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हाय दोस्तो.. मेरा नाम प्रेमराज है और मेरी ये पहली कहानी है। आशा करता हूँ कि आपको ये पसंद आए। बात उन दिनों की थी.. जब मैं पढ़ने के लिये पुणे आया था, मैंने एक रूम किराये पर लिया था। जहाँ मैं रहता था वहीं साथ वाले घर में मकान-मालिक.. मालकिन.. उनकी आठ साल की बेटी राधा रहते थे।
जैसे-जैसे दिन गुजरते गए.. मैं उनके परिवार में घुल-मिल गया। मैं मकान मालिक को काका कह कर बुलाता था। एक दिन काका ने मुझसे कहा- राधा को कराटे क्लास जाना होता है और उसके क्लास लगने शुरू हो गए है.. तुम इसको छोड़ आया करो। मैंने ‘हाँ’ कर दी।
एक दिन मैं राधा को क्लास छोड़ने गया.. जब मैं वहाँ गया तो मेरी नजर एक जगह रुक गई। क्या मस्त आंटी थी यार.. बस मन में खयाल आया किम साली को यहीं पटक कर चोद डालूँ। मैं तो बस उन्हें देखता ही रह गया। आंटी ने भी ये सब गौर किया.. उसी वक़्त किसी का धक्का लगने से मैं सपने की दुनिया से वापस होश में आ गया।
तब देखा तो आंटी मेरी तरफ देख कर नशीले अंदाज में मुस्कुरा रही थीं। तो मैंने भी जबाव में मुस्कुरा दिया। क्लास शुरू हो गया.. तो मैं वहाँ से निकलने के लिये अपनी बाइक के पास आया.. तो जैसे मेरा नसीब जोरों पर था मुझे ऐसा लगा.. आंटी ने अपनी स्कूटी मेरी बाइक के पास ही पार्क की थी।
जब आंटी मेरे पास आईं.. तो मेरी हालत फिर से थोड़ी देर पहले जैसी हो गई। अब आंटी ने ही पहल की।
आंटी- हाय.. आपका नाम क्या है? मैं- प्रेमराज पाटिल.. और आपका?
आप यह कहानी अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
आंटी- जानवी देशपांडे.. मेरी बेटी को क्लास लेकर आई हूँ.. और आप? मैं- मैं अपने काका की बेटी को लेकर आया हूँ। आपको बुरा ना लगे तो हम कॉफ़ी पीने चलें? आंटी- हाँ क्यों नहीं.. पर यहाँ नहीं.. अगर आपको दिक्कत ना हो.. तो मेरे घर चलें क्या? यहीं पास में ही मेरा बंगला है।
यह सुनकर मैं तो जैसे सातवें आसमान पहुँच गया। मैंने तुरंत ‘हाँ’ कर दी।
जब हम घर पहुँचे तो आंटी ने कहा- क्लास छूटने में काफी वक़्त है.. मैं फ्रेश होकर आती हूँ.. तुम यहाँ बैठ जाओ। थोड़ी देर बाद आंटी फ्रेश होकर मेरे सामने आईं.. मैं फिर अपने होश गंवा बैठा।
आंटी मेरे करीब आईं और मुझे हिलाकर होश में लाकर पूछा- ऐसे क्या देख रहे हो? मैं- आंटी.. आप बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ? आंटी- हाँ बोलो ना! मैं- आंटी आप बहुत हॉट लग रही हो.. और.. आंटी- और क्या.. प्रेम..? बोलो ना.. मैं- और आपको किस करना चाहता हूँ। आंटी- बस इतना ही क्या.. और कुछ नहीं ना? मैं- ना.. हाँ..
मैं कुछ बोलूँ इससे पहले आंटी मेरे पास आईं और मुझे अपनी बाँहों में लेकर किस करने लगीं। मैं तो बस मजे लेकर आंटी के होंठ जोर-जोर से चूस रहा था। मैं अपना एक हाथ आंटी के मम्मों पर ले गया और जोर से आंटी के मम्मों को दबाने लगा और दूसरे हाथ से आंटी की चूत को सहलाने लगा।
ऐसा करने पर आंटी और भी चहक उठीं.. और आवाजें निकालने लगीं- अहह..ओह.. प्रेम फ़क मी… प्लीज प्रेम और मत तड़पाओ.. आह्ह..
हम दोनों ने कपड़े उतार कर फेंक दिए। बिना कपड़ों की वो क्या मस्त माल लग रही थी। मैं आंटी का एक चूचा अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे हाथ से आंटी की चूत को सहलाने लगा। आंटी भी मेरा हथियार हाथ में लेकर सहलाने लगीं, बाद में आंटी घुटनों पर बैठ गईं और मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगीं। थोड़ी देर बाद मैंने आंटी को गोद में उठा लिया और उनके बेडरूम में ले जाकर उनको पलंग पर लिटा दिया, आंटी रण्डी की तरह पैर फैला कर लेट गईं।
क्या मलाईदार चूत थी आंटी की.. मैं अपना लंड चूत पर रख कर घिसने लगा। आंटी- आहह.. उई.. उई.. प्रेम मत तड़पाओ ना.. फाड़ डालो मेरी चूत को प्लीज.. मैंने अपना लंड जैसे ही चूत में घुसाया तो आंटी जोरों से चीखने लगीं- आहह.. प्रेम मजा आ गया.. और जोर से.. और जोर से..
मैं जोर-जोर से उनको चोदने लगा। थोड़ी देर बाद मैं झड़ने वाला था.. तो मैंने आंटी से पूछा- कहाँ निकालूँ? तो आंटी ने कहा- अन्दर ही.. काफी दिनों से प्यासी है ये चूत.. तो मैं अन्दर ही झड़ गया और अपना लंड वैसे ही अन्दर रख कर कुछ देर आंटी के ऊपर लेटा रहा।
बाद मैं हम दोनों बाथरूम गए और एक साथ नहाए। इसके बाद में आंटी ने कॉफ़ी तैयार की और हमने एक साथ पी। तब तक क्लास छूटने का टाइम हो गया और हम क्लास पहुँच गए। अब हम क्लास के टाइम में मन चाहा सेक्स करते थे।
तो दोस्तो, कैसी लगी मेरी यह पहली कहानी.. आप अपनी प्रतिक्रिया मेरी ईमेल [email protected] पर भेज सकते हैं।
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