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दोस्तो आज पेश है, मुंबई की सुंदरी रोमा की सेक्स कहानी। एक पूरी तरह से सच्ची कहानी जो रोमा की खुद की जुबानी है, उसने खुद ई मेल के जरिये मुझे बताई है। कहानी काफी लंबी है क्योंकि रोमा चाहती थी कि उसकी पति के अलावा किसी गैर मर्द से उसकी पहली चुदाई की एक एक डीटेल इस कहानी में आए, इसलिए धैर्य से पढ़ें और मज़ा लें।
दोस्तो, मेरा नाम रोमा गुप्ता है और मैं 28 साल की एक बेहद स्मार्ट औरत हूँ, एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर हूँ, पति भी एक मल्टी नेशनल कंपनी में बड़ी पोस्ट पर है, पर उनकी टूरिंग जॉब है इसलिए अक्सर घर से बाहर ही रहते हैं।
अब प्राइवेट कंपनियों में काम का बोझ तो बहुत होता है इसलिए हम दोनों को हर वक़्त अपने काम की चिंता रहती है, इसी वजह से इस छोटी सी उम्र में ही हमारी सेक्स लाइफ जो है उसमें काफी ठहराव सा आ गया है, इसी वजह से हम दूसरे बेबी की प्लानिंग नहीं कर पाये। एक बेटी है छोटी सी, अभी स्कूल में एल के जी में है।
अब जब पति घर से अक्सर बाहर रहते हैं, तो जब कभी रात को या दिन में मेरा सेक्स को दिल कर भी जाता तो मेरे पास अपनी आग को बुझाने का कोई दूसरा चारा नहीं था। न ही मेरी ऐसी कोई इच्छा थी कि बाहर किसी से कोई अपना ऐसा संबंध बनाऊँ, तो मेरे पास सिर्फ एक ही ऑप्शन बचती थी, हस्तमैथुन। पहले तो कभी कभी करती थी, मगर पति पर काम का बोझ इतना था कि वो तो महीने में 15 बाहर और बाकी के 15 दिन में भी बस एक दो बार ही कर पाते थे।
मैंने यह भी देखा कि अब उनमें वो पहले जैसा जोश या ताकत भी नहीं रही थी। कई बार तो मैं कितनी कितनी देर उनके लंड (माफ करना मैं वो शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकती इसलिए वरिंदर जी से अनुरोध है कि प्लीज़ जहाँ पप्पू लिखूँ तो मर्दों का ‘वो’ लिख देना और जहाँ मुनिया लिखूँ तो वहाँ लेडीज़ की ‘वो’ लिख देना, और अपने हिसाब से बाकी भी एडजस्ट कर लेना) को अपने मुँह में लेकर चूसती रहती मगर उनमें जोश ही नहीं आता।
उनका लंड थोड़ा बहुत सर उठाता मगर कड़क नहीं होता और वैसे ही ढीला का ढीला रहता, हाँ मेरे चूसने से ढीला ही स्खलित हो जाता और मैं मन ही मन में रोकर रह जाती। पति भी मेरी चूत को चाट कर या उंगली डाल कर मुझे स्खलित कर देते, मगर लंड से चुद कर स्खलित होने वाला स्वाद नहीं आता, या यूं समझो के लंड से स्खलित हुये तो मुझे अरसा बीत गया, मगर इसके बावजूद भी मैंने कभी बाहर मुँह नहीं मारा, चाहे मेरे ऑफिस के भी बहुत से मर्द मुझ पर लाइन मारते थे।
कई बार सोचा भी कि ‘चलो ये वाला अच्छा है,सुंदर है, जवान है, ये मेरे तन की आग बुझा सकता है!’ मगर नहीं, फिर सोचा अगर कल को बाहर पता चल गया तो ऑफिस में भी बदनामी होगी, और मेरा घर भी टूट सकता है। इसी वजह से मैं अपने मन को रोक लेती और शाम को घर जाकर उसके नाम से हस्तमैथुन करके अपनी इच्छा और ज़रूरत दोनों को पूरा कर लेती।
वक़्त बीतता गया, एक दिन हमारा एक भतीजा, इनकी बहन का लड़का वीरेन, जो 22 साल का था और गाँव में रहता था, काम ढूंढने मुंबई आया और हमारे ही घर में रुका। देखने में वो ठीक ठाक था, गंवारपन उसके चेहरे से ही झलकता था, तो मेरे जैसी मॉडर्न औरत के लिए उसकी कोई वैल्यू नहीं थी। मैंने उसे कभी भाव नहीं दिया। हाँ वो मुझे जिस नज़र से देखता था, उसका मुझे पूरा ख्याल था, मैंने नोटिस किया था कि वो अक्सर मेरे कपड़ों के अंदर तक देखने की कोशिश करता था।
अब मुंबई में रहने वाली एक मॉडर्न लेडी तो कपड़े भी मॉडर्न ही पहनेगी। मैं भी ऑफिस जाते वक़्त कोट पैंट पहनती थी, हमारी ड्रेस जो थी। घर में अक्सर जीन्स टी शर्ट, या कैप्री वगैरह। रात को मैं खूब ढीली सी नाईटी पहनती थी, जिसका गला बहुत बड़ा था और मेरे आधे से ज़्यादा बूब्स तो उसमे से बाहर ही दिखते थे, ऊपर से उसका कपड़ा भी थोड़ा पतला सा ही था।
चलो ये सब तो आम बात है, मगर मैं फिर भी उसके देखने को इगनोर करती थी। अक्सर मैं उस से अपने घर के काम वगैरह करवाती रहती थी।
ऐसे ही एक दिन मेरे पति अपने काम की वजह से 4-5 दिन के लिए बाहर टूर पे गए थे, शनिवार का दिन था। घर आकर मैंने देखा फ्रिज में सब्जी नहीं थी, तो सोचा कि चलो जाकर ले आती हूँ। वैसे भी मौसम खराब हो चला था, आसमान में गहरे बादल छा रहे थे, बारिश हो सकती थी, तो मैंने बारिश से पहले ही बाज़ार से सामान लाने का फैसला किया और झट से बेडरूम में गई। मैंने ऑफिस के कपड़े बदले, एक टॉप और कैप्री पहनी, चश्मा उठाया और जैसे ही जाने लगी। फ़िर सोचा कि सब्जी कौन उठाएगा तो वीरेन को आवाज़ लगाई, स्कूटी निकाली, उसे पीछे बिठाया और मार्केट की और चल दी।
रास्ते में जाते जाते मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे वीरेन जो पीछे से मेरे साथ सट कर बैठा था, उसके और मेरे बीच कोई लकड़ी का डंडा आ गया हो। पर यह लकड़ी का डंडा पहले तो नहीं था, मुझे समझते देर न लगी कि वीरेन का लंड खड़ा हो गया है। मगर मैं तो उसकी चाची लगती हूँ, फिर यह भी सोचा कि चाची तो हूँ, पर जवानी चाची मामी को नहीं जानती।
पहले तो मैंने सोचा कि इससे कहूँ, पर क्या कहूँ ‘ए वीरेन, अपना पप्पू पीछे हटा?’ नहीं… मैं ऐसे कैसे कह सकती हूँ। फिर मैं थोड़ा सा आगे को सरक गई, मगर मेरे आगे से सरकने से भी समस्या का कोई हल नहीं निकला, उसका लंड अभी भी मेरे लेफ्ट हिप से लग रहा था। कभी मन में गुस्सा आता, कभी शर्म सी आती।
इसी कशमकश में मार्केट आ गई, हमने मार्केट में बहुत सारी सब्जी और समान खरीदा और वापिस घर को चल पड़े। अभी थोड़ी दूर ही गए थे कि जोरदार बारिश शुरू हो गई, बारिश के साथ तेज़ हवा भी चल रही थी।
एकमिनट में ही हम भीग गए, पहले सोचा कि कहीं रुक जाती हूँ, मगर फिर सोचा ‘नहीं’ और स्कूटी दौड़ा दी। मगर इस बारिश और ठंडी हवा ने तो मेरी कंपकंपी छुड़ा दी। जब ठंड लगी तो मैंने वीरेन से कहा- अरे बड़ी सर्दी है यार, थोड़ा सा पास होकर बैठ जा, साथ में सट कर! वीरेन पीछे से बिल्कुल मेरे साथ चिपक गया, मैंने महसूस किया कि उसका लंड बेशक ढीला था, मगर मेरे चूतड़ों के साथ लगने के बाद उसमें फिर से कड़कपन आ रहा था। थोड़ी सी ही देर में मुझे एक लकड़ी का मोटा डंडा बिल्कुल अपने कूल्हे से सटा हुआ लगने लगा। मगर अब मुझे इससे कोई प्रोब्लम नहीं थी, मेरे दिल एक शैतानी खुराफात ने जन्म ले लिया था।
हम घर पहुँचे, बेटी पड़ोस में ही कोचिंग लेने गई थी, घर में हम अकेले ही थे, मैंने सब्जी उसे रसोई में रखने को कहा, मैंने देखा, उसकी पेंट में से उसके तने हुये लंड की पूरी शेप बनी हुई थी। मैंने सोच लिया कि आज रात मैं इस गंवार से अपनी प्यास बुझाऊँगी।
मैं बेडरूम में गई और अपनी अलमारी से अपनी नाइटी निकाली, और वीरेन को आवाज़ लगाई कि वो भी अपने गीले कपड़े बदल ले। मैं नाईटी लेकर बाथरूम में चली गई मगर बाथरूम का दरवाजा मैंने जानबूझ कर पूरा का पूरा खुला छोड़ दिया। जब वीरेन कमरे में आ गया तो मैंने बाथरूम में अपना टॉप उतारा और फिर अपनी कैप्री उतारी। मेरे बदन पे सिर्फ मेरी ब्रा और पेंटी थी जो बिल्कुल भीग चुकी थी और मेरे ट्रांसपेरेंट ब्रा में से मेरे स्तन और चूचुक बिल्कुल साफ दिख रहे थे।
मैंने बहाने से चोर नज़र से देखा। वीरेन तो आँखें फाड़ फाड़ कर मुझे घूर रहा था, शायद उसे यह उम्मीद ही नहीं थी कि मैं कभी उसे इस रूप में भी दिखूंगी। मैं जान बूझ कर बेपरवाह बनी बाथरूम में तौलिये से अपना बदन पोंछ रही थी।
तभी अचानक वीरेन पीछे से आया और आकर उसने मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं एकदम से बोली- वीरेन, यह क्या कर रहे हो? मगर वीरेन ने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों उरोज पकड़ लिए और अपना लंड मेरे पीछे मेरे चूतड़ों की दरार से लगा दिया, अपना मुँह मेरे कान के पास लाकर बोला- चाची, मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, मैं आपके बिना नहीं जी सकता, आई लव यू! कह कर उसने मेरे गाल पर चूम लिया।
मैं अपने आप को उसकी पकड़ से छुड़वाने की कोशिश तो कर रही थी, मगर यह कोशिश सिर्फ दिखावा भर था, क्योंकि मुझे इस सब में मज़ा आ रहा था। वो मेरी गर्दन और कंधों पर बार बार यहाँ वहाँ चूम रहा था, मेरे दोनों स्तन को हल्के हल्के दबा रहा था, सहला रहा था, अपना लंड वो मेरी पेंटी के ऊपर से ही जैसे मेरे अंदर घुसेड़ देना चाहता था।
मैंने अपने दोनों हाथ से वाश बेसिन पर टिका कर सहारा ले रखा था और वीरेन पीछे से धक्के मार रहा था। जब मैंने विरोध करना बंद कर दिया तो वीरेन ने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे चेहरे को अपने हाथों में पकड़ लिया। मैंने आँखें बंद कर ली तो वीरेन ने मेरे होंठों को आपने मुँह में लेकर चूमा और मेरे होंठ चूसना शुरू कर दिया, अब उसका लंड मेरे पेट लगा हुआ था और मैं महसूस कर रही थी लंड का साइज़ मेरे पति के लंड से लंबाई और मोटाई दोनों में ज़्यादा है।
मैंने मन में सोचा जब यह लंड मेरी चूत के अंदर घुसेगा तो मुझे कितना मज़ा आएगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरे होंठ चूसते चूसते वीरेन ने मेरे दोनों बूब्स अब सामने से पकड़ कर दबाना चालू कर दिया तो मैंने भी चूमा चाटी में उसका साथ देना शुरू कर दिया, अब मैं भी उसके होंठ चूम रही थी, उसके होंठों और उसकी जीभ को अपनी जीभ से चाट कर मज़ा ले रही थी। एक तरह से मैंने खुद को वीरेन के हवाले कर दिया था।
वीरेन ने अपना लंड मेरी दोनों टाँगों के बीच में सेट किया और ज़ोर से ऊपर को उठाया तो मेरे तो पाँव जमीन से उठ गए, लड़के ने अपनी और अपने लंड की ताकत का बहुत सुंदर नमूना पेश किया, और उसकी इसी अदा पर मैंने अपना सब कुछ उसको समर्पित कर दिया, अब वो अगर यही बाथरूम में ही मुझे नंगी करके मेरे साथ सेक्स करे तो मैं उसे एक पल के लिए भी मना नहीं करती।
मगर तभी दरवाजे की घंटी बज गई। मैंने झट से वीरेन को बाथरूम से बाहर धकेला और झटपट में अपना गीला ब्रा और पेंटी उतार कर नाइटी पहनी और जाकर दरवाजा खोला। बाहर गुप्ता जी खड़े थे, गुड़िया उनके घर कोचिंग लेने गई थी, मगर बाहर बारिश में भीग गई। गुप्ताजी ने भी से मेरी नाइटी के गले में से दिख रहे मेरे वक्ष उभारों को अपनी नज़रों से सहलाया, मुझे थोड़ी शर्म सी भी आई, मगर मैंने झट से उनको थैंक्स कहा, गुड़िया को अंदर खींचा और दरवाजा बंद कर लिया।
जब अपने को देखा तो मेरा बायें चूचे का सिर्फ निप्पल ही ढका हुआ था, बाकी तो सारा बूब ही बाहर को निकला पड़ा था। मुझे बड़ा अजीब लगा के गुप्ताजी भी क्या सोचेंगे मेरे बारे में!
खैर गुड़िया के कपड़े बदलने के बाद मैं उसे हाल में बैठा कर खाना बनाने चली गई। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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