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यह कहानी मेरी एक परिचिता की है.. सीधे उनकी स्मृतियों के झरोखों से उनकी कलम से उनकी कहानी को जानिए।
मैं अपने दो बच्चों के साथ एक बड़े से घर में अपने पति के साथ रहती हूँ। मेरे मकान में दो किरायेदार रहते हैं। एक फैमिली वाले हैं.. और दूसरे एक कॉलेज में प्राध्यापक हैं, हम उनको सर जी कहकर बुलाते हैं। उनकी शादी नहीं हुई है.. उम्र 25 साल की है। उनसे काफ़ी दिन तक दूरी बनी रही.. अब दोस्ती होने के बाद फैमिली वाले किरायेदार का ट्रांसफर हो जाने से वो मकान खाली कर रहे थे.. तो अकेला जैसा ना लगे.. इसलिए सर जी से दोस्ती कर ली।
मेरी उम्र 45 साल की है, मेरे पति 50 साल के आस-पास के हैं, वे काफ़ी मेहनत करते हैं.. रात को थक हार कर घर आते हैं तो मेरी चुदाई में ढीले पड़ गए हैं।
इस वजह से मैंने अपने नाज़ायज़ संबध सर जी से बना लिए हैं, अब तो सर जी मेरे अपने हो गए हैं। सर जी के साथ चुदाई में सुहागरात जैसा आनन्द आने लगा है। मैंने भी उनको पूरा सम्मान देते हुए उनके सभी काम अपने ऊपर ले लिए हैं। समय पर नाश्ता.. खाना.. बादाम का दूध.. चाय आदि देने लगी हूँ।
दूसरे किराएदार मकान खाली कर गए हैं.. सो अब पूरी आज़ादी है। काम वाली बाई को शक़ ना हो.. इस वजह से उसकी पगार बढ़ा दी है और वो तो ढेर सारी दुआएं देने लगी है।
मेरे पति भी मेरे खुश रहने से वे खुश हैं, बच्चों को अपनी पढ़ाई से मतलब है। मेरे खुश रहने से वो भी अच्छी तरह से पढ़ रहे हैं। बच्चों में से किसी को कोई शक नहीं है.. उन्हें बस इतना पता है कि सर जी जब से मम्मी के हाथ का खाना खा रहे हैं तब से मम्मी खुश हैं।
अब मैं सर जी के साथ पूरा आनन्द लेने लगी हूँ। मेरे दिन सुनहरे और रातें मस्त हो गई हैं। सब ठीक चलने लगा.. मेरे पति को कभी भी शक नहीं हुआ और ना बच्चों को.. हम चुदाई के लिए ऐसा टाइम चुनते.. जिसमें किसी को पता ना चले..
मेरी बचपन की दास्तान कुछ अलग है। मेरी 3 बहनें हैं.. एक बड़ी और 2 छोटी है.. और 3 भाई हैं। एक मुझसे बड़े हैं और 2 छोटे हैं। मेरी बड़ी बहन की शादी 14 साल की उम्र में हो गई। तब मेरी उम्र 11 साल की थी.. जीजाजी कभी-कभी अपने घर गाँव में ले जाते थे। मैं उनको अपनी बहन के साथ मस्ती करते देखती थी।
लगभग 4 साल बाद मैं जवानी की दहलीज पर आई.. तो मेरी शादी के अच्छे घर में हो गई। मेरे पति बहुत अच्छे हैं… पर मेरी दोनों छोटी बहनों के चक्कर में पड़ गए.. तो मेरी भावनाओं.. इच्छाओं ने दम तोड़ दिया।
मैं भी अपने देवर के साथ मज़ाक करने लगी और पता ही नहीं चला कि कब हम दोनों ने शारीरिक संबंध बना लिए। उन्होंने शादी करने से मना कर दिया और वे मेरे दूसरे पति बन गए, दोनों बच्चे देवरजी से ही हैं।
पति तो अपनी सालियों के साथ यानि की मेरी बहनों के साथ रंगरेलियाँ मनाते थे। मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी एक की विधुर से हुई तथा एक की अपने ही रिश्तेदार से करवा दी। समय के साथ साथ देवर जी को ना जाने क्या हुआ.. वो सन्यास लेकर हरिद्वार चले गए। अब मैं पति के साथ रहती तो ज़रूर थी.. पर मेरा मन देवर जी में लगा हुआ था।
फिर मेरी जिंदगी में सर जी आ गए.. अब तो मैं आसमान में उड़ रही हूँ।
आज सर जी के साथ रात को चुदाई में मस्त रही। पति सोते रहे.. वे रात को नींद की गोलियां लेकर सो जाते हैं। मैं सर जी के कमरे में उनको अपना पति मानते हुए चुदाई करवाती रही। सर जी ने मुझे बहुत मज़ा दिया।
एक दिन मैं सर जी के कमरे से निकल कर बाहर आ रही थी तो मेरी बेटी ने देख लिया और उसने आँखें नीचे कर लीं।
मैंने बोलना चाहा तो वो मुझे चुप रहने को बोली और उसने कहा- मम्मी आप कुछ ना बोलें.. तो अच्छा रहेगा। मुझे सब पता है कि आप क्या कर रही हैं.. मैं भी समझदार हूँ। आप जो कर रही हैं.. वो आपकी ज़रूरत है। पापा को फ़ुर्सत ही कहाँ है.. आपकी ओर ध्यान देने की.. आप अपनी जगह पर सही हैं। मुझसे न डरें.. और ना ही ये बात मैं किसी को बोलूँगी।
मेरी समझदार बेटी ने मेरी इज़्ज़त रख ली।
दीवाली के दिन सर जी के साथ पटाखे फोड़े.. दोनों बच्चे भी खुश थे। बेटी की नज़र बार-बार सर जी की ओर जा रही थी। मेरी बेटी जवान हो रही थी.. अब मुझे थोड़ा डर लग रहा था कि बेटी सर जी के साथ कोई संबंध ना बना ले। वैसे दोनों बच्चे सर जी से टयूशन पढ़ते थे।
मैं सोचने लगी कि अब मुझे सावधानी रखनी होगी। शायद मेरी बेटी.. मेरी बात को मन ही मन ही समझ रही थी। वो मुझे अकेले में ले जाकर बोली- मम्मी.. आप चिंता ना करें.. मैं सर जी को सर जी जैसा ही समझूँगी.. उनके साथ आप खुश रहिए.. मैं उनको पापा जैसा सम्मान दूँगी।
मेरी चिंता बेटी ने ख़त्म कर दी। आधी रात के बाद में सर जी के साथ उनके कमरे में सोने चली गई। पति को नींद की गोलियां खाने के बाद कोई होश नहीं रहता है।
मैंने सर जी से बेटी के बारे में बताया.. तो वे बोले- तुम चिंता ना करो.. वो मेरी बेटी जैसी ही रहेगी।
रात को मैंने उनके साथ अपनी हवस पूरी की।
सर जी मुझसे बोले- पहले तो मैं शादी की सोचता था.. अब भाभी आपके कारण शादी नहीं करने की सोची है। अब आप मेरी पत्नी बन कर रहिए.. आपके दोनों बच्चों को मैं अपना ही मानूँगा। मैं बोली- सर जी आपने मेरी सभी चिंता ख़त्म कर दी।
मैंने सर जी का लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। सर जी भी मूड में थे.. वो भी चूत को मुँह से चाटने लगे। चूत को चाटने से ज़्यादा मज़ा आ रहा था। हम दोनों ने पूरा मज़ा लिया। मैं आई तो बेटी को बिस्तर में हिलते हुए देखा.. शायद वो जाग रही थी। मैं चुपचाप अपने कमरे में पति के पास जाकर सो गई.. वो गहरी नींद में थे।
दो दिन से चूत चुदवाने का मन हो रहा है.. सर जी आज आ जाएंगे.. आज रात को पति से चुदवाया.. तो तन की आग और भड़क उठी। मेरे पति मेरी ठीक से चुदाई भी न कर सके। उनका लण्ड खड़ा भी नहीं हो रहा था। मैंने मुँह में लिया तो एक मिनट में सारा रस मुँह में आ गया। कोई स्वाद नहीं था.. पानी जैसा लग रहा था। मैंने उन्हें चूत चूसने को बोला.. तो मुँह लगा कर चूसते रहे.. पर ज़्यादा मज़ा नहीं आया। मेरा मूत निकला.. तो पी गए.. पर कुछ बोले नहीं और सो गए।
मेरे बदन में आग जल रही है.. बेटी अभी सो रही है। सोचा बेटी से लिपट कर अपनी आग बुझा लूँ.. पर ऐसा न कर सकी। अब तो सर जी का इंतज़ार है। सर जी के आने के बाद मैं सर जी के आते ही उनसे लिपट गई। उस वक्त घर में कोई नहीं था। मैं उन्हें अपने बाथरूम में ले जाकर उनको चूमने लगी। मेरे बदन में आग लगी हुई थी.. सर जी हक्के-बक्के थे कि मुझे क्या हो गया था।
वे ऐसा सोच रहे थे.. बोले- भाभी क्या हो गया है आपको.. कहीं आप पागल तो नहीं हो गई हो? मैं बोली- हाँ.. मैं पागल हो गई हूँ.. जल्दी से मेरे बदन की गर्मी शांत करो.. कहीं कोई आ गया.. तो सब मज़ा खराब हो जाएगा।
सर जी ने मेरे मन के मुताबिक चुदाई की.. मैं ठंडी पड़ गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
फिर सर जी को कुछ दिनों के लिए घर से बाहर जाना पड़ा.. मेरी चूत कुलबुलाने लगी थी। एक दिन की बात है.. उस दिन मैं आज सर्दी के मौसम में छत पर धूप ले रही थी.. इतने में बगल के घर की डोरबेल बज उठी।
एक दिन पड़ोस की छत पर नए मेहमान को देखा.. तो उससे मिलने को आतुर हो गई। उसे इशारे से बुलाया। वो 20-22 साल का हैण्डसम लड़का था। मैंने उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सुंदर बताया।
मैंने सुंदर से बातें की.. तो पता चला कि 4-6 दिन के लिए अपने मामा के यहाँ आया है। मैंने उसे चाय के लिए कहा.. तो वो मेरे साथ मेरे घर में नीचे आ गया। हमने चाय पी।
मैं उससे उम्र में काफ़ी बड़ी हूँ.. 45 साल की यानि दुगुनी उम्र की। मैंने उससे गर्लफ्रेण्ड के बारे में पूछा.. तो वो बोला- अभी नहीं बनी है।
ज़्यादा बातें नहीं होती। मुझे वो अच्छा लग रहा था। मैंने उसके गालों पर हाथ लगाया.. तो वो शरमा गया। मैंने उसको चूम लिया.. तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- मैं आपको क्या बोलूँ? मैं बोली- भाभी.. वो बोला- भाभी आज आपके साथ आनन्द आ रहा है.. घर में कोई नहीं है क्या? मैंने बताया- मैं अकेली हूँ.. चलो मजा आ रहा है तो तुम मेरे साथ बेडरूम में चलो..
वो मेरे साथ बेडरूम में आ गया। हम दोनों ने काफ़ी देर तक संभोग का मज़ा लिया… कल सुंदर के साथ सेक्स का मज़ा लिया। सुंदर चला गया.. दूसरे दिन दोपहर में वो फिर आ गया। मैं भी उसका इंतज़ार कर रही थी। कल का नए लड़के के साथ संभोग का आनन्द कुछ अलग ही था।
वो आया और मुझसे चिपट गया। मेरी चूचियां दबाने लगा.. गालों को चूमने लगा.. मेरे होंठों को मुँह में भर लिया। वो एक हाथ से मेरी चूत को रगड़ने लगा.. जैसे मंजा हुआ खिलाड़ी हो। मेरे गालों को चूम-चूम कर चाटने लगा। वो मुझे मौका ही नहीं दे रहा कि मैं उसको पकड़ पाऊँ।
मैंने भी उसके लण्ड को अपने हाथ में लेकर मसलने लगी। उसके लण्ड से पानी निकल रहा था.. उसका लण्ड गीला था। मेरी चूत भी गीली हो गई थी। मैंने उसके लण्ड को मुँह में ले लिया और चूसने लगी.. कुछ ही देर में उसका सारा पानी निकल गया.. मैं उसे मजे से चाट गई.. उसका माल काफ़ी गाढ़ा और मज़ेदार था।
उसने भी मेरी चूत को चाटा और मेरा सारा रस पी गया। मुझे पेशाब आ रही थी.. वो मेरे साथ बाथरूम में आकर मेरा सारा पेशाब पी गया। बाद में चुदाई का दौर चला और चुदाई का मज़ा लिया.. सही में आज फिर सुहागरात का मज़ा आ रहा था।
बाकी अगले दिन वो एक दोस्त को लेकर भी आया और मुझसे बोला- भाभी आज हम दोनों के साथ सेक्स करना चाहोगी। मैंने कभी भी एक साथ दो लड़कों के साथ चुदाई का मज़ा नहीं लिया था, मैं तैयार हो गई।
एक ने मेरे मुँह में अपना लण्ड दे दिया और सुंदर मेरी चूत को चाटने लगा। दूसरा दोस्त उसका नाम हरी था.. उसका लण्ड काफ़ी बड़ा था और मुझे मज़ा आ रहा था। नीचे से सुंदर मज़ा दे रहा था और मुँह में हरी का लण्ड था, मुझे काफ़ी मज़ा आया, हरी के लण्ड का पानी निकल गया.. तो हरी मेरी चूत को चाटने लगा और सुंदर ने लण्ड मेरे मुँह में रख दिया।
बाद में हरी ने मुझे पहले चोदा.. फिर सुंदर ने चोदा.. मुझे उस दिन काफ़ी आनन्द आया। दोनों ने एक साथ चुदाई की.. मेरे बदन की सारी गर्मी निकाल दी। दो के साथ चुदाई.. बाप रे बाप.. मैं तो सुहागरात को भूल गई, मैं उन दोनों को एक साथ बाँहों में भरकर बेतहाशा चूमने लगी। ऐसा लग रहा था कि ये पल कभी ना बीते.. पर बच्चों के आने का समय हो रहा था। मैंने उनको कल आने को कहा। जाते-जाते वे दोनों मेरे चूचे मसल गए.. मुँह को चूम गए।
अगले दिन सुंदर अकेला आया। वो बोला- आज हरी कहीं गया है.. भाभी मैं तो आपका दीवाना हो गया हूँ। मुझे अपने घर में ही रख लो.. रोजाना आपको चोदूंगा.. आप भी मज़ा लेना और मैं भी मज़ा लूँगा। मैं बोली- सुंदर धीरज रखो.. सब ठीक रहेगा.. आज तो मज़ा ले लें.. फिर आगे की बातें होंगी।
यह कहानी अनवरत यूँ ही चलती रही.. आपको आगे भी मेरी जिन्दगी के अनछुए पहलुओं को जानने का अवसर मिलेगा.. मुझे अपनी जिन्दगी से कोई शिकवा नहीं है। मुझे लगता है कि मेरी सीधी सपाट भाषा से आपको लुत्फ़ आया होगा। यदि उचित लगे तो ईमेल कीजिएगा।
कहानी जारी है। [email protected]
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