुए हो.. वह भी तुम्हारे हसीन शरीर को ढकने के लिए काफी नहीं है।
इस समय मेरा मुँह सीढ़ी की तरफ था और मेरी पीठ और चूतड़ चाचा जी की तरफ थे। मैं उनके मुँह से ऐसे शब्द सुन कर और यह सोच कर कि शायद वे इस समय मेरे चूतड़ और उसकी दरार में निगाह करके बोल रहे हैं.. और कहीं ना कहीं वह मुझे ऐसी हाल में देख कर उत्तेजित होकर खुले सेक्सी शब्द बोल रहे हैं।
पर मैंने उनकी बातों का कोई जबाब ना देते हुए नीचे को भाग आई.. पर नीचे एक और मुसीबत थी.. नायर से मेरा सामना हो गया। नायर ने मेरी तरफ बढ़कर मुझे पकड़ लिया और बोला- कहाँ गई थीं जानम.. इतनी सुबह छत पर कहीं और किसी से चुदने गई थीं क्या? मैं नायर से बोली- रात में आपने जिस हालत में मुझे चोदकर छोड़ा था.. वैसे ही तो हूँ.. बस यूँ ही छत पर खुली हवा लेने चली गई थी। यह बात मैं नायर से कह जरूर रही थी.. पर मेरी निगाह जेठ को खोज रही थी.. जिसे नायर ने ताड़ लिया कि मैं किसे देख रही हूँ। ‘आपके जेठ बाथरूम गए हैं.. इस समय मेरे और तुम्हारे सिवा कोई नहीं है..’ यह कहते हुए नायर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में उठा कर कमरे में लेकर चला गया और मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी छाती को मुँह में भर कर चूसने लगा।
‘यह आप क्या कर रहे हो.. अगर भाई साहब आ गए तो क्या होगा..? छोड़ो मुझे..’ पर नायर मेरी चूचियों को आटा की तरह गूँथते हुए पी रहा था और एक हाथ से मेरी चूत पर रख कर भींचने लगा। छत पर घटी घटना से मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया था.. जिसमें नायर ने अपनी एक उंगली डाल दी और आगे-पीछे करने लगा। तभी बाहर से बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई और नायर मुझे छोड़कर जाने लगा।
मैं नायर से गुस्से में बोली- जो आप अभी कर रहे थे.. ठीक नहीं था.. मैं आपको पहले भी मना कर चुकी हूँ.. यदि आप को मेरी इज्जत की कोई परवाह नहीं है.. तो मैं आपसे कोई रिश्ता नहीं रखूँगी.. ‘सॉरी बेबी.. गलती हो गई.. अब नहीं करूँगा..’ यह कहते हुए नायर बाहर निकल गया और मैं बाथरूम में चली गई।
फिर मैं फ्रेश होकर नाईटी के नीचे ब्रा-पैन्टी पहन कर रसोई में चली गई और चाय बनाकर जेठ और नायर को दे कर और अपनी चाय लेकर अपने कमरे में आकर सोचने लगी कि आज जो हुआ ठीक हुआ कि नहीं.. पता नहीं क्या होगा।
तभी जेठ मेरे कमरे में आकर मेरे से बोले- नेहा, नायर को देख कर लग नहीं रहा कि यह साला तेरी बुर को चोद चुका है.. फिर भी उससे बच कर रहना.. यह कहते हुए उन्होंने मेरे होंठ का एक चुम्बन लिया.. फिर मेरी छाती दाबकर बोले- नेहा.. नाश्ता तैयार कर दो.. नायर मेरे साथ ही बाहर जाएगा। ‘ओके.. मैं अभी तैयार करती हूँ।’
फिर मैंने नाश्ता तैयार करके दोनों को करा दिया। जेठ और नायर बाहर चले गए और अब मैं घर में अकेली थी। मेरे दिमाग में वही सब बातें और सीन चल रहा था और बगल वाले चाचा का गधा चाप लण्ड भी मेरी आँखों में घूम रहा था। क्या मस्त लण्ड था..
चाचाजी की उम्र तो 55 की होगी.. पर लण्ड और कसरती जिस्म मस्त है.. एक बार फिर मैं मान-मर्यादा को भूल कर चूत में उनका लण्ड लेने का ख्वाब देखने लगी।
मैं नहा-धोकर अच्छी तरह तैयार होकर बिना ब्रा-पैन्टी के एक टॉप और स्कर्ट पहन कर फिर से छत पर चल दी.. यह देखने कि मेरे हुस्न को देख कर वह अब भी जरूर छत पर मेरी ताक में होंगे।
मैं गीले कपड़े लेकर छत पर गई ताकि ऐसा लगे कि मैं नहाकर कपड़े फैलाने आई हूँ। छत पर पहुँच कर मैंने बगल वाली छत पर निगाह दौड़ाई.. पर वह कहीं नहीं दिखे.. मैं थोड़ा दीवार की तरफ बढ़कर चारों तरफ देखने लगी.. पर वहाँ कोई नहीं था।
मैं मायूस होकर अपनी बुर दाबते हुए नीचे आने लगी, तभी मुझे बगल वाली छत पर बने कमरे के खुलने की आवाज आई। मैं रूक कर देखने लगी.. वही चाचा थे, वह सीधे मेरी तरफ आ रहे थे।
मेरे जिस्म में थरथराहट होने लगी और जी घबड़ाने सा लगा। तब तक वह मेरे पास आकर बोले- किसे खोज रही हो बहू? मैं उनके इस सवाल से घबरा गई- कक्क्हाँ.. किस्स्स्सी.. को तो न्..न्..न्..नहीं.. ‘लेकिन मैंने कमरे की खिड़की से देखा था कि तुम किसी को ढूँढ रही थीं?’ ‘नहीं तो..’
ये सब बातें करते हुए चाचा दीवार फांद कर मेरी छत पर आ गए और बिल्कुल मेरे करीब आकर बोले- तुम मुझे ही देख रही थी ना.. मुझे पता है बहू.. अगर औरत प्यासी हो.. तो मन भटकता ही है.. और अगर कोई मेरा लौड़ा देख चुकी हो.. तो मैं समझ सकता हूँ कि उसके तन-बदन में आग लग गई होगी.. तुम चाहो तो तुम्हारी आग बुझ सकती है और मेरी भी..
‘छी:.. आप कैसी बातें कर रहे हैं कोई अपनी बहू समान औरत से ऐसी बातें करता है क्या? आप बहुत गंदे हो.. मैं वैसे ही देख रही थी.. इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं आपको ही देख रही थी.. और सुबह मैं अपनी छत पर थी.. चाहे जैसे थी.. पर आप ही मुझे घूर कर देख रहे थे और अपना ‘वह’ निकाल कर दिखा रहे थे।’
‘तुम ठीक कह रही हो.. पर तुम्हारी वजह से मेरी सोई हुई वासना जाग गई है.. और तुम चाहे जो भी कहो.. तुम भी मेरा लण्ड देख कर चुदने के लिए व्याकुल तो हो..’ ये कहते हुए बुड्ढे ने मुझे पकड़ कर चिपका लिया। मैं घबराते हुए बोली- ये क्या कर रहे हैं.. कोई देख लेगा.. क्या कर रहे हो.. छोड़ो मुझे..
‘मैं छोड़ दूँगा.. पर तुम एक बार जो अधूरा कहा है.. वो पूरा कहो.. मैं ‘वह’ क्या दिखा रहा था.. बोल दो.. तो अभी छोड़ दूँगा..’ मैं छटपटाती रही.. पर वह मुझे कस कर अपनी छाती से चिपकाए हुए बोले- जल्दी करो.. नहीं तो कोई देख लेगा। मैं सर नीचे करके बोली- लण्ड.. अब छोड़ो..
वह बोले- कैसा लगा.. बता दो तो जरूर छोड़ दूँगा। ‘आप चीट कर रहे हैं..’ ‘आपको जाना है.. तो बोलना पड़ेगा और वो भी सही-सही..’
मैं क्या करती.. मेरे पास उनकी बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं था- ‘अच्छा लगा..’ ‘एक बात और.. तुमको मेरे लण्ड को देख कर चुदने का मन कर रहा है ना?’
मैं छूटने के लिए भी और मेरे दिल में लण्ड भा गया था इसलिए भी बोल पड़ी- हाँ.. कर रहा है चुदने का मन.. तभी मैं चिहुँक उठी.. उन्होंने अपना एक हाथ ले जाकर मेरी बुर को दबा दिया था.. ‘आउआह्ह..’
मेरी सीत्कार सुन कर उन्होंने मुझे छोड़ दिया.. मैं वहाँ से सीधे नीचे आते वक्त बोली- मैंने जो कहा है.. सब झूठ है.. मेरा कोई मन नहीं है.. पर उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे एक किस उछाल दिया।
दोस्तो, आगे क्या हुआ.. क्या चाचाजी का गधे जैसा लण्ड मुझे चोद पाया? जरूर जानिएगा।
कहानी कैसी लग रही है.. जरूर बताइएगा। आप को मेरी जीवन पर आधारित कहानी अन्तर्वासना पर मिलती रहेगी.. मुझे खुशी है कि मेरे कहानी पढ़ कर आपका वीर्य निकलता है।
कहानी जारी है। [email protected]
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