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मेरा नाम अर्जुन है, मैं बैंगलोर का रहने वाला हूँ। यह मेरी पहली कहानी है। इस कहानी की शुरूआत हुई सन 2012 में.. जब मैं पहली बार बैंगलोर आया था। मैं नौकरी मिलने के कारण इस शहर आया था। मुझे एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब मिली थी। मेरे पास रहने के लिए घर नहीं था और मैं शहर में नया भी था। मेरा एक साला, बीवी का ममेरा भाई इस शहर में पहले से रह रहा था।
उसने मुझसे कहा- आप मेरे घर पर ही रुक सकते हैं। मुझे यह सुनकर अच्छा लगा कि चलो इस बहाने उससे मुलाकात भी हो जाएगी और कुछ समय के लिए मेरा खर्च भी कम होगा। मैं अगले दिन ही उसके घर में शिफ़्ट हो गया।
उसक घर बहुत सुन्दर था और हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध थी। मैं पहली बार उसकी बीवी से मिला और उसे देखता ही रह गया.. उसका नाम स्वाति था, वह बहुत सुन्दर थी, उसकी फिगर कयामत थी, उसका रंग दूध की तरह सफेद था, उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी। मैं तो उसका दीवाना सा हो गया था, वो एकदम हूर की परी लग रही थी।
मैंने दोनों को ‘हैलो’ बोला और अपने कमरे में सामान लगाने लगा। मैं सुबह लगभग 7 बजे उनके घर पहुँचा था। मेरा साला ऑफिस के लिए निकलने वाला था.. उसने मुझसे बोला- आप भी नहा धो कर फ्रेश हो जाओ.. शाम को मिलते हैं।
साले की बीवी स्वाति भी ऑफिस जाती थी.. पर उस दिन उसने छुट्टी ले रखी थी। घर में दो बाथरूम थे.. जिसमें से एक बाथरूम का दरवाज़ा बन्द नहीं होता था। मुझे इस बात का पता नहीं था और मैं उस बाथरूम में घुस गया.. जिसका दरवाज़ा ठीक था।
स्वाति को भी नहाना था.. इससे पहले वो कुछ कह पाती.. मैंने नहाना शुरू कर दिया था। स्वाति ने सोचा कि मैं सफ़र से आया हूँ इसलिए मुझे नहाने में वक्त लगेगा.. इसलिए वो दूसरे बाथरूम में नहाने चली गई।
मुझे अन्दर जाकर याद आया कि मैं अपना तौलिया बाहर ही भूल गया हूँ। मैं तुरन्त बाहर आया और अपने बैग से तौलिया निकाल कर वापस जा ही रहा था कि मुझे दूसरे बाथरूम में पानी गिरने की आवाज़ आई।
मैं बाथरूम के दरवाज़े की झिरी पर आँख लगाकर देखने लगा। मेरे हल्के से हाथ लगते ही दरवाज़ा थोड़ा सा खिसक गया। मैंने थोड़ा और दरवाज़ा खिसका कर देखा.. स्वाति अपने पूरे कपड़े उतार कर दरवाज़े की तरफ पीठ करके नहा रही थी।
स्वति का बदन दूध की तरह सफेद रंग का था.. उसकी कमर पर कोई भी निशान नहीं था, उसके चूतड़ बिल्कुल साफ और चिकने थे। चूतड़ों के बीच की लकीर साफ नज़र आ रही थी।
स्वाति को पता भी नहीं था कि मैं उसको देख रहा हूँ.. वो मज़े से नहा रही थी और अपने चिकने बदन में मल-मल कर साबुन लगा रही थी।
मैं उसको देखता ही रहा.. उसने अपने पूरे बदन पर साबुन लगकर मुँह पर भी साबुन लगाया। वो साबुन हटाने के लिए खड़ी हुई और अपने ऊपर पानी डालने लगी। खड़े होते ही उसके चूतड़ साफ नज़र आने लगे.. उफ.. क्या कयामत ढहाने वाले चूतड़ थे.. बिल्कुल गोरे.. सफेद.. उसके उन गोल चूतड़ों पर एक तिल तक नहीं था।
वो झुककर बाल्टी से पानी निकालने लगी.. तभी मुझे उसकी गाण्ड का छेद दिखाई दिया.. एकदम गुलाबी छेद था। सारा साबुन निकालने के बाद उसने फेसवाश लगाया और पता नहीं क्यों पलट गई.. उसका जिस्म संगमरमर की तरह तराशा हुआ था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने थोड़ा सा दरवाज़ा और धकेल दिया और अब लगभग आधा दरवाज़ा खुल गया। उसका भीगा नंगा बदन, उसकी गोल और सफेद चूचियाँ.. मस्त गुलाबी चूत.. जिस पर एक भी बाल नहीं था.. मेरे सामने नंगी थी। मैं देखता ही रह गया.. मेरा मन किया कि अभी उसको पकड़ कर चोद दूँ.. पर सोचा कि अभी-अभी तो आया हूँ और एकदम से चुदाई काण्ड कैसे कर दूँ।
मैंने एक प्लान बनाया और दरवाज़े से हट गया और नहाने चला गया। मैंने बाथरूम में जाकर दो बार मुठ्ठ मारी फिर बाहर आ गया।
तब तक स्वाति भी तैयार हो चुकी थी, उसको पता भी नहीं चला कि मैं उसको नंगी देख चुका हूँ। वो बड़े प्यार से बोली- जीजू, कपड़े पहनकर नाश्ता कर लीजिए।
स्वाति मुझे नाश्ता परोस रही थी और मैं उसके बदन को निहार रहा था। उसने टी-शर्ट और पजामा पहन रखा था, उसके चूतड़ पजामे में से साफ उभरे हुए दिख रहे थे, उसके चूचे भी एकदम तने हुए सख्त दिख रहे थे। मुझ पर तो जैसे कोई जादू सा छा रहा था.. मैंने जल्दी से नाश्ता खत्म किया और अपने कमरे में आराम करने चला गया। स्वाति भी घर के काम निबटाकर अपने कमरे में चली गई।
मेरी आँखों में नींद नहीं थी, मैं कुछ देर बाद उठा और स्वाति के कमरे की ओर गया तो देखा कि वो सो रही थी। उसने अपने कमरे का दरवाज़ा बन्द नहीं किया था। मैं अन्दर गया और ध्यान से उसको देखने लगा, सोते हुए वह बहुत सुन्दर लग रही थी। वह उल्टी लेटी थी और उसके चूतड़ उभरे हुए थे। मेरा मन किया कि अभी इसको नंगी करके चोद दूँ.. पर सोचा कि सही वक्त आने दो।
मैं उसको देखता ही रहा.. अचानक उसने करवट बदली तो मैं घबरा गया। मैंने सोचा कि कहीं वो मुझे ऐसे देख न ले.. पर वो सोती ही रही।
अब उसके चूचे ऊपर की तरफ हो गए। क्या गज़ब के चूचे थे.. मैं तो पागल ही हो गया। सोते वक्त उसकी टी-शर्ट थोड़ी ऊपर हो गई थी.. जिसकी वजह से उसका सफेद और चिकना पेट साफ नज़र आ रहा था। उसकी चूची के बटन एकदम सख्त नज़र आ रहे थे।
मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने बाथरूम में जाकर दो बार मुठ्ठ मारी, फिर अपने कमरे में जाकर सो गया।
कुछ देर बाद स्वाति मुझे उठाने आई, वो झुककर मुझे हिलाने लगी। मैं उठा तो उसके मम्मे मेरे सामने थे। मैं उनको देखता ही रह गया.. शायद यह बात स्वाति ने नोटिस नहीं की थी। मैं फ्रैश होकर खाना खाने के लिए आ गया, स्वाति ने बड़े प्यार से खाना परोसा। तब तक मेरा साला भी आफिस से आ गया था। खाना खाते समय मेरे साले ने बताया- मुझे आफिस के काम से चेन्नई जाना पड़ रहा है और एक हफ्ते के बाद लौट पाऊँगा।
वैसे तो हर बार वो स्वाति को अपने साथ ले जाता था.. पर इस बार क्योंकि मैं था इसलिए स्वाति को छोड़ कर जाने का प्रोग्राम बनाया।
अगले दिन मेरा साला सुबह ही घर से निकल गया, मैं जब सो कर उठा तो वो जा चुका था। स्वाति ने नाश्ता बना रखा था.. मुझे उठा देखकर स्वाति चाय बनाने लगी तो मैंने कहा- चाय मैं बना देता हूँ तब तक तुम तैयार हो जाओ।
स्वाति नहाने के लिए जाने लगी.. तो मुझे ध्यान आया कि कहीं वो उस बाथरूम में न चली जाए.. जो कि लॉक हो जाता है। मैं झट से उस बाथरूम में घुस गया और अन्दर से ही स्वाति को बोला- बस दो मिनट में बाहर आता हूँ।
मैंने थोड़ा ज़्यादा वक्त लगा दिया.. तब तक स्वाति दूसरे बाथरूम में चली गई। मैं तुरन्त बाहर आ गया, स्वाति ने दरवाज़ा यूँ ही भिड़ा रखा था। मैंने सोचा कि दरवाज़ा हल्के से धकेल कर अन्दर का नज़ारा देख लूँ.. पर रुक गया.. सोचा कि पता नहीं स्वाति किस करवट से बैठी है.. और अगर उसने मुझे उसको देखते हुए पकड़ लिया.. तो सब गड़बड़ हो जाएगी।
फिर मुझे एक विचार आया.. मेरे पास हमेशा नींद की गोलियाँ पड़ी रहती हैं, मैं चाय बनाने लगा और दो कप में चाय छान ली। स्वाति तब तक बाहर आ चुकी थी और उसने मुझे चाय बनाते हुए पाया तो निश्चिन्त होकर बाल सुखाने कमरे में चली गई।
मैंने मौके का फायदा उठाकर उसके कप में नींद की गोलियां मिला दीं। स्वाति तैयार होकर बाहर आ गई और रसोई से कुछ स्नेक्स ले आई चाय के साथ खाने के लिए। हम साथ में चाय पीने लगे। स्वाति ने मुझसे पूछा- आप दीदी को साथ क्यों नहीं लाए? मैंने उसको बोला- बस जॉब पर सैट होते ही उसको ले आऊँगा।
हम आपस में बात करते रहे और कब चाय खत्म हुई.. पता ही नहीं चला। स्वाति का सर भारी होने लगा.. तो उसने कहा- मैं अपने कमरे में जा रही हूँ और अगर आपको कुछ चाहिए हो तो आवाज़ दे देना।
मुझे पता था कि दवाई असर दिखा रही है। मैं इंतज़ार करने लगा.. मैंने इतनी ही गोलियां डाली थीं कि असर 5 से 6 घंटे तक रहे।
कुछ देर बाद मैं स्वाति के कमरे में गया तो देखा कि वो सुध-बुध खोकर बिस्तर पर पड़ी थी। मैं उसके पास गया और प्यार से उसके गालों को चूम लिया। क्या गज़ब लग रही थी.. वो सोते वक्त.. स्वाति ने शॉर्ट कैपरी और टॉप पहना हुआ था।
मैंने उसको हिला कर देखा कि कहीं वो अभी जगी हुई तो नहीं है.. पर वो बेसुध सो रही थी। मैं बिस्तर पर चढ़ गया और उसके पास लेट गया। मैंने धीरे-धीरे उसको सहलाना शुरू कर दिया.. धीरे से मैंने अपना हाथ उसकी चूचियों पर रख दिया। उफ.. क्या मस्त और सख्त चूचियां थीं उसकी.. मैं तो नशे में सा हो गया था।
मैंने उसके टॉप को थोड़ा ऊपर किया तो उसका चिकना पेट दिखने लगा। दूधिया सफेद रंग.. एकदम सपाट पेट देखकर मुँह में पानी आ गया। मैंने उसका टॉप थोड़ा और ऊपर उठाया तो हैरान रह गया.. स्वाति ने ब्रा नहीं पहनी थी। शायद इसलिए कि दरवाज़ा खराब है जल्दी में सिर्फ टॉप और कैपरी पहन कर आ गई थी। मैंने उसका टॉप पूरा उसके बदन से निकाल दिया, उसकी चूचियाँ एकदम गुलाबी और बहुत प्यारी थीं।
मैंने उसकी चूचियों को दोनों हाथों में भर लिया और चूसने लगा.. बड़ी मुलायम थीं उसकी चूचियां.. मुझे लग रहा था कि किसी अप्सरा की चूची चूस रहा होऊँ। मैंने उसकी चूचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया।
अब मैंने उसकी कैपरी उतारनी शुरू की.. उसको थोड़ा सा उठाकर चूतड़ों के नीचे से कैपरी पूरी उतार दी। स्वाति ने गुलाबी पैंटी पहनी थी, मैंने देर ने करते हुए उसकी पैंटी भी उतार दी। उफ.. सुर्ख गुलाबी चूत.. जिस पर एक भी बाल नहीं.. और चूत की फाँकें एकदम कसी हुई थीं।
मैंने उसकी चूत की ढेर सारी चुम्मियां ले डालीं। मैं तो बस बेताब होता जा रहा था.. मैंने देर न करते हुए अपने सारे कपड़े उतार दिए।
अभी भी मैं उसकी खूबसूरती को देखे जा रहा था। मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में डाली.. तो गीलेपन का एहसास हुआ.. दवाई का असर ज़रूर था.. पर चूची चूसने का असर चूत पर भी हुआ था.. जिस वजह से चूत गीली हो गई थी।
अभी मेरा लौड़ा तोप की तरह खड़ा था और काबू के बाहर होता जा रहा था। इतनी चिकनी और प्यारी चूत देखकर लौड़ा सलामी दे रहा था।
मैंने भी देर ने करते हुए चूत के मुँह पर अपना लौड़ा रख दिया.. उफ्फ.. चूत की गर्मी से लौड़ा अकड़ गया। मैंने धीरे-धीरे लौड़े को अन्दर करना शुरू किया.. पर चूत बहुत कसी हुई थी.. शायद इसलिए कि मेरे साले की शादी को अभी कुछ महीने ही हुए थे और वो ज़्यादातर ट्रिप पर रहता था।
मैंने अपने प्रयास ज़ारी रखे और धीरे-धीरे धक्का लगाने लगा। चूत भी धीरे-धीरे खुलने लगी और मेरे लौड़े को अन्दर जाने का रास्ता मिल गया। मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए.. लौड़े को जन्नत का आनन्द प्राप्त हो रहा था। मैं लगातार स्वाति की चूत में धक्के लगाता जा रहा था और उसकी हिलती हुई चूचियों को देखकर पागल हो रहा था।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि स्वाति जैसी अप्सरा मेरे नीचे मेरे लौड़े से चुद रही है। मेरा मन तो कर रहा था कि उसकी चूत को चोदता ही रहूँ.. पर आधे घन्टे तक चूत को चोदते रहने के कारण मेरा पानी निकलने को था। पहले सोचा कि पानी बाहर निकालूँ.. पर तब तक देर हो चुकी थी और मेरा सारा पानी स्वाति की चूत में छूट गया।
मैं भी इतनी प्यारी चूत चोदकर निहाल हो गया। मैं स्वाति के ऊपर से उठा और उसको देखने लगा। नंगी लेटी हुई बहुत ही सुन्दर लग रही थी।
मैं नंगा ही उठा और बाथरूम में चला गया। मुझे बड़ी ज़ोर से पेशाब लग रही थी.. मूतकर मैं वापस आया और नंगी स्वाति को देखकर मेरा लौड़ा फिर खड़ा होने लगा। उस पर दवाई का असर अभी भी कुछ घंटे तक रहना था। मैं फिर स्वाति के ऊपर चढ़ गया। मैंने फिर से उसकी चूत पर अपना लौड़ा लगाया और उसकी चुदाई शुरू कर दी।
इस बार मैंने स्वाति को जमकर चोदा और फिर से अपना माल उसके अन्दर ही छोड़ दिया। स्वाति जैसी परी को छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था। मैं बाथरूम से तौलिया लाया और स्वाति की चूत साफ करने लगा.. साफ करते करते मैंने उसकी चूत को कई बार चूमा।
मैं स्वाति की चूत का इस कदर दीवाना हो चुका था कि उसको छोड़ना ही नहीं चाहता था। मैंने इन लम्हों को अपने पास कैद करके रखने का सोचा। मैं जल्दी से अपने कमरे में गया और कैमरा ले आया। मैंने स्वाति की ढेर सारी तस्वीरें खींची और कैमरे को ऑटो मोड में डालकर अपने साथ उसको चोदते हुए भी तस्वीरें ले लीं। फिर मैंने स्वाति की चूत साफ करके उसको कपड़े पहना दिए और उसको सही से लिटाकर अपने कमरे में वापस आ गया।
मेरी आँख कब लगी पता ही नहीं चला, शाम को जब मैं उठा तो स्वाति को आवाज़ दी। स्वाति आई और पूछने लगी- नींद अच्छे से आई या नहीं? वो थोड़ी सी अलग लग रही थी। मैंने उसको पूछा तो बोली- हाँ.. तबियत थोड़ी ढीली लग रही है।
मुझे पता था कि ऐसा क्यों है.. पर मैं चुप रहा और उससे कहा- आज खाना बाहर से खा लेते हैं। उसको भी मेरा सुझाव ठीक लगा, मैंने स्वाति से कहा- मैं खाना बाहर से पैक करा लाता हूँ.. तब तक तुम आराम कर लो।
यह कह कर मैं घर से निकल गया। मैं रास्ते में यही सोचता जा रहा था कि अगली बार स्वाति के होश में ही उसको चोदूँगा।
अगली बार मैंने स्वाति को उसके पूरे होश में चोदा और पूरे हफ्ते अलग-अलग तरीके से चुदाई की.. कैसे..? वो अगली कहानी में लिखूँगा।
मेरी कहानी कैसी लगी सुझाव अवश्य भेजें। [email protected] अगली कहानी शीघ्र ही।
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